कस्तूरी बिलाव
गंधमार्जार या गंधबिलाव या कस्तूरी बिलाव (Civet) एक छोटा स्तनधारी जानवर होता है। इसका अकार कुछ-कुछ बिल्ली से मिलता है, जिस वजह से इसे "बिलाव" का नाम मिला है, हालाँकि यह बिल्ली की नस्ल का प्राणी नहीं है। इस से एक विशेष प्रकार की गंध आती है इसलिए इसके नाम में "कस्तूरी" शब्द जोड़ा जाता है। यह एशिया और अफ़्रीका के उष्णकटिबंध (ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में पाया जाता है। कस्तूरी बिलाव अपनी अधिकतर समय पेड़ों की टहनियों में ही गुज़ारना पसंद करते हैं।
गंधमार्जार मांसभक्षी, स्तनपोषी जीवों के विवेरिडी कुल (Family Viverridae) के जीव हैं। इनकी कई जातियाँ संसार में फैली हैं।
ये बिल्ली के पद के जीव हैं। इनके पैर छोटे और मुंह लंबा होता है। ये जीव पेड़ पर सरलता से चढ़ लेते है और रात में ही बाहर निकलते हैं। इन प्राणियों के दुम के नीचे एक गंधग्रंथि रहती है, जिससे गाढ़ा, गंधपूर्ण, पीला पदार्थ निकलता है। इसे व्यापारी लोग मुश्क या कस्तूरी में मिलाकर बेचते हैं। इसमें से सिवेटोन (Civetone) नामक कीटोन निकाला गया है। सुगंधित द्रव्यों के निर्माण में इसकी गंध प्रयुक्त होती है।
इनकी वैसी तो कई जातियाँ हैं जिनमें एक भारत का प्रसिद्ध कस्तूरी मृग (The Zibeth, Viverra zibetha) है, जो आस्ट्रेलिया से भारत और चीन तक फैला हुआ है। कद लगभग तीन फुट लंबा और 10 इंच ऊँचा होता है। रंग स्लेटी, जिसपर काली चित्तियाँ रहती हैं। दूसरा अफ्रीका का कस्तूरी मृग (African civet, Civette des civetta) है, जो इससे बड़ा ऊँचा तथा इससे गाढ़े रंग का और बड़े बालोवाला होता है। इसे लोग पालतू करके मुश्क निकालते हैं।
शारीरिक विशेषताएँ[संपादित करें]
वैसे तो कस्तूरी बिलाव का शरीर बिल्ली जैसा होता है लेकिन इसका मुख कुछ-कुछ कुत्ते की भाँति आगे से खिंचा हुआ होता है। इनमें एक ग्रंथि होती है जिस से वह अपनी कस्तूरी जैसी महक पैदा करते हैं। ऐतिहासिक रूप से कस्तूरी बिलावों को मारकर उनकी ग्रंथि निकल ली जाती थी और उसका प्रयोग इत्तर बनाने के लिए किया जाता था। आधुनिक युग में जीवित पशु से ही बिना ग्रंथि निकले इस गंध के रसायन इकट्ठे किये जाते हैं।[1]
अन्य भाषाओँ में[संपादित करें]
कस्तूरी बिलाव को अंग्रेज़ी में "सिवॅट" (civet) और मराठी में "उदमांजर" कहा जाता है।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- बिन्तुरोंग या ऋक्ष बिडाल (Bear Cat)
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ East African mammals: an atlas of evolution in Africa, Volume 3, Part 1, University of Chicago Press, 1988, ISBN 978-0-226-43721-7.