भीलवाड़ा

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भीलवाड़ा
नगर
उपनाम: राजस्थान की वस्त्रनगरी
भीलवाड़ा is located in राजस्थान
भीलवाड़ा
भीलवाड़ा
Location in Rajasthan, India
भीलवाड़ा is located in भारत
भीलवाड़ा
भीलवाड़ा
भीलवाड़ा (भारत)
निर्देशांक: 25°21′N 74°38′E / 25.35°N 74.63°E / 25.35; 74.63निर्देशांक: 25°21′N 74°38′E / 25.35°N 74.63°E / 25.35; 74.63
देश भारत
राज्यराजस्थान
ज़िलाभीलवाड़ा जिला
ऊँचाई421 मी (1,381 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल370,009
भाषाएँ
 • आधिकारिकहिन्दी, मेवाड़ी
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
पिन311001
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोडRJ-IN
वाहन पंजीकरणRJ-06
लिंगानुपात1000/915[1] /
वेबसाइटwww.bhilwara.rajasthan.gov.in

भीलवाड़ा भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक शहर है। यह शहर भीलवाड़ा ज़िले का मुख्यालय है। यह राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में स्थित है तथा उदयपुर से १५२ कि.मी. दूर स्थित है। राजस्थान में यह अपने वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है, इस कारण इसे राज्य की वस्त्रनगरी भी कहते हैं। पूरा ज़िला पारम्परिक "फड़ चित्रकला" के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।

इतिहास[संपादित करें]

भीलवाड़ा का इतिहास 11वीं शताब्दी से संबंधित है और उस समय भील राजाओं ने जटाऊ शिव मंदिर का निर्माण करवाया।[2] हालांकि, इस जगह की स्‍थापना की असल तारीख और समय का अब तक पता नहीं चल पाया है। पुष्टि के अनुसार, वर्तमान भीलवाड़ा शहर में एक टकसाल था जहां 'भिलाडी' के नाम से जाने जाने वाले सिक्कों का खनन किया जाता था और इसी संप्रदाय से जिले का नाम लिया गया था। और दूसरी कहानी इस प्रकार है कि भील नामक एक जनजाति ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ युद्ध में महाराणा प्रताप की मदद की थी, राजा अकबर भीलवाड़ा क्षेत्र में रहते थे, इस क्षेत्र को भील + बड़ा (भील का क्षेत्र) भीलवाड़ा के नाम से जाना जाने लगा। वर्षों से यह राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक के रूप में उभरा है। आजकल भीलवाड़ा को देश में टेक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है।[3] 1948 में राजस्थान का भाग बनने से पूर्व भीलवाड़ा भूतपूर्व उदयपुर रियासत का हिस्सा था।

पर्यटन[संपादित करें]

थला की माता जी देवली भीलवाड़ा शहर से 15 किलोमीटर दूर बनास नदी के किनारे बहुत पुराना और विशाल बढ़ा देवी का मंदिर है यह बहुत विख्यात है यहां पर बारिश के मौसम में बड़ी संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं यहां पर नवरात्रा में रामायण वह बड़े-बड़े कलाकारों का ताता लगा रहता है वह अष्टमी के दिन बड़े मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राष्ट्रीय स्तर केेे कलाकार आते है वह अष्टमी के दिन देवली मैं भव्य जुलूस निकलता है बाद में माता जी के यहां पर आते हैं यहां पर आने के लिए भीलवाड़ा से पुर देवली से 2 किलोमीटर है। [4]

चावण्डिया तालाब[संपादित करें]

भीलवाड़ा से 15 किलोमीटर कोटा रोड़ कि तरफ चावंडिया तालाब स्थित है जहां तालाब के मध्य माता चामुंडा का मंदिर स्थित है। यहां हर वर्ष अक्टूबर से मार्च के मध्य विदेशी प्रवासी पक्षी आते है और इसी कारण इसे पक्षी ग्राम के नाम से जाना जाता है।यह पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों के लिए बहुत ही सुन्दर जगह है। हर वर्ष ज़िला प्रशासन और कुछ संस्थाओं के द्वारा हर वर्ष पक्षी महोत्सव का आयोजन किया जाता है जहां देश विदेश से पक्षी विशेषज्ञ पक्षी अवलोकन के लिए आते है।

दरगाह हजरत गुल अली बाबा[संपादित करें]

शहर के सांगानेरी गेट पर स्थित यह दरगाह आस्ताना हज़रत गुल अली बाबा रहमतुल्लाह अलेही के नाम से मशहूर है यहाँ सभी धर्मो के लोग आस्था रखते है दरगाह पर प्रति वर्ष 1 से 3 नवम्बर तक उर्स का आयोजन होता है जो बड़ी धूमधाम से मनाया जा[5] ता हैl दरगाह के पास ही एक विशाल मस्जिद भी स्थित है जो रज़ा मस्जिद के नाम से जानी जाती है | आस्ताना गुल अली में ही एक दारुल उलूम भी संचालित है जिसका नाम सुल्तानुल हिन्द ओ रज़ा दारुल उलूम है इस दारुल उलूम में देश के कई राज्यों से आये बच्चे इल्म हासिल करते है

गाँधी सागर तालाब[संपादित करें]

यह तालाब शहर के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित है किसी ज़माने में यह लोगो के लिए प्रमुख पेयजल स्रोत हुआ करता था इस तालाब के मध्य में एक विशाल टापू स्थित है यह तालाब लोगो के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है इसके उत्तरी छोर पर एक तरफ तेजाजी का मंदिर, दूसरी तरफ बालाजी का मंदिर तथा मध्य में हज़रत मंसूर अली बाबा और हज़रत जलाल शाह बाबा की दरगाह स्थित हे इस पर्यटन स्थल को विकसित करने के लिए इसके दक्षिणी किनारे पर एक मनोरम पार्क का निर्माण कराया गया है जिसका नाम ख्वाज़ा पार्क रखा गया है बरसात के मोसम में इस तालाब से गिरते पानी का मनोरम दृश्य देखते ही बनता है

हरणी महोदव[संपादित करें]

भीलवाड़ा से 6 किलोमीटर दूर मंगरोप रोड़ पर शिवालय है। जो कि हरणी महोदव के नाम से प्रसिद्ध है। जहां पर प्रत्‍येक शिवरात्रि पर 3 दिवसीय भव्‍य मेले का आयोजन होता है। मेले का आयोजना जिला प्रशासन द्वारा नगर परिषद के सहयोग से किया जाता है। जिसमें 3 दिन तक प्रत्‍येक रात्रि में अलग-अलग कार्यक्रम यथा धार्मिक भजन संध्‍या (रात्रि जागरण), कवि सम्‍मेलन व सांस्‍क़तिक संध्‍या का आयोजन किया जाता है। यह मन्दिर पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है। प्राचीन समय में यहां घना आरण्‍य होने से आरण्‍य वन कहा जाता था, जिसका अपभ्रंश हो कर हरणी नाम से प्रचलित हो गया।

बदनोर[संपादित करें]

भीलवाडा शहर से 72 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे का इतिहास में एक अलग ही महत्व हे जब मेड़ता के राजा जयमल ने राणा उदेसिंह से सहायता के लिए कहा तो राणा ने जयमल को बदनोर जागीर के रूप में दिया बदनोर में कई देखने योग्य स्थल हे उनमे से निम्न हे - छाचल देव। अक्षय सागर। जयमल सागर। बैराट मंदिर। धम धम शाह बाबा की दरगाह। आंजन धाम। केशर बाग़। जल महल। आदि

कोटडी[संपादित करें]

वर्तमान मे शाहपुरा जिले मे स्थित है कोटडी़« भीलवाडा शहर से 23 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे का नाम आते ही सबसे पहले विख्यात श्री कोटडी़ चारभुजा जी का मंदिर स्मृति में आता है। भीलवाडा-जहाजपुर रोड पर स्थित यह नगर भगवान के चारभुजा जी के मन्दिर के कारण काफी प्रसिद्ध

कोठाज« कोठाज श्री चारभुजा मन्दिर

देवतलाई« प्राचीन देवनारायण जी का मन्दिर देवतलाई मे बना हुआ है जहाँ पर मन्दिर का निर्माण का रातो_रात मे हुआ है ( 1)यह मन्दिर हिन्दु,जैन,ईसाई, मुस्लिम सभी शैलियो का मिश्रण से निर्मित है ,

इस मन्दिर परिसर मे सभी धर्मो के देवताओ कि
प्राचीन मूर्तिया लगी हुई है तथा प्राचिन शिलालेख भी  लगा हुआ है (2) इसी गांव मे सोने के विशाल भण्डार खोजे गये है अतः यह राजस्थान कि पहली सोने कि खदान होगी, यहां पर सोने के साथ साथ चांदी  तांबा ,लौहा, आदि धातुओ के भण्डार है        

बागडा़« (1)बागडा़ गांव मे भगवान देवनारायण जी का मन्दिर बना हुआ है जिसे सारण श्याम जी के नाम से जाना जाता है यहां पर देवनारायण जी कि मूर्तिया का जमीन मे भण्डार होने के कारण इसे मेवाड का नागपहाड़ (मिनी नागपहाड़) कहा जाता है क्योकि नाग पहाड़ के समान हि यहां पर देवनारायण जी कि मूर्तियो का भण्डार पाया जाता है (2) सर्वाधिक महिला लिंगानूपात वाला गांव (3)कोटडी़ तहसील का जैविक गांव (4)सर्वाधिक कपास का उत्पादन वाला गांव


1921 में बसा गुर्जरों का गढ़ सरकाखेड़ा गांव भी

पारोली«

(1) लगु सम्मेद शिखर के नाम से विख्यात चंवलेश्वर जी जैन मन्दिर( चैनपुरा_पारोली) मे है, (2)मीराबाई का आश्रम

बनेड़ा[संपादित करें]

यह भीलवाडा जिले का सबसे पुराना शहर हे बनेड़ा में दुर्ग हे, जो महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। ये ऐक तहसील व् उपखंड कार्यालय है यह ऐक ऐतिहासिक सत्र हे सबसे पुराना जेन मंदिर हे व् बहुत बड़ा दुर्ग के परकोटा बना हुआ है।

मेनाल[संपादित करें]

माण्डलगढ से 20 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल मेनाल में 12 वीं शताब्दी के चौहानकला के लाल पत्थरों से निर्मित महानालेश्वर मंदिर, हजारेश्वर मंदिर देखने योग्य हैं। सैकडों फीट ऊंचाई से गिरता मेनाली नदी का जल प्रपात भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं।

जहाजपुर[संपादित करें]

भीलवाडा का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल, जिसका इतिहास बड़ा रंगबिरंगा रहा हैं। कर्नल जेम्स टॉड 1820 में उदयपुर जाते समय यहाँ आये थे। यहाँ का बड़ा देवरा (पुराने मंदिरों का समूह), पुराना किला और गैबीपीर के नाम से प्रसिद्ध मस्जिद दर्शनीय हैं।यहा पर जैन धर्म का मंदिर भी है जो स्वस्तिधाम के नाम से जाना जाता हे इस मंदिर श्री मुनि सुवर्तनाथ की प्राकट्य प्रतिमा है जो बहुत अदभुद हे यह प्रतिमा चमत्कारी है यह मंदिर शाहपुरा रोड पर स्थित है|जहाजपुर से 12 किलोमीटर दूर श्री घटारानी माता जी का मंदिर है जो अतिसुन्दर व् दर्शनीय है तथा इस मंदिर से 2 किलोमीटर दूर पंचानपुर चारभुजा का प्राकट्य स्थान मंदिर है|जहाजपुर क्षेत्र में एक नागदी बांध है जो अतिसूंदर व् आकर्षक है यहाँ एक नदी भी हे जिसे नागदी नदी के नाम से जाना जाता हैं इसे जहाजपुर की गंगा भी कहते है| जहाजपुर में देखने के लिए अनेको मंदिर व् धर्मस्तल है| जहाजपुर की भाषा व् जीवन शैली अदभुद है|जहाजपुर क्षेत्र में मीणा जाति सर्वाधिक निवास करती हैं|जहाजपुर में एक पहाड़ी पर मांगट देव का मंदिर है जो मोटिस (मीणाओ) का प्रमुख धार्मिक स्थान है|जहाजपुर बसस्टैंड के पास देवली रोड पर एसबीआई बैंक के सामने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी का एक सर्किल भी है जिस पर बाबा साहेब की विशाल मूर्ति लगी है|

बिजोलिया[संपादित करें]

माण्डलगढ से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित बिजौलिया में प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर एवं बावडियाँ स्थित हैं। ये मंदिर 12 वीं शताब्दी के बने हुए हैं। लाल पत्थरों से बने ये मंदिर पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व के स्थल इतिहास प्रसिद्ध किसान आन्दोलन के लिए भी बिजौलियाँ प्रसिद्ध रहा हैं। यहाँ पर बना भूमिज शैली का विष्णु भगवान का मंदीर 1000 वर्ष सै भी पुराना है , जो भीलवाडा का एक मात्र मंदिर है। यहा बिजोलिया अभिलेख हैं जिससे चौहानो की जानकारी मिलती हैं व इसमे चौहनो को ब्राह्मण बताया गया हैं

शाहपुरा[संपादित करें]

भीलवाडा तहसील मुख्यालय से 50 किलोमीटर पूर्व में शाहपुरा राज्य की राजधानी था। यहाँ रेल्वे स्टेशन नहीं ह परन्तु यह सडक मार्ग द्वारा जिला मुख्यालय से जुडा हुआ हैं। यह स्थान रामस्नेही सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। जिसे रामद्वारा के नाम से जानते है,मुख्य मंदिर रामद्वारा के नाम से जाना जाता हैं। यहाँ पूरे भारत से और बर्मा तक तक से तीर्थ यात्री आते हैं। यहाँ लोक देवताओं की फड पेंटिंग्स भी बनाई जाती हैं। यहाँ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में विद्यमान हैं। जो वर्तमान में एक संग्रहालय के रूप में है जिसे देखने लोग आते हैं,शाहपुरा में प्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रतापसिंह बारहट के नाम से महाविधालय है जिसके प्रांगण मे प्रतापसिंह बारहट की मूर्ति लगी है,यहाँ होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध फूलडोल मेला लगता हैं, जो लोगों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र होता हैं। यहाँ शाहपुरा से 30 किलो मीटर दूर धनोप माता का मंदिर भी हे और खारी नदी के तट पर शिव मंदिर छतरी भी लोगों को काफी पसंद हे

माण्डल[संपादित करें]

भीलवाडा से 14 किलोमीटर दूर स्थित माण्डल कस्बे में प्राचीन स्तम्भ मिंदारा पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ से कुछ ही दूर मेजा मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ कछवाह की बतीस खम्भों की विशाल छतरी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का स्थल हैं। छह मिलोकमीटर दूर भीलवाडा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेजा बांध हैं। होली के तेरह दिन पश्चात रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य लोगों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता हैं। कहते हैं कि शाहजहाँ के शासनकाल से ही यहाँ यह नृत्य होता चला आ रहा हैं। यहां के तालाब के पाल पर प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। जिसे भूतेश्‍वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

माण्डलगढ[संपादित करें]

भीलवाडा से 51 किलोमीटर दूर माण्डलगढ नामक अति प्राचीन विशाल दुर्ग ह मांडलगढ़ दुर्ग का निर्माण चांदना गुर्जर ने करवाया था। त्रिभुजाकार पठार पर स्थित यह दुर्ग राजस्थान के प्राचीनतम दुर्गों में से एक हैं। यह दुर्ग बारी-बारी से मुगलों व राजपूतों के आधिपत्य में रहा हैं। इस दुर्ग के बारे में बहुत सारी दंत कथाएं भी प्रचलित है यह बहुत ही अच्छा और विशाल दुर्ग है

अन्य स्थल[संपादित करें]

  • भीलवाडा-उदयपुर मार्ग पर 45 मिलोमीटर दूर गगापुर में गंगाबाई की प्रसिद्ध छतरी पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इस छतरी का निर्माण सिंधिया महारानी गंगाबाई की याद में महादजी सिंधिया ने करवाया था।
  • भीलवाड से 55 किलोमीटर दूर खारी नदी के बायें किनारे पर स्थित भीलवाडा का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल। राजस्थान के लोक देवता देवनारायण जी का यह तीर्थ स्थल ह और इनका यहाँ एक भव्य मंदिर स्थित हैं। इसे इसके निर्माता भोजराव के नाम पर सवाईभोज कहते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Bhilwara city population Census, 2011". मूल से 21 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जनवरी 2017.
  2. "भीलवाड़ा में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें". अभिगमन तिथि 1 मई 2022.
  3. "भीलवाड़ा के बारे में।।।।". अभिगमन तिथि 1 मई 2022.
  4. "पधारो हमारी वस्त्रनगरी, देखो यहां के पर्यटन एवं एतिहासिक स्थल". Patrika. मूल से 9 दिसंबर 2019 को पुरालेखित.
  5. मुजाहिद, मुहम्मद. "दरगाह हज़रत गुल अली बाबा" [दरगाह हजरत गुल अली बाबा] (हिंदी में). अभिगमन तिथि 15 नवम्बर 2016.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)