वुल्फ़-रायेट तारा
वुल्फ़-रायेट तारे वह बड़ी आयु के भीमकाय तारे होते हैं जो स्वयं से उत्पन्न तारकीय आंधी के कारण तेज़ी से द्रव्यमान (मास) खो रहे होते हैं। इनसे उभरने वाली आंधी की गति २,००० किलोमीटर प्रति सैकिंड तक की होती है। हमारा सूरज हर वर्ष लगभग १०-१४ सौर द्रव्यमान (यानि सूरज के द्रव्यमान के सौ खरबवे हिस्से के बराबर) खोता है। इसकी तुलना में वुल्फ़-रायेट तारे हर वर्ष १०-५ सौर द्रव्यमान (यानि सूरज के द्रव्यमान के दस हज़ारवे हिस्से के बराबर) खोते हैं।[1] ऐसे तारों का सतही तापमान बहुत अधिक होता है: २५,००० से ५०,००० कैल्विन तक। अक्सर ऐसे तारों के इर्द-गिर्द इनके आंधी से नीहरिकाएँ (नेब्युला) बन जाते हैं।
अनुसंधान इतिहास
[संपादित करें]सन् १८६७ में फ़्रांस की राजधानी में स्थित पैरिस वेधशाला (ऑब्ज़ॅर्वाटोरी) में काम कर रहे चार्लज़ वुल्फ़ (Charles Wolf) और झ़ोर्झ़ राए (Georges Rayet, 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें) नामक खगोलशास्त्रियों ने देखा के हंस तारामंडल में तीन तारों के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में कुछ विचित्र प्रसारण लकीरें थीं जो स्वयं तारों से नहीं आ रही थीं।[2] कई वर्षों तक यह एक रहस्य बना रहा कि यह लकीरें कहाँ से आ रही हैं। इन तारों को फ़्रांस में "वुल्फ़-राए तारे" और अंग्रेज़ी-भाषी देशों में "वुल्फ़-रायेट तारे" कहा जाने लगा। बाद में जाकर यह ज्ञात हुआ के यह तारे से उत्पन्न तारकीय आंधी में उपस्थित हाइड्रोजन, हीलियम, कार्बन, आक्सीजन और नाइट्रोजन गैसों से आ रही थीं। १९३८ में, अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने वुल्फ़-रायेट तारों को उनके वर्णक्रम के अनुसार दो श्रेणियों में विभाजित किया: डब्ल्यू॰ऍन॰ तारे (WN, जिनके वर्णक्रम में नाइट्रोजन की लकीरें भारी होती हैं) और डब्ल्यू॰सी॰ तारे (WC, जिनके वर्णक्रम में कार्बन की लकीरें भारी होती हैं)।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Cannizzo, J. K. (जून 3, 1998). "Ask an Astrophysicist: Wolf-Rayet Stars". Nasa.gov. मूल से 7 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अगस्त 2011.
- ↑ Huggins, William; Huggins, Mrs. (1890-1). "On Wolf and Rayet's Bright-Line Stars in Cygnus". Proceedings of the Royal Society of London. 49 (296–301): 33–46. डीओआइ:10.1098/rspl.1890.0063. बिबकोड:1890RSPS...49...33H.
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