"उत्तरायण सूर्य": अवतरणों में अंतर

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== मकर संक्रांति और उत्तरायण भ्रम ==
== मकर संक्रांति और उत्तरायण भ्रम ==


मकर संक्राति और उत्तरायण अलग अलग खगोलीय घटनाएँ हैं। आधुनिक कलेण्डर इस प्रकार से बनाया गया है कि अयनांत और विषुव सदैव उसी तिथि पर रहें अर्थात अधिवर्ष का थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़ दिया जाए तो मौटे तौर दिन रात बराबर सदैव २०/२१ मार्च और २२/२३ सितम्बर हो ही होंगे। इसी प्रकार अयनांत (उत्तरायण , दक्षिणायन दशा का आरम्भ और अंत )भी २१/२२ दिसंबर और २०/२१ जून को ही होंगे। इससे कलेण्डर के सापेक्ष मौसम सदैव एक से ही रहेंगे।
[[मकर संक्राति]] और उत्तरायण अलग अलग खगोलीय घटनाएँ हैं। आधुनिक कलेण्डर इस प्रकार से बनाया गया है कि अयनांत और विषुव सदैव उसी तिथि पर रहें अर्थात अधिवर्ष का थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़ दिया जाए तो मौटे तौर दिन रात बराबर सदैव २०/२१ मार्च और २२/२३ सितम्बर हो ही होंगे। इसी प्रकार अयनांत (उत्तरायण , दक्षिणायन दशा का आरम्भ और अंत )भी २१/२२ दिसंबर और २०/२१ जून को ही होंगे। इससे कलेण्डर के सापेक्ष मौसम सदैव एक से ही रहेंगे।
लेकिन सूर्य का मकर में प्रवेश उत्तरायण के सापेक्ष आगे बढ़ता जा रहा है । ये बदलाव करीब ७० वर्षों में एक दिन का होता है। इस प्रकार अगले ७० वर्षों में मकर संक्रान्ति एक और दिन आगे बढ़ जाएगी और १६ जनवरी को होगी।
लेकिन सूर्य का मकर में प्रवेश उत्तरायण के सापेक्ष आगे बढ़ता जा रहा है । ये बदलाव करीब ७० वर्षों में एक दिन का होता है। इस प्रकार अगले ७० वर्षों में मकर संक्रान्ति एक और दिन आगे बढ़ जाएगी और १६ जनवरी को होगी।
अब से करीब १७५० वर्ष पूर्व करीब ७० वर्षों के समय अन्तराल तक मकर संक्रान्ति और उत्तरायण एक ही दिन होते थे। तभी ये शायद ये भ्रम प्रचलित हैं कि मकर संक्रान्ति ही उत्तरायण है।
अब से करीब १७५० वर्ष पूर्व करीब ७० वर्षों के समय अन्तराल तक मकर संक्रान्ति और उत्तरायण एक ही दिन होते थे। तभी ये शायद ये भ्रम प्रचलित हैं कि मकर संक्रान्ति ही उत्तरायण है।

19:00, 27 अक्टूबर 2021 का अवतरण

सूर्य के उच्चतम बिंदु का उत्तर व दक्षिण में जाना

उत्तरायण सूर्य, सूर्य की एक दशा है।'उत्तरायण' (= उत्तर + अयन) का शाब्दिक अर्थ है - 'उत्तर में गमन'। जब सूर्य की दशा उत्तरायण है तब क्षितिज पर यदि सूर्योदय होने के बिंदु को प्रतिदिन देखा जाए तो वह बिंदु धीरे धीरे उत्तर की और बढ़ता प्रतीत होगा । इसी प्रकार दिन के समय सूर्य के उच्चतम बिंदु को यदि दैनिक तौर पर देखा जाये तो उत्तरायण के दौरान वह बिंदु हर दिन उत्तर की और बढ़ता हुआ दिखेगा। उत्तरायण की दशा में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में दिन लम्बे होते जाते हैं और रातें छोटी। उत्तरायण का आरंभ 14 जनवरी को होता है। यह दशा 21 जून तक रहती है। इस दिन अयनांत की स्थिति आती है उसके बाद दक्षिणायन प्रारंभ होता है जिसमें दिन छोटे और रात लम्बी होती जाती है , फिर एक और अयनांत है और फिर से उत्तरायण आरम्भ हो जाता है।

मकर संक्रांति उत्तरायण से भिन्न है। मकर संक्रांति वर्तमान शताब्दी में 14 जनवरी को होती है।

Illustration of the observed effect of Earth's axial tilt.
उत्तरायण २१ या २२ दिसम्बर को होता है

मकर संक्रांति और उत्तरायण भ्रम

मकर संक्राति और उत्तरायण अलग अलग खगोलीय घटनाएँ हैं। आधुनिक कलेण्डर इस प्रकार से बनाया गया है कि अयनांत और विषुव सदैव उसी तिथि पर रहें अर्थात अधिवर्ष का थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़ दिया जाए तो मौटे तौर दिन रात बराबर सदैव २०/२१ मार्च और २२/२३ सितम्बर हो ही होंगे। इसी प्रकार अयनांत (उत्तरायण , दक्षिणायन दशा का आरम्भ और अंत )भी २१/२२ दिसंबर और २०/२१ जून को ही होंगे। इससे कलेण्डर के सापेक्ष मौसम सदैव एक से ही रहेंगे। लेकिन सूर्य का मकर में प्रवेश उत्तरायण के सापेक्ष आगे बढ़ता जा रहा है । ये बदलाव करीब ७० वर्षों में एक दिन का होता है। इस प्रकार अगले ७० वर्षों में मकर संक्रान्ति एक और दिन आगे बढ़ जाएगी और १६ जनवरी को होगी। अब से करीब १७५० वर्ष पूर्व करीब ७० वर्षों के समय अन्तराल तक मकर संक्रान्ति और उत्तरायण एक ही दिन होते थे। तभी ये शायद ये भ्रम प्रचलित हैं कि मकर संक्रान्ति ही उत्तरायण है।

किसी एक तिथि से आगे बढ़ने के बाद मकर संक्रान्ति का पुनः उसी तिथि पर आ जाना करीब २६००० वर्षों बाद होगा। माना जाता है कि इस अवधि को ही महायुग कहा गया है।

यह भी देखें

दक्षिणायन

अयनांत

मकर संक्रांति

विषुव

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ