अरब-इजराइल युद्ध (१९४८)
अरब-इजराइल युद्ध (१९४८) | |||||||||
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पैलेस्तीन युद्ध (१९४८) का भाग | |||||||||
कप्तान एब्राहेम "ब्रेन" अदन, स्याही पताका फहरा, युद्ध के अंत कि सुचना देते हुए। | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
इजरायल
26 मई 1948 से पहले:
26 मई 1948 के बाद: विदेश स्वयंसेवक: |
अरब लीग
अनियमित: विदेश स्वयंसेवक: | ||||||||
सेनानायक | |||||||||
राजनेता: डेविड बेन-गुरियन |
राजनेता: अज़्ज़म पाशा | ||||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||||
इजराइल: 29,677 (प्रारंभ में) 117,500 (अन्त में)[Note 1] |
मिस्र: शुरू में 10,000, फिर बढ़ कर 20,000 इराक: शुरू में 3,000, फिर बढ़ कर 15,000–18,000 सीरिया: 2,500–5,000 जॉर्डन: 8,000–12,000 लेबनान: 1,000[8] सऊदी अरब: 800–1,200 (मिस्र की कमान) यमन: 300 अरब लिबरेशन आर्मी: 3,500–6,000. कुल: 13,000 (शुरु में) 51,100 (न्यूनतम) 63,500 (अधिकतम)[Note 2] | ||||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||||
6,373 मृत (तकरिबन 4,000 सैनिक और 2,400 नागरिक)[9] | अरब सेना: 3,700–7,000 मृत फिलीस्तिनी अरब: 3,000–13,000 मृत (सैनिक और नागरिक दोनो)[10][11] |
१९४८ का अरब-इजराइली युद्ध इजराइल तथा अरब राज्यों के सैनिक गुट और फिलिस्तीनी अरब सेनाओं के बीच लड़ा गया प्रथम युद्ध था।
परिचय
[संपादित करें]साल 1948 के मई महीने में ब्रिटेन की सेनाएं वापस लौट गईं, हालांकि इस समय तक इजराइल और फिलिस्तीन की वास्तविक सीमा रेखा निर्धारित नहीं हो पाई थी। अब यहूदियों और फिलिस्तीनी अरबों में खूनी टकराव शुरू हो गया। 14 मई 1948 को यहूदियों ने स्वतन्त्रता की घोषणा करते हुए 'इजराइल' नाम के एक नए देश का ऐलान कर दिया। अगले ही दिन अरब देशों- मिस्र, जोर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक ने मिलकर इजराइल पर हमला कर दिया। इसे '1948 का युद्ध' कहा गया और यही से अरब इजराइल युद्ध की शुरुवात हो गई। जून 1948 में एक युद्ध विराम ने अरबों और इजराइलियों दोनों दोबारा तैयारियां करने का मौका दिया। चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से अब युद्ध का पलड़ा इजराइलियों की तरफ झुक गया और अंततः इजराइलियों की जीत हुई।
साल 1949 में समझौते से जार्डन और इजराइल के बीच 'ग्रीन लाइन' नामक सीमा रेखा का निर्धारण हुआ। वेस्ट बैंक (जार्डन नदी के पश्चिमी हिस्से) पर जार्डन और गाजा पट्टी पर मिस्र (इजिप्ट) का कब्जा हो गया। इस पूरे घटनाक्रम में लगभग 1 लाख फिलिस्तीनी बेघर हुए। इजराइल को 11 मई 1949 को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता प्रदान की गयी। इसके बाद इजराइलियों और फिलिस्तीनीयों अरबों के बीच खूनी संघर्ष जारी रहा।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- इजरायल की निन्दा क्यों? (भारतीय पक्ष)
- फिलिस्तीनियों पर टूट रहा इजराइल का कहर, जाने क्या है पूरा मामला? (भास्कर)
- फ़लस्तीन-इजराइल संघर्ष – इतिहास की क़ैद में फंसा भविष्य (जनपक्ष)
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Anita Shapira, L'imaginaire d'Israël : histoire d'une culture politique (2005), Latroun : la mémoire de la bataille, Chap. III. 1 l'événement pp. 91–96
- ↑ Benny Morris (2008), p. 419.
- ↑ अ आ इ ई Oren 2003, p. 5.
- ↑ Morris (2008), p. 260.
- ↑ Gelber, pp. 55, 200, 239
- ↑ Morris, 2008, p. 332.
- ↑ अ आ Gelber (2006), p. 12.
- ↑ Pollack, 2004; Sadeh, 1997
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;politics
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;laurens
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ Morris 2008, pp. 404–06.
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