"तुलू भाषा": अवतरणों में अंतर
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[[उडुपी जिला|उडुपि]] जिले के एक [[ब्राह्मण]] ने तिगळारि लिपि का प्रयोग करके 'भागवत' नाम का एक ग्रन्थ की रचना की है। कवि [[मन्दार केशव भट]] ने 'मन्दार रामायण' नाम का एक आधुनिक [[महाकाव्य]] लिखा है। |
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== तुलू की शैलियाँ == |
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भाषाविदों के अनुसार तुलू की चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं : |
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'''शिवल्लि''' - तुलू ब्राह्मणों की बोलनेवाली शैली। |
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'''जैन''' - तुलुनाडु के अत्तरी भागों के जैनों की बोलनेवाली शैली। |
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'''सामान्य''' - तुलुनाडु के ज्यादातर लोगों की बोलनेवाली शैली। वाणिज्य, कला, मनोरंजन में इस शैली की उपयोग होती है। |
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'''आदिवासी''' - आदिवासी लोगों की बोलनेवाली शैली। |
'''आदिवासी''' - आदिवासी लोगों की बोलनेवाली शैली। |
05:17, 24 जनवरी 2018 का अवतरण
तुलू भाषा संस्करणका विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश |
तुलू भारत के कर्नाटक राज्य के पश्चिमी किनारे में स्थित दक्षिण कन्नड़ और उडुपि जिलों में तथा उत्तरी केरल के कुछ भागों में प्रचलित भाषा है। पहले तुलू ब्राह्मण वैदिक और संस्कृत साहित्य लिखने के लिये 'तिगलारि' नामक लिपि को उपयोग करते थे। लेकिन बहुत कम साहित्य तुलू भाषा में मिला है। पर आज इस लिपि को जाननेवाले बहुत कम हैं। पुरानी तिगलारि लिपि मलयालम लिपि से बहुत मिलती है। अब तुलू लिखने के लिये कन्नड़ लिपि का प्रयोग किया जाता है। यह पञ्च द्राविड भाषाओं में एक है। दक्षिण कन्नड और उडुपी जिलों की अधिकांश लोगों की मातृभाषा तुळु है। इसलिए ये दोनो जिले सम्मिलित रूप से तुलुनाडु नाम से जाने जाते हैं। केरल के कासरगोड जिले में भी बहुत लोग तुलू भाषा बोलते हैं।
कृतियाँ
उडुपि जिले के एक ब्राह्मण ने तिगळारि लिपि का प्रयोग करके 'भागवत' नाम का एक ग्रन्थ की रचना की है। कवि मन्दार केशव भट ने 'मन्दार रामायण' नाम का एक आधुनिक महाकाव्य लिखा है।
तुलू की शैलियाँ
भाषाविदों के अनुसार तुलू की चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :
शिवल्लि - तुलू ब्राह्मणों की बोलनेवाली शैली।
जैन - तुलुनाडु के अत्तरी भागों के जैनों की बोलनेवाली शैली।
सामान्य - तुलुनाडु के ज्यादातर लोगों की बोलनेवाली शैली। वाणिज्य, कला, मनोरंजन में इस शैली की उपयोग होती है।
आदिवासी - आदिवासी लोगों की बोलनेवाली शैली।
तुलुनाडु
कुछ पुरानी मलयालम कृतियों के अनुसार जो क्षेत्र कासरगोड के चन्द्रगिरी नदी से लेकर उत्तर कन्नड के गोकर्ण तक व्यापित है वो तुलुनाडु नाम से जानाजाता था। पर आज का तुलुनाडु दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिलों तक ही सीमित है। फिर भी केरल के कासरगोड तथा महाराष्ट्र के मुम्बई और थाने में तुलू बोलनेवाले बहुत लोग पाये जाते हैं।
लिपि
वर्तमान समय में तुळुभाषिक साहित्य लिखने के कार्य में कन्नड लिपि का उपयोग होता है।