खड़िया भाषा

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खड़िया भाषा
बोलने का  स्थान भारत (झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह), नेपाल
तिथि / काल 2001 जनगणना
समुदाय खड़िया जनजाति
मातृभाषी वक्ता 240,000
भाषा परिवार
ऑस्ट्रो-एशियाई
भाषा कोड
आइएसओ 639-3 khr
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खड़िया (Kharia) एक भारतीय भाषा है जो ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं की मुण्डा शाखा की सदस्य है। भारत के पूर्वी क्षेत्रों के अलावा यह नेपाल में भी कहीं-कहीं बोली जाती है।[1][2] इसका सम्बन्ध जुआंग भाषा से बहुत समीपी है।[3]

भाषा का विकास योगात्मकता से अयोगात्मकता की ओर है।

विस्तार[संपादित करें]

यह भारत के इन ज़िलों में बोली जाती है:


शब्दकोश[संपादित करें]

डाल्टन (1866), राखालदास हालदर (1872) और ड्राइवर (1891) ने पहाड़ी खड़िया और मैदानी खड़िया के नाम पर उनके शब्द-समूह की तुलना की है। किन्तु पहले-पहल जी.सी. बनर्जी (1894) ने अपनी पुस्तक ‘इण्ट्रोडक्शन टु खड़िया लैग्वेज’ मैं खड़िया शब्द सूची प्रस्तुत की थी। इसमें उन्होंने हिन्दी, मुंडारी, कुडुख और संस्कृत के समान शब्दों की ओर संकेत किया है। ‘टी डिस्ट्रिक्ट लेबर एसोसिएशन’ ने इंगलिश खड़िया-इंगलिश के बोल चाल के उपयोगी वाक्यों का संग्रह किया। फ्रलोर घेइसन्स और डुअर्ट ने 1934 ई0 में खड़िया शब्दकोश तैयार किया। बिलीगिरि ने अपनी पुस्तक में 1500 शब्दों का संग्रह कर उनका अंग्रेजी में अर्थ प्रस्तुत किया है। इलियास केरकेट्टा ने शब्दकोश की पाण्डुलिपि तैयार की है। पौलुस कुल्लू ने भी अपने व्याकरण में खड़िया शब्द-सूची दी है।डा.फादर निकोलस टेटे ने भी "खड़िया शब्द-संग्रह" नामक शब्दकोश की रचना की है।

खड़िया साहित्य[संपादित करें]

खड़िया समुदाय पर 1866 ई0 के आस-पास से ही सामग्री और सूचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं, किन्तु यह सब मानवशास्त्राीय अध्ययन मात्रा हैं। बहुत सारी सामग्रियाँ तो सिर्फ सूचनाएँ देती हैं। इस तरह का सम्पूर्ण अध्ययन शरत चन्द्र राय ने किया जो 1937 ई0 में पुस्तकाकार छप कर निकला। उन्होंने ही इस पुस्तक में खड़िया लोकगीतों, लोककथाओं और मन्त्रों का स्थान दिया। इसी क्रम में डा. ललिता प्रसाद विद्यार्थी और वी.एस. उपाध्याय हैं, जिन्होंने राय की पुस्तकों की कमियों को दूर करने की चेष्टा करते हुए ‘द खड़ियाज: देन एण्ड नाउ’ प्रकाशित की।

लोक साहित्य[संपादित करें]

ऊपर कहा जा चुका है कि खड़िया जाति पर काम करते हुए शरतचन्द्र राय ने लोकगीतों और लोक कथाओं को छुआ है। इसके कुछ ही बाद आर्चर ने मनमसीह टेटे, दाऊद डुंगडुंग और जतरू खड़िया की सहायता से 1942 ई0 में खड़िया लोकगीतों का संग्रह किया। इस संग्रह में लोकगीतों को मौसम और राग के अनुसार रखा गया है। उन्होंने खड़िया पहेलियों का भी संग्रह किया है।

धार्मिक साहित्य[संपादित करें]

धार्मिक साहित्य और शिष्ट साहित्य में यद्यपि अन्तर है, तथापि ईसाई धर्म के गीतों और भजनों की चर्चा की जा सकती है। 1935 ई0 में जे. पास्टर ने असम के गोलाघाट से इन भजनों का संग्रह ‘खड़िया अलोङ’ नाम से प्रकाशित किया है। प्रार्थनाओं, बाइबल के कुछ अंशों का खड़िया अनुवाद हुआ है और एक ‘खड़िया अलोङ’ जी.इ. एल. चर्च ने प्रकाशित किया। बाइबल की ही एक कहानी, ‘मेरा पड़ोसी कौन ?’ को खड़िया भाषा की कविता के रूप में नुअस केरकेट्टा ने तैयार किया। इस कविता के कुछ दोषों को छोड़ दिया जाए तो यह इस भाषा की श्रेष्ठ कविता कही जा सकती है।

शिष्ट साहित्य[संपादित करें]

इस क्षेत्र की सभी जनजातियों के साहित्य का विकास स्वतंत्रता के बाद से ही माना जाता है। ‘आदिवासी’ समाचार पत्र और राँची आकाशवाणी की स्थापना से ही यह कार्य संभव हो सका। ‘आदिवासी’ पत्रिका में प्यारे-केरकेट्टा, सरोज केरकेट्टा, रोज केरकेट्टा और ग्लोरिया सोरेङ की कविताएँ, कहानियाँ, लोक-कथाएँ, लेख और शब्द चित्र प्रकाशित होते रहे हैं।

प्यारा केरकेट्टा की जामबहार, मेरोमडअ डोकलोओ (रिपोर्ट), बेरथअ बिहा ये चार पुस्तके प्रकाशित हुई हैं। उनकी मौलिक कहानियाँ ‘लोदरो सोमधि’ में संग्रहीत हैं एवं कविताएँ प्रकाशन के लिए तैयार हैं। खड़िया संस्कृति के बारे में जे. सुकेसर बाः की खड़िया डाः पुस्तक प्रकाशित हुई है।

प्रेमचन्द की दस कहानियों का अनुवाद हुआ है। ‘आदिवासी’ के अलावा ‘तारदी’, ‘सोरिनानिङ’ ‘दियोम’ नामक खड़िया भाषा की पत्रिकाओं में भी कुछ कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। ‘जोहार’ और ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा’ नामक दूसरी पत्रिका में लेख, कहानियाँ, कविताएँ साहित्यिक स्तर की छपती रही हैं। चौथी पत्रिका ‘स्मारिका’ है जिसमें लोककथाएँ और कविताएँ छपी हैं।

नाटक[संपादित करें]

प्यारा केरकेट्टा ने ही ‘जुझइर डाँड़’ नामक ऐतिहासिक नाटक लिखा है। ‘बेड़ो मुउसिङा’ असम-पलायन पर आधरित है। शरतचन्द्र राय के अध्ययन काल पर आधरित अपूर्ण नाटक भी उपलब्ध है। एक उपन्यास प्रकाशित हुआ है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Hammarström, Harald; Forkel, Robert; Haspelmath, Martin; Bank, Sebastian, eds. (2016). "Kharia". Glottolog 2.7. Jena: Max Planck Institute for the Science of Human History.
  2. Peterson, John. 2008. "Kharia". In Anderson, Gregory D.S (ed). The Munda languages, 434-507. Routledge Language Family Series 3.New York: Routledge. ISBN 0-415-32890-X.
  3. Mahapatra, B. P.. “Comparative Notes on Juang and Kharia Finite Verbs”. Oceanic Linguistics Special Publications 13 (1976): 801–814.