"अवहट्ठ": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो बॉट: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[अपभ्रंश]] के ही परवर्ती रूप को ''''अवहट्ट'''' नाम दिया गया है। ग्यारहवीं से लेकर चौदहवीं शती के अपभ्रंश रचनाकारों ने अपनी भाषा को अवहट्ट कहा।
[[अपभ्रंश]] के ही परवर्ती रूप को ''''अवहट्ट'''' नाम दिया गया है। ग्यारहवीं से लेकर चौदहवीं शती के अपभ्रंश रचनाकारों ने अपनी भाषा को अवहट्ट कहा।


==परिचय==
== परिचय ==
कालक्रम से अपभ्रंश [[साहित्य]] की भाषा बन चुका था, इसे 'परिनिष्ठित अपभ्रंश' कह सकते हैं। यह परिनिष्ठित अपभ्रंश उत्तर भारत में [[राजस्थान]] से [[असम]] तक [[काव्य]]भाषा का रूप ले चुका था। लेकिन यहाँ यह भूल नहीं जाना चाहिए कि अपभ्रंश के विकास के साथ-साथ विभिन्न क्षेंत्रों की बोलियों का भी विकास हो रहा था और बाद में चलकर उन बोलियों में भी साहित्य की रचना होने लगी। इस प्रकार परवर्ती अपभ्रंश और विभिन्न प्रदेशों की विकसित बोलियों के बीच जो अपभ्रंश का रूप था और जिसका उपयोग साहित्य रचना के लिए किया गया उसे ही 'अवहट्ठ' कहा गया है।
कालक्रम से अपभ्रंश [[साहित्य]] की भाषा बन चुका था, इसे 'परिनिष्ठित अपभ्रंश' कह सकते हैं। यह परिनिष्ठित अपभ्रंश उत्तर भारत में [[राजस्थान]] से [[असम]] तक [[काव्य]]भाषा का रूप ले चुका था। लेकिन यहाँ यह भूल नहीं जाना चाहिए कि अपभ्रंश के विकास के साथ-साथ विभिन्न क्षेंत्रों की बोलियों का भी विकास हो रहा था और बाद में चलकर उन बोलियों में भी साहित्य की रचना होने लगी। इस प्रकार परवर्ती अपभ्रंश और विभिन्न प्रदेशों की विकसित बोलियों के बीच जो अपभ्रंश का रूप था और जिसका उपयोग साहित्य रचना के लिए किया गया उसे ही 'अवहट्ठ' कहा गया है।


डॉ. [[सुनीतिकुमार चटर्जी]] ने बतलाया है कि [[शौरसेनी]] अपभ्रंश अर्थात् अवहट्ठ मध्यदेश के अलावा बंगाल आदि प्रदेशों में भी काव्यभाषा के रूप में अपना आधिपत्य जमाए हुए था।
डॉ. [[सुनीतिकुमार चटर्जी]] ने बतलाया है कि [[शौरसेनी]] अपभ्रंश अर्थात् अवहट्ठ मध्यदेश के अलावा बंगाल आदि प्रदेशों में भी काव्यभाषा के रूप में अपना आधिपत्य जमाए हुए था।


==इन्हें भी देखें==
== इन्हें भी देखें==
*[[प्राकृत]]
*[[प्राकृत]]
*[[पालि]]
*[[पालि]]
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
*[[कीर्तिलता]] - अवहट्ट में रचित ग्रन्थ
*[[कीर्तिलता]] - अवहट्ट में रचित ग्रन्थ


==बाहरी कड़ियाँ==
== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.mobi.bharatdiscovery.org/india/अवहट्ट_भाषा अवहट्ट भाषा] (भारतकोष)
*[http://www.mobi.bharatdiscovery.org/india/अवहट्ट_भाषा अवहट्ट भाषा] (भारतकोष)



11:50, 3 सितंबर 2014 का अवतरण

अपभ्रंश के ही परवर्ती रूप को 'अवहट्ट' नाम दिया गया है। ग्यारहवीं से लेकर चौदहवीं शती के अपभ्रंश रचनाकारों ने अपनी भाषा को अवहट्ट कहा।

परिचय

कालक्रम से अपभ्रंश साहित्य की भाषा बन चुका था, इसे 'परिनिष्ठित अपभ्रंश' कह सकते हैं। यह परिनिष्ठित अपभ्रंश उत्तर भारत में राजस्थान से असम तक काव्यभाषा का रूप ले चुका था। लेकिन यहाँ यह भूल नहीं जाना चाहिए कि अपभ्रंश के विकास के साथ-साथ विभिन्न क्षेंत्रों की बोलियों का भी विकास हो रहा था और बाद में चलकर उन बोलियों में भी साहित्य की रचना होने लगी। इस प्रकार परवर्ती अपभ्रंश और विभिन्न प्रदेशों की विकसित बोलियों के बीच जो अपभ्रंश का रूप था और जिसका उपयोग साहित्य रचना के लिए किया गया उसे ही 'अवहट्ठ' कहा गया है।

डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने बतलाया है कि शौरसेनी अपभ्रंश अर्थात् अवहट्ठ मध्यदेश के अलावा बंगाल आदि प्रदेशों में भी काव्यभाषा के रूप में अपना आधिपत्य जमाए हुए था।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ