रमन स्पेक्ट्रमिकी

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रमन संकेत में शामिल राज्यों को दिखाते हुए ऊर्जा स्तर का आरेखरेखा की मोटाई लगभग विभिन्न संक्रमण से सिग्नल की शक्ति के लिए आनुपातिक है।

रमन वर्णक्रमीयता सट्रोस्कोपी (सी वी रमन उच्चारित/ˈrɑːmən/ के नाम पर आधारित) एक वर्णक्रमीय (स्पेक्ट्रोस्कोपी) तकनीक है जिसका प्रयोग एक प्रणाली में कंपन, घूर्णन तथा अन्य कम आवृत्ति के प्रकारों के अध्ययन में होता है।[1] यह एक रंग के प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक लाईट) के, आम तौर पर इन्फ्रारेड या पराबैंगनी रेंज के पास लेज़र से दिखाई देने वाले अलचकदार स्कैटरिंग (बिखराव) या रमन बिखराव (रमन स्कैटरिंग) पर आधारित है। प्रणाली में लेज़र प्रकाश फ़ोनोन (phonon) या उत्तेज़क कारकों से क्रिया करता है जिसके परिणामस्वरूप लेज़र फोटोन की ऊर्जा ऊपर या नीचे स्थानांतरित होती रहती है। ऊर्जा में बदलाव प्रणाली में फ़ोनोन (phonon) मोड के बारे में जानकारी देता है। इन्फ्रारेड वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) समान तरह की, लेकिन अतिरिक्त सूचना प्रदान करती है।

आमतौर पर, एक नमूने को एक लेज़र बीम से प्रकाशित किया जाता है। प्रकाशित बिंदु से रोशनी को एक लेंस के माध्यम से एकत्रित किया जाता है और मोनोक्रोमेटर (monochromator) के माध्यम से भेजा जाता है। रेले बिखराव (रेले स्कैटरिंग) के कारण, लेज़र लाइन के पार की तरंगे छान ली जाती हैं जबकि बची हुई रोशनी को एक डिटेक्टर पर छितराया जाता है।

स्वाभाविक रमन बिखराव (रमन स्कैटरिंग) आम तौर पर बहुत कमजोर होता है और इसी कारण रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) में मुख्य कठिनाई प्रचंड रेले स्कैटर्ड लेज़र प्रकाश में से कमज़ोर अलचकदार स्कैटर्ड लेज़र प्रकाश को अलग करना है। ऐतिहासिक रूप से, एक उच्च दर की लेज़र रिजेक्शन को प्राप्त करने के लिए रमन स्पेक्ट्रोमीटर ने होलोग्राफिक (holographic) ग्रेटिंग तथा कई चरणों में फैलाव का प्रयोग किया। अतीत में, रमन फैलाव सेटअप के लिए डिटेक्टर के रूप में फोटोमल्टीप्लायर (photomultiplier) पहली पसंद थे, जो अत्यधिक समय लेते थे। लेकिन, आधुनिक उपकरण लगभग सार्वभौमिक रूप से लेज़र रिजेक्शन तथा स्पेक्ट्रोग्राफ और सीसीडी (CCD) डिटेक्टरों के लिए नॉच (notch) या एज फ़िल्टर (edge filter) (या तो एक्सियल ट्रांसमिसिव (axial transmissive (एटी (AT)), ज़ेर्नी-टर्नर (Czerny-Turner) (सीटी (CT)) मोनोक्रोमेटर या फिर एफटी (FT) (फोरियर ट्रांसफोर्म स्पेक्ट्रोस्कोपी आधारित)), का प्रयोग करते हैं।

रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) के कई उन्नत प्रकार हैं, जिसमे सरफेस एन्हैंस्ड रमन (surface-enhanced Raman), टिप एन्हैंस्ड रमन (tip-enhanced Raman), पोलराइज्ड रमन (polarised Raman), स्टिमुलेटेड रमन (stimulated Raman) (स्टिमुलेटेड उत्सर्जन की तरह), ट्रांसमिशन रमन (transmission Raman), स्पैटियली-ऑफ़सेट रमन (spatially-offset Raman) और हायपर रमन (hyper Raman) शामिल हैं।

आधारभूत सिद्धांत[संपादित करें]

रमन प्रभाव तब उत्पन्न होता है जब प्रकाश अणु से टकराता है तथा उस अणु के इलेक्ट्रॉन बादल तथा संरचना के साथ प्रतिक्रिया करता है। स्वाभाविक रमन प्रभाव के लिए, एक फोटोन अणु को शून्य अवस्था से आभासी ऊर्जा अवस्था में बदलता है। जब यह अणु स्थिर अवस्था में आता है तो यह एक फोटोन उत्सर्जित करता है तथा यह एक अलग घूर्णन या कम्पन स्थिति में पहुंच जाता है। मूल स्थिति तथा नई स्थिति में ऊर्जा का परिवर्तन उत्सर्जित किए गए फोटोनों की आवृति को उत्तेजित तरंगदैर्घ्य से दूर स्थानांतरित कर देता है।

यदि अणु की अंतिम कम्पन अवस्था प्रारंभिक अवस्था से अधिक ऊर्जावान हो तो प्रणाली की सम्पूर्ण ऊर्जा को संतुलित रखने के लिए, उत्सर्जित फोटोन कम आवृति की ओर स्थानांतरित होगा. आवृति में यह बदलाव स्टोक्स शिफ्ट (Stokes shift) कहलाता है। यदि अणु की अंतिम कम्पन अवस्था प्रारंभिक अवस्था से कम ऊर्जावान हो तो उत्सर्जित फोटोन उच्चतर आवृति की ओर स्थानांतरित होगा, तथा इसे एंटी स्टोक्स शिफ्ट (Anti-Stokes shift) कहते हैं। रमन स्कैटरिंग अलचकदार स्कैटरिंग का एक उदाहरण है क्योंकि फोटोनों तथा अणुओं की प्रतिक्रिया के दौरान ऊर्जा स्थानांतरित होती है।

एक अणु में रमन प्रभाव को दर्शाने के लिए कम्पन परिमाणों के अनुरूप अणुओं के चुम्बकत्व में बदलाव की सम्भावना - या इलेक्ट्रॉन बादल में विकार की मात्रा - आवश्यक है। चुम्बकत्व में परिवर्तन की मात्रा रमन स्कैटरिंग की तीव्रता का निर्धारण करेगी. स्थानांतरित आवृत्तियों के पैटर्न नमूने के घूर्णन और कम्पन अवस्थाओं द्वारा निर्धारित होते हैं।

इतिहास[संपादित करें]

हालांकि 1923 में एडॉल्फ स्मेकल ने प्रकाश के अलचकदार बिखराव की भविष्यवाणी की थी, किन्तु 1928 तक यह व्यवहार्य रूप में दिखाई नहीं दिया. रमन प्रभाव का नामकरण इसके खोजकर्ताओं में से एक, भारतीय वैज्ञानिक श्रीमान सी. वी. रमन के नाम पर किया गया था, जिन्होनें (1928 में के. एस. कृष्णन के साथ तथा स्वतंत्र रूप से ग्रिगोरी लैंड्सबर्गलियोनिड मेंडेलस्टाम द्वारा) सूर्य के प्रकाश के सन्दर्भ में इस प्रभाव का आकलन किया था।[1] 1930 में इस खोज के लिए रमन को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला, जिसमें मोनोक्रोमेटिक प्रकाश उत्पन्न करने के लिए एक छोटा फोटोग्राफिक फ़िल्टर तथा मोनोक्रोमेटिक प्रकाश को रोकने के लिए एक "क्रॉस्ड" फ़िल्टर बना कर सूर्य के प्रकाश का प्रयोग किया गया था। उन्होंने पाया कि बदली हुई आवृत्ति वाला प्रकाश "क्रॉस्ड" फ़िल्टर से होकर पार हो गया।

रमन प्रभाव के व्यवस्थित अग्रणी सिद्धांत को 1930 और 1934 के बीच चेकोस्लोवाकिया के भौतिकशास्त्री जॉर्ज प्लेज़ेक ने विकसित किया था।[2] मर्करी आर्क (mercury arc) पहले फोटोग्राफिक जांच के साथ और तब स्पेक्ट्रोफोटोमेट्रिक जांच के साथ, प्रकाश का मुख्य स्रोत बना. वर्तमान में लेज़र का प्रयोग प्रकाश स्रोत के रूप में किया जाता है।

अनुप्रयोग[संपादित करें]

रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) का उपयोग आम तौर पर रसायनशास्त्र में किया जाता है, क्योंकि कम्पन की जानकारी अणुओं की रासायनिक संरचना तथा समरूपता के लिए विशेष मायने रखती है। इसलिए यह एक फिंगरप्रिंट (आकृति) प्रदान करता है जिसके द्वारा अणु को पहचाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, SiO, Si2O2 और Si3O3 की कम्पन आवृत्तियों की पहचान और निर्दिष्टिकरण सामान्य कोर्डिनेट विश्लेषण के आधार पर इन्फ्रारेड और रमन स्पेक्ट्रा का प्रयोग करके किया गया था।[3] संगठित अणुओं का फिंगरप्रिंट क्षेत्र 500-2000 सेमी−1 (तरंग संख्या में) के बीच होता है। एक और तरीका है जिसमें इस तकनीक का प्रयोग रासायनिक संबंधों में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए किया जाता है, जैसे, जब एक एंजाइम में एक अधःस्तर (सब्स्ट्रेट) जोड़ा जाता है।

रमन गैस विश्लेषक के कई व्यावहारिक अनुप्रयोग हैं। उदाहरण के लिए, इनका प्रयोग चिकित्सा में, सर्जरी के दौरान चेतनानाशक और श्वसन गैस के मिश्रण की समयोचित निगरानी के लिए किया जाता है।

ठोस अवस्था भौतिकी में, स्वाभाविक रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) का प्रयोग, अन्य वस्तुओं में, किसी नमूने के पदार्थों की विशेषता बताने, तापमान मापने और उसके क्रिस्टेलोग्राफिक अभिविन्यास का पता लगाने के लिए किया जाता है। पृथक अणुओं की तरह ही एक प्रदत्त ठोस पदार्थ में विशेष फोनोन मोड होते हैं जो खोजकर्ता को इसे पहचानने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) का उपयोग ठोस वस्तुओं, जैसे कि, प्लास्मोन्स (plasmons), मेग्नोन्स (magnons) और सुपर कन्डक्टिंग गैप हलचल (superconducting gap excitations) जैसी अन्य कम आवृत्तियों की हलचल के निरीक्षण के लिए किया जा सकता है। स्वाभाविक रमन संकेत स्टोक्स (नीचे की ओर) तीव्रता और एंटी स्टोक्स (ऊपर की ओर) तीव्रता के अनुपात में एक दिए गये फोनोन प्रकार की संख्या के बारे में जानकारी देता है।

एक एनिसोट्रोपिक (anisotropic) क्रिस्टल पर रमन स्कैटरिंग से क्रिस्टल के अभिविन्यास की जानकारी मिलती है। क्रिस्टल के सन्दर्भ में रमन स्कैटर्ड प्रकाश के चुम्बकत्व तथा लेज़र प्रकाश के चुम्बकत्व का प्रयोग क्रिस्टल का अभिविन्यास जानने के लिए किया जा सकता है, यदि क्रिस्टल की संरचना (विशेष रूप से, इसका बिंदु समूह (point group)) ज्ञात हो.

रमन एक्टिव फाइबर, जैसे कि - अरामिड और कार्बन, में कम्पन प्रकार होते हैं जो जोर लगाने पर रमन आवृति में बदलाव दर्शाते हैं। पोलीप्रोपाइलीन (Polypropylene) फाइबर भी समान बदलाव प्रदर्शित करते हैं। कार्बन नैनोट्यूब के व्यास का मूल्यांकन करने के लिए रेडियल ब्रीदिंग मोड (radial breathing mode) एक आम तौर पर प्रचलित तकनीक है। नैनोतकनीकी में, नैनोवायर के विश्लेषण के लिए रमन सूक्ष्मदर्शी का उपयोग संरचना की बनावट को बेहतर ढंग से समझने के लिए किया जा सकता है।

स्पैटियली ऑफसेट रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एसओआरएस (SORS)), जो परंपरागत रमन की अपेक्षा सतह की परतों के प्रति कम संवेदनशील होता है, का उपयोग आंतरिक पैकेजिंग को खोले बगैर नकली दवाओं का पता लगाने के लिए तथा जैविक उत्तकों की गैर आक्रामक निगरानी के लिए किया जा सकता है।[4] रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) का उपयोग बुक ऑफ़ केल्स (Book of Kells) जैसे ऐतिहासिक दस्तावेजों की रासायनिक संरचना का पता लगाने के लिए और दस्तावेजों को प्रस्तुत करते समय सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के बारे में जानकारी में योगदान करने के लिए किया जा सकता है।[5] यह विशेष रूप से उपयोगी है क्योंकि रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी इस प्रकार की सामग्री के बचाव या संरक्षण उपचार के लिए एक गैर आक्रामक तरीका प्रदान करता है।

हवाईअड्डे की सुरक्षा के लिए विस्फोटकों का पता लगाने वाले एक साधन के रूप में रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) की जांच की जा रही है।[6]

सूक्ष्मवर्णक्रमीयता (माइक्रोस्पेक्ट्रोस्कोपी)[संपादित करें]

रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) सूक्ष्मदर्शीय विश्लेषण की कई सुविधाएं प्रदान करती है। चूंकि यह एक बिखरने वाली (स्कैटरिंग) तकनीक है, इसलिए नमूनों को स्थिर करने या वर्गीकृत करने की जरूरत नहीं है। रमन स्पेक्ट्रा (वर्णक्रम) एक बहुत छोटी मात्रा (व्यास में < 1 μm) से एकत्र की जा सकती है, ये स्पेक्ट्रा उस मात्रा में मौजूद प्रजातियों की पहचान बताते हैं। पानी आमतौर पर रमन वर्णक्रमीय विश्लेषण के साथ हस्तक्षेप नहीं करता है। इस प्रकार, रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) खनिजों, पॉलीमर और सिरेमिक जैसे पदार्थों और कोशिकाओं तथा प्रोटीनों की सूक्ष्म परीक्षा के लिए उपयुक्त है। एक रमन सूक्ष्मदर्शी एक मानक ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप जैसा होता है जिसके साथ एक एक्साईटेशन लेज़र (excitation laser), एक मोनोक्रोमेटर और एक संवेदी डिटेक्टर (जैसे - एक चार्ज कपल्ड डिवाइस (सीसीडी (CCD)), या फोटोमल्टीप्लायर ट्यूब (पीएमटी (PMT))) जुड़ा होता है। माइक्रोस्कोप के साथ एफटी-रमन (FT-Raman) का भी इस्तेमाल किया जाता है।

डायरेक्ट इमेजिंग (प्रत्यक्ष छविकरण) में पूरे क्षेत्र की छोटी रेंज की तरंग संख्याओं (रमन अंतराल) की सहायता से बिखराव की जांच की जाती है। उदाहरण के लिए, एक कोलेस्ट्रॉल के लिए एक तरंग संख्या की विशेषता का उपयोग कोशिका के भीतर कोलेस्ट्रॉल के वितरण का रिकॉर्ड रखने के लिए किया जा सकता है।

एक अन्य दृष्टिकोण हायपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग (hyperspectral imaging) या रासायनिक इमेजिंग है, जिसमें क्षेत्र भर के दृश्य से रमन स्पेक्ट्रा हासिल किये जाते हैं। इस प्रकार से प्राप्त डाटा का प्रयोग तस्वीरें उत्पन्न करने में किया जा सकता है जो विभिन्न घटकों का स्थान तथा मात्रा दर्शाती हैं। कोशिका के उदाहरण में, एक हायपरस्पेक्ट्रल तस्वीर कोलेस्ट्रॉल के साथ-साथ प्रोटीन, न्यूक्लिक एसिड और फैटी एसिड का वितरण दर्शा सकती हैं। परिष्कृत संकेत और छवि प्रसंस्करण तकनीकों का उपयोग पानी की उपस्थिति, कल्चर मीडिया, बफ़र तथा दूसरे हस्तक्षेप करने वाले कारकों को नकारने के लिए किया जा सकता है।

रमन माइक्रोस्कोपी और विशेष रूप से कॉनफोकल माइक्रोस्कोपी (confocal microscopy), का स्पैटियल रेजोल्यूशन बहुत उच्च होता है। उदाहरण के लिए, कॉनफोकल रमन माइक्रोस्पेक्ट्रोमीटर का प्रयोग करके 632.8 nm लाइन से 100 μm व्यास के पिनहोल (pinhole) से हीलियम-नियोन लेज़र गुजारने पर पार्श्व और गहराई का रेजोल्यूशन क्रमशः 250 nm और 1.7 μm थे। चूंकि माइक्रोस्कोप के ऑब्जेक्टिव लेंस लेज़र बीम को व्यास में कई माइक्रोमीटर पर केन्द्रित करते हैं, परिणामस्वरूप प्राप्त फोटोन प्रवाह पारंपरिक रमन सेटअप की तुलना में कहीं अधिक होता है। इसमें प्रकाश बुझाने की अतिरिक्त सुविधा भी है। हालांकि, उच्च फोटोन प्रवाह नमूने में गिरावट पैदा कर सकता है और इस कारण से कुछ सेटअप में इस प्रक्रिया को कम करने के लिए एक गर्मी संबंधित सुचालक सब्स्ट्रेट होता है (जो एक गर्मी सोखने के यंत्र (हीट सिंक) के रूप में कार्य करता है).

रमन माइक्रोस्पेक्ट्रोस्कोपी का प्रयोग करके, नमूनों के सूक्ष्मदर्शीय क्षेत्रों के इन विवो समय- और स्थान-समाधित रमन वर्णक्रम को मापा जा सकता है। परिणामस्वरूप, पानी, मीडिया और बफ़र की चमक को हटाया जा सकता है। नतीजतन इन विवो समय- और स्थान-समाधित रमन वर्णक्रमीयता प्रोटीनों, कोशिकाओं तथा अंगों की जांच के लिए उपयुक्त है।

जैविक और चिकित्सीय नमूनों के लिए रमन माइक्रोस्कोपी आम तौर पर नियर-इन्फ्रारेड (एनआईआर (NIR)) लेज़र का प्रयोग करती हैं (785 nm डायोड तथा 1064 nm Nd: वाईएजी (YAG) खास तौर पर प्रयुक्त की जाती है). ऐसा करने से उच्च ऊर्जा तरंगदैर्य लगाने से नमूना के नष्ट होने का जोखिम कम हो जाता है। हालांकि, एनआईआर (NIR) रमन की तीव्रता कम है (रमन स्कैटरिंग तीव्रता की ω(4 पर निर्भरता के कारण) और ज्यादातर डिटेक्टरों को संग्रह करने में समय लगता है। हाल ही में और अधिक संवेदनशील डिटेक्टर उपलब्ध हो गए हैं, जो इसके आम उपयोग के लिए अनुकूल तकनीक को बेहतर बना रहे हैं। अकार्बनिक नमूनों की रमन माइक्रोस्कोपी, जैसे चट्टानों और सिरेमिक तथा पॉलिमर, व्यापक श्रेणी की उत्तेज़क तरंग दैर्घ्य का उपयोग कर सकती है।[7]

चुम्बकीय विश्लेषण[संपादित करें]

रमन स्कैटर्ड प्रकाश के चुम्बकत्व में उपयोगी जानकारी भी शामिल हैं। इस विशेषता को (समतल) चुम्बकीय लेज़र उत्तेजना तथा चुम्बकत्व विश्लेषक द्वारा मापा जा सकता है। समतल सतह के सीधे तथा समानांतर लगाये गये विश्लेषक की सहायता से ग्रहण किये गये स्पेक्ट्रा का उपयोग विध्रुवीय अनुपात की गणना में किया जा सकता है। तकनीक का अध्ययन शैक्षणिक दृष्टि से समूह सिद्धांत, समरूपता, रमन गतिविधि तथा रमन स्पेक्ट्रा से जुड़ी चोटियों के बीच के संबंध के प्रशिक्षण में उपयोगी होता है।

इस विश्लेषण से उत्पन्न होने वाली वर्णक्रमीय जानकारी आणविक अभिविन्यास और कम्पन समरूपता की जानकारी देती है। संक्षेप में, यह उपयोगकर्ता को आणविक आकार से संबंधित, उदाहरण के लिए, सिंथेटिक रसायन शास्त्र या पॉलीमोर्फ विश्लेषण में, मूल्यवान जानकारी प्राप्त करने की अनुमति प्रदान करती है। इसका प्रयोग अक्सर क्रिस्टल लेटिसिस, लिक्विड क्रिस्टल या पॉलीमर नमूनों में सूक्ष्म आणविक संरचना को समझने के लिए किया जाता है।[8]

विविधताएं[संपादित करें]

रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के अनेक रूप विकसित किए गये हैं। सामान्य प्रयोजन संवेदनशीलता को बढ़ाना है, (उदाहरण के लिए सरफेस एन्हैंस्ड रमन), स्पैटियल रेजोल्यूशन (रमन माइक्रोस्कोपी) में सुधार लाना, या बहुत ही विशेष जानकारी (रेजोनेन्स रमन (resonance Raman)) ग्रहण करना है।

  • सरफेस एन्हैंस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एसईआरएस (SERS) - आम तौर पर सोने या चांदी के कोलाइड या सोने या चांदी से युक्त एक सब्स्ट्रेट में की जाती है। सोने और चांदी की सतह के प्लास्मोन्स को लेज़र द्वारा उत्तेजित किया जाता है, जिसके कारण धातु के आसपास के विद्युत् क्षेत्रों में वृद्धि होने लगती है। यह देखते हुए कि रमन तीव्रता विद्युत् क्षेत्र के समानुपातिक होते हैं, इसलिए मापे गये संकेत में भारी वृद्धि (1011 तक) होती है। इस प्रभाव का अवलोकन मूलतः मार्टिन फ्लीशमन ने किया था किन्तु मौजूदा विवरण 1977 में वान डुयेन द्वारा प्रस्तावित किया गया था।[9]
  • अनुनाद (रेज़ोनंस) रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी - उत्तेजक तरंगदैर्घ्य का अणु या क्रिस्टल के इलेक्ट्रॉनिक परिवर्तनकाल से मिलान कराया जाता है, ताकि उत्तेजित इलेक्ट्रॉनिक अवस्था से जुड़े कम्पन प्रकारों में अत्यधिक वृद्धि हो. यह पॉलीपेप्टाईड्स जैसे बड़े अणुओं के अध्ययन के लिए उपयोगी है, जिससे "पारंपरिक" रमन स्पेक्ट्रा में सैकड़ों बंधन दिख सकते है। यह सामान्य मोड के साथ उनकी जांची गयी आवृत्ति को जोड़ने के लिए भी उपयोगी है।[10]
  • सरफेस एन्हैंस्ड अनुनाद रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एसईआरआरएस (SERRS)) - एसईआरएस (SERS) तथा अनुनाद रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का संयोजन जो सतह की निकटता का प्रयोग रमन तीव्रता को बढ़ाने के लिए करता है, तथा विश्लेषण में प्रयुक्त अणु के उत्तेज़क तरंगदैर्य का मिलान अधिकतम अवशोषण करने के लिए करता है।
  • हाइपर रमन - एक अरैखिक प्रभाव जिसमें कम्पन प्रकार उत्तेजक बीम के दूसरे हार्मोनिक के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। इसमें बहुत ही उच्च शक्ति की आवश्यकता है, लेकिन यह कम्पन प्रकारों के विश्लेषण की अनुमति देता है जो सामान्य रूप से "मूक" होते हैं। यह संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए अक्सर एसईआरएस (SERS)-प्रकार की सुविधा पर निर्भर करता है।[11]
  • स्वाभाविक रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी - अणुओं में रमन स्पेक्ट्रा के तापमान की निर्भरता का अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त होता है।
  • ऑप्टिकल ट्वीज़र्स रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (ओटीआरएस (OTRS)) - एक कण के अध्ययन में प्रयुक्त होता है, तथा एकल कोशिकाओं में जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएं भी ऑप्टिकल ट्वीज़र्स द्वारा पकड़ ली जाती हैं।
  • स्टिमुलेटेड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी - एक स्पैटियल घटनाक्रम, दो रंगीन पल्स (समानांतर या सीधे चुम्बकत्व के साथ) सतह से कम्पन हलचल की अवस्था में बड़ी संख्या को स्थानांतरित करते है, यदि ऊर्जा का अंतर एक अनुमति प्राप्त रमन परिवर्तनकाल के अनुरूप हो, तथा कोई भी आवृत्ति एक इलेक्ट्रॉनिक प्रतिध्वनि से मेल न खाती हो. जनसंख्या स्थानांतरण के बाद किन्तु स्थिर अवस्था से पहले दो फोटोन यूवी का आयनीकरण लागू किया जाता है, जो एकत्रित किये जाने वाले गैस या आणविक क्लस्टर के अंतर-आणविक या अंतर-आणविक रमन स्पेक्ट्रम की अनुमति देता है। यह आणविक गतिशीलता का एक उपयोगी तकनीक है।
  • स्पैटियली ऑफसेट रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एसओआरएस (SORS)) - उत्तेजित लेज़र बिंदु से लैटरली ऑफ़सेट (laterally offset) दूर क्षेत्रों से रमन स्कैटर एकत्रित किया जाता है, जिसमें पारम्परिक रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी की तुलना में सतह की परत का काफी कम योगदान होता है।[12]
  • स्पष्ट एंटी-स्टोक्स रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (केएआरएस (CARS)) - दो लेज़र बीमों का प्रयोग एक स्पष्ट एंटी-स्टोक्स आवृत्ति की बीम उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जिसे प्रतिध्वनी द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
  • रमन ऑप्टिकल गतिविधि (आरओए (ROA)) - चिरल (chiral) अणु में दायें और बायें गोलाकार में बिखरे चुम्बकीय प्रकाश या समान रूप से विखरे प्रकाश में एक छोटे गोलाकार चुम्बकीय घटक द्वारा रमन विखराव की तीव्रता में छोटे अंतर के द्वारा, कम्पनयुक्त ऑप्टिकल गतिविधि को मापता है।[13]
  • ट्रांसमिशन रमन - बड़ी मात्रा में छिपाए गये पदार्थों का पता लगाता है जैसे पाउडर, कैप्सूल, जीवित ऊत्तक आदि. इसे 1960 के अंत तक काफी हद तक नजरअंदाज किया गया था,[14] लेकिन 2006 में दवाओं की खुराक के प्रकारों को तेजी से परखने के एक साधन के रूप में इसे फिर से पुर्नजीवित किया गया।[15] इसके चिकित्सीय नैदानिक अनुप्रयोग भी हैं।[16]
  • व्युत्क्रम रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Inverse Raman spectroscopy).
  • टिप एन्हैंस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (टीईआरएस (TERS)) - अपने क्षेत्र में स्थित अणुओं के रमन संकेतों को बढ़ाने के लिए धातु की टिप (आम तौर पर चांदी-/सोने की परत-चढ़ी एएफएम (AFM) या एसटीएम (STM)) का प्रयोग करता है। स्पैटियल रेजोल्यूशन लगभग टिप एपेक्स (20-30 एनएम) के आकार का होता है। एकल अणु के स्तर तक टीईआरएस (TERS) में संवेदनशीलता पाए जाने की बात को साबित किया गया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

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