जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार
भारत में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रक के विकास के लिए शीर्ष प्राधिकरण है। इसकी स्थापना देश में विभिन्न जैव प्रौद्योगिकीय कार्यक्रमों और क्रियाकलापों की योजना बनाने संवर्धन करने और समन्वयन करने के लिए की गई है। यह राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों और विभिन्न क्षेत्रकों में अनुसंधान बुनियादों, जो जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित है, के लिए सहायता अनुदान की सहायता प्रदान करने के लिए नोडल एजेंसी है।
इतिहास
[संपादित करें]1986 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डी बी टी) की अलग से स्थापना करने से भारत में आधुनिक जीवविज्ञान और जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में विकास को नई शक्ति मिली है। 10 वर्षों से अधिक के अपने अस्तित्व में आने से, विभाग ने देश में जैवप्रौद्योगिकी के विकास में गति तथा प्रोत्सहान प्रदान किया है। कई अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं, प्रदर्शनियों और अवसंरचनात्मक सुविधाओं के सृजन के द्वारा इस क्षेत्र में एक साफ व्यवहार्य प्रभाव दिखाई देता है। विभाग ने प्रमुख कृषि, स्वास्थ्य देखरेख, पशु विज्ञान, पर्यावरण और उद्योग में प्रमुख क्षेत्रों में जैवप्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग और वृद्धि करने में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
कृषि, स्वास्थ्य देखरेख, पर्यावरण और उद्योग में जैवप्रौद्योगिकी से संबंधित विकास का प्रभाव पहले ही दिखाई देता है और अब उत्पादों और प्रक्रियाओं पर इसके प्रयत्न किए जा रहे हैं। 5000 से अधिक प्रकाशन, 4000 पोस्ट-डाक्टोरल विद्यार्थी, उद्योगों को कई प्रौद्योगिकियां हस्तांतरित की गई हैं और यू एस पेटेन्ट सहित पेटेन्टों का दखिल किया गया है को सन्तुलित शुरूआत के रूप में विचार किया जा सकता हैं। बायोटेकेलॉजी विभाग (डी बी टी) विश्वविद्यालयों और अन्य राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की विद्यमान विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए प्रति वर्ष 5000 से अधिक वैज्ञानिकों के साथ अन्योन्यक्रिया कर रहा है। एक बहुत सुदृढ समीक्षा और निगरानी प्रक्रियाओं का विकास किया गया है। जैवप्रौद्योगिकी अनुप्रयोग परियोजनाओं का विकास करने के लिए, प्रमाणीकृत प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिए और राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में मानव संसाधन का प्रशिक्षण देने के लिए राज्य की विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषदों के द्वारा राज्य सरकारों के साथ घनिष्ठ अन्योन्यक्रिया की जा रही है। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उड़ीसा पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, जम्मू व कश्मीर, मिजोरम, आंध्रप्रदेश और उत्तर प्रदेश क्षेत्रों के साथ कार्यक्रमों को बनाया गया है। मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल में जैवप्रौद्योगिकी अनुप्रयोग केन्द्रों को पहले ही शुरू किया जा चुका है।
विभाग की एक मुख्य विशेषता यह है कि विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों की पहचान करने, फारमूलेशन करने, क्रियान्वयन और निगरानी करने के लिए कई तकनीकी कार्यदलों, सलाहकार समितियों और व्यक्तिगत विशेषज्ञों के द्वारा देश के वैज्ञानिक समुदाय को गहन रूप से शामिल करना है।
भारत में आधुनिक जीवविज्ञान और जैवप्रौद्योगिकी के पहचान किए गए क्षेत्रों में अनुसंधान ाौर विकास में दशक से अधिक संगठित प्रयत्नों ने अच्छे परिणाम दिए हैं। प्रयोगशाला स्तर पर प्रमाणित प्रौद्योगिकियों को उन्नत किया गया है। खोजों की पेटेंटिंग, उद्योगों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और उद्योग के साथ नजदीकी अन्योन्यक्रिया ने जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान को नई दिशा प्रदान की है। कीट और रोग प्रतिरोध पर बल देते हुए पादपों में पराजीनी अनुसंधान, पोषकता क्षमता, रेशमकीट जीनोम विश्लेषण, मानव आनुवंशिक विकृतियों का आण्विक जीवविज्ञान, मस्तिष्क अनुसंधान, पादप जीनोम अनुसंधान, विकास, संचारी रोगों के लिए नैदानिक किटें और टीकों का मूल्यांकन और व्यापारीकरण, खाद्य जैवप्रौद्योगिकी, जैवविविधता संरक्षण और जैवपूर्वेक्षण, अनु.जाति, अनु. जनजाति, ग्रामीण क्षेत्रों, महिलाओं और विभिन्न राज्यों पर आधारित सूक्ष्म प्रवर्धन पार्कों की स्थापना करना और जैवप्रौद्योगिकी आधारित विकास को बढावा देने के लिए कार्य शुरू किए गए हैं।
पराजीनी पादपों, पुनर्योगज टीकों और औषधों के लिए आवश्यक मार्गनिर्देशों को भी बनाया गया है। स्वदेशी क्षमताओं का एक सुदृढ अाधार बनाया गया है। अगली सहस्त्राब्दि में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई खोजों और अनुप्रयोगों दोनों के लिए प्रमुख अनुसंधान और व्यापारीकरण के प्रयत्न किए जाएंगे।
मुख्य उत्तरादायित्व
[संपादित करें]विभाग की मुख्य जिम्मेदारियां निम्नलिखित हैं :-
- जैव प्रौद्योगिकी के बड़े पैमाने पर उपयोग का संवर्धन करना
- जैव प्रौद्योगिकी और संबंधित विनिर्माण के क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के लिए उत्कृष्टता हेतु केन्द्रों की पहचान और स्थापना करना
- अनुसंधान और विकास एवं उत्पादन की सहायता करने के लिए अवसंचना सुविधाओं की स्थापना
- नए पुन:मिश्रण डीएनए आधारित जैव प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाओं उत्पादों और प्रौद्योगिकी के आयात के लिए सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करना
- प्रयोगशाला अनुसंधान, उत्पादन और अनुप्रयोगों के लिए जैव-सुरक्षा दिशानिर्देश विकसित करना
- जैव प्रौद्योगिकी संबंधी तकनीकी और वैज्ञानिक पहल करना
- मानव संसाधन विकास के लिए एकीकृत कार्यक्रम विकसित करना
- जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र के ज्ञानाधार के विस्तार के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का संवर्धन करना
- जैव-प्रौद्योगिकी से संबंधित सूचनाओं के संग्रहण एवं प्रचार-प्रसार के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना।
कार्यक्रम
[संपादित करें]विभाग जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में विभिन्न कार्यक्रमों और अनुसंधान व विकास परियोजनाओं के साथ कार्य करता है। गतिविधि का ब्यौरा नीचे दिया गया है। कृपया विभिन्न कार्यक्रमों को देखने के लिए नोडल अधिकारियों को किल्क करें।
- मानव संसाधन विकास
- जैवसूचनाप्रणाली
- बायोग्रिड इंडिया
- अवसंरचनात्मक सुविधाएं
- जैवप्रौद्योगिकी सुविधाएं
- कार्यक्रम सहायता एवं उत्कृष्टता केन्द्र
- अनुसंधान क्षेत्र
- आधारभूत अनुसंधान
- कृषि
- फसल जैवप्रौद्योगिकी
- जैविकउर्वरक
- जैव किटनाशक एवं फसल प्रबंधन
- पशु जैवप्रौद्योगिकी
- जलकृषि
- पौध जैवप्रौद्योगिकी
- पौध उत्तक संवर्धन सूक्ष्म प्रबंधन वेबसाइट (नई)
- जैव पूर्वेक्षण एवं आण्विक वर्गीकरण विज्ञान
- जैवईंधन
- औषधिक एवं सुगंधित पौधे
- चिकित्सीय जैवप्रौद्योगिकी
- टीके
- नैदानिकी
- औषध विकास
- मानव जीनोमिक्स एवं जीनोम विश्लेषण
- सेरी बायोटैक्नोलॉजी
- तना कोशिका
- खाद्य जैवप्रौद्योगिकी
- पर्यावरणीय जैवप्रौद्योगिकी
- जैवप्रौद्योगिकी उत्पाद एवं प्रक्रिया विकास
- सामाजिक विकास
- महिला जैवप्रौद्योगिकी
- ग्रामीण क्षेत्र के लिए कार्यक्रम
- अनु.जातिजनजाति जनसंख्या
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- जय विज्ञान राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मिशन
- राष्ट्रीय जैवविविधता बोर्ड
- पेटेंट सुविधा सेल
अधीन स्वायत्त संस्थाएं
[संपादित करें]विभाग के पास सात स्वायत्त संस्थाएं हैं जिनके लिए चिकित्सा, कृषि और औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया है ये निम्नलिखित हैं, इनके साथ ही, इनकी आधिकारिक वेबसाइट भी लिखित हैं :-
- राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
- राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केन्द्र, पुने, राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केन्द्र, पुने
- डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक, हैदराबाद, डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक, हैदराबाद
- राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र, मानेसर, हरियाणा राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र, मानेसर, हरियाणा
- राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली
- जैव-संसाधन और स्थायी विकास संस्थान, इम्फाल जैव-संसाधन और स्थायी विकास संस्थान, इम्फाल
- जीवन विज्ञान संस्थान, भुवनेश्वर जीवन विज्ञान संस्थान, भुवनेश्वर
सार्वजनिक उपक्रम
[संपादित करें]जबकि विभाग में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रक के विकास के लिए कार्य करते हैं, निम्नलिखित हैं :-
- भारत इम्यूनोलॉजिकल एंड बायोलॉजिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भुवनेश्वर, भारत इम्यूनोलॉजिकल एंड बायोलॉजिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भुवनेश्वर
- इंडियन वैक्सीन कॉर्पोरेशन लिमिटेड, गुड़गांव, इंडियन वैक्सीन कॉर्पोरेशन लिमिटेड, गुड़गांव
उपलब्धियां
[संपादित करें]विभाग निम्नलिखित के विस्तृत क्षेत्रों में जैव-प्रौद्योगिकी के विकास और अनुप्रयोग में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर रहा है :-
- कृषि, वर्धित कृषि उत्पादकता, रोगों का विकास, सूखा और कीट रोधी किस्मों के रूप में; पारजीनी जीवों के अधिक उत्पादन किस्मों का उत्पादन (पौध और पशु), संकर बीजों का विकास, संश्लेषित/कृत्रिम बीज और प्रजनन के रूप में इंजीनियरी की गई फसलें, फसलों की प्रतिकूल मौसम और मृदावस्था के प्रति सहनशीलता का वर्धन करने द्वारा खाद्य सुरक्षा में सुधार; आदि
- स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षित और किफायती टीकों का विनिर्माण के रूप में, विभिन्न रोगों का आरंभ में ही पता लगाना सुनिश्चित करने के लिए जैव-नैदानिकी किट का विकास, विभिन्न उपचारात्मक प्रोटीनों का उत्पादन, डीएनए फिंगर प्रिंट आदि का उपयोग के रूप में;
- उद्योग, विभिन्न एसिड और एल्कोहल को तैयार करने के रूप में, विटामिन, एंटीबायोटिक, स्टेरोइड असंख्य भेषजीय औषध और रसायन, खराब होने से औद्योगिक उत्पादों का बचाव आदि के रूप में;
- पर्यावरण और ऊर्जा, प्रदूषण नियंत्रण, जैव अवमूल्यन अपशिष्ट का पूरी तरह ऊर्जा में परिवर्तन जैसे बायोगैस ईंधन, अवमूल्य भूमि का पुनरुद्धार, प्रदूषक का पता लगाने के लिए बायोसेन्सर का विकास, औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार आदि के रूप में।
ऐसे प्रयासों को अनुपूरित करने और जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रक में बड़ी मात्रा में निवेश आकर्षित करने के लिए विभाग अनेकानेक नीतिगत पहलें और उपाय समय-समय पर कर रहा है। इनमें से सबसे अधिक महत्वपूर्ण 'राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विकास कार्यनीति' की घोषणा है यह समग्र नीतिगत ढांचे के रूप में है ताकि जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को बढ़ाया जा सके। यह उन भंडारों को लेता है जो भविष्य के लिए पूरा किया जाता और ढांचा प्रदान करता है, जिसके अंतर्गत कार्य नीतियां और विशिष्ट कार्य क्षेत्रक को संवर्धित करने के लिए करने की आवश्यकता है। इस नीति का लक्ष्य कृषि और खाद्य जैव-प्रौद्योगिकी, औद्योगिक जैव-प्रौद्योगिकी, उपचारात्मक और चिकित्सा जैव-प्रौद्योगिकी पुनरुत्पादक और जातिगत दवाइयों, नैदानिक जैव-प्रौद्योगिकी जैव अभियंता, नैनो जैव प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और जैव प्रक्रियान्वयन, अनुसंधान सेवाओं, जैव संसाधनों, पर्यावरण और बौद्धिक सम्पदा कानून के क्षेत्रों में उन्नति के मार्ग प्रशस्त करना है।
ढांचे के मुख्य उद्देश्य
[संपादित करें]नीतिगत ढांचे के मुख्य उद्देश्य हैं :-
- भारत की अकादमी और औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिए दिशा निर्धारित करना;
- व्यापारिक प्रतिष्ठानों, सरकार और अकादमियों के साथ प्रौद्योगिकी को अनुंधान से वाणिज्यिकरा की ओर ले जाने के लिए कार्य करना;
- भारत का समग्र औद्योगिक विकास बढ़ाना;
- लोगों को विज्ञान, अनुप्रयोग, जैव-प्रौद्योगिकी के लाभों और मुद्दों के बारे में सूचना देना;
- जैव प्रौद्योगिकी की वृद्धि के लिए शिक्षण और कार्य शक्ति प्रशिक्षण क्षमताओं को बढ़ाना;
- भारत को जैव-प्रौद्योगिकी के लिए उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय स्थान के रूप में स्थापित करना। दूसरे शब्दों में यह मानव संसाधन विकास, अकादमी और उद्योग अन्तरा पृष्ठ, मूल संरचना विकास, प्रयोगशाला और विनिर्माण, उद्योग व्यापार का संवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी पार्क और ऊष्मायित्र, विनियामक प्रक्रम, सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता निर्माण जैसे मुद्दों पर बल देता है।
परियोजनाएं
[संपादित करें]जैव प्रौद्योगिकी पार्क और जैव प्रौद्योगिकी ऊष्मायित्र की स्थापना तथा विभिन्न राज्यों और संगठनों में प्रशिक्षण एवं पायलट परियोनजाओं की स्थापना जैव प्रौद्योगिकी शुरू करने वाली कम्पनियों के लिए उत्कृष्ट माहौल प्रदान करती है। इसके तहत युवा उद्यमियों को वित्तीय/युक्तिगत सहायता प्रदान करने की योजनाएं हैं, जो जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में अधिक पूंजी कम करने की स्थिति में नहीं हैं परन्तु उनके पास विकास, डिजाइन और नए जैव प्रौद्योगिकी उत्पाद और प्रक्रियन्वयनों की जैव प्रौद्योगिकीय ऊष्मायित्र और पायलट स्तर की सुविधाओं का उपयोग करके पूर्ण बनाने की क्षमताएं हैं। कुछ मौजूदा जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ऊष्मायित्र केन्द्रों और पायलट परियोजनाएं निम्नलिखित हैं :-
- लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जैव प्रौद्योगिकी पार्क
- जैव-प्रौद्योगिकी ऊष्मायित्र केन्द्र, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
- जैव प्रौद्योगिकी ऊष्मायित्र केन्द्र/पायलट संयंत्र सुविधाएं, केरल में
- जैव प्रौद्योगिकी ऊष्मायित्र केन्द्र/हिमाचल प्रदेश में पायलट संयंत्र सुविधाएं
- बैंगलोर में जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ऊष्मायित्र केन्द्र और सार्वजनिक इंन्ट्रूमेन्टेशन सुविधा
कृषि
[संपादित करें]'राष्ट्रीय जैव संसाधन विकास बोर्ड (एनबीडीबी)' की स्थापना विभाग के अंतर्गत की गई है ताकि अनुसंधान और विकास तथा जैव संसाधनों का स्थायी उपयोगिता विशेषकर नए उत्पादों और प्रक्रियाओं के विकास के लिए जैव-प्रौद्योगिकी और संबंधित वैज्ञानिक तरीकों के प्रभावी अनुप्रयोग के लिए विस्तृत नीतिगत ढांचे का निर्णय किया जा सके। बोर्ड जैव विज्ञान के आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हुए त्वरित अनुसंधान और विकास के माध्यम से राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता के लिए वैज्ञानिक कार्य योजना का विकास करना चाहता है। बोर्ड के क्रियाकलापों की सहायता करने के लिए एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया गया है।
प्राथमिक क्षेत्र
[संपादित करें]एनबीडीबी ने तीन प्राथमिकता क्षेत्रों की पहचान कर ली हैं क्योंकि :-
- पौधों, पशुओं, सूक्ष्मजीवी और समुद्री संसाधनों की अंकीय वस्तु सूची की तैयारी;
- अनुसंधान और विकास परियोजनाएं, कार्यक्रम सहायता, उत्कृष्ट, प्रशिक्षण क्रियाकलाप और प्रदर्शनों के लिए केन्द्रों की स्थापना, उत्तर पूर्वी क्षेत्रों, हिमाचल क्षेत्र, तटीय और द्वीप पारिस्थितिकी प्रणाली मरूस्थल क्षेत्र आदि जैसे विशेष क्षेत्रों के लिए जैव संसाधनों के विकास के लिए और # ज्ञान अधिकारिता और मानव संसाधन विकास।
- बोर्ड के अन्य महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं
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- संभावित वैज्ञानिक और आर्थिक मूल्य के जैव-संसाधनों के लिए प्रभावी एक्स सिटु संरक्षण का विकास करना
- सुस्थापित आण्विक वंशावली के द्वारा जैविक संसाधनों का पूर्वानुमान योग्य समूहन का विकास करना
- जैव-संसाधनों का जीन मैप निर्माण करना जो उपयोगी जीनों के स्थान निर्धारण में प्रयोग किया जा सकता है।
- कृषि संबंधी कीटों और रोग प्रजनन के प्रबंधन में जैव विज्ञानी सॉफ्टवेयर के उपयोग का संवर्धन करना
- जैव संसाधन में मूल्यवर्धन संवर्धित करना और जैव सूचना विज्ञान का सुदृढ़ करना
- ऐसे सभी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानव संसाधन को प्रशिक्षित करना।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
[संपादित करें]जैव प्रौद्योगिकी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग विभाग की मुख्य ताकत है, भारत के साथ सहयोग में इच्छुक असंख्य देश नवीकरण कर रहे हैं। इनका अनुशीलन ज्ञानाधार का विस्तार करने और विशेषज्ञता विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में किया जा रहा है, जो देश में अनुसंधान और विकास में गति को तेज करेगा। हालिया समय में जैव-प्रौद्योगिकी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में स्थायी प्रगति हुई है जिसके परिणाम स्वरूप अनेकानेक महत्वपूर्ण अनुसंधान परियोजनाएं, उत्पाद और प्रौद्योगिकी आए हैं। डेनमार्क और फिनलैंड के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं और प्रस्ताव के लिए संयुक्त आहवान जारी किए गए हैं। जैव-प्रौद्योगिकी और जैव विज्ञानी विज्ञान अनुसंधान परिषद (बीबीएसआरसी) यूके के साथ संयुक्त परियोजनाओं को भी निधियन किया गया है। विभाग में क्रमश: कृषि और कृषि खाद्य कनाडा और राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र कनाडा के साथ दो ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। एनआईएच, यूएसए के साथ अनुसंधान संबंधी विजन पर नया करार और गर्भ निरोधक अनुसंधान और विकास कार्यक्रम (कोनराड) यूएसए पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं। जर्मनी, मंगोलिया, सिंगापुर, श्रीलंका, स्वीटरलैंड यूके और यूएसए के साथ चालू द्विपक्षीय सहयोग का अनुशीलन किया गया है। साइप्रस, नार्वे, स्वीडन, यूक्रेन और ईयू के साथ द्विपक्षीय पारस्परिक क्रिया आरंभ किए जा चुके हैं। सार्क देशों के बीच सहयोग सहित बहुपक्षीय सहयोग का भी अनुशीलन किया गया है।
इन सबके परिणामस्वरूप भारत विश्व के नक्शे पर जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आया है और इसे मनपसंद निवेश स्थान के रूप में देखा जा रहा है। आण्विक जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में विकास के कारण समाज की आर्थिक खुशहाली पर सराहनीय प्रभाव पड़ा है। भारतीय जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रक उभरते व्यापार अवसरों के लिए वैश्विक परिदृश्य में आ रहा है और नवपरिवर्तनीय दवाइयों, कृषि में अधिक उत्पादकता और पोषक वृद्धि एवं पर्यावरण रक्षा सहित मूल्यवर्धन के लिए बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने की अपार क्षमत रखता है। तथापि, अनेकानेक सामाजिक चिंताएं हैं, जिनका समाधान करना देश की जैव प्रौद्योगिकी नवपरिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है, जैसाकि जैव संसाधनों का संरक्षण करना और उत्पादों और प्रक्रियाओं की सुरक्षा आदि सुनिश्चित करना। तदनुसार सरकार और निजी क्षेत्रक दोनों को जन समुदाय को शिक्षित करने और हितों की रक्षा करने में तथा उनके लिए आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के लाभों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है।
जैव प्रौद्योगिकी की वैश्विक पहचान, त्वरित रूप से उभरती, व्यापक विस्तार वाली प्रौद्योगिकी के रूप में हुई है। यह विज्ञान का अग्रणी क्षेत्र है जो राष्ट्र की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका आशय किसी भी प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग से है जो जैव-विज्ञानी रूपों का उपयोग करता और प्रणालियों का प्रयोग करता है वह भी नियंत्रण योग्य तरीके से, जिससे कि नए और उपयोगी उत्पादों और प्रक्रियाओं का उत्पादन किया जा सके तथा विद्यमान उत्पादों को परिवर्तित किया जा सके। यह न केवल मानव जाति को लाभ पहुंचाना चाहता है अपितु अन्य जीव रूपों को भी जैसा कि सूक्ष्म जीव। यह पर्यावरण में हानिकारक हाइड्रोकार्बन कम करके, प्रदूषण नियंत्रण करके अनुकूल पारिस्थितिकी संतुलन कायम रखने में सहायता करता है।
भारत में, जैव प्रौद्योगिकी तेजी से विकसित होता ज्ञान आधारित क्षेत्रकों में एक है। इसे शक्तिशाली समर्थकारी प्रौद्योगिकी माना गया है जो कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक प्रक्रियान्वयन और पर्यावरणीय स्थायित्व में क्रांति ला सकता है। आज कल इसका बढ़ता प्रयोग विभिन्न किस्म की फसलों के विकास और विशिष्ट रूप से विकसित किस्मों केलिए किया जाता है, नए भेषजीय उत्पाद, रसायन, सौंदर्य प्रसाधनों, उर्वरक का आधिक्य, वृद्धि वर्धक, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्य देखभाल के उपकरण और पर्यावरण से संबंधित तत्व आदि। भारतीय जैव-प्रौद्योगिकी वर्ग ने वैश्विक मंच पर त्वरित वृद्धि की है। काफी बड़ी संख्या में उपचारिक जैव प्रौद्योगिकीय औषध हैं और टीके हैं, जिनका देश में उत्पादन और विपणन किया जा रहा है और मानव जाति की अपार सहायता की जा रही है। क्षेत्रक ने 1.07 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया जिसने वर्ष 2005-06 में 36.55 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की।
भारत की पहचान वृद्धि जैव विविधता देश के रूप में हुई है। जैव प्रौद्योगिकी देश की विविध जैव-विज्ञानी संसाधनों को आर्थिक सम्पन्नता और रोजगार के अवसरों में परिवर्तित करने के लिए मार्ग प्रदान करता है। अनेकानेक कारक हैं जो जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशिष्ट क्षमता विकसित करने के लिए प्रेरणा सृजित करते हैं। वे हैं : वैज्ञानिक मानव संसाधन का विशाल भंडार अर्थात वैज्ञानिकों और अभियंताओं का एक मजबूत समूह, किफायती विनिर्माण क्षमताएं, अनेक राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएं, जिसमें हजारों वैज्ञानिकों को रोजगार मिला हुआ है, जैव विज्ञान में अकादमी उत्कृष्टता के केन्द्र, अनेकानेक मेडिकल कॉलेज, शैक्षिक और प्रशिक्षण संस्थान, जो जैव प्रौद्योगिकी में डिग्री और डिप्लोमा प्रदान करते हैं, जैव-सूचना विज्ञान और जीव विज्ञानी विज्ञान, असरदार औषध और भेषज उद्योग, तथा तेजी से विकसित होती उपचारात्मक क्षमताएं।
प्रकाशन
[संपादित करें]- वार्षिक रिपोर्ट 2004-05
- वार्षिक रिपोर्ट 2003-04
- वार्षिक रिपोर्ट 2002-03
- वार्षिक रिपोर्ट 2001-02
- डीबीटी न्यूज लेटर
- आवेदन पत्र एवं प्रोफार्मा
- जैवप्रौद्योगिकी - एक संकल्पना
- जैवप्रौद्योगिकी - उत्कृष्टता की खोज में और मानव जाति के लिए प्रासंगिक
- भारत की जैवसूचनाप्रणाली नीति