"शलाकापुरुष": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
→बारह चक्रवर्तीयो के नाम: add useful and rare information.9 बलभद्र के नाम कि सुची डाली गई। टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit |
→बारह चक्रवर्तीयो के नाम: add useful and rare information. टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit |
||
पंक्ति 75: | पंक्ति 75: | ||
[[वर्धमान महावीर]] |
[[वर्धमान महावीर]] |
||
== बारह चक्रवर्तीयो के नाम == |
== बारह चक्रवर्तीयो के नाम == |
||
[[जैन दर्शन]] के अनुसार हर काल में ६३ [[शलाकापुरुष]] होते है जिसमें १२ चक्रवर्ती होते हैं। [[ऋषभदेव]] के पुत्र '[[भरत चक्रवर्ती]]' इस काल के पहले चक्रवर्ती थे। |
|||
1 |
1 |
||
श्री भरत जी |
श्री भरत जी |
||
पंक्ति 99: | पंक्ति 100: | ||
12 |
12 |
||
ब्रह्मदत् जी |
ब्रह्मदत् जी |
||
== नौ बलभद्रो के नाम == |
== नौ बलभद्रो के नाम == |
||
दिगम्बर परम्परा के अनुसार वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौ बलभद्र के नाम निम्नलिखित हैं: |
दिगम्बर परम्परा के अनुसार वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौ बलभद्र के नाम निम्नलिखित हैं: |
10:51, 21 जून 2019 का अवतरण
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
जैन धर्म में ६३ शलाकापुरुष हुए है। यह है – चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और नौ प्रति वासुदेव। इन ६३ महापुरुष जिन्हें त्रिषष्टिशलाकापुरुष भी कहते हैं के जीवन चरित्र दूसरों के लिए प्रेरणादायी होते है।६३ शलाकापुरुष के नाम अग्रलिखित है।
24 तीर्थंकरो के नाम
1 ऋषभदेव
2 अजितनाथ
3 सम्भवनाथ
10 शीतलनाथ जी
11 श्रेयांसनाथ
12 वासुपूज्य जी
13 विमलनाथ जी
14 अनंतनाथ जी
15 धर्मनाथ जी
16 शांतिनाथ
17 कुंथुनाथ
18 अरनाथ जी
19 मल्लिनाथ जी
21 नमिनाथ जी
23 पार्श्वनाथ
बारह चक्रवर्तीयो के नाम
जैन दर्शन के अनुसार हर काल में ६३ शलाकापुरुष होते है जिसमें १२ चक्रवर्ती होते हैं। ऋषभदेव के पुत्र 'भरत चक्रवर्ती' इस काल के पहले चक्रवर्ती थे। 1
श्री भरत जी
2
श्री सगर जी
3
श्री मघवा जी
4
सनत्कुमार जी
5
शांतिनाथ जी
6
कुंथुनाथ जी
7
अरहनाथ जी
8
सुभौम जी
9
पद्म जी
10
हरिषेण जी
11
जय सेन जी
12
ब्रह्मदत् जी
नौ बलभद्रो के नाम
दिगम्बर परम्परा के अनुसार वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौ बलभद्र के नाम निम्नलिखित हैं:
सन्दर्भ
- गुणभद्र, आचार्य; जैन, साहित्याचार्य डॉ पन्नालाल (2015), उत्तरपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-1738-7