सदस्य वार्ता:Abhinav akanksha

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Latest comment: 11 माह पहले by Abhinav akanksha in topic मई 2023
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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 05:50, 22 मई 2023 (UTC)उत्तर दें

मई 2023[संपादित करें]

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MAHATO CHAURAHA BARAWAN KLAN KUCKNOW ==

बरावन कलॉ ‘ये रंग रुप का चमन, ये हुस्न-ओ-इश्क का वतन. यही तो वो मकाम है जहां अवध की शाम है. जवां जवां, हसीं हसीं, ये लखनऊ की सरजमीं.’’ जी हॉ  तहजीबों के शहर लखनऊ  में  बसा बरावन कलॉ  गांव  जो लगभग  30 वर्ष पहले नगरीय क्षेत्र लखनऊ में सम्मिलित कर लिया गया था अब नगरीय जोन-6 वार्ड बालागंज  लखनऊ के अन्‍तर्गत आता है, जिसमें कई धर्मो और जातियों के लगभग 6000 लोग आपस में मिल जुल कर रहते है नयी आबादी बस जाने के कारण यहॉ की जनसंख्‍या लगभग 10000 हो गयी है। यहॉ के निवासी शहर और गांव दोनों तरह के आनन्‍द लेते है के0जी0एम0सी0, लखनऊ  विश्‍वविद्यालय और चारबाग रेलवे स्‍टेशन गांव से कुछ समय में ही पहुचा  जा सकता है। सुबह उठ कर लोग जार्गस पार्क, शहीद स्‍मारक पार्क तक टहल कर तरोताजा होते है। गांव से 03 किमी दुबग्‍गा सब्‍जी मण्‍डी है। गांव में पोस्‍ट आफिस के साथ-साथ जरूरत के सामान का एक बाजार/दुकानें है।

           बरावन कलॉ गांव स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू त्रिलोकी सिंह की कर्मभूमि रही है उनके द्वारा गांव में इंटर कालेज बनवाया गया जिसमें दूर दराज के गांवों के बच्‍चे पढ् लिख कर अनेक पदों को सुशोभित कर रहे है। इसी विद्यालय के पढे दो होनहार भाइयों श्री गोमती प्रसाद मौर्य और श्री राजेन्‍द्र कुमार मौर्य ने अपने माता-पिता स्‍मृतिशेष श्रीमती फूलमती मौर्य पत्‍नी स्‍मृतिशेष छंगा प्रसाद मौर्य के आर्शीवाद और एक संगठन ‘अशोक क्‍लब भारत’ की प्रेरणा से गांव में चार मुख वाला 32 फिट ऊचॉ चुनार के बलुआ पत्‍थर का अशोक स्‍तम्‍भ बनवा कर एक अनूठी पहचान दी है। जो भारत का राष्‍ट्रीय प्रतीक चिन्‍ह है, देश की धरोहर तथा बरावन कलॉ का लैण्‍डमार्क है। गांव के लोग चारों दिशाओं में बैठे शेरों से प्रेरणा लेकर अपने कर्तव्‍य  और अधिकारों के प्रति सजग/जागरूक हो रहे है। देश भक्ति सिर चढ् कर बोल रही है। अशोक स्‍तम्‍भ को दूर-दराज से अनेकों लोग देखने आते है स्‍तम्‍भ की सुन्‍दरता और भव्‍यता गांव में अनुपम छटा बिखेरती है।

गावं के उत्‍तर  दिशा में अविरल  प्रवाह में बहने वाली गोमती नदी है तथा उससे पहले माल रोड पर स्थित महतो चौराहा चहल-पहल का एक बड़ा बाजार है जहॉ पर हर जरूरत का सामान उपलब्‍ध है। महतो चौराहा गुरू प्रसाद मौर्य उर्फ महतो के नाम पर पड़ है। गुरू प्रसाद महतो का जन्‍म इस नजाकत और नफासत के शहर लखनऊ जनपद के बरावन कलॉ गांव में हुआ था । लोक गायक होने के नाते उन्‍हें आम जन मानस में सम्‍मान प्राप्‍त था। महतो जी ने लोक गायन में सभी तरह के गीतों की रचना किया और गाया । संयोग और वियोग के अनेक गीतों को अपने मंच से इतनी सुन्‍दर प्रस्‍तुति देते थे कि स्रोता सम्‍मोहित हो जाते थे। नायक और नायिका के संयोग रस से ओत प्रोत गीतों से ऐसा लगता था कि टीवी की तरह सजीव प्रसारण हो रहा है। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा के कारण क्षेत्रीय लोग प्रशिक्षण लेते थे जिनके गाने आज भी गाये जाते है। अपने मंच पर सम्‍मोहित कर देने वाले वीर रस के गानों का ज्‍यों ही प्रदर्शन आरंभ करते थे। उनका सजाय हुआ इकतारा अभिव्‍यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता था। कभी यह इकतारा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहॅचा देता था  जहॉ चन्‍द्र गुप्‍त मौर्य की तलवार की झंकार और अशोक के कलिंग युद्ध से लेकर  महाभारत तक सजीव वर्णन होता  था तो महतो के साथ- साथ  श्रोता जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्‍साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते  है। उनकी ठोस गायन वाली आवाज लोगों को नाचने और जोश में हुंकार भरने पर मजबूर कर देती थी। महतो  चौराहे की मशहूर बाटी-चोखा, बिहारी की मॅच्‍चूरियन, राजपूत की मिठाई,  यादव के खुरमा- समोसा,  मनीष के छोला-चावल के0डी रेस्‍टोरेंट के फास्‍टफूड, अखिलेश के  बताशे आपके मुंह में पानी ला देंगे। यहां के खानपान के साथ-साथ  आप 'पहले आप' 'पहले आप' के मुरीद बनकर रह जाएंगे। लखनऊ की नजाकत और नफासत महतो चौराहे पर भी बसती है । Abhinav akanksha (वार्ता) 11:13, 26 मई 2023 (UTC)उत्तर दें