कापू (जाति)
कापू (तेलुगु కాపు) मुख्यतः आंध्र प्रदेश तथा तेलंगण निवासी एक जाति है। तेलुगु में कपू या कापू शब्द का मतलब 'किसान' या संरक्षक है। कापू लोग तेलुगु बोलते हैं और मुख्यतः खेती करते हैं। इन्हें कुलनाम नायडू से भी जाना जाता है जिसका अर्थ नेता है। हालांकि कई अन्य कृषि समुदायों द्वारा भी नायडू/नायक/नायकर का प्रयोग किया जाता है। मुन्नुरु कापू, तेलगा, बलीजा, तुर्पू कापू और ओंटारी आदि इसकी उपजातियाँ हैं।
आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय मुख्यतः तटीय जिलों, उत्तरी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र में केंद्रित है। ये तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और कुछ अन्य भारतीय राज्यों के साथ-साथ श्रीलंका में भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। कापू की उपजातियों में बलीजा, तेलगा, मुन्नुरु कापू, तुर्पू कापू और ओंटारी उपजातियां आंध्र प्रदेश की आबादी का लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा हैं, अतः वे इस राज्य में सबसे बड़ा जातिसमूह हैं। 20वीं सदी के अंतिम दशक में उनमें से कुछ लोग विदेशों में, विशेष तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, बोनेयर, न्यूजीलैंड, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर, कनाडा, त्रिनिदाद, नीदरलैंड, जिम्बाब्वे, कुराकाओ, चीन, गुयाना, मॉरीशस और आस्ट्रेलिया में जाकर बस गए।
इतिहास[संपादित करें]
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कापू समुदाय आंध्र क्षेत्र के निवासी थे; वे लोग उत्तर से पलायन कर यहाँ आये और कृषि एवं बस्तियों के निर्माण के लिए जंगलों को साफ़ किया।[1] कापू समुदाय काम्पू जनजाति के वंशज हैं जो एक भारतीय-आर्य जनजाति है[कृपया उद्धरण जोड़ें], ये लोग समूचे उत्तर प्रदेश[तथ्य वांछित] और बिहार में फैले उत्तर भारत के गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित प्राचीन शहरों काम्पिल्य, मिथिला और अयोध्या से प्रवासित होकर यहाँ आये थे। ऐसा लगता है कि यह प्रवास 2500 साल पहले हुआ होगा जो पहले आंध्र राज्य, सातवाहन[कृपया उद्धरण जोड़ें] के उत्थान के साथ मेल खाता है।
यह प्रवासी जनजाति शुरूआत में गोदावरी नदी के किनारे आकर बसी, इसने जंगलों को साफ़ किया और बस्तियों एवं कस्बों का निर्माण किया। वर्त्तमान में मुन्नुरु कापू और तेलगा समुदायों का एक भारी जमावड़ा गोदावरी डेल्टा, पूर्वी गोदावरी और पश्चिमी गोदावरी, कृष्णा डेल्टा, आदिलाबाद, निजामाबाद, करीमनगर, वारंगल और खम्मम के जिलों में गोदावरी के तटों पर पाया जाता है। बस्तियां धीरे-धीरे द्राक्षारामम (पूर्वी गोदावरी जिले), श्रीशैलम (कुरनूल जिले) और श्रीकलाहस्ती (चित्तूर जिले) के तीन शैव लिंगमों के भौगोलिक क्षेत्रों में फ़ैल गयीं.
इस बस्ती और भौगोलिक क्षेत्र को प्राचीन ग्रंथों में त्रि-लिंग देशम के रूप में सन्दर्भित किया जाता था और जो लोग इस क्षेत्र में रहते थे उन्हें तेलगा कहा जाता था और उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा तेलुगु कहलाती थी[कृपया उद्धरण जोड़ें]. कापू सहित कई कृषक समूहों का नायडू टाइटल जो नायक शब्द (मतलब "लीडर") की एक व्युत्पत्ति है, इसका पहला प्रयोग कृष्णा और गोदावरी नदी के डेल्टा क्षेत्रों में तीसरी सदी एडी[कृपया उद्धरण जोड़ें] के दौरान शासन करने वाले विष्णुकुंडिन राजवंश के काल के दौरान हुआ था।
कापू की उत्पत्ति इसी तरह के अन्य योद्धा/कृषक समुदायों जैसे कि बिहार और यूपी[तथ्य वांछित] के कुर्मी और महाराष्ट्र के कुनबी एवं कर्नाटक के वोक्कालिगा समुदायों के साथ-साथ हुई थी। कापू समुदाय मुख्य रूप से कृषि प्रधान समुदाय थे जिसने युद्ध कालों के दौरान सैन्य सेवा को अपना लिया था। जिसके फलस्वरूप कापू उपजातियां भी अपने पेशे के आधार पर विकसित हुईं. व्यापार में लगे कापू समुदाय को बलीजा के रूप में सन्दर्भित किया जाता था। बलीजा समुदाय में जिन लोगों ने सैन्य सेवा को अपनाया और व्यापारिक कारवां का संरक्षण किया उन्हें बलीजा नयाकुलू या बलीजा नायडू कहा जाता था। कापू समुदाय की एक बड़ी संख्या आज उद्योग, कला और शिक्षा के क्षेत्र में अपने पाँव फैला रही है। हालांकि जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अभी भी किसान है।
उप जातियां[संपादित करें]
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पेशा[संपादित करें]
कापू समुदाय ने मध्यकालीन युग के दौरान योद्धाओं के रूप में या डाकुओं या हमलावर सेनाओं से गांवों और इलाकों के संरक्षक के रूप में अपनी सेवायें दी थी। शांति काल के दौरान वैसे योद्धा जो गांव के नजदीक रहे उन्होंने ग्राम प्रधानों के रूप में सेवा की या कृषि कार्य में लगे रहे. युद्ध काल के दौरान उन्होंने सैनिकों, गवर्नरों (यानी नायकों) और कई दक्षिण भारतीय राजवंशों में सेनाओं के कमांडरों के रूप में सेवा की थी। आधुनिक समय के कापू समुदाय मुख्य रूप से कृषि प्रधान हैं लेकिन एक बड़ी संख्या में इन्होंने व्यापार, उद्योग, कला और शिक्षा के क्षेत्र में अपना विस्तार किया है।
पेशेवर नाम[संपादित करें]
कुछ कापू नाम मध्ययुगीन अवधि के दौरान किये गए व्यवसायों से जुड़े रहे हैं।
- ग्रामीण और क्षेत्रीय सुरक्षा समितियां: वुरु कापू, प्रांता कापू
- प्रशासन: चिन्ना कापू, पेद्दा कापू.
- डाकुओं से और खेतों पशुओं का संरक्षण: पांटा कापू
शाखाएं[संपादित करें]
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दक्षिण भारत को राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान[संपादित करें]
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बाद की सदियों के दौरान कापू समुदाय तेलुगु भाषा और संस्कृति का विकास करते हुए अन्य क्षेत्रों में फैल गए। कापू मूलतः एक शांतिप्रिय समुदाय थे लेकिन उत्तर की ओर से आई हमलावर सेनाओं के हमलों के कारण इसने अपने आप को एक ऐसी सेना में तब्दील कर लिया जिसने युद्ध के जरिये अपनी व्यक्तिगत पहचान की सुरक्षा की. हमलावर सेनाओं से समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता की रक्षा करने की क्षमता ने कापू समुदाय को संपूर्ण मध्ययुगीन कालों के दौरान अन्य सभी वर्णों में अपने आप को ऊंचे स्टेटस के साथ ऊंचे स्थान पर बनाए रखने में मदद की. कापू जाति ने विजयनगर साम्राज्य के माध्यम से और विभिन्न नायकों के माध्यम से समूचे दक्षिण भारत एवं श्रीलंका में तेलुगु साम्राज्य और अपनी संस्कृति के निर्माण एवं विस्तार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
दक्षिण भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं में योगदान देने वाले कई नेता इसी समुदाय से आये हैं। उनमें से कुछ ने स्वतंत्रता संग्राम[which?] में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उत्पीड़न[which?] एवं सामाजिक बुराइयों के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ते हुए सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए काम किया है।
मदुरै और कैंडी के राजाओं ने भारत और श्रीलंका के अधिकांशतः दक्षिणी भागों में तेलुगु साम्राज्य और इसकी संस्कृति का विस्तार किया। कापू वंश से संबंधित काकतीय प्रमुखों में से कई लोगों ने तेलुगु भूमि को मुस्लिम हमलों से संरक्षित किया[which?].
साहित्यिक योगदान[संपादित करें]
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कई कापू नायक राजाओं ने, जो स्वयं महान कवियों में से थे उन्होंने कई तेलुगु कवियों को प्रोत्साहन देकर तेलुगु भाषा को समृद्ध बनाया[which?]. मदुरै नायक राजवंश में राजा के पुत्र द्वारा "विष्णु" से अपने पिता की तुलना करते हुए द्विपद की रचना करना एक आम बात थी। श्रीकृष्ण देवराय के काल के दौरान प्रचलित दो विचारों में, एक राजा को भगवान विष्णु कहता है और दूसरा राजा को विष्णु के स्वरुप का प्रतिनिधित्व करने वाले एक इंसान का रूप बताता है। ये तब और अधिक स्पष्ट हो गए जब बलीजा जाति के योद्धा/व्यापारी सत्रहवीं सदी में मदुरै राजवंश के राजा बन गए। कवियों को संभवतः दरबार के विषय के रूप में स्वयं राजा को लेकर द्विपद शैली का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
20वीं सदी में कापू समुदाय[संपादित करें]
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हालांकि 19वीं सदी तक कापू समुदाय ने एक महान तेलुगु समाज के विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी लेकिन भारत की आजादी के बाद इसे कोई विशेष आर्थिक और राजनीतिक सफलता नहीं मिली है। समाज के ऐसे कुछ वर्गों को छोड़कर जिन्होंने आधुनिक शिक्षा और आर्थिक परिवर्तन को अपनाया था, इनकी स्थिति में निरंतर गिरावट आती चली गयी। यह गिरावट 1970 और 1980 के दशक के दौरान अपने चरम पर पहुँच गयी। आर्थिक उदारीकरण के साथ और लाइसेंस राज एवं विभिन्न सेक्टरों पर सरकार का एकाधिकार हटने के साथ इस समुदाय ने धीरे-धीरे लेकिन लगातार अपना पुनरोद्धार किया है।
कापू समुदाय खेती, शिक्षा, व्यापार और राजनीति की आधुनिक तकनीकों अपनाने में धीमे थे। मुख्य रूप से तटीय आंध्र में समुदाय के समृद्ध वर्गों ने पुनर्जागरण में भाग लिया लेकिन रायलसीमा और तेलंगाना के मध्यम वर्गीय किसान काफी हद तक इसका लाभ नहीं ले पाए क्योंकि उन्हें अपने तटीय समकक्षों की तरह प्राकृतिक संसाधनों का वरदान नहीं मिला था। इसके परिणाम स्वरूप.रायलसीमा, तेलंगाना और उत्तरी आंध्र के समुदायों की शिक्षा में भारी गिरावट आयी जिसका नतीजा गरीबी के रूप में सामने आया।
हालांकि सामाजिक रूप से यह अभी भी एक उच्चवर्गीय समुदाय है, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आरक्षणों, कल्याणकारी उपायों के रूप में सरकारी सहयोग की कमी ने कापू समुदाय के कुछ वर्गों को आर्थिक रूप से वंचित बना दिया. वर्तमान में राज्य की जनसंख्या में लगभग 20.5% की भागेदारी होने के बावजूद सरकारी नौकरियों और सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व केवल लगभग 5% है। संसद और विधानसभा दोनों सीटों पर उनका प्रतिनिधित्व केवल लगभग 48 सदस्यों का है जो राज्य में मौजूद समुदाय की संख्या का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करता है। यह राय की बात[कौन?] है कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दल, कांग्रेस और तेलुगु देशम ने कापू समुदाय को उनकी जनसंख्या के अनुसार विधानसभा सीटें आवंटित नहीं की थीं। उदाहरण के लिए रायलसीमा जिलों में एक बड़ी संख्या में होने के बावजूद राज्य की विधान सभा में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए शायद ही कोई एमएलए मौजूद है।[2] ऐसा माना जाता है कि रणनीतिक या सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता की कमी और राजनीति में शामिल होने की अनिच्छा ने समुदाय पर एक हानिकारक प्रभाव डाला है। हालांकि देर से ही सही, ये निर्वाचित निकायों में अपने प्रतिनिधित्व को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। एक बड़ी संख्या में कापू समुदाय ने व्यवसाय, उद्योग, कला और शिक्षा के क्षेत्र में भारत और विदेश दोनों में अपना विविधतापूर्ण विस्तार किया है। कई ऐसे उभरते हुए उद्यमी भी हैं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सफलता हासिल की है।
स्रोत[संपादित करें]
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इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- कापू की सूची
- राजवंशों की सूची
सन्दर्भ[संपादित करें]
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