अब्द अल-रहमान इब्न औफ

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जॉर्डन की राजधानी अम्मान के उत्तर में जुबेहा क्षेत्र में स्थित तीर्थस्थल, जिसे सहाबी-ए-रसुल अब्द अल-रहमान इब्न औफ की तरफ मनसुब किया जाता है।
फलक

' अब्दुर-रहमान इब्न औफ (सी.581 सीई - सी.654 सीई) [1] :94,103 [2] इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के साथियों में से एक थे। वह मालदार साहबा में से एक थे। आप उन सहाबीयों में से एक हैं, जिनसे जन्नत का वादा किया गया था

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

उनके माता-पिता मक्का में कुरैश के ज़ुहरा कबीले से थे। उनके पिता औफ इब्न अब्द औफ और उनकी मां अल-शिफा बिंट औफ थीं। [1]

उनका मूल नाम अब्दु अम्र ("अम्र का ग़ुलाम") था। पैग़म्बरे इसलाम ने उनका नाम बदलकर अब्दुर रहमान कर दिया [1] यह भी कहा जाता है कि उनका मूल नाम अब्दुल काबा था। [1]

जीवनी[संपादित करें]

हज़रत अबू बक्र ने इस्लाम की दावत अब्दुर-रहमान को दी और उन्हें मुहम्मद से मिलने के लिए आमंत्रित किया, जिन्होंने उनके इस्लाम लाने के बारे में सुना घोषणा सुनी और उन्हें इस्लामी प्रार्थनाएं सिखाईं। अब्दुर-रहमान इस्लाम स्वीकार करने वाले पहले आठ लोगों में से एक थे। [3] :115–116 [4] [3] :145

हज़रत अब्दुर-रहमान उन पंद्रह मुसलमानों में शामिल थे, जो 615 में एबिसिनिया को हिजरत की थी। अन्य मुसलमान बाद में उनके साथ शामिल हो गए, जिस से उनकी संख्या सौ से अधिक हो गई। "वे सुरक्षित रूप से वहां विराजमान थे और नेगस की सुरक्षा के लिए आभारी थे; इसलिए वे बिना किसी डर के अल्लाह की इबादत कर सकते थे, और नेगस ने उन्हें दयालु हावभाव और गर्मजोशी से आतिथ्य दिखाया था जैसा कि उनके जाने से पहले ही पैगंबर द्वारा भविष्यवाणी की गई थी।" [3]


619 के अंत या 620 की शुरुआत में उन्होंने सुना कि मक्का के लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया है। अब्दुर-रहमान उन चालीस लोगों में से एक थे जो अपने देस के लिए निकल पड़े। लेकिन जब वे मक्का के पास पहुंचे तो उन्हें पता चला कि खबर झूठी है, और वे एक नागरिक की सुरक्षा में या चुपके से शहर में प्रवेश कर गए।" [3] :167–168 जहां उन्होंने साद इब्न अल-रबी के साथ शरण ली। [3] :218

सैन्य अभियान[संपादित करें]

इस्लाम के विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी के अनुसार यह सरिय्या हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ि० के नेतृत्व में शअबान सन्‌ 06 हि० में भेजा गया। अल्लाह क रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम न इन्हें अपने सामने बिठा कर खुद अपने मुबारक हाथ से पगड़ी बांधी और लड़ाई में सब से अच्छा तरीका अपनाने की वसीयत फरमाई और फुरमाया कि अगर वे लोग तुम्हारी बात मान ले तो लुम उन के बादशाह की लड़की से शादी कर लेना । हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ्‌ रजि० ने वहां पहुंच कर तीन दिन लगातार इस्लाम की दावत दी, - आखिरकार कौम ने इस्लाम कूबुल कर लिया। हजरत अब्दुर॑हमान बिन औफ रजि० ने तमाजुर बिन्ते अस्बग से शादी की। यही हजरत अब्दुरहमान के बेटे अबू सलमा की मां हैं। इस महिला के पिता अपनी कौम में सरदार और बादशाह थे। [5]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Muhammad ibn Saad. Kitab al-Tabaqat al-Kabir Volume 3. Translated by Bewley, A. (2013). The Companions of Badr. London: Ta-Ha Publishers.
  2. "Abdul-Rahman Ibn Awf (580Ad-32Hijri/652Ad) A study in his Religions, Economic and Political Role in the State of Islam During its Emergence and Formation" (English में). An-Najah National University. 2014. मूल से 25 June 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 May 2016. Cite journal requires |journal= (मदद)सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. Muhammad ibn Ishaq. Sirat Rasul Allah. Translated by Guillaume, A. (1955). The Life of Muhammad. Oxford: Oxford University Press.
  4. Note that the expression "the first eight men" does not include a few female converts whose profession of faith may have been earlier.
  5. सफिउर्रहमान मुबारकपुरी, पुस्तक अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ). "सरिय्या दयारे बनी कल्ब, इलाका दूमतुल जन्दल". पृ॰ 673. अभिगमन तिथि 13 दिसम्बर 2022.