झाँसी की रानी रेजिमेंट

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झाँसी की रानी रेजिमेंट
४० के दशक में प्रशिक्षण लेती झाँसी की रानी रेजिमेंट की एक सैनिक का चित्र
सक्रियअक्टूबर १९४३ - मई १९४५
देशभारत
निष्ठासाँचा:Country data आजाद हिंद
शाखाइन्फेंट्री
भूमिकागोरिल्ला इन्फेंट्री, नर्सिंग कोर
विशालता१,००० (अनुमानित)
सेनापति
औपचारिक प्रमुखसुभाष चन्द्र बोस
प्रसिद्ध
सेनापति
लक्ष्मी स्वामीनाथन
जानकी डावर

झाँसी की रानी रेजिमेंट आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक महिला रेजिमेंट थी, जो १९४२ में भारतीय राष्ट्रियावादियो द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया में जापानी सहायता से औपनिवेशिक भारत को ब्रिटिश राज से आज़ादी दिलवाने के उद्देश्य से बनायी गयी थी। लक्ष्मी स्वामीनाथन के नेतृत्व में,[1] इस यूनिट का निर्माण जुलाई १९४३ में दक्षिण-पूर्व एशिया की प्रवासी भारतीय महिलाओं ने स्वेच्छा से किया गया।[2] रेजिमेंट का नाम झाँसी राज्य की रानी, लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया था।[3]

स्थापना[संपादित करें]

रेजिमेंट के गठन की घोषणा सुभाष चन्द्र बोस ने १२ जुलाई १९४३ को की थी।[4] रेजिमेंट की अधिकांश महिलाएं मलयान रबर एस्टेट से आयी भारतीय मूल की किशोर स्वयंसेविकाएँ थी; बहुत कम ही कभी भारत में रही थी।[5] रेजिमेंट का केंद्र प्रारंभ में सिंगापुर में स्थित इसके प्रशिक्षण शिविर के साथ स्थापित किया गया था,[6] जहाँ लगभग एक सौ सत्तर कैडेट थे। इन कैडेटों को उनकी शिक्षा के अनुसार गैर-कमीशन अधिकारी या सिपाही की रैंक दी गई थी। बाद में, रंगून और बैंकॉक में शिविर स्थापित किए गए, और नवंबर १९४३ तक इस इकाई में तीन सौ से अधिक कैडेट थे।[6]

प्रशिक्षण[संपादित करें]

कैडेटों का प्रशिक्षण सिंगापुर में २३ अक्टूबर १९४३ को शुरू हुआ।[7] सभी रंगरूट अनुभागों और प्लेटों में विभाजित किए गए थे, और उन्हें उनकी शैक्षिक योग्यता के अनुसार गैर-कमीशन अधिकारी और सिपाही के पद दिए गए थे। इन रंगरूटों को सामान्य या युद्ध परिस्थितियों के लिए तैयार करने के लिए ड्रिल और रूट मार्च के साथ-साथ राईफ़ल, हथगोले और बैयोनेट जैसे हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया था। इसके बाद कई कैडेटों का चयन बर्मा में जंगल युद्ध में अधिक उन्नत प्रशिक्षण के लिए किया गया।[6] ३० मार्च १९४४ को रेजिमेंट के सिंगापुर प्रशिक्षण शिविर में पांच सौ सैनिकों की पहली पासिंग आउट परेड हुई।[6]

कुछ २०० कैडेटों को नर्सिंग प्रशिक्षण के लिए भी चुना गया था, जो बाद में चांद बीबी नर्सिंग कोर का हिस्सा बने थे।[8]

सेवा[संपादित करें]

इम्फाल अभियान के दौरान झाँसी की रानी रेजिमेंट की लगभग सौ सैनिकों को मेम्यो में तैनात किया गया था।

आईएनए के इम्फाल अभियान के दौरान, झाँसी की रानी रेजिमेंट की लगभग सौ सैनिकों का प्रारंभिक दल मेम्यो की ओर रवाना हुआ, जहाँ इनका इरादा इम्फाल के [अपेक्षित] पतन के बाद बंगाल के गांगेय मैदानों में प्रवेश करने के लिए एक अग्रणी इकाई बनाने था। दल के एक हिस्से ने मेम्यो के आईएनए अस्पताल में नर्सिंग का काम भी सम्भाला। इम्फाल की घेराबंदी में विफल होने पर आईएनए को वापसी करनी पड़ी, और इसके बाद झाँसी की रानी रेजिमेंट की सैनिकों को मौनय्वा और मेम्यो में तैनात आईएनए सैनिकों की राहत और देखभाल का काम सौंपा गया। इस रेजिमेंट ने इसके बाद किसी भी युद्ध में हिस्सा नहीं लिया।

समाप्ति[संपादित करें]

रंगून के पतन, और शहर के साथ साथ बर्मा से भी आज़ाद हिंद सरकार और सुभाष चंद्र बोस की वापसी के बाद, बर्मा में ही रेजिमेंट की कुछ इकाइयों को भंग कर दिया गया, जबकि शेष इकाइयां वापस जा रही जापानी सेनाओं के साथ ही लौट गई। पीछे हटने के दौरान इन्हें कई हवाई हमलों, और साथ ही साथ बर्मी प्रतिरोध बलों से कुछ संघर्षों का भी सामना करना पड़ा। इन हमलों के पीड़ितों की कुल संख्या ज्ञात नहीं है। कुछ समय बाद रेजिमेंट को पूरी तरह भंग कर दिया गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Pradeep, K. (25 July 2012). "A revolutionary and a singer". The Hindu. मूल से 31 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 February 2015.
  2. Joyce Lebra, Women Against the Raj: The Rani of Jhansi Regiment (2008) ch. 1–2
  3. Edwardes, Michael (1975) Red Year: the Indian Rebellion of 1857. London: Sphere; p. 126
  4. "Indian National Army: Women's Regiment: How It All Began". www.nas.gov.sg. National Archives of Singapore. 2003. मूल से 2 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 February 2015.
  5. Lebra, ch 2
  6. "Indian National Army: Women's Regiment: Life in camp". www.nas.gov.sg. National Archives of Singapore. 2003. मूल से 2 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 February 2015.
  7. Sahgal, Lakshmi (23 July 2012). "My days in the Indian National Army by Lakshmi Sahgal". NDTV-New Delhi Television. मूल से 18 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 February 2015.
  8. Meeta Deka, Women's agency and social change : Assam and beyond (2013) ch. 4

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

विस्तृत पठन[संपादित करें]