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श्यामा चरण शुक्ल एक [[भारत|भारतीय]] राजनेता है और [[मध्य प्रदेश]] के [[मुख्यमंत्री]] रह चुके है। |
श्यामा चरण शुक्ल एक [[भारत|भारतीय]] राजनेता है और [[मध्य प्रदेश]] के [[मुख्यमंत्री]] रह चुके है। |
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इनके पिता का नाम स्व.[[रविशंकर शुक्ल]] था। जो अविभाजित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे । |
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इनका जन्म 27.फरवरी, 1925 को रायपुर में हुआ था। |
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इनकी शैक्षणिक योग्यता बी.एस.सी.(टेक्नॉलाजी), एल.एल.बी. थी। |
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ये [[विद्या चरण शुक्ल]] के बडे भाई तथा [[अमितेश शुक्ल]] के पिता है। |
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==सार्वजनिक एवं राजनैतिक जीवन का संक्षिप्त विकास क्रम== |
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किशोरावस्था से राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न तथा विद्यार्थी कांग्रेस के विभिन्न पदों पर कार्य. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में पढ़ाई छोड़कर सक्रिय रूप से कार्य किए। |
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1952-63 में रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव बने। 1964 में म.प्र. कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई। 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। |
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1957 में पहली बार तदनंतर 1962, 1967 एवं 1972 में विधान सभा सदस्य निर्वाचित. 1963 में म.प्र. विधान सभा में कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक. 1967 में सिचाई मंत्री तथा अप्रैल, 1969 से जनवरी, 1972 तक मुख्यमंत्री. रायपुर के हिन्दी दैनिक ''महाकौशल'' के संस्थापक संपादक. अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन के पूर्व प्रमुख सदस्य. 23 दिसम्बर, 1975 से 30 अप्रैल, 1977 तक एवं 9 दिसम्बर, 1989 से 6 मार्च, 1990 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री. |
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1990 के विधान सभा चुनाव में पांचवी बार सदस्य निर्वाचित एवं 20 मार्च 1990 से नेता प्रतिपक्ष, मध्यप्रदेश विधान सभा. |
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==मुख्यमंत्री के कार्यकाल== |
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चतुर्थ विधान सभा (1967-1972) में दिनांक 26.03.1969 से 28.01.1972 तक, पंचम् विधान सभा (1972-1977) मे 23.12.1975 से 30.04.1977 एवं अष्टम् विधान सभा (1985-1990) मे 09.12.1989 से 01.03.1990 तक मुख्यमंत्री रहे। |
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==निधन== |
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दिनांक 14 फरवरी, 2007 को आपका देहावसान हो गया. |
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==किस्सा भूलने का== |
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राजनीति बड़ी अजीब शै है। इसमें कुर्सी संभालने वालों के बीच अजीबोगरीब खेल होते हैं। कभी तो ये इतने खुलेआम होते हैं कि पूरे देश की जनता सच जान जाती है, लेकिन कभी इतने गोपनीय कि सत्ता में बैठे मुख्यमंत्री स्तर के लोग भी गच्चा खा जाते हैं। आज का किस्सा ऐसी ही एक घटना को बयां करता है। |
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किस्सा यूं है कि सन् 1970 में पंडित श्यामाचरण शुक्ल अविभाजित मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ सन् 2000 में अलग हुआ) के मुख्यमंत्री थे। यूं तो उनकी कार्यशैली सधी हुई थी, लेकिन भोपाल और दिल्ली में पैठ रखने वाले कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता उनसे नाराज रहते थे। नतीजतन, तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस की सर्वेसर्वा इंदिरा गांधी तक शुक्ल जी की शिकायतें पहुंचती रहती थीं। |
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जब लगातार शिकायतें पहुंची तो इंदिरा गांधी ने भी शुक्ल जी के कामकाज पर नजर रखना शुरू कर दी। इसी बीच श्रीमती गांधी ने एक बार शुक्ल जी को दिल्ली बुलाया और कामकाज से असंतुष्टि जताते हुए उनके मंत्रिमंडल से छह मंत्रियों को हटाने के लिए कहा। शुक्ल जी ने हामी भर दी और भोपाल लौटआए। |
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दुर्भाग्य से वे भूल गए कि उन्हें किन छह मंत्रियों को हटाने के लिए कहा है, नतीजतन उन्होंने अनुमान से किन्हीं अन्य छह मंत्रियों को हटा दिया। इससे बवाल मच गया और श्रीमती गांधी शुक्ल के प्रति और नाराज होकर भड़क गईं। बाद में शुक्ल जी को इसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा। |
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==हरियाली के लिए जब 'अंगद के पांव' की तरह अड़ गए थे शुक्ल== |
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क्या वर्तमान दौर में ऐसा वाकया देखने को मिल सकता है कि 'हरियाली को बचाने के लिए कोई मुख्यमंत्री अपनी सरकार तक को दांव पर लगा दे?' मध्य प्रदेश में एक मुख्यमंत्री हुए हैं, जो हरियाली के लिए 'अंगद के पांव' की तरह अड़ गए थे। और अड़े भी तो ऐसे कि फिर दिल्ली स्थित आलाकमान से आए निर्देशों से भी दबाव में आने के बजाय टस से मस न हुए। |
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ये किस्सा अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पं. श्यामाचरण शुक्ल का है। एक बार वे विमान के जरिए अंबिकापुर से भोपाल लौट रहे थे। उनका जहाज जब मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक के ऊपर से गुजरा तो |
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वे यह देखकर आश्चर्य और दुख से भर गए कि मेकल पर्वत श्रेणी की तमाम हरियाली समाप्त हो चुकी है। |
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उन्होंने पायलट से विमान थोड़ा नीचे उड़ाने के लिए कहा। उन्होंने तब देखा कि वहां हिंडाल्को व बाल्को के एल्युमिनियम कारखानों के लिए बाक्साइट निकालने की खातिर भारी विस्फोट किए जा रहे हैं। सरकार ने तब शर्त रखी थी कि बाक्साइट खनन करने वाली कंपनियां जितने पेड़ काटेंगी, उतने ही लगाएंगी भी। |
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मगर मेकल पर्वत की खत्म हुई हरियाली देख शुक्ल समझ गए कि कंपनियों ने गड़बड़ की है। भोपाल पहुंचते ही उन्होंने बाक्साइट उत्खनन के लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिए। इससे प्रदेशभर में खनन कर रही कंपनियां भौचक रह गईं। आननफानन में बात दिल्ली पहुंचाई गई। |
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वहां से भी शुक्ल जी को लाइसेंस पुनः बहाल करने के संकेत दिए गए। किंतु वे नहीं माने। यह एक तरह से आलाकमान से पंगा लेने और अपनी सरकार पर संकट लेने जैसा था। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने उनका आदेश रद्द कर दिया, फिर भी वे अड़ गए। उनके कहने पर हाईकोर्ट में सरकार की ओर से दमदार तरीके से पक्ष रखा गया। अंततः कोर्ट ने भी कंपनियों को फटकारा व पेड़ लगाने के निर्देश दिए। |
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==सन्दर्भ== |
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https://mnaidunia.jagran.com/national-when-shyama-charan-shukla-did-mistake-1514425 |
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https://mnaidunia.jagran.com/national-when-shyama-charan-shukla-stayed-firm-for-environment-1642569 |
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http://mpvidhansabha.nic.in/cm-shyamacharan.htm |
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[[श्रेणी:मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री]] |
[[श्रेणी:मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री]] |
14:57, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण
श्यामा चरण शुक्ल एक भारतीय राजनेता है और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है।
इनके पिता का नाम स्व.रविशंकर शुक्ल था। जो अविभाजित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे । इनका जन्म 27.फरवरी, 1925 को रायपुर में हुआ था। इनकी शैक्षणिक योग्यता बी.एस.सी.(टेक्नॉलाजी), एल.एल.बी. थी।
ये विद्या चरण शुक्ल के बडे भाई तथा अमितेश शुक्ल के पिता है।
सार्वजनिक एवं राजनैतिक जीवन का संक्षिप्त विकास क्रम
किशोरावस्था से राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न तथा विद्यार्थी कांग्रेस के विभिन्न पदों पर कार्य. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में पढ़ाई छोड़कर सक्रिय रूप से कार्य किए। 1952-63 में रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव बने। 1964 में म.प्र. कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई। 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। 1957 में पहली बार तदनंतर 1962, 1967 एवं 1972 में विधान सभा सदस्य निर्वाचित. 1963 में म.प्र. विधान सभा में कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक. 1967 में सिचाई मंत्री तथा अप्रैल, 1969 से जनवरी, 1972 तक मुख्यमंत्री. रायपुर के हिन्दी दैनिक महाकौशल के संस्थापक संपादक. अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन के पूर्व प्रमुख सदस्य. 23 दिसम्बर, 1975 से 30 अप्रैल, 1977 तक एवं 9 दिसम्बर, 1989 से 6 मार्च, 1990 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री.
1990 के विधान सभा चुनाव में पांचवी बार सदस्य निर्वाचित एवं 20 मार्च 1990 से नेता प्रतिपक्ष, मध्यप्रदेश विधान सभा.
मुख्यमंत्री के कार्यकाल
चतुर्थ विधान सभा (1967-1972) में दिनांक 26.03.1969 से 28.01.1972 तक, पंचम् विधान सभा (1972-1977) मे 23.12.1975 से 30.04.1977 एवं अष्टम् विधान सभा (1985-1990) मे 09.12.1989 से 01.03.1990 तक मुख्यमंत्री रहे।
निधन
दिनांक 14 फरवरी, 2007 को आपका देहावसान हो गया.
किस्सा भूलने का
राजनीति बड़ी अजीब शै है। इसमें कुर्सी संभालने वालों के बीच अजीबोगरीब खेल होते हैं। कभी तो ये इतने खुलेआम होते हैं कि पूरे देश की जनता सच जान जाती है, लेकिन कभी इतने गोपनीय कि सत्ता में बैठे मुख्यमंत्री स्तर के लोग भी गच्चा खा जाते हैं। आज का किस्सा ऐसी ही एक घटना को बयां करता है।
किस्सा यूं है कि सन् 1970 में पंडित श्यामाचरण शुक्ल अविभाजित मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ सन् 2000 में अलग हुआ) के मुख्यमंत्री थे। यूं तो उनकी कार्यशैली सधी हुई थी, लेकिन भोपाल और दिल्ली में पैठ रखने वाले कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता उनसे नाराज रहते थे। नतीजतन, तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस की सर्वेसर्वा इंदिरा गांधी तक शुक्ल जी की शिकायतें पहुंचती रहती थीं।
जब लगातार शिकायतें पहुंची तो इंदिरा गांधी ने भी शुक्ल जी के कामकाज पर नजर रखना शुरू कर दी। इसी बीच श्रीमती गांधी ने एक बार शुक्ल जी को दिल्ली बुलाया और कामकाज से असंतुष्टि जताते हुए उनके मंत्रिमंडल से छह मंत्रियों को हटाने के लिए कहा। शुक्ल जी ने हामी भर दी और भोपाल लौटआए।
दुर्भाग्य से वे भूल गए कि उन्हें किन छह मंत्रियों को हटाने के लिए कहा है, नतीजतन उन्होंने अनुमान से किन्हीं अन्य छह मंत्रियों को हटा दिया। इससे बवाल मच गया और श्रीमती गांधी शुक्ल के प्रति और नाराज होकर भड़क गईं। बाद में शुक्ल जी को इसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा।
हरियाली के लिए जब 'अंगद के पांव' की तरह अड़ गए थे शुक्ल
क्या वर्तमान दौर में ऐसा वाकया देखने को मिल सकता है कि 'हरियाली को बचाने के लिए कोई मुख्यमंत्री अपनी सरकार तक को दांव पर लगा दे?' मध्य प्रदेश में एक मुख्यमंत्री हुए हैं, जो हरियाली के लिए 'अंगद के पांव' की तरह अड़ गए थे। और अड़े भी तो ऐसे कि फिर दिल्ली स्थित आलाकमान से आए निर्देशों से भी दबाव में आने के बजाय टस से मस न हुए।
ये किस्सा अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पं. श्यामाचरण शुक्ल का है। एक बार वे विमान के जरिए अंबिकापुर से भोपाल लौट रहे थे। उनका जहाज जब मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक के ऊपर से गुजरा तो
वे यह देखकर आश्चर्य और दुख से भर गए कि मेकल पर्वत श्रेणी की तमाम हरियाली समाप्त हो चुकी है।
उन्होंने पायलट से विमान थोड़ा नीचे उड़ाने के लिए कहा। उन्होंने तब देखा कि वहां हिंडाल्को व बाल्को के एल्युमिनियम कारखानों के लिए बाक्साइट निकालने की खातिर भारी विस्फोट किए जा रहे हैं। सरकार ने तब शर्त रखी थी कि बाक्साइट खनन करने वाली कंपनियां जितने पेड़ काटेंगी, उतने ही लगाएंगी भी।
मगर मेकल पर्वत की खत्म हुई हरियाली देख शुक्ल समझ गए कि कंपनियों ने गड़बड़ की है। भोपाल पहुंचते ही उन्होंने बाक्साइट उत्खनन के लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिए। इससे प्रदेशभर में खनन कर रही कंपनियां भौचक रह गईं। आननफानन में बात दिल्ली पहुंचाई गई।
वहां से भी शुक्ल जी को लाइसेंस पुनः बहाल करने के संकेत दिए गए। किंतु वे नहीं माने। यह एक तरह से आलाकमान से पंगा लेने और अपनी सरकार पर संकट लेने जैसा था। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने उनका आदेश रद्द कर दिया, फिर भी वे अड़ गए। उनके कहने पर हाईकोर्ट में सरकार की ओर से दमदार तरीके से पक्ष रखा गया। अंततः कोर्ट ने भी कंपनियों को फटकारा व पेड़ लगाने के निर्देश दिए।
सन्दर्भ
https://mnaidunia.jagran.com/national-when-shyama-charan-shukla-did-mistake-1514425
https://mnaidunia.jagran.com/national-when-shyama-charan-shukla-stayed-firm-for-environment-1642569