छद्म धर्मनिरपेक्षता
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छद्म धर्मनिरपेक्षता (अंग्रेज़ी: Pseudo-secularism) का अर्थ धर्मनिरपेक्ष होने का स्वांग करते हुए व्यवहार में मजहब-सापेक्ष निर्णय, नीतियाँ और कार्य करना है। इस शब्द का उपयोग वे समूह करते हैं जो दूसरों द्वारा मजहब के आधार पर दोहरी नीति अपनाने विरोध करते हैं। यह इसका सर्वप्रथम दर्ज उपयोग एंथोनी एल्न्जि मिटन ने अपनी पुस्तक Philosphy of RSS for Hind Swarajya (अनुवाद. हिन्द स्वराज के लिए आर.एस.एस. का दर्शन) में किया था।[1] छद्म धर्मनिरपेक्षता राजनितिक दलों के द्वारा प्रतिपादित शब्द है।
भारत में छद्म धर्मनिरपेक्षता
[संपादित करें]- साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक २०११ जिसे, भाजपा समेत कई राजनैतिक पार्टियों - जद(यु), अकाली दल, बीजू जनता दल, सीपीई -एम एवं सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस ने नकार दिया है। भाजपा के अनुसार यह बिल पूर्णता: बहुसख्यक विरोधी है और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देता है।[2][3]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ ^ Elenjimittam, Anthony (1951). Philosophy and Action of the R. S. S. for the Hind Swaraj. Laxmi Publications. pp. 188–189.
- ↑ "'Draft Communal Violence Bill Fraught With Dangers'". आउटलुक. अभिगमन तिथि: 2011-10-13.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "5 chief ministers skip NIC meet; communal violence bill panned". दि इकॉनोमिक टाइम्स. ११ सितंबर २०११. 10 दिसंबर 2015 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: २९ जनवरी २०१३.