"भगवान": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
भगवान् का प्रत्यक्ष, प्रमाणित और संछिप्त मैं अर्थ
No edit summary
पंक्ति 35: पंक्ति 35:
भ = भूमि, ग = गगन, व = वायु, अ = अग्नि, न = नीर
भ = भूमि, ग = गगन, व = वायु, अ = अग्नि, न = नीर


इन्हीं पंचतत्वों का जीव मैं, जाग्रत अवस्था के साथ, प्रमाणित होना  या करना ही भगवान् हैं । प्रमाणित है कि  ये पंचतत्व जीव को हमेशा कुछ न कुछ किसी न किसी रूप मैं देते ही हैं, उसके बदले मैं हम इन्हें कुछ नहीं देते, प्रकृति मैं जो कुछ भी है सब इन्ही पंचतत्वों की देन ही है,ये भगवान् हमारे अंदर समाहित हैं और हम इनमें समाहित हैं इन पंचतत्वों की शक्तियों का अनुमान लगाना भी अकल्पनीय है, हर एक तत्त्व  दुसरे पर भारी है, हमारे गृह पर  मिट्टी जो हमें इतना सब देती है इससे तीन गुना बड़ा जल  का आकार है, जल, थल और आकाश मैं,चारों और वायु ही विधमान है, आग अपने जोश मैं हो तो पानी को वाष्प बना दे, यदि पानी अपने जोश मैं तो ज्वालामुखी को कुछ क्षणों मैं ठंडा कर दे, आकाश मैं हमारी पृथ्वी जैसे अनगिनत बिंदु हैं,यही सब भगवान् हैं प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि, इनका उपयोग करते समय, इनकी शक्तियों और उपयोगिता को ध्यान मैं रखकर इनके प्रति पूजा और सम्मान का भाव उत्पन्न करें, जैसे हमारी सनातन संस्कृति मैं होता आया है,इन्हीं पंचतत्वों को सम्मान देने की हमारी आध्यात्मिक क्रिया को धर्म कहते हैं, धर्म के विषय मैं और अधिक जानकारी के लिए, आप हमारी वेबसाइट <a href="http://dharmguru.com/">आगे पढ़ें</a>DHARMGURU.COM  पर VISIT कर सकते हैं
इन्हीं पंचतत्वों का जीव मैं, जाग्रत अवस्था के साथ, प्रमाणित होना  या करना ही भगवान् हैं । प्रमाणित है कि  ये पंचतत्व जीव को हमेशा कुछ न कुछ किसी न किसी रूप मैं देते ही हैं, उसके बदले मैं हम इन्हें कुछ नहीं देते, प्रकृति मैं जो कुछ भी है सब इन्ही पंचतत्वों की देन ही है,ये भगवान् हमारे अंदर समाहित हैं और हम इनमें समाहित हैं इन पंचतत्वों की शक्तियों का अनुमान लगाना भी अकल्पनीय है, हर एक तत्त्व  दुसरे पर भारी है, हमारे गृह पर  मिट्टी जो हमें इतना सब देती है इससे तीन गुना बड़ा जल  का आकार है, जल, थल और आकाश मैं,चारों और वायु ही विधमान है, आग अपने जोश मैं हो तो पानी को वाष्प बना दे, यदि पानी अपने जोश मैं तो ज्वालामुखी को कुछ क्षणों मैं ठंडा कर दे, आकाश मैं हमारी पृथ्वी जैसे अनगिनत बिंदु हैं,यही सब भगवान् हैं प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि, इनका उपयोग करते समय, इनकी शक्तियों और उपयोगिता को ध्यान मैं रखकर इनके प्रति पूजा और सम्मान का भाव उत्पन्न करें, जैसे हमारी सनातन संस्कृति मैं होता आया है,इन्हीं पंचतत्वों को सम्मान देने की हमारी आध्यात्मिक क्रिया को धर्म कहते हैं, धर्म के विषय मैं और अधिक जानकारी के लिए, आप हमारी वेबसाइट <nowiki>http://dharmguru.com</nowiki> पर VISIT कर सकते हैं

22:44, 14 मई 2020 का अवतरण

भगवान गुण वाचक शब्द है जिसका अर्थ गुणवान होता है। यह "भग" धातु से बना है ,भग के ६ अर्थ है:- १-ऐश्वर्य २-वीर्य ३-स्मृति ४-यश ५-ज्ञान और ६-सौम्यता जिसके पास ये ६ गुण है वह भगवान है।

संस्कृत भाषा में भगवान "भंज" धातु से बना है जिसका अर्थ हैं:- सेवायाम् । जो सभी की सेवा में लगा रहे कल्याण और दया करके सभी मनुष्य जीव ,भूमि गगन वायु अग्नि नीर को दूषित ना होने दे सदैव स्वच्छ रखे वो भगवान का भक्त होता है

संज्ञा

संज्ञा के रूप में भगवान् हिन्दी में लगभग हमेशा ईश्वर / परमेश्वर का मतलब रखता है। इस रूप में ये देवताओं के लिये नहीं प्रयुक्त होता।

विशेषण

विशेषण के रूप में भगवान् हिन्दी में ईश्वर / परमेश्वर का मतलब नहीं रखता। इस रूप में ये देवताओं, विष्णु और उनके अवतारों (राम, कृष्ण), शिव, आदरणीय महापुरुषों जैसे, महावीर, धर्मगुरुओं, गीता, इत्यादि के लिये उपाधि है। इसका स्त्रीलिंग भगवती है।

इन्हें भी देखें

मुख्य बात तो ये जान लें कि भगवान् एक उपाधि है आप किसी भी विशेष पुरुष को या अपने माता पिता या गुरु को भी, ये उपाधि प्रदान कर सकते हो,

पर आज के वैज्ञानिक युग मैं इंसान जब, अपने मित्र पड़ोस या परिवारी जनों से क्षुब्ध हो जाता है, फिर किसी ऐसे अस्तित्व की तलाश करता है,  जहाँ वो जब तक चाहे मांगता रहे, और देने वाले की आपसे, कुछ मांगने की उम्मीद ही न हो (क्योंकि उसके साथ जो घटित हो रहा था वो उससे उल्टा था जैसे जैसे वो जिम्मेदारी दिखा रहा था उसके रिश्ते उससे निरंतर अपनी मांग मैं इजाफा कर रहे थे संतुष्टि नहीं थी (न ही देने वाले को और न ही मांगने वाले को), पर यहाँ गतिवधि बिलकुल विपरीत है,मांगने वाला निरंतर मांग बढ़ा रहा है और देने वाला मुस्कुरा रहा है - अचम्भा,,, कौन है ये देने वाला - - तो ये दाता भगवान् ही हैं,, चलिए आगे बढ़ते हैं कौन है ये भगवान् और कहाँ रहते हैं ?, तो सबसे पहले इस शब्द का बेहतर अर्थ निकालने के लिए इसका संधि विच्छेद करते हैं

भगवान्  का संधिविच्छेद = भ + ग + व + अ + न

भ = भूमि, ग = गगन, व = वायु, अ = अग्नि, न = नीर

इन्हीं पंचतत्वों का जीव मैं, जाग्रत अवस्था के साथ, प्रमाणित होना  या करना ही भगवान् हैं । प्रमाणित है कि  ये पंचतत्व जीव को हमेशा कुछ न कुछ किसी न किसी रूप मैं देते ही हैं, उसके बदले मैं हम इन्हें कुछ नहीं देते, प्रकृति मैं जो कुछ भी है सब इन्ही पंचतत्वों की देन ही है,ये भगवान् हमारे अंदर समाहित हैं और हम इनमें समाहित हैं इन पंचतत्वों की शक्तियों का अनुमान लगाना भी अकल्पनीय है, हर एक तत्त्व  दुसरे पर भारी है, हमारे गृह पर  मिट्टी जो हमें इतना सब देती है इससे तीन गुना बड़ा जल  का आकार है, जल, थल और आकाश मैं,चारों और वायु ही विधमान है, आग अपने जोश मैं हो तो पानी को वाष्प बना दे, यदि पानी अपने जोश मैं तो ज्वालामुखी को कुछ क्षणों मैं ठंडा कर दे, आकाश मैं हमारी पृथ्वी जैसे अनगिनत बिंदु हैं,यही सब भगवान् हैं प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि, इनका उपयोग करते समय, इनकी शक्तियों और उपयोगिता को ध्यान मैं रखकर इनके प्रति पूजा और सम्मान का भाव उत्पन्न करें, जैसे हमारी सनातन संस्कृति मैं होता आया है,इन्हीं पंचतत्वों को सम्मान देने की हमारी आध्यात्मिक क्रिया को धर्म कहते हैं, धर्म के विषय मैं और अधिक जानकारी के लिए, आप हमारी वेबसाइट http://dharmguru.com पर VISIT कर सकते हैं