"पत्रकारिता": अवतरणों में अंतर

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:'''सी. जी. मूलर''' ने बिल्कुल सही कहा है कि-
:'''सी. जी. मूलर''' ने बिल्कुल सही कहा है कि-
: ''सामायिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं ठीक-ठाक प्रस्तुतीकरण होता है।''
: ''सामायिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं ठीक-ठाक प्रस्तुतीकरण होता है।''
:''(Journilism is business of timely knowledge the business of obtaining the necessary facts, of evaluating them carefully and of presenting them fully and of acting on them wisely.)''
:''(Journilism is business of timely knowledge the business of obtaining the necessary facts, of evaluating them carefully and of presenting them fully and of acting on them wisely.)


:'''डॉ॰ अर्जुन तिवारी''' के कथानानुसार-
:'''डॉ॰ अर्जुन तिवारी''' के कथानानुसार-

08:24, 8 जनवरी 2021 का अवतरण

पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि। बदलते वक्त के साथ बाजारवाद और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए।

परिभाषा

पत्रकारिता शब्द अंग्रेज़ी के "जर्नलिज़्म" (Journalism) का हिंदी रूपांतर है। शब्दार्थ की दृष्टि से "जर्नलिज्म" शब्द 'जर्नल' से निर्मित है और इसका आशय है 'दैनिक'। अर्थात जिसमें दैनिक कार्यों व सरकारी बैठकों का विवरण हो। आज जर्णल शब्द 'मैगजीन' का द्योतक हो चला है। यानी, दैनिक, दैनिक समाचार-पत्र या दूसरे प्रकाशन, कोई सर्वाधिक प्रकाशन जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के समाचार हो। ( डॉ॰ हरिमोहन एवं हरिशंकर जोशी- खोजी पत्रकारिता, तक्षशिला प्रकाशन )

पत्रकारिता लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है। प्रतिपल परिवर्तित होनेवाले जीवन और जगत का दर्शन पत्रकारिता द्वारा ही संभंव है। परिस्थितियों के अध्ययन, चिंतन-मनन और आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति और दूसरों का कल्याण अर्थात् लोकमंगल की भावना ने ही पत्रकारिता को जन्म दिया।

सी. जी. मूलर ने बिल्कुल सही कहा है कि-
सामायिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं ठीक-ठाक प्रस्तुतीकरण होता है।
(Journilism is business of timely knowledge the business of obtaining the necessary facts, of evaluating them carefully and of presenting them fully and of acting on them wisely.)
डॉ॰ अर्जुन तिवारी के कथानानुसार-
ज्ञान और विचारों को समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारों के कार्यो, कर्तव्यों और लक्ष्यों का विवेचन होता है। पत्रकारिता समय के साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है।
डॉ बद्रीनाथ कपूर के अनुसार - पत्रकारिता पत्र पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख एकत्रित तथा संपादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है |
हिंदी शब्द सागर के अनुसार- पत्रकार का काम या व्यवसाय पत्रकारिता है|
श्री प्रेमनाथ चतुर्वेदी के अनुसार- पत्रकारिता विशिष्ट देश, काल और परिस्थिति के आधार पर तथ्यों का, परोक्ष मूल्य का संदर्भ प्रस्तुत करती है |
टाइम्स पत्रिका के अनुसार- पत्रकारिता इधर-उधर उधर से एकत्रित, सूचनाओं का केंद्र, जो सही दृष्टि से संदेश भेजने का काम करता है, जिससे घटनाओं का सहीपन को देखा जाता है|
डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र के अनुसार- पत्रकारिता वह विद्या है जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्तव्यों, और उद्देश्यों का विवेचन किया जाता है| जो अपने युग और अपने संबंध में लिखा जाए वह पत्रकारिता है|
डॉ भुवन सुराणा के अनुसार- पत्रकारिता वह धर्म है जिसका संबंध पत्रकार के उस धर्म से है जिसमें वह तत्कालिक घटनाओं और समस्याओं का अधिक सही और निष्पक्ष विवरण पाठक के समक्ष प्रस्तुत करता है|
डॉ अवनीश सिंह चौहान के अनुसार- तथ्यों, सूचनाओं एवं विचारों को समालोचनात्मक एवं निष्पक्ष विवेचन के साथ शब्द, ध्वनि, चित्र, चलचित्र, संकेतों के माध्यम से देश-दुनिया तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह एक ऐसी कला है जिससे देश, काल और स्थिति के अनुसार समाज को केंद्र में रखकर सारगर्भित एवं लोकहितकारी विवेचन प्रस्तुत किया जा सकता है।

उपरोक्त परिभाषाएं के आधार पर हम कह सकते हैं कि पत्रकारिता जनता को समसामयिक घटनाएं वस्तुनिष्ठ तथा निष्पक्ष रुप से उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण कार्य है |सत्य की आधार शीला पर पत्रकारिता का कार्य आधारित होता है तथा जनकल्याण की भावना से जुड़कर पत्रकारितासामाजिक परिवर्तन का साधन बन जाता है|

पत्रकारिता का स्वरूप और विशेषतायें

सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाआें को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) भी कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप नहीं हासिल किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए समाज ने ही दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये।

पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डाले तो स्वतंत्रता के पूर्व पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई। उस दौर में पत्रकारिता ने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने के साथ-साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से जोड़े रखा।

इंटरनेट और सूचना के आधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और भलाई से ही जुड़ा है, किंतु कभी कभार इसका दुरपयोग भी होने लगा है।

संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होनेवाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद्द तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोन का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।

इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और अतंर्गततथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी साधनों पर अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत है कि यह बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आने पाती। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता हो स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए, और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारोंके प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे।

इतिहास

पत्रकारिता के प्रमुख रूप या प्रकार

खोजी पत्रकारिता

मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है। उसे वह सब जानना अच्छा लगता है जो सार्वजनिक नहीं हो अथवा जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही हो। मनुष्य यदि पत्रकार हो तो उसकी यही कोशिश रहती है कि वह ऐसी गूढ़ बातें या सच उजागर करे जो रहस्य की गहराइयों में कैद हो। सच की तह तक जाकर उसे सतह पर लाने या उजागर करने को ही हम अन्वेषी या खोजी पत्रकारिता कहते हैं।

खोजी पत्रकारिता एक तरह से जासूसी का ही दूसरा रूप है जिसमें जोखिम भी बहुत है। यह सामान्य पत्रकारिता से कई मायनों में अलग और आधिक श्रमसाध्य है। इसमें एक-एक तथ्य और कड़ियों को एक दूसरे से जोड़ना होता है तब कहीं जाकर वांछित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। कई बार तो पत्रकारों द्वारा की गई कड़ी मेहनत और खोज को बीच में ही छोड़ देना पड़ता है, क्योंकि आगे के रास्ते बंद हो चुके होते हैं। पत्रकारिता से जुड़ी पुरानी घटनाआें पर नजर दौड़ायें तो माई लाई कोड, वाटरगेट कांड, जैक एंडर्सन का पेंटागन पेपर्स जैसे आंतरराष्ट्रीय कांड तथा सीमेंट घोटाला कांड, बोफोर्स कांड, ताबूत घोटाला कांड तथा जैसे राष्ट्रीय घोटाले खोजी पत्रकारिता के चर्चित उदाहरण हैं। ये घटनायें खोजी पत्रकारिता के उस दौर की हैं जब संचार क्रांति, इंटरनेट या सूचना का आधिकार (आर.टी.आई) जैसे प्रभावशाली अस्त्र पत्रकारों के पास नहीं थे। इन प्रभावशाली हथियारों के आस्तित्व में आने के बाद तो घोटाले उजागर होने का जैसे एक दौर ही शुर हो गया हाल के कुछ चर्चित घोटालों में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श घोटाला, ताज कारीडोर घोटाला आदि उल्लेखनीय हैं। जाने-माने पत्रकार जुलियन असांज के ‘विकीलिक्स’ ने तो ऐसे-ऐसे रहस्योद्घाटन किये जिनसे कई देशों की सरकारें तक हिल गई।

इंटरनेट और सूचना के आधिकार ने पत्रकारों और पत्रकारिता की धार को अत्यंत पैना बना दिया लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि पत्रकारिता की आड़ में इन हथियारों का इस्तेमाल ’ब्लैकमेलिंग' जैसे गलत उद्देश्य के लिए भी होने लगा है। समय-समय पर हुये कुछ ’स्टिंग ऑपरेशन' और कई बहुचर्चित सी. डी. कांड इसके उदाहरण हैं।

स्टिंग पत्रकारिता के संदर्भ में फोटो जर्नलिज्म या फोटो पत्रकारिता से जुड़े जासूसों जिन्हें 'पापारात्सी' (Paparazzi) कहते हैं, की चर्चा भी जररी है। प्रिंसेस डायना की मौत के जिम्मेदार ’पैदराजा' ही थे। समाज की बेहतरी और उसकी भलाई के लिए खोजी पत्रकारिता का एक आवश्यक अंग जरर है, लेकिन इसे भी अपनी मर्यादाआें के घेरे में रहना चाहिए। खोजी पत्रकारिता साहसिक तक तो ठीक है, लेकिन इसका दुस्साहस न तो पत्रकारिता के हित में है और न ही समाज के।

खेल पत्रकारिता

खेल केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि वह अच्छे स्वास्थ्य, शारीरिक दमखम और बौद्धिक क्षमता का भी प्रतीक है। यही कारण है किं पूरी दुनिया में आति प्राचीनकाल से खेलों का प्रचलन रहा है। मल्ल-युद्ध, तीरंदाजी, घुड़सवारी, तैराकी, गुल्ली डंडा, पोलो रस्साकशी, मलखंभ, वॉल गेम्स, जैसे आउटडोर या मैदानी खेलों के अलावा चौपड़, चौसर या शतरंज जैसे इन्डोर खेल प्राचीनकाल से ही लोकप्रिय रहे हैं। आधुनिक काल में इन पुराने खेलों के अलावा इनसे मिलते जुलते खेलों तथा अन्य आधुनिक स्पर्धात्मक खेलों ने पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। खेल आधुनिक हों या प्राचीन, खेलों में होनेवाले अद्भुत कारनामों को जगजाहिर करने तथा उसका व्यापक प्रचार-प्रसार करने में खेल पत्रकारिता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आज पूरी दुनिया में खेल यदि लोकप्रियता के शिखर पर हैं तो उसका काफी कुछ श्रेय खेल पत्रकारिता को भी है।

आज स्थिति यह है कि समाचार पत्रों या पत्रिकाआें के अलावा किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्करप तब तक परिपूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसमें खेलों का भरपूर कवरेज नहीं हो। खेलों के प्रति मीडिया का यह रुझान ’डिमांड' और ’सप्लाई' पर आधारित है। आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया में आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा वर्ग का है जिसकी पहली पसंद विभिन्न खेल स्पर्धायें हैं, शायद यही कारण है कि पत्र-पत्रिकाआें में अगर सबसे आधिक कोई पन्ने पढ़ जाते हैं तो वह खेल से संबंधित होते है। प्रिंट मीडिया के अलावा टी. वी. चैनलों का भी एक बड़ा हिस्सा खेलों प्रसारण से जुड़ा होता है। खेल चैनल तो चौबीसों घंटे कोई न कोई खेल लेकर हाजिर ही रहते हैं। लाइव कवरेज या सीधा प्रसारण की बात तो छोड़िये रिकॉर्डेड पुराने मैचों के प्रति भी दर्शकों का रझान कहीं कम नहीं दिखाई देता। पाठकों और दर्शकों की खेलों के प्रति दीवनगी का ही नतीजा है कि आज खेल की दुनिया में अकूत धन बरस रहा है। धन, जो विज्ञापन के रप में हो चाहे पुरस्कार राशि के रप में न लुटानेवालों की कमी है न पानेवालों की। यह स्थिति आज की है। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब खेलों में धनदौलत को कोई नामोनिशान नहीं था। प्राचीन ओलिम्पिक खेलों जैसी विख्यात खेल स्पर्धा में भी विजेता को जैतून की पत्तियों के मुकुट का पुरस्कार दिया जाता था लेकिन वह ताज भी अनमोल हुआ करता था।

खेलों में धन-वर्षा का प्रारंभ कार्पोरेट जगत के इसमें प्रवेश से हुआ। कार्पोरेट जगत के प्रोत्साहन से कई खेल और खिलाड़ी प्रोफेशनल होने-लगे और खेल-स्पर्धाआें से लाखों करोड़ो कमाने लगे। आज टेनिस, फुटबॉल, बास्केट बॉल, बॉक्सिंग, स्क्वाश, गोल्फ जैसे खेलों में पैसोंकी बरसात हो रही है।

खेलों की लोकप्रियता और खिलाड़ियों की कमाई की बात करें तो आज क्रिकेट ने, जो दुनिया के गिने-चुने ही देशों में खेला जाता है, लोकप्रियता की नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। किक्रेट में कारपोरेट जगत के रझान के कारण नवोदित क्रिकेटर भी अन्य खिलाड़ियों की तुलना में अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।

खेलों में धन की बरसात में कोई बुराई नहीं है। इससे खेलों और खिलाड़ियों के स्तर में सुधार ही होता है, लेकिन उसका बदसूरत पहलू यह भी है कि खेलों में गलाकाट स्पर्धा के कारण इसमें फिक्सिंग और डोपिंग जैसी बुराइयों का प्रचलन भी बढ़ने लगा है। फिक्सिंग और डोपिंग जैसी बुराईयाँ न खिलाड़ियों के हित में हैं और न खलों के। खेल-पत्रकारिता की यह जिम्मेदारी है कि वह खेलों में पनप रही उन बुराईयों के किरध्द लगातार आवाज उठाती रहे। खेलों में खेल भावना की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए। खेल पत्रकारिता से यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि आम लोगों से जुड़े खेलों को भी उतना ही महत्त्व और प्रोत्साहन मिले जितना अन्य लोकप्रिय खेलों को मिल रहा है।

महिला पत्रकारिता

पत्रकारिता जैसे व्यापक और विशद विषय में महिला पत्रकारिता की अवधारणा भले ही कुछ अटपटी लगती है, किंतु नारी स्वातंत्र्य और समानता के इस युग में भी आधी दुनिया से जुड़े ऐसे अनेक पहलू हैं जिनके महत्त्व को देखते हुए महिला पत्रकारिता की अलग विधाकी आवश्यकता महसूस होती है।

पुरुष और नारी के भेद का सबसे बड़ा आधार तो उनकी अलग शारीरिक संरचना है। प्रकृति ने पुरुष को एक सांचे में ढाला है तो नारी को उससे अलग। एक समय था जब समाज पुरुष प्रधान हुआ था। पुरुष प्रधान समाज ने अपनी सुविधानुसार नारी को अबला बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया था। विकास के निरंतर तेज गति से बदलते दौर ने महिलाआें को प्रगति का समान अवसर दिया और महिलाआें ने अपनी प्रतिभा और लगन के बलबूते पर समाज के हर क्षेत्र में अपनी आमिट छाप छोड़ने का जो सिलसिला शुर किया वह लगातार जारी है। आज के दौर में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ महिलाआें की सशक्त उपस्थिति नहीं महसूस की जा रही हो। वर्तमान दौर में राजनीति, प्रशासन, सेना, शिक्षण, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीक, उद्योग, व्यापार, समाजसेवा आदि प्रमुख क्षेत्रों में महिलाआें ने अपनी प्रतिभा और क्षमता के आधार पर अपनी राह खुद बनाई है। कई क्षेत्रों में तो कड़ी स्पर्धा और कठिन चुनौती के बावजूद महिलाआें ने अपना शीर्ष मुकाम बनाया है। भारत की इंदिरा नूई, नैनालाल किद्वाई, चंदा कोचर आदि महिलाआें ने सफलता के जिस शिखर को छुआ है वे सभी कड़ी स्पर्धावाले क्षेत्र माने जाते हैं।

तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश तथा महिला पुरुष समानता के इस दौर में महिलाएँ अब घर की दहलीज लाँघकर बाहर आ चुकी हैं। प्रायः हर क्षेत्र में महिलाआें की उपस्थिति और भागीदारी नजर आती है। शिक्षा ने महिलाआें को अपने आधिकारों के प्रति जागरक बनाया है। अब महिलायें भी अपने करियर के प्रति सचेत हैं। महिला जागरण की इस नवचेतना के साथ-साथ महिलाआें के प्रति अत्याचार और अपराध के मामले भी बढ़े हैं। महिलाआें की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे कानून बने हैं और आवश्यकतानुसार उसमें समय-समय पर संशेधन भी किये जाते रहे हैं। महिलाआें को सामाजिक सुरक्षा दिलाने में महिला पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। महिला पत्रकारिता की आज अलग से जररत ही इसलिए हैं कि उसमें महिलाआें से जुड़े हर पहलू पर गौर किया जाए और महिलाआें के सर्वांगीण विकास में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। महिला पत्रकारिता की सार्थकता महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से जुड़ी है।

कुछ प्रमुख महिला पत्रकारः मृणाल पांडे, विमला पाटील, बरखा दत्त, सीमा मुस्तफा, तवलीन सिंह, मीनल बहोल, सत्या शरण, दीना वकील, सुनीता ऐरन, कुमुद संघवी चावरे, स्वेता सिंह, पूर्णिमा मिश्रा, मीमांसा मल्लिक, अंजना ओम कश्यप, नेहा बाथम, मिनाक्षी कंडवाल आदि। आज भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में महिला पत्रकारों के आने से देश के हर लड़की को अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही है।

बाल-पत्रकारिता

बाल-मन स्वभावतः जिज्ञासु और सरल होता है। जीवन की यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा अपने माता-पिता, शिक्षक और चारो तरफ के परिवेश से ही सीखता है। यही वह उम्र होती है जिसमें बच्चे के मास्तिष्क पर किसी भी घटना या सूचना की आमिट छाप पड़ जाती है। बच्चे के आस-पास की परिवेश उसके व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

एक समय था जब बच्चों को परीकथाओं, लोककथाआें, पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक कथाआें के माध्यमसे बहलाने-फुसलाने के साथ-साथ उनका ज्ञानवर्ध्दन किया जाता था। इन कथाआें का बच्चों के चारित्रिक विकास पर भी गहरा प्रभाव होता था।

आज संचार क्रांति के इस युग में बच्चों के लिए सूचनातंत्र काफी विस्तृत और अनंत हो गया है। कंंप्यूटर और इंटरनेट तक उनकी पहुँच ने उनकी जिज्ञास को असीमित बना दिया है। ऐसे में इस बात की भी आशंका और गुंजाइश बनी रहती है कि बच्चों तक वे सूचनायें भी पहुँच सकती हैं, जिससे उनके बालमन के भटकाव या विकृती भी संभव है। ऐसी स्थिती में बाल पत्रकारिता की सार्थक सोच और दिशा बच्चों को सही दिशा की ओर अग्रसर कर सकती है। बाल पत्रकारिता की दिशा में प्रिंट और विजुअल मीडिया (द्दश्य-माध्यम) के साथ-साथ इंटरनेट की भी अहम और जिम्मेदार भूमिका हो सकती है।

आर्थिक पत्रकारिता

कोई भी ऐसा व्यापारिक या आर्थिक व्यवहार जो व्यक्तियों, संस्थानों, राज्यों या देशों के बीच होता है, वह आर्थिक पत्रकारिता के सरोकारों में शामिल है।

आर्थिक पत्रकारिता आर्थिक व्यवहार या अर्थ-व्यवस्था के व्यापक गुण-दोषों की समीक्षा और विवेचना की धुरी पर केंद्रित है। जिस प्रकार पत्रकारिता का उद्ददेश्य किसी भी व्यवस्था के गुण-दोषों को व्यापक आधार पर प्रचारित प्रसारित करना है, उसी प्रकार आर्थिक पत्रकारिता की भूमिका तभी सार्थक है जब वह अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर सूक्ष्म नजर रखते हुए उसका विश्लेषण करे और समाज पर पड़ने वाले उसके प्रभावों का प्रचार-प्रसार करने में सक्षम हो। अर्थ-व्यवस्था के मामले में आर्थिक पत्रकारिता व्यवस्था और उपभोक्ता के बीच सेतु का काम करने के साथ-साथ एक सजग प्रहरी की भूमिका भी निभाती है।

आर्थिक उदारीकरण और विभिन्न देशों के आपसी व्यापारिक संबंधों ने पूरी दुनिया के आर्थिक परिद्दश्य को बहुत व्यापक बना दिया है। आज किसी भी देश की अर्थ-व्यवस्था बहुत कुछ आंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर निर्भर हो गई है। दुनिया के किसी कोने में मची आर्थिक हलचल या उथल-पुथल अन्य देशों की अर्थ-व्यवस्था को प्रभावित करने लगी है। सोने और चांदी जैसी बहुमूल्य धातुआें तथा कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से आज दुनिया की कोई भी अर्थ व्यवस्था अछूती नहीं रही।

यूरो, डॉलर, पाउंड, येन जैसी मुद्रायें तथा सोना, चाँदी और कच्चा तेल आज दुनिया की प्रमुख अर्थ व्यवस्थाआें की नब्ज बन चुकी हैं। कहने का तात्पर्य यह कि आज भले ही सभी देश अपनी अर्थव्यवस्थाआें के नियामक और नियंत्रक हों किन्तु विश्व की आर्थिक हलचलों से वे अछूते नहींहैं। हम कह सकते हैं कि आर्थिक परिद्दश्य पर पूरा विश्व व्यापक तौर पर एक बाजार नजर आता है। सभी देशों की अर्थ व्यवस्थायें आज इसी वैश्विक बाजार की गतिविधियों से निर्धारित होती हैं। मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों में होनेवाले महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तनों से दुनिया के प्रमुख देश भी प्रभावित होते है। आर्थिक पत्रकारिता के लिए विश्व का आर्थिक परिवेश एक चुनौती है। आर्थिक पत्रकारिता का यह दायित्व है कि विश्व की अर्थव्यवस्था को पभावित करनेवाले विभिन्न कारकों का विश्लेषण वह लगातार करती रहे तथा उनके गुण-दोषों के आधार पर एहतियाती उपयों की चर्चा आर्थिक पत्रकारिता का व्यापक हिस्सा बने।

आर्थिक पत्रकारिता के समक्ष एक बड़ी चुनौती करवंचना, कालाधन और जाली नोटों की समस्या है। कालाधन आज विकसित और विकासशील देशों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। काला धन भ्रष्टाचार से उपजता है और भ्रष्टाचार को ही बढ़ाता है। भ्रष्टाचार की व्यापकता अंततः देश के विकास में बाधक बनती है। कालाधन और आर्थिक अपराधों को उजागर करनेवाली खबरों के व्यापक प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी भी आर्थिक पत्रकारिता का हिस्सा है।

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हमारी अर्थ व्यवस्था काफी कुछ कृषि और कृषि उत्पादों पर निर्भर है। भारत में तेजी से विकसित हो रहे नगरों और महानगरों के बावजूद आज भी देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में ही बसती है। देश के बजट प्रावधानों का एक बड़ा हिस्सा कृषि एवं ग्रामीण विकास के मद में खर्च होता है। आर्थिक पत्रकारिता का एक महत्त्वपूर्ण आयाम कृषि एवं कृषि आधारित योजनाआें तथा ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का कवरेज भी है। ग्रामीण विकास के बिना देश का विकास और आर्थिक पत्रकारिता का उद्ददेश्य अधूरा ही रहेगा। व्यापार के परंपरागत क्षेत्रों के अलावा रिटेल, बीमा, संचार, विज्ञान एवं तकनीक जैसे व्यापार के आधुनिक क्षेत्रों ने आर्थिक पत्रकारिता को व्यापक क्षितिज और नया आयाम दिया है। देश की अर्थव्यवस्था को सही दिशा देकर उसे सुचार और सुद्दढ़ बनाना आर्थिक पत्रकारिता के लिए चुनौती तो है ही उसकी सार्थकता भी इसी में निहित है।

प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँः

इकॉनॉमिक टाईम्स, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैण्डर्ड, बिजनेस लाइन, मनी कंट्रोल, इकॉनामिक वेल्थ, मिंट, व्यापार आदि

पत्रकारिता के अन्य रूप

  • ग्रामीण पत्रकारिता
  • व्याख्यात्मक पत्रकारिता
  • विकास पत्रकारिता
  • संदर्भ पत्रकारिता
  • संसदीय पत्रकारिता
  • रेडियो पत्रकारिता
  • दूरदर्शन पत्रकारिता
  • फोटो पत्रकारिता
  • विधि पत्रकारिता
  • अंतरिक्ष पत्रकारिता
  • सर्वादय पत्रकारिता
  • चित्रपट पत्रकारिता
  • वॉचडॉग पत्रकारिता
  • पीत पत्रकारिता
  • पेज थ्री पत्रकारिता
  • एडवोकेसी पत्रकारिता
  • कृषी पत्रकारिता

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ