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सूर्यमल्ल

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महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण (संवत‌ 1872 विक्रमी - संवत्‌ 1925 विक्रमी)

सूर्यमल्ल मिश्रण (मीसण) (संवत‌ 1872 विक्रमी - संवत्‌ 1925 विक्रमी) बूँदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे। उन्होने वंश-भास्कर नामक पिंगल काव्य ग्रन्थ की रचना की जिसमें बूँदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया गया है। वे चारणों की मीसण शाखा से सम्बद्ध थे। वे वस्तुत: राष्ट्रीय-विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के उद्बोधक कवि थे। वीरता के सम्पोषक इस वीररस के कवि को ‘वीर रसावतार’ कहा जाता है।

सूर्यमल्ल मिश्रण वस्तुतः राष्ट्रीय विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के पुरोधा रचनाकार थे। उनको आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मातृभूमि के प्रति प्रेम, आज़ादी हेतु सर्वस्व लुटाने की भावना का विकास करने तथा राजपूतों में विस्मृत हो चुकी वीरता की भावना को पुनः जाग्रत करने का कार्य किया। जब 1857 का स्वाधीनता संघर्ष प्रारम्भ हुआ तो उसमे तीव्रता व वीरता पोषित करने में इस कवि की रचनाओ का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान रहा। सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपनी कृतियों अथवा पत्रों के माध्यम से गुलामी करने वाले राजपूत शासकों को धिक्कारा है। उन्होंने पीपल्या के ठाकुर फूलसिंह को लिखे एक पत्र में राजपूत शासकों की गुलामी करने की मनोवृत्ति की कटु आलोचना की थी।

राजस्थान के महान कवि सूर्यमल्ल मिश्रण का जन्म बूँदी जिले के हरणा गाँव में 19 अक्टोबर 1815 तदनुसार कार्तिक कृष्ण प्रथम वि.स. १८७२ को हुआ था। इनके पिता का नाम चण्डीदान तथा माता का नाम भवानी बाई था। इनके पिता भी अपने समय के प्रकाण्ड विद्वान तथा प्रतिभावान कवि थे। बूंदी के तत्कालीन महाराजा विष्णु सिंह ने इनके पिता को एक गाँव, लाख पसाव तथा कविराजा की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। सूर्यमल्ल मिश्रण बचपन से अद्भुत प्रतिभासंपन्न थे। अध्ययन में विशेष रुचि होने के कारण संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पिंगल, डिंगल आदि कई भाषाओं में इन्हें दक्षता प्राप्त हो गई। उन्होंने स्वामी स्वरूपदास से योग, वेदान्त, न्याय, वैशेषिक साहित्य आदि की शिक्षा प्राप्त की। आशानन्द से उन्होंने व्याकरण, छंदशास्त्र, काव्य, ज्योतिष, अश्ववैधक, चाणक्य शास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की तथा मुहम्मद से फ़ारसी एवं एक अन्य यवन से उन्होंने वीणा-वादन सीखा। इस प्रकार सूर्यमल्ल मिश्रण को प्रारम्भ से ही शैक्षिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक वातावरण मिला, जिससे उनमें विद्या, विवेक एवं वीरता का अनोखा संगम प्रस्फुटित हुआ। कवित्वशक्ति की विलक्षणता के कारण अल्पकाल में ही इनकी ख्याति चारों ओर फैल गई। बूँदी के अतिरिक्त राजस्थान और मालवे के अन्य राजाओं ने भी इनका यथेष्ट सम्मान किया। कविराजा बारहठ कृष्णसिंह ने वंश-भास्कर की उदधि-मंथिनी टीका की भूमिका में लिखा है कि महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास के पश्चात् पिछले पांच हजार वर्षों में भारतवर्ष में सूर्यमल्ल जैसा विद्वान नहीं हुआ। अपने जीवन में ऐश्वर्य तथा विलासिता का उपभोग करने वाले इस कवि की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इनके काव्य पर इसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ सका है। इनकी शृंगारपरक रचनाएँ भी संयमित एवं मर्यादित हैं। दोला, सुरक्षा, विजया, यशा, पुष्पा और गोविन्दा नाम की इनकी 6 पत्नियाँ थीं। सन्तानहीन होने के कारण इन्होने मुरारीदान को गोद ले कर अपना उत्तराधिकारी बनाया था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद के अनुसार इनकी मृत्यु की तिथि वि.सं. 1925 आषाढ़ कृष्णा एकादशी (30th जून 1868) है।

बूँदी नरेश रामसिंह के आदेशानुसार संवत्‌ 1897 में इन्होंने 'वंश-भास्कर' की रचना प्रारम्भ की थी। इस ग्रंथ में मुख्यत: बूँदी राज्य का इतिहास वर्णित है, किंतु यथाप्रसंग अन्य राजस्थानी रियासतों के व्यक्तियों और प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं की भी चर्चा की गई है। युद्ध-वर्णन में जैसी सजीवता इस ग्रंथ में है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। राजस्थानी साहित्य में बहुचर्चित इस ग्रंथ की टीका कविवर बारहठ कृष्णसिंह ने की है। 'वंश-भास्कर' के कतिपय स्थल भाषाई क्लिष्टता के कारण बोधगम्य नहीं है, फिर भी यह एक अनूठा काव्य-ग्रंथ है। महाकवि सदैव सत्य का समर्थन करते थे और सत्य के लिए उन्होंने बड़े से बड़े प्रलोभन को ठुकरा दिया, फलतः उनका "वंश-भास्कर" ग्रन्थ भी अधूरा रह गया जिसे बाद में उनके दत्तक पुत्र मुरारीदान ने पूर्ण किया (पढ़ें: वंश-भास्कर अपूर्ण क्यों रह गया)। सूर्यमल्ल मिश्रण के वीर-सतसई ग्रन्थ को भी राजस्थान में स्वाधीनता के लिए वीरता की उद्घोषणा करने वाला अपूर्व ग्रन्थ माना जाता है।

महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण के नाम पर राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा

राजस्थानी भाषा का सर्वोच्च पुरस्कार "सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार" हर वर्ष दिया जाता है।

कृतियाँ

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1. रामरंजजाट

2. वीर-सतसई

3. धातु रूपावली

4. बलवद विलास (बलवन्त विलास)

5. वंश-भास्कर

6. छन्दोमयूख

7. सतीरासो

इनके अलावा उन्होने कुछ फुटकर छन्दों की भी रचना की है।

सूर्यमल्ल की प्रतिभा और विद्वता का पता तो इस बात से ही चल जाता है कि मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने ‘रामरंजाट’ नामक खंड-काव्य की रचना कर दी थी। सूर्यमल्ल मिश्रण के प्रमुख ग्रन्थ वंशभास्कर एवं वीर सतसई सहित उनकी समस्त रचनाओं में चारण काव्य-परम्पराओं की स्पष्ट छाप अंकित है। 'वंश भास्कर' उनकी कीर्ति का आधार ग्रन्थ है। कुछ इतिहासकार इसे ऐतिहासिक दृष्टि से पृथ्वीराज रासो से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। साहित्यिक दृष्टि से इस ग्रन्थ की गणना १९वीं सदी के महाभारत के रूप में की जाती है। अधूरा होते हुए भी यह लगभग तीन हजार पृष्ठों का अत्यन्त विस्तृत ग्रन्थ है। सम्भवतया इससे बड़ा ग्रन्थ हिन्दी में दूसरा कोई नहीं है। इस कृति में मुख्यतः बूंदी राज्य का इतिहास वर्णित है, किन्तु प्रसंगानुसार राजस्थान के अन्य राज्यों के राजाओं, वीरों तथा प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओ का भी वर्णन इसमें किया गया है। इस डिंगल / पिंगल काव्य रचना में बूंदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना को भी पोषित एवं सम्वर्धित किया गया है। युद्ध-वर्णन की जैसी सजीवता इस ग्रन्थ में है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। राजस्थानी साहित्य के अत्यन्त चर्चित इस ग्रन्थ की टीका कृष्णसिंह बारहट ने की है।

सूर्यमल्ल मिश्रण के वीर सतसई ग्रन्थ को भी राजस्थान में स्वाधीनता के लिए वीरता की उद्घोषणा करने वाला अपूर्व ग्रन्थ माना जाता है। अपने इस ग्रन्थ के पहले ही दोहे में वे “समे पल्टी सीस” का घोष करते हुए अंग्रेजी दासता के विरुद्ध विद्रोह के लिए उन्मुख होते हुए प्रतीत होते हैं। यह सम्पूर्ण कृति वीरता का पोषण करने तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए मरने मिटने की प्रेरणा का संचार करती है। यह राजपूती शौर्य के चित्रण तथा काव्य शास्त्र की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ ग्रन्थ

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  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी;
  • कविराजा मुरारिदान : जसवंत भूषण;
  • महताबचंद्र खारेड़ : रघुनाथ रूपक गीताँ रो;
  • नाथूसिंह महियारिया : वीरसतसई;
  • डॉ॰ मोतीलाल मेनारिया : राजस्थानी भाषा और साहित्य, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष 45 अंक 3.
  • डॉ० मोहन लाल जिज्ञासु : चारण साहित्य का इतिहास
  • डॉ० चन्द्र प्रकाश देवल : सूर्यमल्ल मीसण प्रणीत वंश भास्कर (टीका)
  • ठा० कृष्ण सिंह बारहट : उदधि-मंथिनी टीका

बाहरी कड़ियाँ

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