"महापरिनिब्बाण सुत्त": अवतरणों में अंतर

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'''महापरिनिब्बाण सुत्त''' ([[संस्कृत]]: महापरिनिर्वाण सूत्र) [[थेरवाद]] [[बौद्ध]] ग्रंथ [[त्रिपिटक]] के [[सुत्तपिटक]] का प्रथम निकाय [[दीघनिकाय]] का १६वाँ [[सूत्र]] है। यह [[महात्मा बुद्ध]] के देहान्त व परिनिर्वाण से सम्बन्धित है और त्रिपिटक का सबसे लम्बा सूत्र है। अपने विस्तृत विवरण के कारण इसे भगवान बुद्ध की मृत्यु के बारे में जानकारी का प्राथमिक स्रोत माना जाता है।<ref>Buddhism: Critical Concepts in Religious Studies, Paul Williams, Published by Taylor & Francis, 2005. page 190</ref>
'''महापरिनिब्बाण सुत्त''' ([[संस्कृत]]: महापरिनिर्वाण सूत्र) [[थेरवाद]] [[बौद्ध]] ग्रंथ [[त्रिपिटक]] के [[सुत्तपिटक]] का प्रथम निकाय [[दीघनिकाय]] का १६वाँ [[सूत्र]] है। यह [[महात्मा बुद्ध]] के देहान्त व परिनिर्वाण से सम्बन्धित है और त्रिपिटक का सबसे लम्बा सूत्र है। अपने विस्तृत विवरण के कारण इसे भगवान बुद्ध की मृत्यु के बारे में जानकारी का प्राथमिक स्रोत माना जाता है।<ref>Buddhism: Critical Concepts in Religious Studies, Paul Williams, Published by Taylor & Francis, 2005. page 190</ref>



19:15, 11 मार्च 2016 का अवतरण

त्रिपिटक

    विनय पिटक    
   
                                       
सुत्त-
विभंग
खन्धक परि-
वार
               
   
    सुत्त पिटक    
   
                                                      
दीघ
निकाय
मज्झिम
निकाय
संयुत्त
निकाय
                     
   
   
                                                                     
अंगुत्तर
निकाय
खुद्दक
निकाय
                           
   
    अभिधम्म पिटक    
   
                                                           
ध॰सं॰ विभं॰ धा॰क॰
पुग्॰
क॰व॰ यमक पट्ठान
                       
   
         

महापरिनिब्बाण सुत्त (संस्कृत: महापरिनिर्वाण सूत्र) थेरवाद बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के सुत्तपिटक का प्रथम निकाय दीघनिकाय का १६वाँ सूत्र है। यह महात्मा बुद्ध के देहान्त व परिनिर्वाण से सम्बन्धित है और त्रिपिटक का सबसे लम्बा सूत्र है। अपने विस्तृत विवरण के कारण इसे भगवान बुद्ध की मृत्यु के बारे में जानकारी का प्राथमिक स्रोत माना जाता है।[1]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Buddhism: Critical Concepts in Religious Studies, Paul Williams, Published by Taylor & Francis, 2005. page 190