सौदागर (1991 फ़िल्म)
सौदागर | |
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सौदागर का पोस्टर | |
निर्देशक | सुभाष घई |
लेखक |
सुभाष घई सचिन भौमिक कमलेश पांडे |
निर्माता |
सुभाष घई अशोक घई |
अभिनेता |
दिलीप कुमार, राज कुमार, विवेक मुशरान, मनीषा कोइराला, अमरीश पुरी, अनुपम खेर |
छायाकार | अशोक मेहता |
संगीतकार | लक्ष्मीकांत प्यारेलाल |
प्रदर्शन तिथियाँ |
9 अगस्त, 1991 |
लम्बाई |
213 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
सौदागर 1991 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन और निर्माण सुभाष घई द्वारा किया गया। इसमें हिन्दी सिनेमा के दो वरिष्ठ अभिनेता दिलीप कुमार और राज कुमार मुख्य भूमिकाओं में हैं। ये पैगाम (1959) के बाद दूसरी फिल्म थी जिसमें दोनों नजर आए।[1] ये दो नए कलाकार विवेक मुशरान और मनीषा कोइराला की पहली फिल्म थी। अनोखा अंदाज़ मनीषा की पहली फिल्म होने वाली थी लेकिन वो देरी से 1995 में जारी हुई।
फिल्म की कहानी दो जिगरी दोस्तों पर केंद्रित है।[2] साथ ही इसमें रोमियो और जूलियट से समानताएँ पाई गई। फिल्म सफल रही थी और ये दिलीप कुमार की आखिरी प्रमुख फिल्म रही। इसके गीत भी प्रसिद्धी पाए थे।[3]
संक्षेप
[संपादित करें]यह फिल्म मंधारी, एक बूढ़े अपंग व्यक्ति के साथ शुरू होती है, जो कुछ दोस्तों की कहानी कुछ बच्चों को सुना रहा है। कहानी में, जमींदार का पुत्र राजेश्वर सिंह और एक गरीब लड़का वीर सिंह, दोस्त बन गए। एक दूसरे को राजू और वीरू बुलाने लगते हैं। वे जैसे-जैसे बड़े हो जाते हैं, राजू वीरू के साथ अपनी बहन पलिकांता की शादी की व्यवस्था करने का फैसला करता है। हालाँकि दहेज की माँग करने वाले ससुराल वालों के कारण एक लड़की की शादी बाधित हो जाती है। वीरू उससे शादी करके लड़की और उसके माता-पिता के इज्जत को बचाने के लिए कदम उठाता है। राजू इससे चौंक गया है जबकि उसकी बहन जो वीरू को पसंद करती थी, आत्महत्या कर लेती है। उजड़ा हुआ और परेशान राजू अब घोषणा करता है कि वीरू जो भी हुआ उसके लिए पूरी तरह उत्तरदायी है और अब उसका जानी दुश्मन है।
चुनिया नामक व्यक्ति दोनों पक्षों को युद्ध में रखकर राजेश्वर के पैसे ऐंठने शुरू करता है। चुनिया वीर के बेटे विशाल को मरवा देता है। वो सोचता है कि राजेश्वर वीर को खत्म करने के लिए कुछ भी कर सकता है। वर्षों में तनाव बढ़ता है। मंधारी, जिसे अब भिखारी और कहानी का हिस्सा बताया गया है। कुछ भाग्यशाली लोगों में से एक है, जिसे किसी भी तरफ से मौत का कोई डर नहीं है। यहाँ, राजेश्वर की पोती राधा और वीर का पोता वासु एक दूसरे से मिलते हैं। राधा और वासु शत्रुता से अनजान हैं और प्यार में पड़ते हैं। जब मंधारी को इस बारे में पता लगता है, तो वह खुशी से प्रेमियों को सच बताता है। फिर, वह शत्रुता को समाप्त करने की अपनी योजनाओं को प्रकट करता है।
इस बीच, चुुनिया ने पूरी तरह से राजेश्वर के गढ़ में घुसपैठ की। वह एक बार फिर आग लगाने का फैसला करता है। वे वीरू के क्षेत्र से अमला नाम की एक लड़की का अपहरण, बलात्कार और हत्या करता है। चुनिया की चाल काम करती है, प्रेमियों भी उजागर हो जाते हैं। हालाँकि, चुनिया की किस्मत लंबे समय तक नहीं टिकती है। चुनिया के आदमियों ने राजेश्वर पर हमला किया और चुनीया का असली चेहरे को उजागर किया। एक परेशान राजेश्वर और एक सहानुभूति पूर्ण वीर अंततः दशकों की अपनी शत्रुता को खत्म करते हैं। यहाँ, चुनिया की बेताबी बढ़ती है और वो राधा और वासु का अपहरण कर लेता है। दोनों पक्षों के लोग चुुनिया के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट हो जाते हैं।
जल्द ही, राधा और वासु बचाए गए, लेकिन वे इस तथ्य से अनजान हैं कि उनके दादाजी मिल गए हैं। राजू और वीरू चुनिया को मार देते हैं, लेकिन खुद घायल हो जाते हैं। जैसे-जैसे मित्र एक-दूसरे की बाहों में मर जाते हैं, इस दोस्ती और शत्रुता का अंतिम अध्याय बंद हो जाता है। कहानी वर्तमान में लौटती है जिसमें पता चलता है कि राधा और वासु ने विवाह किया था। उन्होंने अपने दादा दादी के नाम पर एक ट्रस्ट बनाया था, जो बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहा है। मंधारी कहानी उन्हीं को सुना रहा है। राधा और वासु ने स्कूल का उद्घाटन आरती के सामने किया।
मुख्य कलाकार
[संपादित करें]- दिलीप कुमार - दादा वीर
- राज कुमार - राजेश्वर
- अनुपम खेर - मंधारी
- विवेक मुशरान - वासु
- मनीषा कोइराला - राधा
- अमरीश पुरी - चूनिया
- जैकी श्रॉफ - विशाल
- दीप्ति नवल - आरती
- दीना पाठक - दादा बीर की दीदी
- पल्लवी जोशी - अमला
- अभिनव चतुर्वेदी - कुणाल
- मालविका तिवारी - राजेश्वर की पत्नी
- मुकेश खन्ना - गगन
- दलीप ताहिल - गजेन्द्र
- गुलशन ग्रोवर - बालीराम
संगीत
[संपादित करें]सभी गीत आनंद बख्शी द्वारा लिखित; सारा संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "ईलू ईलू क्या है" | मनहर उधास, कविता कृष्णमूर्ति, उदित नारायण, सुखविंदर सिंह | 9:53 |
2. | "इमली का बूटा" (डुएट) | साधना सरगम, मोहम्मद अज़ीज़ | 4:06 |
3. | "सौदागर सौदा कर" | कविता कृष्णमूर्ति, मनहर उधास, सुखविंदर सिंह | 7:49 |
4. | "राधा नाचेंगी" | लता मंगेश्कर, मोहम्मद अज़ीज़ | 6:43 |
5. | "मोहब्बत की की" | कविता कृष्णमूर्ति, सुरेश वाडकर | 5:32 |
6. | "इमली का बूटा" (I) | मोहम्मद अज़ीज़, सुदेश भोंसले | 4:57 |
7. | "दीवाने तेरे नाम के" | सुखविंदर सिंह | 4:13 |
8. | "तेरी याद आती है" | सुरेश वाडकर, लता मंगेश्कर | 6:35 |
9. | "इमली का बूटा" (II) | साधना सरगम, प्रिया मायेकर, उदित नारायण, विवेक वर्मा | 7:19 |
नामांकन और पुरस्कार
[संपादित करें]वर्ष | नामित कार्य | पुरस्कार | परिणाम |
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1992 | सुभाष घई | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | जीत |
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार | नामित | |
कविता कृष्णमूर्ति ("सौदागर सौदा कर") | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार | नामित |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "…तो इस तरह दिलीप कुमार और राज कुमार को साथ लाने में कामयाब हो गए थे सुभाष घई". जनसत्ता. 18 सितम्बर 2017. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अगस्त 2018.
- ↑ "फ्रेंडशिप डे: दोस्ती की मिसाल है ये बॉलीवुड फिल्में, याद आ जाएंगे पुराने दोस्त". पत्रिका. 5 अगस्त 2018. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अगस्त 2018.
- ↑ "धर्मेंद्र ना बने होते रोड़ा तो आज बॉबी देओल होते बॉलीवुड के 'सौदागर', फिल्म रिलीज के समय हुआ था बवाल". अमर उजाला. 10 अगस्त 2018. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अगस्त 2018.