"हंगपन दादा": अवतरणों में अंतर

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हवलदार '''हंगपन दादा''' [[भारतीय सेना]] के एक जवान थे जो 23 मई 2016 को उत्तरी कश्मीर के शमसाबाड़ी में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए।<ref>{{cite web | url=http://m.navbharattimes.indiatimes.com/photomazza/national-international-photogallery/martyred-hangpan-dada-of-assam-regiment-awarded-ashok-chakra/photomazaashow/53695628.cms | title=अशोक चक्र से सम्मानित हुए शहीद हंगपन दादा | publisher=नवभारत टाइम्स | accessdate=17 अगस्त 2016}}</ref> वीरगति प्राप्त करने से पूर्व उन्होंने 4 हथियारबंद आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा। इस शौर्य के लिए 15 अगस्त 2016 को उन्हें मरणोपरांत [[अशोक चक्र (पदक)|अशोक चक्र]] से सम्मानित किया गया। अशोक चक्र शांतिकाल में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।
==जीवन==
==जीवन==

03:22, 27 जनवरी 2017 का अवतरण

हवलदार
हंगपन दादा
AC
जन्म 02 अक्टूबर 1979
बोरदुरिया, अरुणाचल प्रदेश, भारत
देहांत मई 27, 2016
Naugam, Jammu and Kashmir, India
निष्ठा  भारत
सेवा/शाखा साँचा:Country data bharat (राष्ट्रीय राइफल्स)
सेवा वर्ष 1997-2016
उपाधि हवलदार
दस्ता असम रेजिमेंट
सम्मान अशोक चक्र

हवलदार हंगपन दादा भारतीय सेना के एक जवान थे जो 23 मई 2016 को उत्तरी कश्मीर के शमसाबाड़ी में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए।[1] वीरगति प्राप्त करने से पूर्व उन्होंने 4 हथियारबंद आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा। इस शौर्य के लिए 15 अगस्त 2016 को उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। अशोक चक्र शांतिकाल में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

जीवन

ये अरुणाचल प्रदेश के बोदुरिया गांव के रहने वाले हैं।[2]

मिलिट्री सेवा

मृत्यु

26 मई 2016 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के नौगाम सेक्टर में आर्मी ठिकानों का आपसी संपर्क टूट गया था। तब हवलदार हंगपन दादा को उनकी टीम के साथ भाग रहे आतंकवादियों का पीछा करने और उन्हें पकड़ने का जिम्मा सौंपा गया। इनकी टीम एलओसी के पास शामशाबारी माउंटेन पर करीब 13000 की फीट की ऊंचाई वाले बर्फीले इलाके में इतनी तेजी से आगे बढ़ी कि उन्होंने आतंकवादियों के बच निकलने का रास्ता रोक दिया। इसी बीच आतंकवादियों ने टीम पर फायरिंग शुरू कर दी। आतंकवादियों की तरफ से हो रही भारी फायरिंग की वजह से इनकी टीम आगे नहीं बढ़ पा रही थी। तब ये जमीन के बल लेटकर और पत्थरों की आड़ में छुपकर अकेले आतंकियों के काफी करीब पहुंच गए । फिर दो आतंकवादियों को मार गिराया। लेकिन इस गोलीबारी में वे बुरी तरह जख्मी हो गए। तीसरा आतंकवादी बच निकला और भागने लगा। दादा ने जख्मी होने के बाद भी उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया। इस दौरान दादा की इस आतंकी के साथ हाथापाई भी हुई। लेकिन इन्होंने इसे भी मार गिराया। इस एनकाउंटर में चौथा आतंकी भी मार गिराया गया।[2]

स्मारक

नवंबर 2016 में शिलांग के असम रेजीमेंटल सेंटर (एआरसी) में प्लेटिनियम जुबली सेरेमनी के दौरान एक एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक का नाम हंगपन के नाम पर रखा गया।[2]

सन्दर्भ

  1. "अशोक चक्र से सम्मानित हुए शहीद हंगपन दादा". नवभारत टाइम्स. अभिगमन तिथि 17 अगस्त 2016.
  2. शहीद हवलदार हंगपन को अशोक चक्र, कश्मीर में अकेले मार गिराए थे 4 आतंकी - दैनिक भास्कर - 26 जनवरी 2017