पॉलीमर

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रिअल लीनिअर पॉलीमर कड़ियां, जो परमाणिव्क बल सूक्ष्मदर्शी द्वारा तरल माध्यम के अधीन देखी गयी हैं। इस बहुलक की चेन लंबाई ~२०४ नैनो.मीटर; मोटाई is ~०.४ नै.मी.[1]

वहुलक या पाॅलीमर (polymer) बहुत अधिक अणु मात्रा वाला कार्बनिक यौगिक होता है। यह सरल अणुओं जिन्हें मोनोमर कहा जाता है, के बहुत अधिक इकाईयों के पॉलीमेराइजेशन के फलस्वरूप बनता है।[2] पॉलीमर में एक ही तरह की बहुत सारी आवर्ती संरचनात्मक इकाईयाँ यानि मोनोमर संयोजी बन्ध (कोवैलेन्ट बॉण्ड) से जुड़ी होती हैं। सेल्यूलोज, लकड़ी, रेशम, त्वचा, रबर आदि प्राकृतिक पॉलीमर हैं, ये खुली अवस्था में प्रकृति में पाए जाते हैं तथा इन्हें पौधों और जीवधारियों से प्राप्त किया जाता है। इसके रासायनिक नामों वाले अन्य उदाहरणों में पालीइथिलीन, टेफ्लान, पाॅली विनाइल क्लोराइड प्रमुख पाॅलीमर हैं।

कृत्रिम या सिंथेटिक पॉलीमर मानव निर्मित होते हैं। इन्हें कारखानों में उत्पादित किया जा सकता है। प्लास्टिक, पाइपों, बोतलों, बाल्टियों आदि के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली पोलीथिन सिंथेटिक पॉलीमर है। बिजली के तारों, केबलों के ऊपर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक कवर भी सिंथेटिक पॉलीमर है। फाइबर, सीटकवर, मजबूत पाइप एवं बोतलों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली प्रोपाइलीन भी सिंथेटिक पॉलीमर है। वाल्व सील, फिल्टर क्लॉथ, गैस किट आदि टेफलॉन से बनाए जाते हैं। सिंथेटिक रबर भी पॉलीमर है जिससे मोटरगाड़ियों के टायर बनाए जाते हैं। हॉलैंड के वैज्ञानिकों के अनुसार मकड़ी में उपस्थित एक डोप नामक तरल पदार्थ उसके शरीर से बाहर निकलते ही एकप प्रोटीनयुक्त पॉलीमर के रूप में जाला बनाता है।[3]

पॉलीमर शब्द का प्रथम प्रयोग जोंस बर्जिलियस ने १८३३ में किया था। १९०७ में लियो बैकलैंड ने पहला सिंथेटिक पोलीमर, फिनोल और फॉर्मएल्डिहाइड की प्रक्रिया से बनाया। उन्होंने इसे बैकेलाइट नाम दिया। १९२२ में हर्मन स्टॉडिंगर को पॉलीमर के नए सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले यह माना जाता था कि ये छोटे अणुओं का क्लस्टर है, जिन्हें कोलाइड्स कहते थे, जिसका आण्विक भार ज्ञात नहीं था। लेकिन इस सिद्धांत में कहा गया कि पाॅलीमर एक शृंखला में कोवेलेंट बंध द्वारा बंधे होते हैं। पॉलीमर शब्द पॉली (कई) और मेरोस (टुकड़ों) से मिलकर बना है।

एक ही प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को होमोपॉलीमर कहते हैं। जैसे पॉलीस्टायरीन का एकमात्र मोनोमर स्टायरीन ही है। भिन्न प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को कोपॉलीमर कहते हैं। जैसे इथाइल-विनाइल-एसीटेट भिन्न प्रकार के मोनोमरों से बनता है। भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा जा सकता है:[4]

  • रैखिक शृंखला पॉलीमर (linear chain polymer): ये वो बहुलक होते हैं, जिन्हें सामान्यतः आसानी से विक्षेपित किया जा सकता है और ताप बढ़ाकर पिघलाया जा सकता है। सामान्यतः ये पॉलीमर उपयुक्त विलायक में घुल जाते हैं।
  • दूसरे प्रकार के पॉलीमर में रैखिक शृंखलायें भी आपस में रासायनिक बन्धों द्वारा जुड़ी होतीं हैं, अतः इन्हें पिघलाना तथा विक्षेपित करना काफ़ी कठिन होता है। साथ ही ये अधिकतर द्रवों में अविलेय होते है।

बहुलक पदार्थों के नामकरण की कई पद्धतियाँ हैं। बहुत से सामान्य प्रयोग की वस्तुओं में प्रयुक्त बहुलकों को उनके सामान्य प्रचलित नामों से ही बुलाते हैं। ये नाम किसी व्यक्ति या ऐतिहासिक घटना विशेष पर आधारित हो सकते हैं, बजाय कोई मानक तरीके के। अमरीकी केमिकल सोसायटी[5] और आईयूपीएसी[6] ने इनके नामकरण के तरीके बताये हैं, जो काफ़ी कुछ मिलते जुलते हैं, किन्तु समान नहीं हैं।[7] भिन्न नामकरण पद्धतियों के बीच अंतर को नीचे दिखाया गया है:

प्रचलित नाम ए.सी.एस नाम आईयूपीएसी नाम
पॉली (इथाइलीन ऑक्साइड) या (PEO) पॉली (ऑक्सीइथाइलीन) पॉली (ऑक्सीईथेन)
पॉली (इथाइलीन टेराफ्थैलेट) या (PET) पॉली (ऑक्सी-1,2-इथेनडाइलऑक्सीकार्बोनिल -1,4-फिनाइलीनकार्बोनिल) पॉली (ऑक्सीइथीनॉक्सीटेरेफ्थ=एलॉयल)
नायलॉन पॉली [अमीनो (1-ऑक्सो-1,6-हैक्सेनडियाइल)] पॉली [अमीनो (1-ऑक्सोहैक्सेन-1,6-डियाइल)]

दोनों ही मानकीकृत पद्धतियों में, बहुलक नामों में उनको निर्माण करने वाले मोनोमर के नामों को दर्शाने का प्रयास किया गया है, बजाय रिपीट होती उप-इकाई के नाम के। उदाहरणतः साधारण एल्कीन, इथीन से बनने वाले बहुलक को पॉलीथीन या पॉली-इथाइलीन कहते हैं, जबकि इसके द्विबन्ध स्वरूप नाम के ईन अंश का अस्तित्व खत्म हो चुका है, यानि द्विबंध हट चुका है।

पॉलीमर के अध्ययन को बहुलक विज्ञान या पॉलीमर तकनीक कहते हैं। बहुत से महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इसके पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।[8] बहुत से बहुलक बायोडिग्रेडेबल नहीं होते, जैसे पॉलीथीन। इसीलिए इसका प्रयोग निषेध होता जा रहा है। इसके लिए बहुत से विकल्प खोजे जा रहे हैं। इसी के रूप में मक्का का बहुलक कॉर्न पॉलीमर भी निकाला गया है। यह पूर्णतया बायोडीग्रेडेबल होगा[9][10] जिसके कारण इससे बनने वाला पॉलीथीन जमीन में गाड़ दिए जाने के सिर्फ दस दिन में कॉम्पोस्ट में बदल जाता है और कूड़े के ढेर में रहने पर भी यह पॉलीथीन ९० दिन की अवधि में कॉम्पोस्ट बन जाता है। इसके साथ ही कॉर्न पॉलीमर की कीमत में भी पॉलीथीन की कीमत से कोई बड़ा अंतर नहीं है।[11] नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिए पहली बार पॉलीमर नोट ऑस्ट्रेलिया में पेश किए गए थे। ऑस्ट्रेलिया के अलावा न्यूज़ीलैंड, पापुआ न्यूगिनी, रोमानिया, बरमुडा, ब्रूनेई और वियतनाम में भी पॉलीमर नोट प्रचलन में हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक भी पॉलीमर के नोट निकालने की योजना बना रहा है। ऐसे नोट पानी में नहीं गलेंगे, न ही मुड़ने तुड़ने और फटने का डर ही है।[12]


इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. वाई.रोइटर एवं एस.मिंको, ईफ़एम सिंगल मॉलिक्यूल एक्स्पेरिमेंट्स ऐट सॉलिड-लिक्विड इंटरफ़ेस, अमरीकन कैमिकल सोसायटी का जर्नल, खण्ड १२७, ss. 45, pp. 15688-15689 (2005)
  2. प्रकाश अश्मलेखन। नैनोविज्ञान। वर्ल्डप्रेस पर
  3. डोप एक पॉलीमर के रूप में कार्य करता है।[मृत कड़ियाँ]अमर उजाला
  4. नैनोविज्ञान-प्रकाश अश्मलेखन। वर्ल्डप्रेस पर]
  5. CAS: Index Guide, Appendix IV (© 1998).
  6. IUPAC. "नॉमेन्क्लेचर ऑफ रेग्युलर सिंगल-स्ट्रैन्डेड ऑर्गैनिक पॉलीमर्स". प्यूअर एप्लाइड केमिस्ट्री १९७६। पृ.४८, ३७३-३८५
  7. "मैक्रोमॉलीक्यूलर नोमनक्लेचर नोट.स>१८". मूल से 25 सितंबर 2003 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 सितंबर 2009.
  8. पॉलीमर तकनीक कोर्स Archived 2009-12-20 at the वेबैक मशीन- दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में।
  9. प्लास्टिक का विकल्प है बायो पॉलीमरः शर्मा[मृत कड़ियाँ]। याहू जागरण। २४ जुलाई, २००९
  10. प्लास्टिक का विकल्प:बायोपॉलीमर। वर्ल्ड न्यूज़।२५ जुलाई, २००९
  11. पॉलीथीन का अच्छा विकल्प कॉर्न पॉलीमर[मृत कड़ियाँ]। बिज़नेस भास्कर। ६ मार्च, २००९। कमल जोशी। चंडीगढ़
  12. रिजर्व बैंक जारी करेगा 10 रुपए के नॊट Archived 2009-09-12 at the वेबैक मशीन। इकोनॉमिक टाइम्स। ९ सितंबर, २००९

बाहरी कड़ियाँ