रामेश्वर त्रिवेणी संगम
इस लेख का शीर्ष भाग इसकी सामग्री का विस्तृत ब्यौरा नहीं देता। कृपया शीर्ष को बढ़ाएँ ताकि लेख के मुख्य बिंदुओं को एक झलक में पढ़ा जा सके। (दिसम्बर 2015) |
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (दिसम्बर 2015) स्रोत खोजें: "रामेश्वर त्रिवेणी संगम" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित तीन नदियों के संगम पर बना भगवान शिव का पवित्र स्थल राजस्थान का त्रिवेणी संगम नाम से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। <br / यहां तीन प्रमुख नदियां आके मिलती है। 1. बनास नदी 2. चंबल नदी 3. सींप नदी
इतिहास
[संपादित करें]आदि महाकाव्य रामायण के अनुसार वनवास के समय भगवान राम, लक्ष्मण व सीता वर्तमान सवाई माधोपुर की खण्डार तहसील में स्थित रामेश्वर तीर्थ की जगह एक रात का विश्राम किया था। रामायण के अनुसार दक्षिणी सागर ने जब भगवान राम को रास्ता नहीं दिया तो उसे सुखाने के लिए भगवान राम ने अमोघ बाण का प्रहार किया, जिससे समुद्र के स्थान पर मरूकान्तार हो गया जो अब राजस्थान का पश्चिमोत्तर भाग है। भूगर्भशास्र भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जहाँ अभी रेगिस्तान है, वहां पहले समुद्र लहराता था।
धार्मिक दृष्टि से पवित्र स्थल के रूप में विख्यात यह स्थान त्रिवेणी संगम के रूप में जाना जाता है, इस स्थान पर तीन प्रमुख नदियों का मिलान होता है, इसी कारण इसे त्रिवेणी संगम नाम दिया गया है, इस जगह पर चंबल नदी , बनास नदी एवं सीप नदी आकर मिलती है, कहाँ जाता है कि प्राचीन काल में भगवान राम ने मिट्टी का शिवलिंग स्थापित करके इसी जगह पर भगवान शिव की पूजा की थी। वर्तमान में इस स्थान पर शिव भक्तों का वर्ष भर जमावड़ा लगा रहता है, चारों तरफ प्रकृति की हरियाली यहाँ के पवित्र स्थान पर चार चाँद लगा देती है। इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुजनाथ का मंदिर भी बना हुआ है।
मेला
[संपादित करें]रामेश्वर शिव लिंग के दर्शनार्थ दूर दराज से आने वाले भक्तजन त्रिवेणी में स्नान कर भगवान शिव के शिव लिंग का जलाभिषेक करते हैं, इस स्थान पर प्रतिवर्ष 'कार्तिक पूर्णिमा' एवं 'महा शिवरात्री' पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादाद में यहाँ पर भीड़ इकट्ठा होती है। इस स्थान को राजस्थान में "मीणा जनजाति का प्रयागराज" भी कहाँ जाता है।