"प्लूटो (बौना ग्रह)": अवतरणों में अंतर

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06:09, 18 जनवरी 2013 का अवतरण

कम्पूटर द्वारा बनाया गया घूर्णन करते हुए यम का दृश्य

यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं।[1][2]

रंग-रूप

प्लूटो की सतह पर बैठे हुए नज़ारा - कम्पूटर पर रचित काल्पनिक चित्र

प्लूटो का व्यास लगभग २,३०० किमी है, यानि पृथ्वी का १८%। उसका रंग काला, नारंगी और सफ़ेद का मिश्रण है। कहा जाता है के जितना अंतर प्लूटो के रंगों के बीच में है इतना सौर मण्डल की बहुत कम वस्तुओं में देखा जाता है, यानि उनपर रंग अधिकतर एक-जैसे ही होते हैं। सन् १९९४ से लेकर २००३ तक किये गए अध्ययन में देखा गया के प्लूटो के रंगों में बदलाव आया है। उत्तरी ध्रुव का रंग थोड़ा उजला हो गया था और दक्षिणी ध्रुव थोड़ा गाढ़ा। माना जाता है के यह प्लूटो पर बदलते मौसमों का संकेत है।

वायुमंडल

प्लूटो की कक्षा (लाल रंग में) बाक़ी ग्रहों की कक्षा से कोण पर है (वरुण की कक्षा नीले में है)
प्लूटो की कक्षा (लाल रंग) कभी तो वरुण की कक्षा (नीला रंग) के अन्दर होती है और कभी बाहर

प्लूटो का बहुत पतला वायुमंडल है जिसमें नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साईड है। जब प्लूटो परिक्रमा करते हुए सूरज से दूर हो जाता है तो उसपर ठण्ड बढ़ जाती है और इन्ही गैसों का कुछ भाग जमकर बर्फ़ की तरह उसकी सतह पर गिर जाता है, जिस से उसका वायुमंडल और भी पतला हो जाता है। जब प्लूटो सूरज के पास आता है तब उसकी सतह पर पड़ी इसी बर्फ़ का कुछ भाग गैस बनकर वायुमंडल में आ जाता है।

चन्द्रमा

प्लूटो के चार ज्ञात उपग्रह हैं - १९७८ में खोज किया गया शैरन, २००५ में खोज किये गए दो नन्हे चन्द्रमा, निक्स और हाएड्रा, और २० जुलाई २०११ को घोषित किया गया ऍस/२०११ पी १ (S/2011 P 1)।

ग्रह या बौना ग्रह

१९३० में अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबौ ने प्लूटो को खोज निकाला और इसे सौर मण्डल का नौवा ग्रह मान लिया गया। धीरे-धीरे प्लूटो के बारे में कुछ ऐसी चीजें पता चलीं जो अन्य ग्रहों से अलग थीं -

  • इसकी कक्षा अजीब थी। बाक़ी ग्रह एक के बाहर एक अंडाकार कक्षाओं में सूरज की परिक्रमा करते हैं लेकिन प्लूटो की कक्षा वरुण की कक्षा की तुलना में कभी सूरज के ज़्यादा समीप होती है और कभी कम।
  • इसकी कक्षा बाक़ी ग्रहों की कक्षा की तुलना में ढलान पर थी। बाक़ी ग्रहों की कक्षाएँ किसी एक ही चपटे चक्र में हैं, जिस तरह जलेबी के लच्छे एक ही चपटे अकार में होते हैं। प्लूटो की कक्षा इस चपटे चक्र से कोण पर थी। ध्यान रहे के इस कोण की वजह से प्लूटो और वरुण की कभी टक्कर नहीं हो सकती क्योंकि उनकी कक्षाएँ एक दुसरे को कभी काटती नहीं हालांकि चित्रों में कभी ऐसा लगता ज़रूर है।
  • इसका आकार बहुत ही छोटा था। इस से पहले सब से छोटा ग्रह बुध (मरक्युरी) था। प्लूटो बुध से आधे से भी छोटा था।

इन बातों से खगोलशास्त्रियों के मन में शंका बन गयी थी के कहीं प्लूटो वरुण का कोई भागा हुआ उपग्रह तो नहीं, हालांकि इसकी सम्भावना भी कम थी क्योंकि प्लूटो और वरुण परिक्रमा करते हुए कभी ज़्यादा पास नहीं आते। फिर, सन् १९९० के बाद, वैज्ञानिकों को बहुत सी वरुण-पार वस्तुएँ मिलने लगीं जिनकी कक्षाएँ, रूप-रंग और बनावट प्लूटो से मिलती जुलती थीं। आज वैज्ञानिकों ने यह पहचान लिया है के सौर मण्डल के इस इलाक़े में एक पूरा घेरा है जिसमें ऐसी ही वस्तुएँ पायी जाती हैं जिनमें से प्लूटो सिर्फ़ एक है। इसी घेरे का नाम काइपर घेरा रखा गया।

२००४-२००५ में इसी काइपर घेरे में हउमेया और माकेमाके मिले जो काफ़ी बड़े थे (हालांकि प्लूटो से थोड़े छोटे थे)। २००५ में काइपर घेरे से भी बाहर ऍरिस मिला, जो प्लूटो से बड़ा था। यह सारे अन्य ग्रहों से अलग और प्लूटो से मिलते जुलते थे। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ असमंजस में पड़ गया क्योंकि लगने लगा के ऐसी कितनी ही वस्तुएँ आने वाले सालों में मिलेंगी। या तो यह सब ग्रह थे या फिर प्लूटो को ग्रह बुलाना बंद करके कुछ और बुलाने की ज़रुरत थी। १३ सितम्बर २००६ को इस संघ ने ऐलान किया के प्लूटो ग्रह नहीं है और उन्होंने एक नई "बौना ग्रह" की श्रेणी स्थापित करी। प्लूटो, हउमेया, माकेमाके और ऍरिस अब बौने ग्रह कहलाते हैं।[3]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Pluto: Sentinel of the Outer Solar System, Barrie W. Jones, Cambridge University Press, 2010, ISBN 978-0-521-19436-5
  2. Patrick Moore's Data Book of Astronomy, Patrick Moore, Robin Rees, Cambridge University Press, 2011, ISBN 978-0-521-89935-2, ... Pluto ... 248.09 years (90,613.3 days) ...
  3. The hunt for planet X: new worlds and the fate of Pluto, Govert Schilling, Springer, 2009, ISBN 978-0-387-77804-4
  वा  
सौर मण्डल
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