कीर्तिलता

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कीर्तिलता, विद्यापति की ऐतिहासिक रचना है। यह रचना 14 वी शताब्दी की मानी जाती है। महाकवि विद्यापति कई भाषाओं के ज्ञाता थे। इनकी अधिकांश रचना संस्कृत एवं अवहट्ट में है। वे ऐसे समय में हुए जब चिन्तन की भाषा संस्कृत और साहित्य की भाषा अपभ्रंश थी। कीर्तिलता को विद्यापति ने कहाणी कहा है। 'कीर्तिलता' और 'कीर्तिपताका' इनकी अवहट्ट रचनाएँ हैं, जिनमें इनके आश्रयदाता कीर्ति सिंह की वीरता, उदारता और गुण ग्राहकता का वर्णन कीर्ति कीर्तन किया है। परवर्ती अपभ्रंश को ही संभवत: विद्यापति ने 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति के पूर्व अद्दहयाण (अब्दुल रहमान) ने भी ‘सन्देशरासक’ की भाषा को अवहट्ट ही कहा था।

कीर्तिलता विद्यापति की आरम्भिक और पहली रचना मानी जाती है, यद्यपि विद्वान इससे असहमत भी हैं. कहते हैं क़ि इसे उन्होंने, कदाचित्, सोलह वर्ष की उम्र में लिखा था। प्रौढ़ होने पर उन्होंने अपभ्रंश को छोड़ दिया तथा कविताएँ वे मैथिली में तथा शास्त्रीय निबन्ध संस्कृत में लिखने लगे। यह ग्रन्थ प्राचीन काव्य रुढियों के अनुरुप भृंग भृंगी संवाद के रूप में लिखा गया है।

प्रकाशित प्रमुख संस्करण[संपादित करें]

  1. डॉ॰ बाबूराम सक्सेना कृत हिन्दी अनुवाद सहित नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण-1929.
  2. डॉ॰ शिवप्रसाद सिंह की व्याख्या सहित समीक्षात्मक संस्करण ‘कीर्तिलता और अवहट्ठ भाषा’ के नाम से वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1955.
  3. डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल कृत ‘संजीवनी व्याख्या’ सहित साहित्य सदन, चिरगाँव, झाँसी, प्रथम संस्करण-1962.
  4. मूल, संस्कृत छाया तथा डॉ॰ वीरेन्द्र श्रीवास्तव कृत हिन्दी अनुवाद सहित बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना, प्रथम संस्करण 1983.
  5. ‘कीर्तिलता और विद्यापति का युग’, डॉ॰ अवधेश प्रधान, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण-1998.
  6. पं॰ गोविन्द झा कृत मैथिली अनुवाद सहित मैथिली अकादमी, पटना, प्रथम संस्करण-1992.
  7. मूल, पं॰ शशिनाथ झा कृत संस्कृत छाया तथा हिन्दी अनुवाद सहित, 1997. सन् 2020 में इसका संशोधित-परिवर्धित मूल, संस्कृत छाया तथा हिन्दी एवं मैथिली अनुवाद सहित ई-बुक संस्करण भी पं॰ भवनाथ झा द्वारा brahmipublication.com से प्रकाशित हुआ है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]