सुमतिनाथ
सुमतिनाथ | |
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पाँचवें तीर्थंकर | |
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विवरण | |
अन्य नाम | सुमतिनाथ |
एतिहासिक काल | १ × १०२२२ वर्ष पूर्व |
गृहस्थ जीवन | |
वंश | इक्ष्वाकु |
पिता | मेघरथ |
माता | सुमंगला |
पंचकल्याणक | |
जन्म | वैशाख शुक्ल ८ |
जन्म स्थान | काम्पिल |
मोक्ष | चैत्र शुक्ल १० |
मोक्ष स्थान | सम्मेद शिखर |
लक्षण | |
रंग | स्वर्ण |
चिन्ह | चकवा |
ऊंचाई | ३०० धनुष (९०० मीटर) |
आयु | ४०,००,००० पूर्व (२८२.२४ × १०१८ वर्ष) |
शासक देव | |
यक्ष | तुम्बरु |
यक्षिणी | महाकाली |
सुमतिनाथ जी वर्तमान अवसर्पिणी काल के पांचवें तीर्थंकर थे। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। सुमतिनाथ का जन्म क्षत्रिय राजा मेघा (मेघप्रभा) और रानी मंगला (सुमंगला) से इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या में हुआ था। उनका जन्म कल्याणक (जन्मदिन) जैन कैलेंडर के वैशाख सुदी महीने का आठवां दिन था।[1] युवावस्था में भगवान सुमतिनाथ ने वैवाहिक जीवन संवहन किया। प्रभु सुमतिनाथ जी ने राजपद का पुत्रवत पालन किया। पुत्र को राजपाट सौंप कर भगवान सुमतिनाथ ने वैशाख शुक्ल नवमी को एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा अंगीकार की। बीस वर्षों की साधना के उपरांत भगवान सुमतिनाथ ने ‘कैवल्य’ प्राप्त कर चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की और तीर्थंकर पद पर आरूढ़ हुए। असंख्य मुमुक्षुओं के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करके चैत्र शुक्ल एकादशी को ही सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
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