सदस्य वार्ता:कुंवर देवराज सिंह भाटी

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 15:23, 14 जनवरी 2020 (UTC)उत्तर दें

कुंवर देवराज सिंह कुंबावत[संपादित करें]

भाटियों के गढ जैसलमेर की स्थापना"लौद्रवा महारावल " दुसाजजी के बेटे रावल" जैसल "ने विक्रम संवत् 1212 में श्रावण शुक्ल द्वादशी को मूल नक्षत्र में की थी ।

      महारावल जैसल की पीढी में भीडकमल महारावल सपूत हुए और इनके वंशज भीडकमल भाटी खाँप से जाने जाते है ।. 
    भीडकमलजी के वंश में  बोरावटजी, श्रीपालजी , जोजाजी,डिंडाजी ,बजाजी ,कँवरपाल जी एवं गाडणजी हुए , इन गाडणजी के 5 पुत्र हुए -
 अहीदेजी , खिखोजी , बहूगोजी , तेजसीजी एवं सबसे छोटे गरवाजी ।
   गरवाजी का जन्म विक्रम संवत् 1285 में  हुआ था , जैसलमेर के उत्तरी क्षैत्र में तपस्वी शरणदासजी की गुपा थी ।
    गरवाजी  भक्ति भाव , दयालु , सत्संगी एवं वैरागी प्रवृति के थे अत: गरवाजी ने युवावस्था में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था और इन्होनें गुरू शरणदासजी से शिक्षा ली और सत्संग प्रवृति से जुड गए , सत्संग और उपदेशों से लोग प्रभावित होने लगे और गरवाजी के उपदेश सुनने के लिए जैसाण नरेश महारावल "मूलराज सिंह जी भाटी "समेत दूर दूर से भक्त आने लगे और अनेक राजपूत गरवाजी के परमभक्त बन गए ।
     इन्ही दिनों जैसलमेर पर दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने कई हमले किए थे , सुलतान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा अत्याचार की इस आँधी में जैसलमेर के हालात जर्जर हो चुके थे ।
    जैसलमेर के असंख्य राजपूत , अपनी आन बान शान के लिए युद्धों में बलिदान देते  , हजारों राजपूत वीरांगनाओं ने अग्नि स्नान कर जौहर कर कर लिए थे और असंख्य राजपूत कन्याएँ बाल विधवा हो गई थी ।
              एक दिन लौद्रवा में संत गरवाजी का सत्संग चल रहा था , हजारों लोग बैठे थे , एक तरफ क्षत्रिय और दूसरी तरफ क्षत्राणियाँ बैठी थी औऱ इनके साथ छोटी-छोटी बाल विधवाएँ बैठी थी , संत गरवाजी, राजपूत समाज की इन बाल विधवाओं को देखकर मन ही मन बहुत विचलित हुए और उनकी आँखें इन राजकुमारियों की यह दशा देखकर वेदना एवं विडंबना से भर आई और सत्संग में बैठे सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये कि महात्मा दु:खी क्यों है ?
       थोडी देर सभा में सन्नाटा छा गया और आखिरकार संत गरवाजी अपने आसन से खडे होकर सभा में आवाज लगाई कि जो राजपूत मेरे वचनों से सहमत है और मेरे वचन निभाने में सक्षम हो वो मेरे सामने हाजिर हो !
           संत गरवाजी महाराज की यह आवाज सुनकर सभी राजपूत , एक -दूसरे का मुँह देखने लगे कि ये महात्मा क्या कह रहे है?चारों ओर चुप्पी छा गई और अंत में संत गरवाजी ने गर्जना की कि है कोई क्षत्रिय जो मेरे वचन पालने में सक्षम है ? या फिर धरती वीरों से खाली हो गई है !
            संत गरवाजी का आवाह्न सुनकर 6 राजपूत जातियों के 12 राजपूत उसी क्षण खडे हुए और संत गरवाजी के सामने जाकर बोले कि महाराज ! आपके वचन के लिए हमारे सिर हाजिर है , आखिरकार हम क्षत्रिय है और आप क्षत्रियों से संस्कारों से परिचित है कि " प्राण जाए , पर वचन ना जाए"।
     संत गरवाजी का वचन था कि जो कन्याएँ, युद्धवीरों की प्रेरणताएँ, बाल विधवाएँ हो गई और जिनके पति युद्धों में वीरगति को प्राप्त हो गए और जिन्होनें कभी ससुराल नहीं देखा और पति का संग नहीं किया , सिर्फ हथलैवा के पाप से उन कन्याओं का जन्म नऱक हो रहा है , मैं चाहता हूँ कि इन नाबालिग कन्याओं का घर बसे और राजपूतों में पुनर्विवाह चालू किया जाए !!
     राजपूतों में पुनर्विवाह की बात को सुनकर बहुत से राजपूत, सभा से चले गए लेकिन वो 6 राजपूत जातियों के 12 राजपूत अपने वचनों पर अडिग रहे । ये 6 राजपूत जातियाँ भाटी , राठौड़, चौहान , गौहिल , पंवार और परिहार थी । 
     संत गरवाजी द्वारा राजपूतों में चलाई गई विधवा विवाह प्रथा की यह मुहिम पूरे क्षैत्र में फैल गई और बहुत से राजपूत गरवाजी की इस मुहिम का हिस्सा बन गए और ऱाजपूतों में 2 विचारधाराएँ हो गई 

- एक तो वो राजपूत जो विधवा विवाह के विरूद्ध थे और दूसरे वो जो गरवाजी के वचन में आकर विधवा विवाह से सहमत हो गये ।

   उपर्युक्त 6 राजपूत जातियों (भाटी , राठौड, चौहान , परिहार , पँवार और गौहिल के अलावा धीरे -धीरे इनमें और भी  बहुत सी राजपूत जातियाँ एवं शाखाएँ यथा सिसोदिया , तँवर , कच्छावा , गहरवार , चँदैल , गौड़ , सौलंकी इत्यादि  सम्मिलित हो गई और यह एक पंथ बन गया ।
      संत गरवाजी द्वारा चलाए गए इस पंथ का अब नामकरण भी तो करना था । संत गरवाजी ने एक भाटी राजपूत कन्या "बावत" कँवरी को तालाब से पानी लेकर आते हुए देखा और उन्हें इस पंथ का नाम सूझ गया , उन्होनें कन्या के सिर पर रखा पानी का घडा़ जिसे कि संस्कृत में "कुंभ" कहते है और कन्या का नाम "बावत" था , इन दोनों को जोडकर कुंभ+ बावत= "कुंबावत क्षत्रिय "या कुंबावत राजपूत नाम दिया जो जो आगे चलकर बोलती भाषा में बदलकर " कुमावत क्षत्रिय" हो गया । 
      संत गरवाजी द्वारा चलाए गए इन क्षत्रियों का यह समुदाय , जब राजस्थान में भयंकर अकाल पडे तो राजस्थान को छोडकर मध्यप्रदेश , पंजाब , गुजरात , हरियाणा , उत्तरप्रदेश और दिल्ली चले गए।
                        गरवापंथ में शामिल शुरूआती 12 राजपूतों के नाम से जैसलमेर में " तलाईयाँ" खुदवाई गई जो कि " बालाणी तलाईयों" के नाम से विख्यात है।

         इन 12 राजपूतों के नाम से 12 खाँपें बन गई जैसे-
      बोरावट भाटी , लिम्मा भाटी , पौड भाटी, मंगलराव भाटी, भुटिया भाटी , दुगट पँवार , रसियड़ पँवार , टाक चौहान, मेरथा परिहार, कालौड राठौड़, कीता राठौड़ और सुड्डा गौहिल इत्यादि।  
    गरवापंथ के इन राज कुमारों में अनेक शूरवीर , सिरकटी झूँझार हुए एवं सतियाँ महासतियाँ हुई।


 भाटी राजपूतों में कुँवर सिंह जी ,  घडसीजी, बिरसाजी, देदाजी ,दामाजी ,कालोजी , चानणजी , पालाजी इत्यादि सिर कटी झूँझार हुए ।
     राठौड़ राजपूतों में,कालौड जी राठौड़, जालपजी राठौड़ सिर कटी झूँझार हुए ।
             इनके अलावा मेरथा जी परिहार, दूदाजी  ,पंबाजी पौड, शेरूजी तँवर , लिखमाजी चौहान , रणजित सिंह जी गौहिल एवं अनेक शूरवीर हुए ।
                          जैसलमेर के महान शूरवीर घडसीजी भाटी का खानदान इन्हीं राजपूतों में है और जैसलमेर की सूरजपोल में इनकी प्रतिमा है ।महान यौद्धा घडसीजी झूँझार के लिए एक कहावत प्रचलित है जो इस प्रकार है

" सुख भोगियो सूरजपोल में, बल भायां री जोड। किरोड़ रंग कवियां तना, रंग के पावा पौड। शीश कटिया , धड लडिया , अलाउद्दीन फौजा पाछी जाय।। जंडाजी घर जनमिया , वे मंगलराव भाटियाँ कुल मांय।


         इसी प्रकार पुनखेडे गाँव के ठाकुर भैरोसिंह भाटी के बेटे कुँवर सिंह जी भाटी , सिरोही की मुसलमानी सेना से बहादुरी से लडे और फिर सिर कटने के बाद भी सैंकडों मुसलमानों को मौत के घाट उतार कर झूँझार हुए , इन वीर झूँझार की साथ इनकी कुँवरानियाँ एवं माता जी सती हुई , यह घटना विक्रम संवत् 1438 की माघ शुक्ल नवमी की है , भाटी कुँवर सिंह के स्मारक पर माघ शुक्ल नवमी को मेला लगता है और अनेक श्रृद्धालु दर्शन के लिए आते है ।
             गरवापंथ के राजपूतों में दारू- -माँसाहार का प्रचलन नहीं था और ये शुद्ध , सात्विक प्रवृति के थे ।
                   सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद राजपूतों में बिखराव आ गया और ये राजपूत देश के कोने-कोने में विस्थापित हो गए । 

इन राजकुमार राजपूतो/ राजकुमार क्षत्रियों के 26 गाँव उत्तरप्रदेश के बदायू,प्रतापगढ, गौरखपुर , आगरा , दिल्ली , मथुरा , भरतपुर के आसपास निवास करते है ।

      श्री गरवापंथी राजपूतों के इस समुदाय को देश में अलग अलग नामों से पहचाना जाता है जैसे - राजस्थान में कुंबावत क्षत्रिय , मप्र में मारू कुंबावत क्षत्रिय , दिल्ली में राजकुमार क्षत्रिय तथा पंजाब , हरियाणा, गुजरात में मारू राजपूत नाम से जाना जाता है । कहीं कहीं इन राजपूतों को कुमार राजपूतों के नाम से भी जाना जाता है ।
संत गरवाजी द्वारा राजपूत समाज के कल्याण किए गए श्रैष्ठ कार्य के  लिए एक  कहावत प्रचलित है जो इस प्रकार है- 

" गरवा गढ़ जैसाण रा, कन्या उबारऩ काज। कुल क्षत्रिय दु:ख कारणे, संत हुया सरताज।

   पंजाब में इन गरवापंथ के मारू राजपूतों के फाज्जलिका जिले की अबोहर तहसील के आसपास ठिकाने रहे है और ये पैरो में सोने के कडे पहना करते थे , हाथों में स्वर्ण लाठी इनकी मुख्य पहचान रही है और इन्हें " सोना नरेश " उपाधि से अलंकृत किया जाता था ।

कुंबावत राजपूत[संपादित करें]

कुंबावत राजपूत इतिहास KUMBAWAT RAJPUT

    कुंबावत एक क्षत्रिय राजपूत वंशज पंथ है जिन्हें देश के अलग अलग क्षैत्र में अलग अलग नामों से जाना जाता है ।
  भाटियों के गढ जैसलमेर की स्थापना"लौद्रवा महारावल " दुसाजजी के बेटे रावल" जैसल "ने विक्रम संवत् 1212 में श्रावण शुक्ल द्वादशी को मूल नक्षत्र में  की थी । 
      महारावल जैसल की पीढी में भीडकमल महारावल सपूत हुए और इनके वंशज भीडकमल भाटी खाँप से जाने जाते है ।. 
    भीडकमलजी के वंश में  बोरावटजी, श्रीपालजी , जोजाजी,डिंडाजी ,बजाजी ,कँवरपाल जी एवं गाडणजी हुए , इन गाडणजी के 5 पुत्र हुए -
 अहीदेजी , खिखोजी , बहूगोजी , तेजसीजी एवं सबसे छोटे गरवाजी ।
   गरवाजी का जन्म विक्रम संवत् 1285 में  हुआ था , जैसलमेर के उत्तरी क्षैत्र में तपस्वी शरणदासजी की गुपा थी ।
    गरवाजी  भक्ति भाव , दयालु , सत्संगी एवं वैरागी प्रवृति के थे अत: गरवाजी ने युवावस्था में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था और इन्होनें गुरू शरणदासजी से शिक्षा ली और सत्संग प्रवृति से जुड गए , सत्संग और उपदेशों से लोग प्रभावित होने लगे और गरवाजी के उपदेश सुनने के लिए जैसाण नरेश महारावल "मूलराज सिंह जी भाटी "समेत दूर दूर से भक्त आने लगे और अनेक राजपूत गरवाजी के परमभक्त बन गए ।
     इन्ही दिनों जैसलमेर पर दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने कई हमले किए थे , सुलतान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा अत्याचार की इस आँधी में जैसलमेर के हालात जर्जर हो चुके थे ।
    जैसलमेर के असंख्य राजपूत , अपनी आन बान शान के लिए युद्धों में बलिदान देते  , हजारों राजपूत वीरांगनाओं ने अग्नि स्नान कर जौहर कर कर लिए थे और असंख्य राजपूत कन्याएँ बाल विधवा हो गई थी ।
              एक दिन लौद्रवा में संत गरवाजी का सत्संग चल रहा था , हजारों लोग बैठे थे , एक तरफ क्षत्रिय और दूसरी तरफ क्षत्राणियाँ बैठी थी औऱ इनके साथ छोटी-छोटी बाल विधवाएँ बैठी थी , संत गरवाजी, राजपूत समाज की इन बाल विधवाओं को देखकर मन ही मन बहुत विचलित हुए और उनकी आँखें इन राजकुमारियों की यह दशा देखकर वेदना एवं विडंबना से भर आई और सत्संग में बैठे सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये कि महात्मा दु:खी क्यों है ?
       थोडी देर सभा में सन्नाटा छा गया और आखिरकार संत गरवाजी अपने आसन से खडे होकर सभा में आवाज लगाई कि जो राजपूत मेरे वचनों से सहमत है और मेरे वचन निभाने में सक्षम हो वो मेरे सामने हाजिर हो !
           संत गरवाजी महाराज की यह आवाज सुनकर सभी राजपूत , एक -दूसरे का मुँह देखने लगे कि ये महात्मा क्या कह रहे है?चारों ओर चुप्पी छा गई और अंत में संत गरवाजी ने गर्जना की कि है कोई क्षत्रिय जो मेरे वचन पालने में सक्षम है ? या फिर धरती वीरों से खाली हो गई है !
            संत गरवाजी का आवाह्न सुनकर 6 राजपूत जातियों के 12 राजपूत उसी क्षण खडे हुए और संत गरवाजी के सामने जाकर बोले कि महाराज ! आपके वचन के लिए हमारे सिर हाजिर है , आखिरकार हम क्षत्रिय है और आप क्षत्रियों से संस्कारों से परिचित है कि " प्राण जाए , पर वचन ना जाए"।
     संत गरवाजी का वचन था कि जो कन्याएँ, युद्धवीरों की प्रेरणताएँ, बाल विधवाएँ हो गई और जिनके पति युद्धों में वीरगति को प्राप्त हो गए और जिन्होनें कभी ससुराल नहीं देखा और पति का संग नहीं किया , सिर्फ हथलैवा के पाप से उन कन्याओं का जन्म नऱक हो रहा है , मैं चाहता हूँ कि इन नाबालिग कन्याओं का घर बसे और राजपूतों में पुनर्विवाह चालू किया जाए !!
     राजपूतों में पुनर्विवाह की बात को सुनकर बहुत से राजपूत, सभा से चले गए लेकिन वो 6 राजपूत जातियों के 12 राजपूत अपने वचनों पर अडिग रहे । ये 6 राजपूत जातियाँ भाटी , राठौड़, चौहान , गौहिल , पंवार और परिहार थी । 
     संत गरवाजी द्वारा राजपूतों में चलाई गई विधवा विवाह प्रथा की यह मुहिम पूरे क्षैत्र में फैल गई और बहुत से राजपूत गरवाजी की इस मुहिम का हिस्सा बन गए और ऱाजपूतों में 2 विचारधाराएँ हो गई 

- एक तो वो राजपूत जो विधवा विवाह के विरूद्ध थे और दूसरे वो जो गरवाजी के वचन में आकर विधवा विवाह से सहमत हो गये ।

   उपर्युक्त 6 राजपूत जातियों (भाटी , राठौड, चौहान , परिहार , पँवार और गौहिल के अलावा धीरे -धीरे इनमें और भी  बहुत सी राजपूत जातियाँ एवं शाखाएँ यथा सिसोदिया , तँवर , कच्छावा , गहरवार , चँदैल , गौड़ , सौलंकी इत्यादि  सम्मिलित हो गई और यह एक पंथ बन गया ।
      संत गरवाजी द्वारा चलाए गए इस पंथ का अब नामकरण भी तो करना था । संत गरवाजी ने एक भाटी राजपूत कन्या "बावत" कँवरी को तालाब से पानी लेकर आते हुए देखा और उन्हें इस पंथ का नाम सूझ गया , उन्होनें कन्या के सिर पर रखा पानी का घडा़ जिसे कि संस्कृत में "कुंभ" कहते है और कन्या का नाम "बावत" था , इन दोनों को जोडकर कुंभ+ बावत= "कुंबावत क्षत्रिय "या कुंबावत राजपूत नाम दिया जो जो आगे चलकर कुछ जगह बोलती भाषा में बदलकर " कुमावत क्षत्रिय" हो गया । 
      संत गरवाजी द्वारा चलाए गए इन क्षत्रियों का यह समुदाय , जब राजस्थान में भयंकर अकाल पडे तो राजस्थान को छोडकर मध्यप्रदेश , पंजाब , गुजरात , हरियाणा , उत्तरप्रदेश और दिल्ली चले गए।
                        गरवापंथ में शामिल शुरूआती 12 राजपूतों के नाम से जैसलमेर में " तलाईयाँ" खुदवाई गई जो कि " बालाणी तलाईयों" के नाम से विख्यात है।

         इन 12 राजपूतों के नाम से 12 खाँपें बन गई जैसे-
      बोरावट भाटी , लिम्मा भाटी , पौड भाटी, मंगलराव भाटी, भुटिया भाटी , दुगट पँवार , रसियड़ पँवार , टाक चौहान, मेरथा परिहार, कालौड राठौड़, कीता राठौड़ और सुड्डा गौहिल इत्यादि।  
    गरवापंथ के इन राज कुमारों में अनेक शूरवीर , सिरकटी झूँझार हुए एवं सतियाँ महासतियाँ हुई।


 भाटी राजपूतों में कुँवर सिंह जी ,  घडसीजी, बिरसाजी, देदाजी ,दामाजी ,कालोजी , चानणजी , पालाजी इत्यादि सिर कटी झूँझार हुए ।
     राठौड़ राजपूतों में,कालौड जी राठौड़, जालपजी राठौड़ सिर कटी झूँझार हुए ।
             इनके अलावा मेरथा जी परिहार, दूदाजी  ,पंबाजी पौड, शेरूजी तँवर , लिखमाजी चौहान , रणजित सिंह जी गौहिल एवं अनेक शूरवीर हुए ।
                          जैसलमेर के महान शूरवीर घडसीजी भाटी का खानदान इन्हीं राजपूतों में है और जैसलमेर की सूरजपोल में इनकी प्रतिमा है ।महान यौद्धा घडसीजी झूँझार के लिए एक कहावत प्रचलित है जो इस प्रकार है

" सुख भोगियो सूरजपोल में, बल भायां री जोड। किरोड़ रंग कवियां तना, रंग के पावा पौड। शीश कटिया , धड लडिया , अलाउद्दीन फौजा पाछी जाय।। जंडाजी घर जनमिया , वे मंगलराव भाटियाँ कुल मांय।


         इसी प्रकार पुनखेडे गाँव के ठाकुर भैरोसिंह भाटी के बेटे कुँवर सिंह जी भाटी , सिरोही की मुसलमानी सेना से बहादुरी से लडे और फिर सिर कटने के बाद भी सैंकडों मुसलमानों को मौत के घाट उतार कर झूँझार हुए , इन वीर झूँझार की साथ इनकी कुँवरानियाँ एवं माता जी सती हुई , यह घटना विक्रम संवत् 1438 की माघ शुक्ल नवमी की है , भाटी कुँवर सिंह के स्मारक पर माघ शुक्ल नवमी को मेला लगता है और अनेक श्रृद्धालु दर्शन के लिए आते है ।
             गरवापंथ के राजपूतों में दारू- -माँसाहार का प्रचलन नहीं था और ये शुद्ध , सात्विक प्रवृति के थे ।
                   सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद राजपूतों में बिखराव आ गया और ये राजपूत देश के कोने-कोने में विस्थापित हो गए । 

इन राजकुमार राजपूतो/ राजकुमार क्षत्रियों के 26 गाँव उत्तरप्रदेश के बदायू,प्रतापगढ, गौरखपुर , आगरा , दिल्ली , मथुरा , भरतपुर के आसपास निवास करते है ।

      श्री गरवापंथी राजपूतों के इस समुदाय को देश में अलग अलग नामों से पहचाना जाता है जैसे - राजस्थान में कुंबावत क्षत्रिय , मप्र में मारू कुंबावत क्षत्रिय , दिल्ली में राजकुमार क्षत्रिय तथा पंजाब , हरियाणा, गुजरात में मारू राजपूत नाम से जाना जाता है । कहीं कहीं इन राजपूतों को कुमार राजपूतों के नाम से भी जाना जाता है ।
संत गरवाजी द्वारा राजपूत समाज के कल्याण किए गए श्रैष्ठ कार्य के  लिए एक  कहावत प्रचलित है जो इस प्रकार है- 

" गरवा गढ़ जैसाण रा, कन्या उबारऩ काज। कुल क्षत्रिय दु:ख कारणे, संत हुया सरताज।

   पंजाब में इन गरवापंथ के मारू राजपूतों के फाज्जलिका जिले की अबोहर तहसील के आसपास ठिकाने रहे है और ये पैरो में सोने के कडे पहना करते थे , हाथों में स्वर्ण लाठी इनकी मुख्य पहचान रही है और इन्हें " सोना नरेश " उपाधि से अलंकृत किया जाता था । कुंवर देवराज सिंह भाटी (वार्ता) 09:14, 22 जनवरी 2020 (UTC)उत्तर दें

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  • व2. परीक्षण पृष्ठ
  • व3. साफ़ बर्बरता

यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है। QueerEcofeminist "cite! even if you fight"!!! [they/them/their] 18:47, 25 जनवरी 2020 (UTC)उत्तर दें

नमस्कार, आपके द्वारा बनाए पृष्ठ वार्ता:क्षत्रिय कुमावत राजपूत KSHATRIYA KUMAWAT RAJPUT को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के मापदंड ल2 के अंतर्गत शीघ्र हटाने के लिये नामांकित किया गया है।

ल2 • साफ़ प्रचार

इसमें वे सभी पृष्ठ आते हैं जिनमें केवल प्रचार है, चाहे वह किसी व्यक्ति-विशेष का हो, किसी समूह का, किसी प्रोडक्ट का, अथवा किसी कंपनी का। इसमें प्रचार वाले केवल वही लेख आते हैं जिन्हें ज्ञानकोष के अनुरूप बनाने के लिये शुरू से दोबारा लिखना पड़ेगा।

यदि आप इस विषय पर लेख बनाना चाहते हैं तो पहले कृपया जाँच लें कि विषय उल्लेखनीय है या नहीं। यदि आपको लगता है कि इस नीति के अनुसार विषय उल्लेखनीय है तो कृपया लेख में उपयुक्त रूप से स्रोत देकर उल्लेखनीयता स्पष्ट करें। इसके अतिरिक्त याद रखें कि विकिपीडिया पर लेख ज्ञानकोष की शैली में लिखे जाने चाहियें।

यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है।

QueerEcofeminist "cite! even if you fight"!!! [they/them/their] 05:31, 27 जनवरी 2020 (UTC)उत्तर दें