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गोप्रेक्षेश्वर

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स्कंद[1][2] महापुराण में काशी का परिचय, माहात्म्य तथा उसके आधिदैविक स्वरूप का विशद वर्णन है। काशी को आनंदवन एंव वाराणसी[3] नाम से भी जाना जाता है। इसकी महिमा का आख्यान स्वयं भगवान विश्वनाथ ने एक बार भगवती पार्वती जी से किया था, जिसे उनके पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) ने अपनी माँ की गोद में बैठे-बैठे सुना था। उसी महिमा का वर्णन कार्तिकेय ने कालांतर में अगस्त्य ऋषि से किया और वही कथा स्कंदपुराण के अंतर्गत काशीखंड में वर्णित है। काशीखण्ड में विंध्यपर्वत और नारदजी का संवाद का वर्णन है ।

इसी प्रकार लिंग पुराण में भी गोप्रेक्ष महादेव का वर्णन विशेष रूप से किया गया है। लिंग पुराण के अध्याय 1[4] के दूसरे से लेकर चौथे श्लोक में गोप्रेक्ष का वर्णन है।

दूसरे से लेकर चौथे श्लोक में वर्णन है की, नारद मुनि सभी तीर्थस्थानों में शिव की पूजा करके नैमिष चले गए, अर्थात् शैलेश, संगमेश्वर, हिरण्यगर्भ, स्वर्णलीन, अविमुक्त, महालय, रौद्र, गोप्रेक्ष, उत्तम पाशुपत, विघ्नेश्वर, केदार, गोमायुकेश्वर, हिरण्यगर्भ, चन्द्रेश, ईशान्य, त्रिविष्टप और शुक्रेश्वर।

इसी प्रकार लिंग पुराण में भी गोप्रेक्ष महादेव का वर्णन विशेष रूप से किया गया है। लिंग पुराण के अध्याय 92 - श्रीशैल की महिमा[5] के 66th से लेकर 68th श्लोक में गोप्रेक्ष की महिमा का वर्णन है।

ऋषियों ने कहाः

हे महाबुद्धिमान सूत! यदि वाराणसी इतना पुण्यशाली है, तो अब आपको हमें उसका माहात्म्य बताना चाहिए। हम इस पवित्र धाम अविमुक्त की उत्तम महिमा को विस्तार से सुनने के लिए उत्सुक हैं।

भगवान ने कहाः

श्लोक 66. हे पुण्यात्मा, मेरी कृपा से यहाँ ही वह मोक्ष प्राप्त होता है, जो एक योगी को हजार जन्मों में प्राप्त होता है।

श्लोक 67. यह पवित्र धाम गोप्रेक्ष ब्रह्मा द्वारा पूर्व में स्थापित किया गया है। हे श्रेष्ठी, यहाँ दिव्य धाम कैलास का दर्शन करो।

श्लोक 68. गोप्रेक्ष में जाकर मनुष्य यहाँ मेरे दर्शन करेगा। इससे वह बुरे दुर्भाग्य से बच जाता है और पापों से तुरंत मुक्त हो जाता है।

श्री गोप्रेक्षेश्वर महादेव (भगवान शंकर लिंग रूप में और माँ पार्वती मूर्ति रूप में - अर्धनारीश्वर), सतयुग कालीन तीर्थ

काशी - भगवान विष्णु (माधव) की पुरी[संपादित करें]

विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:'। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। काशी में माधव गोपियो के साथ पूजे जाते हैं, इस तीर्थ का नाम गोपी गोविंद है,

इसी स्थान पर गायो को भगवान शंकर ने लिंग स्वरूप में और मां गौरी ने मूर्ति स्वरूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ साक्षात दर्शन दिए, गौओ के इस प्रकार शंकर और मा गौरी के प्रत्यक्ष दर्शन से गोप्रेक्ष नाम हुआ।

ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।और हमारे शिव जी पार्वती जी की इच्छा अनुसार काशी में शैलेश्वर महादेव में विराजमान हो गए आज भी शिवाजी या तो कैलाश पर्वत पर या शैलेश्वर महादेव जी में साक्षात विराजमान हैं जो शैलपुत्री जी मंदिर में साक्षात विराजमान है शैलपुत्री जी साक्षात पार्वती है यह भी अपने शिवजी के साथ शैलपुत्री जी के नाम से वहीं विराजमान हो गई आज भी शिव और पार्वती दोनों काशी मेें साक्षात्


गोलोक का परिचय[संपादित करें]

गोलोक परम पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्णा का निवास स्थान है। जहाँ पर भगवान कृष्ण अपनी सर्वेश्वरी श्री राधा रानी संग निवास करते हैं। वैष्णव मत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ही परंब्रह्म हैं और उनका निवास स्थान गोलोक धाम है, जोकि नित्य है, अर्थात सनातन है। इसी लोक को परमधाम कहा गया है। कई भगवद्भक्तों ने इस लोक की परिकल्पना की है। गर्ग संहिता व ब्रह्म संहिता मे इसका बड़ा ही सुंदर वर्णन हुआ है। बैकुंठ लोकों मे ये लोक सर्वश्रेष्ठ है, और इस लोक का स्वामित्व स्वयं भगवान श्री कृष्ण ही करते हैं। इस लोक मे भगवान अन्य गोपियों सहित निवास तो करते ही हैं, साथ ही नित्य रास इत्यादि क्रीड़ाएँ एवं महोत्सव निरंतर होते रहते हैं। इस लोक मे, भगवान कृष्ण तक पहुँचना ही हर मनुष्यात्मा का परंलक्ष्य माना जाता है।

श्री गर्ग-संहिता मे कहा गया है:

आनंदचिन्मयरसप्रतिभाविताभिस्ताभिर्य एव निजरूपतया कलाभिः।

गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतो गोविंदमादिपुरुषम तमहं भजामि॥

अर्थात- जो सर्वात्मा होकर भी आनंदचिन्मयरसप्रतिभावित अपनी ही स्वरूपभूता उन प्रसिद्ध कलाओं (गोप, गोपी एवं गौओं) के साथ गोलोक मे ही निवास करते हैं, उन आदिपुरुष गोविंद की मै शरण ग्रहण करता हूँ।

गोलोक से गायो का काशी आगमन[संपादित करें]

गोलोक से भगवान शंकर की एक कथा बहुत ही प्रचलित है कि भगवान शंकर ने गऊ को गोलोक से काशी जाने का आदेश दिया, जब वे भोलेनाथ की आज्ञा से काशी पहुंचे तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर मां गौरी सहित दर्शन दिए, गायो को भगवान शंकर ने लिंग स्वरूप में और मां गौरी ने मूर्ति स्वरूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ साक्षात दर्शन दिए, गौओ के इस प्रकार शंकर और मा गौरी के प्रत्यक्ष दर्शन से गोप्रेक्ष नाम हुआ। और भगवान ने आशीर्वाद दिया कि जो कलयुग में जो मनुष्य गोप्रेक्ष का दर्शन करेगा उसको अनंत गौदान का फल प्राप्त होगा, और समस्त कल्मष / क्लेश का नाश होगा ।

स्कंद पुराण में लिखा है -

महादेवस्य पूर्वेण गोप्रेक्षं लिंगमुत्तमम् ।। ९ ।।

तद्दर्शनाद्भवेत्सम्यग्गोदानजनितं फलम् ।।

गोलोकात्प्रेषिता गावः पूर्वं यच्छंभुना स्वयम् ।। १० ।।

वाराणसीं समायाता गोप्रेक्षं तत्ततः स्मृतम् ।।

गोप्रेक्षाद्दक्षिणेभागे दधीचीश्वरसंज्ञितम् ||११||

सरल भावनाुवाद - महादेव जी का पूर्व दिशा में एक बहुत ही अध्भुत लिंग है जिसे गोप्रेक्ष नाम से जाना जाता है, यह अर्धनारीश्वर का ऐसा स्वरूप जिसमें शिव स्वयं लिंग रूप में और मां गौरी स्वयं मूर्ति रूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ विराजते हैं भगवान शंकर ने गायो को स्वयं गोलोक से काशी जाने का आदेश दिया, जब वे भोलेनाथ की आज्ञा से काशी पहुंचे तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर मां गौरी सहित दर्शन दिए, गायो को दर्शन देने के कारण गोप्रेक्ष नाम हुआ, और यहां दर्शन करने से अनंत गौ दान का फल प्राप्त होता है और दम्पत्य क्लेश नाश होता है

वर्तमान स्थिति[संपादित करें]

पहले बद्रीनारायण घाट से वर्तमान बूंदीपरकोटा घाट तक गोप्रेक्षेश्वर तीर्थ था किंतु, कालान्तर में हुए निर्माणो से इसका चेत्रफल सिकुडता गया, नए पक्केघाट बन जाने से गोप्रेक्ष तीर्थ का एक हिस्सा लालघाट, और हनुमानगढ़ी घाट, और शेष हिसा गोप्रेक्ष तीर्थ से अपभ्रंश होकर गौ घाट, और आज वर्तमान में गाय घाट के नाम से जाना जाता है। परंतु शास्त्रो के महत्त्वो से हमें इसे गोप्रेक्ष तीर्थ ही बुलाना चाहिए।

चतुर्दशायतन -

मणिकर्णयया नरः स्नात्वा दृष्ट्वा चैशानमीएवरम्‌। तस्मिन्‌ कूप उपस्पृश्य दूष्ट्वा गोप्रेक्षमीएवरम्‌ ॥

यात्री वरणा में स्नान पहले शैलेश का दर्शन करता था। संगम पर स्नान और संगमेश्वर का दर्शन, स्वर्लीन में स्नान और सवर्लीनेश्वर का दर्शन, मंदाकिनी में स्नान और मध्यमेशवर का दर्शन हिरण्यगर्भ में स्नान और ईश्वर का दर्शन, मणिकर्णी में स्नान और ईशानमीश्वर का दर्शन, कूप जल स्पर्श करके गोप्रेक्षेश्वर का दर्शन, कपिलहृद में स्नान करके वृषभध्वज का दर्शन, उसके बाद उपशांत के कूप में जल स्पर्श तथा दर्शन पंचचूड़ाहृद में स्नान तथा ज्येष्ठश्वर का अर्चन पूजन, चतु: समुद्र कूप में स्नान, देवी की पूजा तथा उसके आगे के कूप का जल स्पर्श तथा शुध्देश्वर का दर्शन, दंडखात में स्नान तथा व्याडेश की पूजा, शौनकेश्वर कुँड में स्नान तथा जंवुकेश्वर की पूजा कृष्ण चतुर्दशी से लेकर प्रतिपदा तक होती थी।

गौरी पूजा -

फाल्गुन शुक्ल तृतीया के दिन गोप्रेक्ष तीर्थ घाट में स्नान के वाद गोप्रेक्ष (गोप्रेक्षेश्वर) का दर्शन, मुखनिर्मालिका गौरी का दर्शन, उसके बाद कालिका देवी की पूजा, ज्येष्ठ स्थान में ज्येष्ठा गौरी और अविमुक्तेश्वर के उत्तर में ललिता की पूजा। ललिता के स्थान में ब्राह्मण भोजन, वस्र तथा दक्षिणा।

ग्रन्थसूची[संपादित करें]

(1) काशी में अन्‍य शिवालयों की मान्‍यता[6][7] (2) Shri Gopreksheshwar Mahadev (गोप्रेक्षेश्वर) Temple - Kashi Khand (स्कंदपुराणम/खण्डः ४ (काशी खण्डः)/अध्याय०९७ वर्णीत) [8] (3) Shri Gopreksheshwar Mahadev (गोप्रेक्षेश्वर) Temple - Kashi Khand (स्कंदपुराणम/खण्डः ४ (काशी खण्डः)/अध्याय०९७ वर्णीत) Trip.com - https://ca.trip.com/travel-guide/attraction/varanasi/shri-gopreksheshwar-mahadev-141740527/ (4) Top 15 Temples in Varanasi You Must Not Miss - https://solivagent.in/temples-in-varanasi/#15-temples-in-varanasi-you-must-not-miss (5) Gopreksheshwar Temple- http://koyil.com/sk040.html (6) Shiva Lingams of Kashi - https://www.scribd.com/document/477332597/Shiva-Lingams-of-Kashi (7) Varanasi-ghats - Lal Ghat - https://travelnthrill.com/varanasi-ghats/ (8) Ling Puran Chepter 92 verse 67 ,68 and 69 - https://www.wisdomlib.org/hinduism/book/the-linga-purana/d/doc1196072.html (9) Ling Puran Chepter 1 verse 2,3 and 4 -https://www.wisdomlib.org/hinduism/book/the-linga-purana/d/doc1195213.html

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "स्कन्द पुराण", विकिपीडिया, 2024-05-16, अभिगमन तिथि 2024-05-20
  2. "स्कन्द पुराण".
  3. "वाराणसी", विकिपीडिया, 2024-04-14, अभिगमन तिथि 2024-05-20
  4. www.wisdomlib.org (2023-05-24). "Introductory [Chapter 1]". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-21.
  5. www.wisdomlib.org (2023-06-05). "Glory of Śrīśaila [Chapter 92]". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-21.
  6. "काशी में द्वादश ज्‍योतिर्लिंगों की मौजूदगी की मान्‍यता, जानिए शहर में कहां मौजूद हैं यह मंदिर - Savan in Kashi Value of Twelve Jyotirlingas in Varanasi know where these temples are". Jagran. अभिगमन तिथि 2024-05-20.
  7. "काशी में अन्‍य शिवालयों की मान्‍यता".
  8. "GOPREKSHESHWAR" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-05-20.