पश्चिमी पाकिस्तान
पश्चिमी पाकिस्तान مغربى پاکستان পশ্চিম পাকিস্তান | ||||||
पाकिस्तान की पूर्व पश्चिमी इकाई | ||||||
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राष्ट्रिय ध्येय "ईमान, इत्तेहाद, तन्ज़ीम" | ||||||
राष्ट्रगान क़ौमी तराना | ||||||
पश्चिमी पाकिस्तान का मानचित्र
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राजधानी | कराँची (1947–1955) लाहौर (घोषित) इस्लामाबाद (1965–1970) | |||||
भाषाएँ | उर्दू (राजभाषा) अंग्रेज़ी (आधिकारिक) विभिन्न क्षेत्रीय भाषाएँ | |||||
धार्मिक समूह | इस्लाम सनातन धर्म ईसाई धर्म | |||||
शासन | संसदीय अधिराज्य (1947–58) राष्ट्रपतिज्ञ रानाराज्य (1960–69) सैन्य तानाशाही(1969–70) | |||||
ऐतिहासिक युग | शीतयुद्ध | |||||
- | स्थापना | 14 अगस्त 1947 | ||||
- | अंतिम विस्थापन | 22 नवम्बर 1954 | ||||
- | विस्थापन[1] | 1 जुलाई 1970 | ||||
मुद्रा | पाकिस्तानी रुपय (M) | |||||
दूरभाष कूट | +92 | |||||
आज इन देशों का हिस्सा है: | पाकिस्तान | |||||
a. | सैन्य शासन के अधीन | |||||
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पश्चिमी पाकिस्तान(उर्दू: مغربی پاکستان, मग़रिबी पाकिस्तान, बांग्ला: পশ্চিম পাকিস্তান, पोश्चिम पाकिस्तान) , एक इकाई व्यवस्था के तहत, तत्कालीन पाकिस्तान (पाकिस्तान अधिराज्य) की पश्चिमी इकाई थी, जो अब, (बांग्लादेश के अलग होने के बाद से) वर्तमान पाकिस्तान है।[2]
पृष्ठभूमि
[संपादित करें]पाकिस्तान की स्थापना पाकिस्तान आंदोलन का सीधा परिणाम था, जिसके रहनुमा मुहम्मद अली जिन्नाह थे। सन 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के पारित होने के साथ ही, भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान की स्थापना हुई थी। इस विभाजन के तहत ब्रिटिश भारत के पूर्वी व पष्चिमी छोरों पर मुस्लिम बहुल इलाकों को पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया। साथ ही इसी विभाजन के तहत, ब्रिटिश-भारत के पंजाब एवं बंगाल प्रांतों को भी विभाजित कर दिया गया और पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब को पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया। पाकिस्तान के भूक्षेत्र में ब्रिटिश-शासित भारत के पाँच प्रांत थे: पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, बलूचिस्तान, सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत। साथ ही कुछ रियासतों ने भी पाकिस्तानी संध में शामिल होने का प्रस्ताव स्वीकार किया था।
विभाजन के बाद, धर्म के नाम पर लाखों लोगों ने इस रेखा के दोनो पार पलायन किया था। तत्पश्चात, क्योंकि उस देश में कोई भी संविधान नहिं था, इसीलिए पाकिस्तान को १९३५ के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत शासित किया जा रहाथा। संविधान नहीं बन पाने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था, की दोनों भागों के सियासी नेतृत्व, संविधान से सम्बंधित कई अहम विषयों पर समन्वय की स्थिति में नहीं आ पा रहे थे। विभाजन व पाकिस्तान की स्थापना के पश्चात्, ऐसी स्थिति में, व्यवस्थापिका को पाकिस्तान के दो पृथक भागों को, जो करीब हजार मील की भारतीय भूमि से अलग-थलग थे, को एक ही जगह से, प्रशासित करने में खासी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा, पश्चिमी भाग स्वयं ही चार प्रांतों, कबाइली इलाके एवं विभिन्न रियासतों में विभाजित था, जबकी पूर्वी भाग को एक प्रांत था। इसके अलावा, पूर्वी भाग में पश्चिमी भाग के मुकाबले, व्यवस्था, नौकरशाही व सैन्य सुरक्षा की अति निष्पर्याप्ती थी। तथा, पश्चिमी भाग तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित था एवं उसके पास बड़ी सेना व पर्याप्त नौकरशाही व व्यवस्थापिका थी। अतः पूर्वी भाग, जो पश्चिम के ही तुलनात्मक जनसंख्या रखता था, के लिये विकास व सम्पन्नता का रास्ता कठिन एवं पश्चिम के मुकाबले असाम्य था। ऐसी स्थिति में पूर्वी हिस्से की नेत्रित्व के मन में भाषा व सांस्कृतिक मुद्दों के अलावा, शक्तियों व सुविधाओं के बंटवारे व सामरिक व आर्थिक समानता के विषय को लेकर गंभीर प्रश्न थे।[3]
इस भौगोलिक स्थिति से उपजी प्रशासनिक व असमानता की कठिनाई, व आर्थिक नाउम्मीदी के समाधान के लिए एक विशेष प्रांतीय व्यवस्था का मसौदा तैयार किया गया, जिसे "एक इकाई व्यवस्था" कहा गया, जिसके तहत दोनों हिसों में केवल एक ही प्रांत होगा, अतः दोनों को बराबर की राजनीतिक शक्ति प्राप्त होगी। साथ ही, इस योजना में अन्य विकस नीतियों को भी शामिल किया गया था। प्रधानमंत्री चौधरी मुहम्मद अली ने १४ अक्टूब १९५५ को, ३० सितंबर १९५५ मे पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा में पारित, पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को मिला देने के अधिनियम को कार्यान्वित कर, वन युनिट सिस्टम को लागू कर दिया। तत्पूर्व, प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने २२ नवंबर १९५४ को इसकी आधिकारिक घोषणा की थी।
इस सब के अतिरिक्त, इस व्यवस्था का एक और पहलू था: कई राजनीतिज्ञों का यह भी प्रयास था की पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रीय परम्पराओं व संस्कृतीयो को खत्म कर के पाकिस्तान को एक राष्ट्रीय संस्कृति के तरफ ले जाया जाये। अतः विभिन्न क्षेत्रीय प्रांतों के अंत से पूरे देश को एक सांस्कृतिक इकाई बनाने में सुविधा होती। अतः इस नीति को प्रांतीय व क्षेत्रीय संस्कृतियों को खत्म कर, एक राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भी लाया गया था।
एक इकाई व्यवस्था
[संपादित करें]एक इकाई व्यवस्था अथवा वन-यूनिट सीस्टम, पाकिस्तान की एक पुर्वतः परवर्तित प्रशासनिक व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत, तत्कालीन पाकिस्तानी भूमि के दोनों भिन्न टुकड़ों को "एक प्रशासनिक इकाई" के रूप में ही शासित किये जाने की योजना रखी गई थी। इस तरह की प्रशासनिक नीति को अपनाने का मुख्य कारण, सर्कार द्वारा, पाकिस्तानी अधिराज्य के दो विभक्त एवं पृथक भौगोलिक आंचलों की एक ही केंद्रीय व्यवस्था के अंतर्गत शासन में आने वाली घोर प्रशासनिक असुविधाएँ, एवं भौगोलिक कठिनाईयाँ बताई गई थी। अतः इस भौगोलिक व प्रशासनिक विषय के समाधान के रूप में, सरकार ने इन दो भौगोलीय हिस्सों को ही, एक महासंघीय ढांचे के अंतर्गत, पाकिस्तान के दो वाहिद प्रशासनिक इकाइयों के रूप में स्थापित करने की नीति बनाई गई। इस्के तहत, तत्कालीन मुमलिकात-ए-पाकिस्तान के, पूर्वी भाग में मौजूद स्थिति के अनुसार ही, पश्चिमी भाग के पाँचों प्रांतों व उनकी प्रांतीय सरकारों को भंग कर, एक प्रांत, पश्चिमी पाकिस्तान गठित किया गया, वहीं पूर्वी भाग (जो अब बांग्लादेश है) को पूर्वी पाकिस्तान कह कर गठित किया गया। तत्प्रकार, पाकिस्तान, एक इकाई योजना के तहत, महज दो प्रांतों में विभाजित एक राज्य बन गया।
वन यूनिट योजना की घोषणा प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा के शासनकाल के दौरान २२ नवंबर १९५४ को की गई, और १४ अक्टूबर १९५५ को देश के पश्चिमी भाग के सभी प्रांतों को एकीकृत कर, पश्चिमी पाकिस्तान प्रांत गठित किया गया, जिसमें, सभी प्रांतों के अलावा तत्कालीन, राजशाहियों और कबाइली इलाके भी शामिल थे। इस प्रांत में १२ प्रमंडल थे, और इसकी राजधानी लाहौर थी। दूसरी ओर पूर्वी बंगाल के प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान का नाम दिया गया, जिसकी राजधानी ढाका थी। संघीय राजधानी(कार्यपालिका) को वर्ष १९५९ में कराँची से रावलपिंडी स्थानांतरित किया गया, जहां सेना मुख्यालय था, और नई राजधानी, इस्लामाबाद के पूरा होने तक यहां मौजूद रहा जबकि संघीय विधानपालिका को ढाका में स्थापित किया गया।
इस नीति का उद्देश्य बज़ाहिर प्रशासनिक सुधार लाना था लेकिन कई लिहाज से यह बहुत विनाशकारी कदम था। पश्चिमी पाकिस्तान में मौजूद बहुत सारी राज्यों ने इस आश्वासन पर विभाजन के समय पाकिस्तान में शामिल हो गए थे कि उनकी स्वायत्तता कायम रखी जाएगी लेकिन वन इकाई बना देने के फैसले से सभी स्थानीय राज्यों का अंत हो गया। इस संबंध में बहावलपुर, खीरिपोर और कलात के राज्य विशेषकर उल्लेखनीय हैं। मामले इस समय अधिक गंभीर समय १९५८ ई। के तख्तापलट के बाद मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया और राष्ट्रपति ने पश्चिमी पाकिस्तान के विकल्प अपने पास रख लिए। राजनीतिक विशेषज्ञों यह भी समझते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को एकजुट करने के उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान की भाषाई और राजनीतिक इकाई का जोर तोड़ना था।
अंततः एक जुलाई १९७० को राष्ट्रपति याह्या खान ने एक इकाई का सफाया करते हुए पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों बहाल कर दिया।
इतिहास
[संपादित करें]शासन प्रणाली
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Story of Pakistan. "West Pakistan Established as One Unit [1955]". Story of Pakistan (Note: One Unit continued until General Yahya Khan dissolved it on July 1, 1970). Story of Pakistan, West Pakistan. मूल से 30 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 February 2012.
- ↑ SoP. "Story of Pakistan (West Pakistan Established as One Unit [1955] )". Story of Pakistan (West Pakistan Established as One Unit [1955]). मूल से 30 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 March 2012.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जून 2016.