सुगंधा
सुगंधा | |
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श्री सुगंधा देव | |
कश्मीर की राज्य - संरक्षक | |
शासनावधि | 904 ई. – 906 ई. |
पूर्ववर्ती | संकटवर्मन |
उत्तरवर्ती | पार्थवर्मन |
कश्मीर की राज्य - संरक्षक | |
कार्यकाल | 902 ई. – 904 ई. |
सम्राट | गोपालवर्मण |
कश्मीर की राज्य - संरक्षक | |
कार्यकाल | 883 ई. – 902 ई. |
सम्राट | शंकरवर्मन |
निधन | 914 ई. निस्पलाका विहार |
जीवनसंगी | शंकरवर्मण |
संतान | गोपालवर्मन |
घराना | उत्पल वंश |
पिता | स्वामीराज |
धर्म | बौद्ध धर्म |
सुगंधा (883 ई.- 914 ई.) 10वीं शताब्दी के दौरान उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में कश्मीर की शासिका थी।
वह कश्मीर के तत्कालीन राजा शंकरवर्मन से विवाह करके 885 ई. से 902 ई. तक कश्मीर की महारानी रही। उन्होंने 902 ई. और 904 ई. के बीच, अपने पुत्र राजा गोपालवर्मन के अल्पव्यसक होने के दौरान कश्मीर के राज्य - संरक्षक के रूप में सेवा की। 904 ई. में जब सिंहासन के सभी उत्तराधिकारियों की मृत्यु हो गई तो, उन्होंने स्वयं को कश्मीर की रानी 'श्री सुगंधा देव' के रूप में सम्राज्ञी घोषित कर लिया। सन 906 ई. में तंत्रिनो के द्वारा उनको रानी के पद से मुक्त करके ‘पार्थ’ को सम्राट के रूप में घोषित किया गया। सुगंधा ने पीछे हटकर हस्कापुरा (वर्तमान उशकुर, बारामूला) में रहते हुए कश्मीर के सिंहासन पर दावा करना जारी रखा। सन 914 ई. में उन्होंने पार्थ और तंत्रिनों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया लेकिन वहाँ पर उनको कैद कर लिया गया और बाद में 'निस्पलाका विहार' नामक एक बौद्ध मठ में उनकी हत्या कर दी गई।
राज्य - संरक्षक
[संपादित करें]सुगंधा कश्मीर के पड़ोसी राज्य के राजा स्वामीराज की बेटी थी। सुगंधा का विवाह शंकरवर्मन से हुआ था, जिन्होंने 885 ई. से 902 ई. तक कश्मीर पर शासन किया था। शंकरवर्मन की तीन अन्य पत्नियां भी थीं जिनमें एक सुरेंद्रावती भी प्रमुख थी, लेकिन सुगंधा ही उनकी मुख्य पत्नी व रानी रही।
902 ई. में, एक असफल अभियान से लौटते हुए उरुशा (वर्तमान हजारा, पाकिस्तान) में एक तीर से राजा शंकरवर्मन की मृत्यु हो गई, जहाँ पर सुगंधा भी उनके साथ मौजूद थी।[1] राजा शंकरवर्मन की मृत्यु के पश्चात, उनके पुत्र गोपालवर्मन उत्तराधिकारी बने। उस समय शंकरवर्मन की कुछ रानियाँ और दासियाँ सती हो गई थी। रानी सुगंधा ने गोपालवर्मन की राज माता और राज्य - संरक्षक के रूप में कार्य करने से इनकार कर दिया। शंकरवर्मन के अंतिम संस्कार के बाद गोपालवर्मन को कश्मीर के राजा का ताज पहनाया गया।
राज्य - संरक्षक से निवृति
[संपादित करें]हालाँकि सुगंधा राज्य के मामलों का प्रबंधन करने में अच्छी थी, लेकिन वह शारीरिक भोगों में ज्यादा आनंद लेती थी। विभिन्न इतिहासकारों ने उन पर अपने ही राजकोष मंत्री प्रभाकरदेव के साथ शारीरिक संबंध होने का आरोप लगाया तथा प्रभाकरदेव को उनका प्रेमी बताया। उस समय प्रभाकरदेव ही राजा की वास्तविक शक्तियों का प्रयोग करते थे।[2] गोपालवर्मन द्वारा की गई जांच में पाया गया कि वह लंबे समय तक राजकीय खजाने में चोरी करता रहा हैं। उचित समय देखते हुए, प्रभाकरदेव ने जादू-टोना करके राजा की हत्या करने के लिए एक रिश्तेदार रामदेव को नियुक्त किया। जिसके बाद बुखार से गोपालवर्मन की मृत्यु हो गई और जब कुछ समय बाद उनकी साजिश सार्वजनिक हो गई तो रामदेव ने भी आत्महत्या कर ली।
गोपालवर्मन की मृत्यु के बाद उसका भाई ‘संकटवर्मन’सम्राट बना, लेकिन दस दिनों के बाद रहस्यमय तरीके से उसकी भी मृत्यु हो गई। शंकरवर्मन के वंश की समाप्ति के बाद कश्मीर में राजनीतिक उथल-पुथल हो गईं। दरबारियों ने राज्य के शासक को चुनने के लिए महापंचायत नामक सार्वजनिक सभा आयोजित करते हुए तख्तापलट की साजिश रचनी शुरू कर दी। उस समय सुगंधा पहले से ही लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थी, इसलिए उसे कश्मीर की संप्रभु के रूप में घोषित कर लिया गया।
सम्राज्ञी के रूप में शासन
[संपादित करें]904 में सुगंधा ने शाही सता संभाली और कश्मीर पर अपने अधिकार में शासन किया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उसने ऐसा अपने पोते, जयलक्ष्मी के अभी तक अजन्मे बच्चे के लिए राज हासिल करने के इरादे से किया था। उसने 904 से 906 तक दो साल तक कश्मीर पर शासन किया।
उन्हें उम्मीद थी कि उनका उत्तराधिकारी उनका अजन्मा पोता होगा जो गोपालवर्मन का पुत्र था, लेकिन उनकी पुत्रवधू जयलक्ष्मी के गर्भ से मृत शिशु का जन्म हुआ। निराश होते हुए, सुगंधा ने अपने रक्त-संबंधियों में से एक निर्जीतवर्मन, जो की सुरवर्मन का पोता और कश्मीर के अवंतीवर्मन का सौतेला भाई था जिसे ‘पंगु’ उपनाम से जाना जाता था, को राजा बनाना चाहा।[3]
उसने ‘पंगु’ को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया और ऐसा करने में उसे अपने मंत्रियों की सलाह और अनुमति लेनी पड़ी। निर्जितवर्मन के लंगड़ेपन के कारण सुगंधा की पसंद को मंत्रियों के साथ-साथ तंत्रिनों का भी काफी प्रतिरोध सहना पड़ा। तंत्रिनो द्वारा सुगंधा को गद्दी से उतार दिया गया और उन्होंने निर्जितवर्मन के दस वर्षीय पुत्र ‘पार्थ’ को उसके स्थान पर सम्राट के रूप में घोषित कर दिया।
बाद का जीवन
[संपादित करें]906 ईस्वी में गद्दी से हटने के बाद सुगंधा हस्कापुरा (वर्तमान उशकुर, बारामूला) में रहने के लिए चली गई और वहाँ से ही कश्मीर के सिंहासन पर दावा करना जारी रखा।
आठ साल के निर्वासन के बाद 914 ई. में हस्कापुरा में सुगंधा को एकंगस, शाही अंगरक्षकों और उसके प्रति वफादार अन्य गुटों ने पार्थ और तंत्रिनों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए राजी कर लिया।
वहाँ पर उसे तत्रिनों द्वारा पराजित करके बंदी बना लिया गया और बाद में 'निस्पलाका विहार' नामक एक बौद्ध मठ में उसकी हत्या कर दी गई।[4]
परिणाम
[संपादित करें]प्रारंभिक मध्यकाल में कश्मीरी घाटी में उत्पल वंश के शासक को दो सैन्य गुट, तांत्रिनो और एकंगों द्वारा पराजित कर लिया गया। उनकी होड़ के कारण पुराने राजाओं का तख्तापलट और नए राजाओं की स्थापना हुई। तंत्रिन एक मजबूत सैन्य वर्ग का संगठन था। तंत्रिन ने पैदल सैनिकों के एक संघ का गठन किया था जो राज्य के शासकों को दंडित करने या उनका समर्थन करने के लिए काफी मजबूत था। 914 ई. में सुगंधा की हार के बाद अन्य कोई भी उत्तराधिकारी मौजूद नहीं था जो तंत्रिनों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने में सक्षम हो।[5]
अंत में सामंती भूस्वामियों, जिन्हें डमरस के रूप में जाना जाता था, को सत्ता संघर्ष समाप्त करने के लिए कहा गया। उन्होंने तंत्रिनों की शक्ति को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। जिसके बाद कश्मीर के शासकों को जमींदारों की शक्ति को रोकने की नई समस्याओं का सामना करना पड़ा, जैसा कि रानी दिद्दा के शासन के दौरान राजनीतिक घटनाओं से स्पष्ट है।[6]
परंपरा
[संपादित करें]कुछ इतिहासकार उसके शासनकाल को कश्मीर का "स्वर्ण युग" कहते हैं। इतिहासकार प्रेमनाथ बजाज कहते हैं कि वह लोगों से प्यार करती थी जिन पर दरबारियों द्वारा भरोसा किया जाता था और सेना द्वारा प्रशंसा की जाती थी।
सुगंधा का शासनकाल कश्मीर के इतिहास में एक महिला शासिका का पहला ठोस और ऐतिहासिक सत्यापन योग्य शासन था क्योंकि उसने अपनी प्रजा की भलाई का किया था।
अपने शासनकाल के दौरान सुगंधा ने सुगंधपुरा और गोपालपुरा कस्बों में विष्णु मंदिर, गोपाल केशव मंदिर और गोपालमठ का निर्माण करवाया। उन्होंने पत्तन में स्थित सुगंधेश मंदिर भी बनवाया जिसमें एक चौकोर गर्भगृह है और जिसके सामने एक बरामदा और चारों ओर एक स्तंभपंक्ति है।[7]
शंकरवर्मन ने सुगंधा के साथ, महादेव को दो मंदिर समर्पित किए, पहला जो की शंकरगौरीश्वर मंदिर जिसे शंकर गौरेसा के नाम से जाना जाता है और दूसरा शंकरपुरा की नई राजधानी में सुगंधेश्वर मंदिर था। आधुनिक समय के पत्तन में ये दो भव्य मंदिर आज भी खड़े हैं।[8]
सुगंधा का सिक्का उसकी शक्ति का एक महत्वपूर्ण पुष्टिकारक प्रमाण है और उसे पुरुषवाचक विशेषण श्री सुगंधा देव से संदर्भित करता है।
समयरेखा
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ "कश्मीर के देव". कश्मीरलाइफ. 19 जनवरी 2016. अभिगमन तिथि 6 मई 2021.
- ↑ मार्क औरेल, स्टेन (1900). कल्हण की राजतरंगिणी: कश्मीर के राजाओं का इतिहास, खंड 1 (पुनर्प्रकाशित संस्करण). मोतीलाल बनारसीदास. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-0369-5. अभिगमन तिथि 1 मई 2020.
- ↑ बमजाई, पी.एन.के . (1994). कश्मीर का सांस्कृतिक व राजनीतिक इतिहास : खंड 1. एम. डी. पपृ॰ 139–140. अभिगमन तिथि 2023-04-08.
- ↑ कनिंघम, लेफ्टिनेंट A.; इंजीनियर्स, बंगाल (1843), "कश्मीर का प्राचीन सिक्का। कालानुक्रमिक और ऐतिहासिक नोट्स के साथ, ईसाई युग की शुरुआत से मुगलों द्वारा देश की विजय तक", द न्यूमिज़माटिक क्रॉनिकल एंड जर्नल ऑफ़ द न्यूमिज़माटिक सोसाइटी, 6: 1–38, JSTOR 42720623
- ↑ पाराशर, डॉक्टर पूजा (2017), खंड - 2, अंक 5 (2017) कल्हण की राजतरंगिणी के विशेष संदर्भ में प्राचीन कश्मीर की सैनिक जातियां, educationjournal.org, अभिगमन तिथि 2023-04-08
- ↑ "महिला सशक्तिकरण की पुष्टि: भारतीय सिक्कों पर महिलाएँ-I". माइंटेज वर्ल्ड. 24 अगस्त 2018. अभिगमन तिथि 6 मई 2021.
- ↑ लॉरेंस, सर वाल्टर रोपर (2005). कश्मीर की घाटी. एशियन एजुकेशनल सर्विसेज. पृ॰ 175. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120616301.
- ↑ "सुगंदेशा मंदिर". ट्रैवल द हिमालयन. अभिगमन तिथि 6 मई 2021.