आग्नेय भाषापरिवार

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ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ
आग्नेय भाषाएँ या मोन-ख्मेर भाषाएँ
भौगोलिक
विस्तार:
दक्षिण एवं दक्षिणपूर्वी एशिया
भाषा श्रेणीकरण: विश्व के मुख्य भाषा-परिवारों में से एक
आदि-भाषा: आदि-मोन-ख्मेर
उपश्रेणियाँ:
आइसो ६३९-५: aav

ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ

ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ​ या मोन-ख्मेर भाषाएँ या आग्नेय भाषाएँ दक्षिण-पूर्वी एशिया में विस्तृत एक भाषा परिवार है भाषाएँ भारत और बंगलादेश में जहाँ-तहाँ और चीन की कुछ दक्षिणी सीमावर्ती क्षेत्रों में भी बोलीं जाती हैं। इनमें केवल ख्मेर, वियतनामी और मोन का लम्बा लिखित इतिहास है और केवल ख्मेर और वियतनामी को अपने क्षेत्रों में सरकारी भाषा होने का दर्जा प्राप्त है। अन्य सभी भाषाएँ अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा बोली जाती हैं। कुल मिलाकर ऍथनोलॉग भाषा सूची में इस परिवार की १६८ सदस्य भाषाएँ गिनी गई हैं। भारत में खासी और मुण्डा भाषाएँ इस परिवार में आती हैं।

विवरण[संपादित करें]

आग्नेय का अर्थ है अग्निदिशा (पूर्व एवं दक्षिण दिशा के मध्य) से संबंधित अथवा अग्निदिशा में स्थित। अत: आग्नेय भाषापरिवार से तात्पर्य ऐसे भाषापरिवार से है जिसकी भाषाएँ मुख्य रूप से पूर्व एवं दक्षिण के मध्य बोली जाती हैं। इस परिवार का प्रसिद्ध नाम "आस्ट्रोएशियाटिक" है। पेटर श्मिट ने "आस्ट्रोनेशियन" अथवा "मलय--पालीनेशन" परिवार को आस्ट्रो--एशियाटिक परिवार से जोड़कर एक बृहत् भाषापरिवार की कल्पना की जिसे उन्होंने आस्ट्रिक परिवार का नाम दिया। क्षेत्र की दृष्टि से आस्ट्रिक परिवार संसार का सबसे विस्तृत भाषापरिवार है। पश्चिम में मैडागास्कर से लेकर पूर्व में पूर्वी द्वीपसमूह तक तथा उत्तर पश्चिम में पंजाब के उत्तरी भाग से लेकर दक्षिण पूर्व में न्यूज़ीलैंड तक इस भाषापरिवार का फैलाव है।

इस प्रकार आस्ट्रिक परिवार के मुख्य दो वर्ग हैं-

(1) आस्ट्रोनेशियन, (2) आस्ट्रो-एशियाटिक।

आस्ट्रोनेशियन अथवा मलय-पोली-नेशियन वर्ग की भाषाएँ प्रशांत महासागर के द्वीपों में फैली हुई हैं। इन भाषाओं के भी कई समूह हैं, : इंडोनेशियन, मलेनेशियन, मैक्रोनेशियन एवं पोलीनेशियन। आस्ट्रोनेशियन वर्ग के विवेचन में न्यूगिनी एवं आस्ट्रेलिया की कुछ मूल भाषाओं का भी उल्लेख किया जाता है क्योंकि इन भाषाओं में कुछ विशेषताएँ आस्ट्रोनेशियन वर्ग की हैं।

आस्ट्रो-एशियाटिक वर्ग की भाषाएँ मध्यभारत के छोटा नागपुर प्रदेश से लेकर अनाम तक फैली हुई हैं। इसकी मुख्य तीन शाखाएँ हैं :

(1) मुंडा, (2) मानख्मेर, (3) अनामी।

मुंडा (जिले "कोल" भी कहा जाता है) भाषाओं का क्षेत्र मुख्य रूप से भारत है। इसके दो भाग हैं। एक तो हिमालय की तराईवाला भाग जिसकी सीमा शिमला की पहाड़ियों तक है तथा दूसरा मध्यभारत का छोटा नागपुरवाला भाग। इस शाखा की मुख्य उपभाषाएँ हैं : संथाली, मुंडारी, भूमिज, कनावरी, खड़िया, हो एवं शवर। मुंडा भाषाओं का भारतीय भाषाओं पर पर्याप्त प्रभाव है।

मानख्मेर शाखा की भाषाएँ, वर्तमान समय में मुख्य रूप से स्याम, बर्मा और भारत में बोली जाती हैं। इस शाखा की दो मुख्य भाषाएँ हैं-मान एवं ख्मेर। मान का क्षेत्र बर्मा की मरतबान खाड़ी का तटवर्ती भाग है। यह किसी समय बड़ी समृद्धि साहित्यिक भाषा थी। मान के शिलालेख 11वीं शताब्दी के आसपास के हैं। ख्मेर का क्षेत्र बर्मा एवं स्याम है। ख्मेर भाषा के शिलालेख 7वीं शताब्दी के आसपास के हैं। भारत के आसाम प्रदेश की खासी पहाड़ियों पर बोली जानेवाली "खासी" अथवा "खसिया" (कई बातों में भिन्न होने पर भी) इसी शाखा से संबंध रखती है। निकोबार की "निकोबारी" एवं बर्मा के वनों में बोली जानेवाली "पलौंग" आदि भाषाओं का संबंध भी इस शाखा से है।

अनामी अनाम प्रदेश की भाषा है जो मुख्य रूप से हिंदचीन के पूर्वी किराने के भागों में बोली जाती है। यह एक प्रकार से मिश्रित भाषा है, जिसमें कुछ विशेषताएँ मानख्मेर शाखा की एवं कुछ विशेषताएँ चीनी भाषा की हैं। इसलिए कुछ लोग इसकी गणना इस परिवार में न कर चीनी परिवार में करते हैं।

एक ही परिवार की होने पर भी इस परिवार की भाषाओं में पर्याप्त भिन्नता है। यों मुख्य रूप से भाषाएँ श्लिष्ट योगात्मक भाषाएँ हैं किंतु साथ ही कुछ भाषाओं में अयोगात्मक (एकाक्षरी) भाषाओं के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं।

प्रोटो-भाषा[संपादित करें]

हैरी एल शॉर्टो ने मोन-खमेर तुलनात्मक शब्दकोश में प्रोटो-मोन-खमेर के पुनर्निर्माण पर बहुत काम किया गया है। मुंडा भाषाओं पर बहुत कम काम किया गया है, जो अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं हैं।

जॉर्ज वैन ड्रेम (2011) का प्रस्ताव है कि ऑस्ट्रोआयटिक की मातृभूमि दक्षिणी चीन में कहीं है। उनका सुझाव है कि पर्ल नदी (चीन) का क्षेत्र ऑस्ट्रोसीटिक भाषाओं और लोगों की संभावित मातृभूमि है। उन्होंने आगे कहा, आनुवंशिक अध्ययनों के आधार पर, कि ताइवान से क्रै-दाई लोगों के प्रवासन ने मूल ऑस्ट्रोआयसटिक भाषा को बदल दिया लेकिन लोगों पर प्रभाव केवल मामूली था। स्थानीय ऑस्ट्रोसिएटिक वक्ताओं ने क्रै-दाई भाषाओं को अपनाया और आंशिक रूप से उनकी संस्कृति।[1]

भाषाविद् सागरार्ट (2011) और बेलवुड (2013) के अनुसार दक्षिणी चीन में यांग्त्ज़ी नदी के किनारे ऑस्ट्रोसीएटिक की उत्पत्ति हुई है।[2]

पूर्वी एशिया में प्राचीन लोगों के बारे में 2015 के एक आनुवांशिक और भाषायी शोध में आज के दक्षिणी चीन या इससे भी आगे उत्तर में ऑस्ट्रोआटिक भाषा की उत्पत्ति और मातृभूमि का सुझाव दिया गया है।[3]

ऑस्ट्रोएस्टैटिक प्रवास[संपादित करें]

मित्सुरू सकितानी सुझाव के अनुसार हापलोग्रुप O1b1 , जो कि ऑस्ट्रोअस्टैटिक लोगों और दक्षिणी चीन में कुछ अन्य जातीय समूहों में आम है, और हापलोग्रुप O1b2, जो कि आज के कोरियाई, जापानी और कुछ मांचू में आम है, यांग्त्ज़ी सभ्यता ( बाययू ) के वाहक हैं।[4] एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि हापलोग्रुप O1b1 प्रमुख ऑस्ट्रोआसिस्टिक पैतृक वंश है।[5]

भारत में प्रवास[संपादित करें]

चौबे एट अल के अनुसार, "भारत में ऑस्ट्रो-एशियाटिक व्यक्ता आज दक्षिण पूर्व एशिया से फैलाव से निकले हैं, इसके बाद स्थानीय भारतीय आबादी के साथ ईनका समिस्रण हूआ।[6][7]

झांग एट अल। के अनुसार, भारत में दक्षिण-पूर्व एशिया से ऑस्ट्रोएस्टैटिक का पलायन 10,000 साल पहले अंतिम अर्घ हिमनद अधिकतम, के बाद हुआ था।[8] अरुणकुमार एट अल का सुझाव है कि दक्षिण-पूर्व एशिया से ऑस्ट्रोएस्टैटिक का पलायन पूर्वोत्तर भारत में 5.2± 0.6 हजार बर्ष पूर्व और पूर्वी भारत में 4.3±0.2 हजार बर्ष पूर्व हुआ है।[9]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • खसिक भाषाएँ, भारत में बोली जाने वाली ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं की एक शाखा
  • निकोबारी भाषाएँ, भारत में बोली जाने वाली ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं की एक अन्य शाखा
  • वियतनामी भाषा, विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा
  • ख्मेर भाषा, विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  1. George van Driem|van Driem, George. (2011). Rice and the Austroasiatic and Hmong-Mien homelands. In N. J. Enfield (Ed.), Dynamics of Human Diversity: The Case of Mainland Southeast Asia (pp. 361-390). Canberra: Pacific Linguistics.
  2. Reconstructing Austroasiatic prehistory. In P. Sidwell & M. Jenny (Eds.), The Handbook of Austroasiatic Languages. Leiden: Brill. (Page 1: “Sagart (2011) and Bellwood (2013) favour the middle Yangzi”
  3. Zhang, Xiaoming; Liao, Shiyu; Qi, Xuebin; Liu, Jiewei; Kampuansai, Jatupol; Zhang, Hui; Yang, Zhaohui; Serey, Bun; Tuot, Sovannary (2015-10-20). Y-chromosome diversity suggests southern origin and Paleolithic backwave migration of Austro- Asiatic speakers from eastern Asia to the Indian subcontinent OPEN. 5.
  4. 崎谷満『DNA・考古・言語の学際研究が示す新・日本列島史』(勉誠出版 2009年) 
  5. Robbeets, Martine; Savelyev, Alexander (2017-12-21). Language Dispersal Beyond Farming (अंग्रेज़ी में). John Benjamins Publishing Company. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789027264640.
  6. Riccio, M. E.; एवं अन्य (2011). "The Austroasiatic Munda population from India and Its enigmatic origin: a HLA diversity study". Human Biology. 83 (3): 405–435. PMID 21740156. डीओआइ:10.3378/027.083.0306.
  7. The Language Gulper, Austroasiatic Languages Archived 2019-03-29 at the वेबैक मशीन
  8. Zhang 2015.
  9. Arunkumar, G.; एवं अन्य (2015). "A late Neolithic expansion of Y chromosomal haplogroup O2a1-M95 from east to west". Journal of Systematics and Evolution. 53 (6): 546–560. डीओआइ:10.1111/jse.12147.