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मलयज

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मलयज (जन्म 1935 ई., आजमगढ़, निधन 26 अप्रैल 1982 ई.) जिनका असल नाम भरत श्रीवास्तव है, हिंदी के प्रतिष्ठित कवि, लेखक और आलोचक थे । मलयज का रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि को पुनर्व्याख्यायित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसके कारण हिंदी आलोचना जगत में वे विशेष उल्लेखनीय माने जाते हैं।[1] उन्होंने हिन्दी साहित्य में नेहरू युग के बाद की रचनाधर्मिता और उसके परिवेश को समझने विश्लेषित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

मलयज की आलोचना का मिज़ाज एक विशुद्ध अकादमिक आलोचक की आलोचना से भिन्न है । एक गहरी संवेदनशीलता और लगाव के साथ वे कृति के आंतरिक संसार में उतरते हैं । उनकी आलोचना का परिप्रेक्ष्य विघटित होते मूल्यों के दौर में संवेदनशीलता के नए रूपों की शिनाख्त है । भाषा सौन्दर्य रुचि और अनुभव सँजोनेवाला तंत्र उनके बुनियादी विश्लेषण के आधार रहे हैं। रोष, व्यंग्य, कुढ़न, ललकार, विषाद, करुणा, भावुकता और आत्मदया के तमाम शेड्सवाली समकालीन रचनाशीलता के विभिन्न संसारों को समझने का उन्होंने प्रयत्न किया है । दूसरी तरफ़ उनकी कविताओं में खास तरह की वैचारिक तीक्ष्णता और संवेदनात्मक छटपटाहट नज़र आती है । रघुवीर सहाय ने उनकी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए उन्हें एक नई शैली और एक नई व्यक्ति गरिमा दोनों की एक साथ खोज कहा है ।


संक्षिप्त जीवनी

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प्रमुख रचनाएँ

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कविता संग्रह

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  • जख़्म पर धूल
  • अपने होने को प्रकाशित करता हुआ
  • हँसते हुए मेरा अकेलापन

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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