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शून्य

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शून्य

ग्वालियर दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर - 'चतुर्भुज मंदिर' की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग १५०० वर्ष पहले उकेरा गया था।

शून्य (०) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आज की सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा, यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव है।

शून्य गणित में कई अद्वितीय गुणों वाला एक विशेषांक है। यह गुणा का अवशोषक अवयव है, क्योंकि किसी भी संख्या को शून्य से गुणा करने पर परिणाम शून्य ही रहता है। यह सम संख्या है, क्योंकि इसे २ से विभाजित किया जा सकता है। विभाजन के सन्दर्भ में, किसी भी संख्या को शून्य से विभाजित करना अपरिभाषित होता है, जबकि शून्य को किसी संख्या से विभाजित करने पर परिणाम शून्य प्राप्त होता है।

शून्य का उपयोग केवल अंकगणित तक सीमित नहीं है; यह बीजगणित, कलन (कैलकुलस), और आधुनिक गणितीय सिद्धांतों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, भौतिकी, कंप्यूटर विज्ञान, और अभियान्त्रिकी (इंजीनियरिंग) में भी शून्य का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।

शून्य के गणितीय गुण:

  • किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से गुणा करने पर परिणाम शून्य होता है। (x × 0 = 0)
  • किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से जोड़ने या घटाने पर वही संख्या प्राप्त होती है। (x + 0 = x ; x - 0 = x)
  • शून्य किसी भी संख्या का गुणक होने पर उसे अपरिवर्तित नहीं करता है, लेकिन यदि कोई संख्या शून्य से विभाजित हो, तो वह अपरिभाषित होता है। (0 ÷ x = 0, जब x ≠ 0), लेकिन (x ÷ 0 अपरिभाषित है)
  • शून्य किसी भी संख्या की घातांक होने पर परिणाम 1 होता है (शून्य को छोड़कर)। (x⁰ = 1, जब x ≠ 0)
  • शून्य स्वयं के अलावा किसी अन्य संख्या का गुणनफल नहीं हो सकता, यानी यह कोई अभाज्य संख्या नहीं है।
  • शून्य एक सम संख्या है क्योंकि इसे 2 से विभाजित करने पर कोई शेष नहीं बचता।

आविष्कार

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प्राचीन बक्षाली पाण्डुलिपि में,[1] जिसका कि सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परन्तु निश्चित रूप से उसका काल आर्यभट्ट के काल से प्राचीन है, शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। २०१७ में, इस पाण्डुलिपि से ३ नमूने लेकर उनका रेडियोकार्बन विश्लेषण किया गया। इससे मिले परिणाम इस अर्थ में आश्चर्यजनक हैं कि इन तीन नमूनों की रचना तीन अलग-अलग शताब्दियों में हुई थी- पहली की २२५ ई॰ – ३८३ ई॰, दूसरी की ६८०–७७९ ई॰, तथा तीसरी की ८८५–९९३ ई॰। इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा है कि विभिन्न शताब्दियों में रचित पन्ने एक साथ जोड़े जा सके।[2]

गणितीय गुण

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शून्य, पहली प्राकृतिक पूर्णांक संख्या है। यह अन्य सभी संख्याओं से विभाजित हो जाता है। यदि कोई वास्तविक या समिश्र संख्या हो तो:

  • a + 0 = 0 + a = a (0 योग का तत्समक अवयव है)
  • a × 0 = 0 × a = 0'
  • यदि a ≠ 0 तो a0 = 1 ;
  • 00 को कभी-कभी 1 के बराबर माना जाता है (बीजगणित तथा समुच्चय सिद्धान्त में )[3], और सीमा आदि की गणना करते समय अपरिभाषित मानते हैं।
  • 0 का फैक्टोरियल बराबर होता है 1 ;
  • a + (–a) = 0 ;
  • a/0 परिभाषित नहीं है।
  • 0/0 भी अपरिभाषित है।
  • कोई पूर्णांक संख्या n> 0 हो तो, 0 का nवाँ मूल भी शून्य होता है।
  • केवल शून्य ही एकमात्र संख्या है जो वास्तविक भी है, धनात्मक भी, ऋणात्मक भी, और पूर्णतः काल्पनिक भी।

सन्दर्भ

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  1. "How India's invention of zero helped create modern mathematics". मूल से 7 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अक्तूबर 2017.
  2. "Carbon dating finds Bakhshali manuscript contains oldest recorded origins of the symbol 'zero'" Archived 2017-09-14 at the वेबैक मशीन. Bodleian Library. 2017-09-14. Retrieved 2017-09-14.
  3. Pour en finir avec 0साँचा:Exp Archived 2019-07-17 at the वेबैक मशीन sur forums.futura-sciences.com

शून्य ज़ीरो गणित, कम्प्यूटर विज्ञान, लेखाकरण, भौतिकी और दुनिया के सभी आविष्कारों में उपयोग होती है l शून्य एक रहस्यमय संख्या है, जो एक ओर सब कुछ का प्रतीक है, तो दूसरी ओर कुछ भी नहीं का। यह अनंतता और ऋणात्मकता दोनों को समाहित करता है, और इसे एक उन्मुक्त संख्या के रूप में देखा जाता है।

यह ब्रह्मांड और उसमें मौजूद अस्तित्व का एक सूक्ष्म नक्शा है। शून्य को समझना गणितीय दृष्टिकोण से तो अपेक्षाकृत सरल है, लेकिन अस्तित्व और वजूद के स्तर पर इसे पूरी तरह से समझना लगभग असंभव है। इसे पूरी तरह से समझाने की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं मिल पाई है।

इन्हें भी देखें

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