उड़ान (2010 फ़िल्म)

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उड़ान
निर्देशक विक्रमादित्य मोटवनी
निर्माता संजय सिंह
अनुराग कश्यप
रोनी स्क्रूवाला
अभिनेता रोनित रॉय, राम कपूर, आनन्द तिवारी, मनजीत सिंह, वरुन खत्री, सुमन्त मस्तकर
छायाकार महेन्द्र जे
संपादक दीपिका कालरा
संगीतकार अमित त्रिवेदी
देश भारत

उड़ान २०१० कि, विक्रमादित्य मोटवनी द्वारा निर्देशित व संजय सिंह, अनुराग कश्यप और रोनी स्क्रूवाला द्वारा निर्मित एक हिन्दी फ़िल्म है।[1] यह अनुराग कश्यप के वास्तविक जीवन पर आधारित है। फिल्म को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र के कुछ संबंध (थोड़ी झल्कि) श्रेणी में २०१० कान फिल्म समारोह में प्रतिस्पर्धा करने के लिए चुना गया था। फिल्म बॉक्स आफिस पर तुरंत सफल नहीं हुई, लेकिन अंततः एक क्लासिक पंथ के रूप में मानी गई।


कहानी[संपादित करें]

१७ वर्षीय रोहन अपने तीन दोस्तो विक्रम, बिनोय और मनिन्दर के साथ एक बालिग फिल्म देखते हुए अपने वार्डन द्वारा पकड़े जाते हैं। | उन चारों को प्रतिष्ठित बिशप काटन स्कूल शिमला से निकाल दिया जाता है। रोहन को न चाहते हुए भी अपने घर जमशेद्पुर लौटना पड़ता है। वहाँ उसे क्रोधी पिता के साथ रहना पड़ता है। वे उसे ज़िन्दगी अपनी तरह जीने को कहते हैं। हर सुबह उसे न चाह्ते हुए भी पूरे शहर की सैर करनी पड़ती है, तैयार होकर अपने पिता के कारखाने में काम करना पड़ता है तथा शाम को अभियान्त्रिकी की पढ़ाई के लिये काॅलेज जाना पड़ता है। यह सब करने के बाद भी उसे अपने पिता से शारीरिक शोषण और निरन्तर अपमान ही मिलता है। रोहन लेखक बनना चाहता है परन्तु उसके पिता को उसके सपनो से कोइ मतलब नहीं है। माँ बाप के प्यार से मरहूम रोहण बाहर उसकी तलाश करने लगता है। एक दिन रोहन घर से बाहर अपने पिता की गाड़ी लेकर एक बार में चला जाता है। वहाँ उसकी मुलाकात अपने काॅलेज के कुछ सीनियर से होती है जो उसके दोस्त बन जाते हैं। वे साथ में दारू और सिगरेट पीते हैं। इन सभी चीज़ो में मज़ा पाकर यह रोहण की नियमित आदत बन जाती है | इसी बीच अपने लेखक बनने के सपने को पूरा करने के लिये रोहन जान बूझकर परीक्षा में फेल हो जाता है | उसी बीच उसके सौतेले छोटे भाई अर्जुन की तबीयत खराब हो जाती है और उसके पिता को स्कूल जाने के लिये कहा जाता है | अर्जुन के स्कूल जाने के कारण उनके पिता एक मह्त्वपूण॑ अनुबन्ध खो बैठते हैं। रोहन ने घर पहुँचकर देखा की उसके पिता अर्जुन को बेहोशी की हालत में अस्पताल लेकर जा रहे हैं। उलझे मामलो के डर से रोहन अपने पिता को झूठ बोला कि उसने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उसके पिता रोहन को अस्पताल में अर्जुन की देखभाल के लिये छोड़कर व्यपार यात्रा के लिये कोलकाता चले गए। अस्पताल में ६ वर्षीय अर्जुन के साथ समय बिताते हुए रोहन को पता चला कि उसकी यह हालत पिता के अनुबन्ध खोने के गुस्से में बेल्ट से की गई पिटाई के कारण हुई है। वापस लौटने पर पिता को रोहन की परीक्षा में असफलता के बारे में पता चल गया। वे फैसला करते हैं कि रोहन को पूरा दिन कारखाने में काम करना पड़ेगा और अर्जुन को बोडि॑न्ग स्कूल में दाखिल करा देंगे तथा अपनी एक और शादी कर लेन्गे। वह रोहन द्वारा लिखि गई कविताओ की डायरी भी जला देते हैं। कुछ दिन बाद उसके पिता अपनी होने वाली पत्नी तथा सौतेली बेटी से रोहन का परिचय कराते हैं। इसी बीच रोहन मुम्बई में अपने दोस्तो से फोन पर बात करता है तो उसे पता चलता है कि वे सभी खुश हैं। | वह अपने जीवन के बारे में कुछ भी कहने में असमर्थ महसूस करते हुए फोन काट देता है। अपने पिता की गाड़ी को नष्ट करने के जुर्म में रोहन कुछ दिन जेल में रहता है | जब वह वापस आता है तो कमरे में अपनी होने वाली माँ व उनके रिश्तेदार को पाता है। वह घर छोड़कर मुन्बई जाने के लिए तैयारी करता है तथा अर्जुन को उसके आने वाले कल के लिए शुभकामनाएँ देकर चल देता है। उसके पिता जब उसे रोकने की कोशिश करते हैं तो वह उन्हे मारकर भाग जाता है। उस रात वह अपने चाचा के घर रहा जो उसे आने वाली जिंदगी के लिए शुभकामनाएं देते हैं। अगले दिन रोहन अपने घर की तरफ से स्टेशन के लिये रवाना हुआ तो घर के बाहर अर्जुन को देखकर उसके पास चला गया। पिता द्वारा उसे बोडि॑न्ग स्कूल भेजने के लिये टेक्सी लेने जाने की बात सुनकर वह उसे अपने साथ चलने के लिए मना लेता है। वह पिता के लिये एक चेतावनी भरा पत्र छोड़कर चला जाता है कि वे उन्हे ढूढने की कोशिश न करें। दोनों भाई सभी मुसीबतो से मुक्त होकर नई ज़िन्दगी के लिये एक नई आज़ाद उड़ान भरने चल पड़ते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]