सामग्री पर जाएँ

अरहंत

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

थेरवाद बौद्ध धर्म, में अर्हत (Sanskrit; Pali: अरहत या अरहन्त; " जो योग्य है"[1])  "पूर्ण मनुष्य"[1][2] को कहते हैं  जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अन्तर्ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, और जिसे निर्वाण की प्राप्त हो चुकी हो।[2][1] अन्य बौद्ध परम्पराओं में इस शब्द का अब तक 'आत्मज्ञान के रास्ते पर उन्नत लोगों' (जो सम्भवतः पूर्ण बुद्धत्व की प्राप्ति न कर सके हों) के अर्थ में प्रयोग किया गया है, ।[3]

अलग-अलग भाषा में
Arhat
पालीarahant
संस्कृतअर्हत्
बंगाली[অর্হৎ
ôrhôt] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help)
बर्मीရဟန္တာ
(IPA: [jəhàɴdà])
चीनी阿羅漢, 羅漢
(pinyināluóhàn, luóhàn)
जापानी阿羅漢, 羅漢
(rōmaji: arakan, rakan)
कोरियन아라한, 나한
(RR: arahan, nahan)
सिंघलඅරහත්, රහත්
(लुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1665 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)।)
तिब्बतीdgra bcom pa
थाईอรหันต์
(आरटीजीएसलुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1665 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)।)
वियतनामीa-la-hán
बौद्ध धर्म शब्दावली

अर्हत् और अरिहन्त पर्यायवाची शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहन्त' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। जैनों के णमोकार मंत्र में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान् लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहन्त जन्म लेते हैं। जैन आगमों को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थंकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। महावीर जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थंकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें केवली कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।

टिप्पणी

[संपादित करें]

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. "Encyclopedia Britannica, Arhat (Buddhism)". मूल से 4 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 नवंबर 2015.
  2. Warder 2000, पृ॰ 67.
  3. Rhie & Thurman 1991, पृ॰ 102.

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]