निरंजन सिंह गिल

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निरंजन सिंह गिल (१९०६ - १९ अगस्त १९९२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी और राजनयिक थे। सन १९४३ में इंडिअन नेशनल आर्मी के स्थापना में इनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

निरंजन सिंह गिल का जन्म सन १९०६ में अमृतसर के पास एक जमींदार सिख परिवार में हुआ था। उन्होंने लाहौर के एचेसन चीफ्स कॉलेज, देहरादून के राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज और रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट में पढ़ाई की। ब्रिटिश भारतीय सेना में वह पहले 7वीं कैवलरी रेजिमेंट में थे और बाद में 4/19 हैदराबाद रेजिमेंट में थे, जिसे 1942 में सिंगापुर की लड़ाई के बाद जापानियों ने बंदी बना लिया था। वहां उन्होंने आत्मरक्षा बलों को भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना में मदद की।

सन १९४५ में जापानियों की पराजय के बाद 15 अगस्त, 1945 के बाद अंग्रेजों द्वारा उन्हें नई दिल्ली के लाल किले में अस्थायी रूप से कैद कर दिया गया। जब १५ अगस्त १९४७ को भारत स्वतन्त्र हुआ तब उन्हें 'स्वतन्त्रता सेनानी' घोषित किया गया। इसके बाद वे ११ वर्षों तक इथियोपिया, थाइलैंड, और मैक्सिको में भारत के राजदूत रहे।[1]

उन्होंने भारत में मक्के की कई किस्में पेश कीं और बागवानी में लग गये।

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