गणपति शर्मा

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पण्डित गणपति शर्मा (1873 - 1912) एक आर्यसमाजी विद्वान थे जो शास्त्रार्थ की भारतीय परम्परा को आगे बढ़ाने के लिये प्रसिद्ध हैं। [1]

जीवन परिचय[संपादित करें]

पं. गणपति शर्मा का जन्म १८७३ ई. में चुरू (राजस्थान) नगर नगर में हुआ था। इनके पिता पं. भानीराम वैद्य पाराशर गोत्रीय पारीक ब्राह्मण थे इनकी शिक्षा काशी और कानपुर आदि स्थानों पर हुई। 22 वर्ष की आयु तक आपने संस्कृत व्याकरण और दर्शनों का अध्ययन किया।। [2]

आर्य समाज से संबंध[संपादित करें]

शिक्षा के उपरांत पैतृक स्थान चुरू लौटकर ये महर्षि दयानन्द के शिष्य व राजस्थान में वैदिक धर्म के महान प्रचारक श्री कालूराम जी जोशी के प्रभाव से आर्यसमाजी बने। आर्यसमाजी बनकर इन्होंने वैदिक धर्म व संस्कृति का प्रचार का कार्य आरम्भ कर दिया।

विशेषताएं[संपादित करें]

ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास पंडित गणपति शर्मा के जीवन का आधार है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "वैदिक ऋषि-भक्त शास्त्रार्थ महारथीः पं. गणपति शर्मा". मूल से 27 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2016.
  2. "pandit ganpati sharma Archives - Aryamantavya". मूल से 20 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2016.