अनुपम मिश्र
अनुपम मिश्र (१९४८–१९ दिसम्बर 2016) जाने माने लेखक, संपादक, छायाकार और गांधीवादी पर्यावरणविद् थे। पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यानाकर्षित करने की दिशा में वह तब से काम कर रहे थे, जब देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नहीं खुला था। आरम्भ में बिना सरकारी मदद के अनुपम मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस तल्लीनता और बारीकी से खोज-खबर ली है, वह कई सरकारों, विभागों और परियोजनाओं के लिए भी संभवतः संभव नहीं हो पाया है। उनकी कोशिश से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ जिसे दुनिया ने देखा और सराहा। सूख चुकी अरवरी नदी के पुनर्जीवन में उनकी कोशिश काबिले तारीफ रही है। इसी तरह उत्तराखण्ड और राजस्थान के लापोड़िया में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया है।
जन्म
[संपादित करें]इनका जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में श्रीमती सरला मिश्र और प्रसिद्ध हिन्दी कवि भवानी प्रसाद मिश्र के यहाँ सन् 1948 में हुआ।
शिक्षा
[संपादित करें]यह दिल्ली विश्वविद्यालय से 1968 में संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं।
उत्तरदायित्व और सम्मान
[संपादित करें]गांधी शांति प्रतिष्ठान दिल्ली में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की। वह इस प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग के संस्थापक और संपादक भी थे। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्त्वपूर्ण काम किया था। वे २००१ में दिल्ली में स्थापित सेंटर फार एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था। वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। २००९ में उन्होंने टेड (टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित किया था।
आज भी खरे हैं तालाब[1] के लिए २०११ में उन्हें देश के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अनुपम मिश्र ने इस किताब को शुरू से ही कॉपीराइट से मुक्त रखा है।
१९९६ में उन्हें देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
२००७-२००८ में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के चंद्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इन्हें एक लाख रुपये के कृष्ण बलदेव वैद पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।[2]]
प्रमुख रचनाएँ
[संपादित करें]- राजस्थान की रजत बूँदें [1][2] Archived 2020-09-19 at the वेबैक मशीन
- अंग्रेज़ी अनुवाद में : राजस्थान की रजत बूँदें [3]
- आज भी खरे हैं तालाब [4] उनकी इस पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब जो ब्रेल लिपि सहित तेरह भाषाओं में प्रकाशित हुई की एक लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।
- ‘साफ माथे का समाज’ [5]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अगस्त 2014.
- ↑ [https://web.archive.org/web/20130525103557/http://mohallalive.com/2011/05/02/anupam-mishra-get-krishna-baldeo-vaid-award/ Archived 2013-05-25 at the वेबैक मशीन