"महिला": अवतरणों में अंतर

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== बाहरी कडियाँ ==
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*  [https://www.celebrationishere.com/2019/12/the-best-way-to-success-of-women.html भारत की महिलायों के लिए सफ़ल होनें के आसान तरीके।]<ref>{{Cite web|url=https://www.celebrationishere.com/2019/12/the-best-way-to-success-of-women.html|title=The best way to success of women entrepreneurs in India in 2020|last=here|first=Celebration is|website=Celebration is here|access-date=2020-01-03}}</ref>
* [http://www.speed4haryana.com/women/index.html शक्ति का सशक्तीकरण] - राजेन्द्र गुप्त का नारी-सशक्तीकरण पर केंद्रित जालस्थल
*[http://www.speed4haryana.com/women/index.html शक्ति का सशक्तीकरण] - राजेन्द्र गुप्त का नारी-सशक्तीकरण पर केंद्रित जालस्थल
* [http://www.aadhiabadi.com/ आधी आबादी] (स्त्रियों से सम्बन्धित विषयों का सम्पूर्ण हिन्दी पोर्टल)
* [http://www.aadhiabadi.com/ आधी आबादी] (स्त्रियों से सम्बन्धित विषयों का सम्पूर्ण हिन्दी पोर्टल)
* [http://books.google.co.in/books?sitesec=reviews&id=UMPjshYI2XIC नारी कामसूत्र] (गूगल पुस्तक ; लेखिका - डॉ विनोद वर्मा)
* [http://books.google.co.in/books?sitesec=reviews&id=UMPjshYI2XIC नारी कामसूत्र] (गूगल पुस्तक ; लेखिका - डॉ विनोद वर्मा)

09:29, 3 जनवरी 2020 का अवतरण

महिला
बाएँ से दाएँ:

महिला (स्त्री, औरत या नारी) मानव के मादा स्वरूप को कहते हैं, जो स्त्रीलिंग है। महिला शब्द मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किन्तु कई संदर्भो में यह शब्द संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी प्रयोग मे लाया जाता है, जैसे: नारी-अधिकार। आम आनुवांशिक विकास वाली महिला आमतौर पर रजोनिवृत्ति तक यौवन से जन्म देने में सक्षम होती हैं। भारत की महिलायों के लिए सफ़ल होनें के आसान तरीके[1]

विभिन्न संस्कृतियों मे नारी

भारतीय नारी

वैदिक काल

भारतीय संस्कृति मे प्राचीन वैदिक काल से ही नारी का स्थान सम्माननीय रहा है और कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रफलाः क्रियाः।।[2] अर्थात् जिस कुल में स्त्रियों की पूजा होती है, उस कुल पर देवता प्रसन्न होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा, वस्त्र, भूषण तथा मधुर वचनादि द्वारा सत्कार नहीं होता है, उस कुल में सब कर्म निष्फल होते हैं। उन दिनों परिवार मातृसत्तात्मक था। खेती की शुरूआत तथा एक जगह बस्ती बनाकर रहने की शुरूआत नारी ने ही की थी, इसलिए सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ में नारी है किन्तु कालान्तर में धीरे-धीरे सभी समाजों में सामाजिक व्यवस्था मातृ-सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक होती गई और नारी समाज के हाशिए पर चली गई। आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी कहा गया है जो उस समय की नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना स्त्री और पुरूष के समान अधिकारों तथा उनके संतुलित संबंधों का परिचायक है। वैदिक काल में परिवार के सभी कार्यों और भूमिकाओं में पत्नी को पति के समान अधिकार प्राप्त थे। नारियां शिक्षा ग्रहण करने के अलावा पति के साथ यज्ञ का सम्पादन भी करतीं थीं। वेदों में अनेक स्थलों पर रोमाला, घोषाल, सूर्या, अपाला, विलोमी, सावित्री, यमी, श्रद्धा, कामायनी, विश्वम्भरा, देवयानी आदि विदुषियों के नाम प्राप्त होते हैं।[3]

 भारत की महिलायों के लिए सफ़ल होनें के आसान तरीके।[4]

वेदों की २१ प्रकाण्ड विदुषियाँ

देवमाता अदिति चारों वेदों की प्रकाण्ड विदुषि थी। ये दक्ष प्रजापति की कन्या एवं महर्षि कश्यप की पत्नी थीं। इन्होंने अपने पुत्र इन्द्र को वेदों एवं शास्त्रों की इतनी अच्छी शिक्षा दी कि उस ज्ञान की तुलना किसी से सम्भव नहीं थी, यही कारण है कि इन्द्र अपने ज्ञान के बल पर तीनों लोकों का अधिपति बना। अदिति को अजर-अमर माना जाता है।

देवसम्राज्ञी शची इन्द्र की पत्नी थीं, वे वेदों की प्रकांड विद्वान थी। ऋग्वेद के कई सूक्तों पर शची ने अनुसन्धान किया। शचीदेवी पतिव्रता स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। शची को इंद्राणी भी कहा जाता है। ये विदुषी के साथ-साथ महान नीतिवान भी थी। इन्होंने अपने पति द्वारा खोया गया सम्राज्य एवं पद प्रतिष्ठा ज्ञान के बल पर ही दोबारा प्राप्त की थी।

सती शतरूपा स्वायम्भुव मनु की पत्नी थीं। वे चारों वेदों की प्रकाण्ड विदुषी थी। जल प्रलय के बाद मनु और शतरूपा से ही दोबारा सृष्टि का आरम्भ हुआ। ये योगशास्त्र की भी प्रकाड विद्वान और साधक थीं।

शाकल्य देवी महाराज अश्वपति की पत्नी थीं। एक बार अश्वपति महाराज ने ऋषियों से कहा कि मैं राष्ट्र में कन्याओं का भी निर्वाचन चाहता हूं। देश में ऐसी कौन महान वेदों की विदुषी है जो देवकन्याओं को वेदों की शिक्षा प्रदान करे। ऋषियों ने बताया कि आपकी पत्नी से बढ़कर वेदों की विदुषी और कोई नहीं है। तो राजा ने अपनी पत्नी शाकल्य देवी को वनवास दे दिया, ताकि वे वनों में रहकर कन्याओं के गुरुकुल स्थापित करें, आश्रम बनाएं और उसमें देश की कन्याएं शिक्षा पाएं। उन्होंने ऐसा ही किया। शाकल्य देवी ऐसी पहली विदुषी हैं, जिन्होंने कन्याओं के लिए शिक्षणालय स्थापित किए थे।

सन्ध्या वेदों की प्रकाण्ड विद्वान थीं। इन्होंने महर्षि मेधातिथि को शास्त्रार्थ में पराजित किया। वे यज्ञ को सम्पन्न कराने वाली पहली महिला पुरोहित थी। उन्हीं के नाम पर प्रातः संध्या और सायं सन्ध्या का नामकरण हुआ।

विदुषी अरून्धती ब्रहर्षि वसिष्ठ जी की धर्मपत्नी थीं। ये भी वेदों की प्रकाण्ड विद्वान थी। अपने ज्ञान के बल पर ही ये एकमात्र ऐसी विदुषी हैं, जिन्होंने सप्तर्षि मंडल में ऋषि पत्नी के रूप में गौरवशाली स्थान पाया। महर्षि मेधातिथि के यज्ञ में ये बचपन से ही भाग लेती थीं और यज्ञ के बाद वेदों की बातों पर तर्क-वितर्क किया करती थी।

ब्रह्मवादिनी घोषा काक्षीवान् की कन्या थीं। इनको कोढ़ रोग हो गया था, लेकिन उसकी चिकित्सा के लिए इन्होंने वेद और आयुर्वेद का गहन अध्ययन किया और ये कोढी होते हुए भी विदुषी और ब्रह्मवादिनी बन गई। अश्विनकुमारों ने इनकी चिकित्सा की और ये अपने काल की विश्वसुन्दरी भी बनी।

ब्रह्मवादिनी विश्ववारा वेदों पर अनुसन्धान करने वाली महान विदुषी थीं। ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के द्वितीय अनुवाक के अटठाइसवें सूक्त षड्ऋकों का सरल रूपान्तरण इन्होंने ही किया था। अत्रि महर्षि के वंश में पैदा होने वली इस विदुषी ने वेदज्ञान के बल पर ऋषि पद प्राप्त किया था।

ब्रह्मवादिनी अपाला भी अत्रि मुनि के वंश में ही उत्पन्न हुई थीं। अपाला को भी कुष्ठ रोग हो गया था, जिसके कारण इनके पति ने इन्हें घर से निकाल दिया था। ये पिता के घर चली गई और आयुर्वेद पर अनुसंधान करने लगी। सोमरस की खोज इन्होंने ही की थी। इन्द्र देव ने सोमरस इनसे प्राप्त कर इनके ठीक होने में चिकित्सीय सहायता की। आयुर्वेद चिकित्सा से ये विश्वसुंदरी बन गई और वेदों के अनुसंधान में संलग्न हो गईं। ऋग्वेद के अष्टम मंडल के ९१वें सूक्त की १ से ७ तक ऋचाएं इन्होंने संकलित कीं।

विदुषी तपती आदित्य की पुत्री और सावित्री की छोटी बहन थी। देवलोक, दैत्यलोक, गान्धर्वलोक और नागलोक में उन दिनों उनसे अधिक सुन्दरी कोई और नहीं थी। वे वेदों की भी प्रकाण्ड विद्वान थी। उनके रूप और गुणों से प्रभावित होकर ही अयोध्या के महाराजा संवरण ने उनसे विवाह किया था। तपती ने अपने पुत्र कुरु को स्वयं वेदों की शिक्षा दी, जिनके नाम पर कुरूकुल प्रतिष्ठित हुआ।

ब्रह्मवादिनी वाक् अभृण ऋषि की कन्या थी। ये प्रसिद्ध ब्रह्मज्ञानिनीं थीं। इन्होंने अन्न पर अनुसन्धान किया और अपने युग में उन्नत खेती के लिए वेदों के आधार पर नए-नए बीजों को खेती के लिए किसानों को अनुसंधान से पैदा करके दिया।

ब्रह्मवादिनी रोमशा बृहस्पति की पुत्री और भावभव्य की धर्मपत्नी थी। इनके सारे शरीर में रोमावली थी, इससे इनके पति इन्हें नहीं चाहते थे। लेकिन इन्होंने ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया, ऐसी बातों का प्रचार किया, जिससे नारी शक्ति में बुद्धि का विकास होता हो।

ब्रह्मवादिनी गार्गी के पिता का नाम वचक्नु था, जिसके कारण इन्हें वाचक्नवी भी कहते हैं। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें गार्गी कहा जाता है। ये वेद शास्त्रों की महान विद्वान थी। इन्होंने शास्त्रार्थ में अपने युग में महान विद्वान महिर्ष याज्ञवल्क्य तक को हरा दिया था।

विदुषी मैत्रेयी महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं। इन्होंने पति के श्रीचरणों में बैठकर वेदों का गहन अध्ययन किया। पति परमेश्वर की उपाधि इन्हीं के कारण जग में प्रसिद्ध हुई, क्योंकि इन्होंने पति से ज्ञान प्राप्त किया था और फिर उस ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए कन्या गुरुकुल स्थापित किए।

विदुषी सुलभा महाराज जनक के राज्य की परम विदुषी थी। इन्होंने शास्त्रार्थ में राजा जनक को हराया एवं स्त्री शिक्षा के लिए शिक्षणालय की स्थापना की।

विदुषी लोपामुद्रा महिर्ष अगस्त्य की धर्मपत्नी थीं। ये विदर्भ देश के राजा की बेटी थी। राजकुल में जन्म लेकर भी ये सादा जीवन उच्च विचार की समर्थक थी, तभी तो इनके पति ने इन्हें कहा था- तुष्टोsअहमस्मि कल्याणि तव वृत्तेन शोभने, अर्थात् कल्याणी तुम्हारे सदाचार से मैं तुम पर बहुत संतुष्ट हूं। ये इतनी महान विदुषी थी कि एक बार इन्होंने अपने आश्रम में राम, सीता एवं लक्ष्मण को ज्ञान की बहुत सी बातों की शिक्षा दी थी।

विदुषी उशिज, ममता के पुत्र दीर्घतमा ऋषि की धर्मपत्नी थी। महर्षि काक्षीवान इन्हीं के सुपुत्र थे। इनके दूसरे पुत्र दीर्घश्रवा महान ऋषि थे। वेदों की शिक्षा इन्होंने ही अपने पुत्रों को प्रदान की थी। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ११६ से १२१ तक के मन्त्र पर अनुसंधान किया।

विदुषी प्रातिथेयी महर्षि दधिचि की धर्मपत्नी थी। ये विदर्भ देश के राजा की कन्या और लोपामुद्रा की बहिन थीं। इनका पुत्र पिप्पललाद बहुत बडा विद्वान हुआ है।

ममता दीर्घतमा ऋषि की माता थी। ये बहुत बडी विदुषी एवं ब्रह्मज्ञानसम्पन्ना थीं।

विदुषी भामती वाचस्पति मिश्र की पत्नी थी। ये वेदों की प्रकाण्ड विद्वान थी और इनके पति भी।

विदुषी विद्योत्तमा से परास्त होकर पण्डितों ने एक मूर्ख को मौनी गुरु बताकर संकेत से शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी। पण्डितों ने दो अंगुली और मुक्का आदि के अलग अर्थ बताकर विद्योत्तमा को परास्त घोषित करके मूर्ख से विवाह करने को विवश कर दिया। विद्योत्तमा ने पति से उष्ट्र को उसट सुनकर उसे रात में ही घर से भगाकर दरवाजा बंद कर दिया। ‘‘अनावृतकपाटं द्वारं देहि।’’-कुछ वर्ष बाद एक घनघोर रात्रि में पति ने पुकारा। विद्योत्तमा ने द्वार खोलकर कहा, ‘‘अस्ति कश्चित वाक् विशेषः।’’ पत्नी के उपरोक्त तीन शब्दों पर अस्ति से कुमार सम्भव महाकाव्य, कश्चित् से मेघदूत खण्डकाव्य और वाक्विशेषः से रघुवंश महाकाव्य की रचना पति महोदय ने कर डाली। इन तीनों कालजयी ग्रंथ के रचनाकार थे वही अतीत के मूर्ख, विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्कृत साहित्यकार अमर महाकवि कालिदास

मध्य काल

मध्य काल में भारतीय नारी की स्थिति में कुछ गिरावट आ गई थी। परम्परागत तौर पर मध्य वर्ग में नारी की भूमिका घरेलू कामों से जुडी़ रहती थी जैसे कि बच्चों की देखभाल करना और ज़्यादातर औरतें पैसे कमाने नहीं जाती थीं। मध्यम वर्ग में धन की कमी की वजह से नारी को काम / मजदूरी भी करनी पड़ती थी, हालांकि औरतों को दिये जाने वाले काम हमेशा मर्दों को दिये जाने वाले कामों से प्रतिष्ठा और पैसों दोनो में छोटे होते थे।

आधुनिक भारतीय नारी

शिक्षा और तकनीकी प्रचार प्रसार के फलस्वरूप अब भारतीय नारी की स्थिति में सुधार आया है तथा वह अब पुरुषों से काम नहीं हैं। कुछ महान भारतीय नारियों उदाहरण हैं :-

  • कल्पना चावला - अंतरिक्ष वैज्ञानिक और अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला
  • किरण बेदी - भारतीय पुलिस सेवा (इंडियन पुलिस सर्विस) में भर्ती होने वाली प्रथम महिला
  • पुनीता अरोड़ा - भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेंट जनरल के पद तक पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला
  • मीरा कुमार - भारतीय संसद के निचले सदन, लोक सभा की पहली महिला अध्यक्ष
  • एनी बेसेंट - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष

सन्दर्भ

  1. here, Celebration is. "The best way to success of women entrepreneurs in India in 2020". Celebration is here. अभिगमन तिथि 2020-01-03.
  2. मनुस्मृति अध्याय ३, श्लोक ५६
  3. शोध:मध्यकाल में नारी की स्थिति , उमेश चन्द्र (अलीगढ़), अप्रैल 2014
  4. here, Celebration is. "The best way to success of women entrepreneurs in India in 2020". Celebration is here. अभिगमन तिथि 2020-01-03.

बाहरी कडियाँ

  1. here, Celebration is. "The best way to success of women entrepreneurs in India in 2020". Celebration is here. अभिगमन तिथि 2020-01-03.