सदस्य वार्ता:Kapil Bothra

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 17:47, 17 जुलाई 2020 (UTC)[उत्तर दें]

बोथरा वंश और इतिहास[संपादित करें]

बोथरा कौन थे कहाँ से यह शब्द आया ,कैसे इस शब्द की खोज हुई कैसे ये बोलचाल की भाषा मे आया ओर इसका क्या इतिहास रहा है। इसे जानने की उत्सुकता तो सबको हमेशा से रही है लेकिन कभी इनका कोई खास वर्णन कही मिला नही हम इसका प्रयास कर रहे है विभिन्न जगहों से भिन्न भिन्न सामग्री से इसको बताने का प्रयास कर रहे फिर भी हो सकता है कि इसमें कोई कमी या गलती रह जाये तो पाठकों के सुझाव की आशा करते है। बोथरा वंश का उद्गमस्थल जालौर है यही से यह आगे बढ़ा । जालौर पर सोनगरा चौहान वंश का राज बहुत बे समय तक रहा । जालौर के शासक थे श्री सामन्त सिंह जी बड़े ही वीर राजा थे Kapil Bothra (वार्ता) 18:04, 17 जुलाई 2020 (UTC)[उत्तर दें]

नमस्कार, बोथरा वंश ओर इतिहास को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के अंतर्गत हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित किया गया है। इस बारे में चर्चा विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/बोथरा वंश ओर इतिहास पर हो रही है। इस चर्चा में भाग लेने के लिये आपका स्वागत है।

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कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें।

चर्चा के दौरान आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। परंतु जब तक चर्चा जारी है, कृपया पृष्ठ से नामांकन साँचा ना हटाएँ।अशोक वार्ता 13:05, 2 अगस्त 2020 (UTC)[उत्तर दें]

ये जानकारी जो पाठकों को उपलब्ध करवाई गई है इसके लिए अथक प्रयास करके इतिहास और बहीभाटो की बहियों से पुराने तथ्य जुटाए गए है ,ये जानकारी ज्ञानवर्धक ओर समाजोपयोगी भी है Kapil Bothra (वार्ता) 13:12, 2 अगस्त 2020 (UTC)[उत्तर दें]

नमस्कार, बोथरा राजा बोहित्थ - पुनरासर धाम को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के अंतर्गत हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित किया गया है। इस बारे में चर्चा विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/बोथरा राजा बोहित्थ - पुनरासर धाम पर हो रही है। इस चर्चा में भाग लेने के लिये आपका स्वागत है।

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मूल शोध।

कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें।

चर्चा के दौरान आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। परंतु जब तक चर्चा जारी है, कृपया पृष्ठ से नामांकन साँचा ना हटाएँ।☆★संजीव कुमार (✉✉) 15:48, 20 अगस्त 2020 (UTC)[उत्तर दें]

नमस्कार, सम्राट अकबर और जैन आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के अंतर्गत हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित किया गया है। इस बारे में चर्चा विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/सम्राट अकबर और जैन आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि पर हो रही है। इस चर्चा में भाग लेने के लिये आपका स्वागत है।

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सम्बंधित जानकारी का अभाव और लेख फेसबुक, निजी ब्लॉग और अविश्वसनीय वेबसाइटो से टीपा गया है।

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चर्चा के दौरान आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। परंतु जब तक चर्चा जारी है, कृपया पृष्ठ से नामांकन साँचा ना हटाएँ।निलेश शुक्ला (वार्ता) 09:39, 28 अगस्त 2020 (UTC)[उत्तर दें]

लेख कही से भी फेसबुक,निजी ब्लॉग,और अविश्वसनीय वेबसाइट से टीपा नही गया है आपने बिना सोचे ओर बिना निरीक्षण के ही अपनी निजी राय लिख दी है कृपया पहले सही निरीक्षण करके अपनी निजी राय व्यक्त करें न कि अपनी मर्जी से धन्यवाद Kapil Bothra (वार्ता) 05:02, 4 सितंबर 2020 (UTC)[उत्तर दें]

नमस्कार, बोथरा वंश और मन्दिर स्थापत्य को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के अंतर्गत हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित किया गया है। इस बारे में चर्चा विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/बोथरा वंश और मन्दिर स्थापत्य पर हो रही है। इस चर्चा में भाग लेने के लिये आपका स्वागत है।

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नमस्कार, आपके द्वारा बनाए पृष्ठ चित्र:Jd03-Chintamani Mandir, Bikaner.jpg को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के मापदंड फ़1 के अंतर्गत शीघ्र हटाने के लिये नामांकित किया गया है।

फ़1 • 14 दिन(2 सप्ताह) से अधिक समय तक कोई लाइसेंस न होना

इसमें वे सभी फाइलें आती हैं जिनमें अपलोड होने से दो सप्ताह के बाद तक भी कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है। ऐसा होने पर यदि फ़ाइल पुरानी होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र(पब्लिक डोमेन) में नहीं होगी, तो उसे शीघ्र हटा दिया जाएगा।

ध्यान रखें कि विकिपीडिया पर केवल मुक्त फ़ाइलें ही रखी जा सकती हैं। यह फ़ाइल तभी रखी जा सकती है यदि इसका कॉपीराइट धारक इसे किसी मुक्त लाइसेंस के अंतर्गत विमोचित करे। यदि ऐसा न हो तो इसे विकिपीडिया पर नहीं रखा जा सकता। यदि इस फ़ाइल के कॉपीराइट की जानकारी आपको नहीं है तो आप चौपाल पर सहायता माँग सकते हैं। सहायता माँगते समय कृपया इसका स्रोत (जहाँ से आपको यह फ़ाइल मिली) अवश्य बताएँ। यदि आपको इसके कॉपीराइट की जानकारी है तो कृपया श्रेणी:कॉपीराइट साँचे में से कोई उपयुक्त साँचा फ़ाइल पर लगा दें।

यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है।

केप्टनविराज (चर्चा) 06:25, 4 अक्टूबर 2020 (UTC)[उत्तर दें]

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इसमें वे सभी फाइलें आती हैं जिनमें अपलोड होने से दो सप्ताह के बाद तक भी कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है। ऐसा होने पर यदि फ़ाइल पुरानी होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र(पब्लिक डोमेन) में नहीं होगी, तो उसे शीघ्र हटा दिया जाएगा।

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केप्टनविराज (चर्चा) 06:25, 4 अक्टूबर 2020 (UTC)[उत्तर दें]

श्री बच्छराज जी बोथरा व श्री कर्मचन्द जी बोथरा का जोधपुर व बीकानेर के निर्माण व विकास में योगदान[संपादित करें]

राजस्थान प्रदेश में जोधपुर और बीकानेर का अपने आपमें बहुत बड़ा महत्व है । यदि जोधपुर और बीकानेर को राजस्थान से निकाल दिया जाए तो राजस्थान का अस्तित्व भी एक तरह से समाप्त हो जाता है बीकानेर और जोधपुर के संस्थापक के रूप में एक बहुत ही शक्तिशाली व्यक्तित्व उभरकर सामने आए थे श्री बच्छराज जी बोथरा व उनके पुत्र श्री कर्मचन्द जी बोथरा जिनका जीवन बड़ा ही सादगीपूर्ण व बलिदानी था और उन्होंने जोधपुर व बीकानेर के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी । इतिहासकारो के अनुसार राव रिडमल जी जोधा जी के पिताजी थे 1427 ईस्वी में मंडोर पर राज करते थे तथा उसके साथ ही उनके अधीनस्थ मेवाड़ पर राणा मोकल का राज्य था इस तरह से मेवाड़ का शासन भी उनके हाथ में था जो राणा मोकल महाराणा कुंभा के पिता थे 1433 ईस्वी में महाराणा मोकल के बाद भीं 1438 ईस्वी तक मेवाड़ पर राव रिडमल का बराबर अधिकार रहा लेकिन 1438 ईस्वी के बाद महाराणा कुंभा ने मेवाड़ का सम्पूर्ण अधिकार अपने हाथ में लेने के लिये एक योजना बनाई ऒर योजनाबद्ध रूप से राव रिड्मल जी को चित्तौड़ बुलाकर धोखे से उनकी हत्या कर दी उस समय उनके पुत्र जोधा जी समय की नजाकत देखते हुए अपने 700 घुड़सवारो के साथ मण्डोर की ओर प्रस्थान कर देते हैं लेकिन महाराणा कुंभा की सेना से लड़ते लड़ते जब जोधा जी मण्डोर पहुंचते हैं तो उनके साथ केवल 7 सैनिक ही बाकी रहते हैं बाकी सारे के सारे काम आ जाते हैं 15 सालो तक निर्वासित जीवन जीने के बाद एक दिन श्री बच्छराज जी बोथरा की मदद से राव जोधा जी मेहरानगढ़ किले का निर्माण कर जोधपुर नगर की स्थापना करते है । एक दिन जब श्री बच्छराज जी बोथरा अपनी शैया पर सो रहे थे प्रातः काल अमृतवेला के समय में एक दिव्य शक्ति ने आकर उनको प्रेरणा प्रदान की कि सामने जो पहाड़ी दिख रही है उस पहाड़ी पर अपनी राजधानी का निर्माण करो तो वह हमेशा सुरक्षित रहेगी श्री बच्छराज जी बोथरा की प्रेरणा से उनकी देखरेख मे राव जोधा जी ने 1459 ईस्वी में मेहरानगढ़ किले का निर्माण करवाना प्रारंभ किया जो की राव जसवंत सिंह के समय में (1637–1680) में पुरा हुआ था | इस तरह से राव जोधा जी को श्री बच्छराज जी बोथरा की मदद से वापिस शासन मिला इस पर राव जोधा जी नें 1460 ईस्वी में श्री बच्छराज जी बोथरा को अपने राज्य का प्रधानमंत्री मनोनीत कर उन्हे उचित सम्मान देने में अपनी तरफ से किसी प्रकार की कमी नहीं रखी श्री बच्छराज जी बोथरा 1460 ईस्वी से 1465 ईस्वी तक जोधपुर रियासत के प्रधानमंत्री रहे । मेहरानगढ़ किले के चारों तरफ जोधपुर शहर को बसाया गया था इस प्रकार श्री बच्छराज जी बोथरा का जोधपुर रियासत के निर्माण मे बहुत बड़ा योगदान रहा था श्री बच्छराज जी बोथरा पाटन से जालोर होते हुए मण्डोर आये थे, श्री बच्छराज जी बोथरा एक ऐसे पुरुष थे जिनके जीवन को पढ़कर मन के अंदर रोमांच पैदा होना स्वाभाविक हो जाता है । बाद मे श्री बीकाजी बीकानेर नगर कि स्थापना में सहायता के लिये श्री बच्छराज जी बोथरा को उनके सपरिवार जोधपुर से कोडमदेसर होते हुए विशेष आग्रह कर बीकानेर लाये थें इस तरह बीकानेर की स्थापना में भी श्री बच्छराज जी बोथरा महत्वपूर्ण भुमिका निभाते है, स्मरण रहे कि वर्तमान बीकानेर नगर पहले जाटो के नेहरा जाति के शासन मे जाँगलू प्रदेश के नाम से जाना जाता था जो कि इस शर्त पर बीकानेर निर्माण के लिये अपना प्रदेश देने को राजी हुआ कि जो भी यहां नया नगर बसाया जाये उसके नाम मे बीकाजी के साथ उनके नेहरा नाम का भी उल्लेख होना चाहियें तत्पशचात सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि बीकाजी का बीका शब्द व नेहरा का नेर शब्द मिलाकर बीकानेर नामकरण हुआ जो कि श्री बच्छराज जी बोथरा की मध्य्स्थता से 1465 ईस्वी मे सम्पन हुआ । श्री बच्छराज जी बोथरा ने 1465 ईस्वी से 1505 ईस्वी तक बीकानेर के संस्थापक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया उनके बाद उनके पुत्र श्री कर्मचन्द जी बोथरा का भी बीकानेर के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा था 1504 ईस्वी से लेकर 1526 ईस्वी तक श्री कर्मचन्द जी बोथरा प्रधानमंत्री पद पर रहे । श्री कर्मचन्द जी बोथरा कि देखरेख मे ही बीकानेर के किले का निर्माण कार्य हुआ इसको इतिहास में विशेष रूप से चिंतामणि दुर्ग के नाम में जाना जाता है जिसे बाद में जूनागढ़ किले के नाम से पहचानना प्रारंभ हो गया । श्री बच्छराज जी बोथरा व श्री कर्मचन्द जी बोथरा की सेवा भावना व कर्तव्य निष्ठा देखकर राव बीकाजी ने उन्हें दो गांव जागिरी में दिये थे जिन्हें बछासर व करमीसर के नाम से जाना जाता है बछासर में आज श्री कर्मचन्द जी बोथरा भोमिया जी के रूप में विराजमान है श्री माणक चंद जी बोथरा ने प्रदेश के उर्जा व जलदाय मंत्री श्री बुलाकी दास जी कल्ला से मिलकर उनकों वस्तुस्थिति से अवगत करवाया और उनसे यह मांग की कि दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा व दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा की आदमकद प्रतिमा बीकानेर में अच्छी जगह पर लगाई जाएतथा उनके नाम पर शहर के विशेष मार्ग व सड़कों का नाम रखा जाये श्री बोथरा के निवेदन को स्वीकार करते हुए श्री बुलाकी दास जी कल्ला ने श्री अशोक जी गहलोत माननीय मुख्यमंत्री राजस्थान सरकार को पत्र लिखकर निवेदन भी किया है श्री कल्ला जी ने श्री माणक चंद जी बोथरा को आश्वस्त किया है कि दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा व दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा की आदमकद प्रतिमाए बीकानेर में अच्छी जगह पर लगाई जाएगी । श्री बच्छराज जी बोथरा व श्री कर्मचन्द जी बोथरा ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए समाज सेवा व जैन धर्म के विकास के काम किये थे जैसे बीकानेर का चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर 1504 ईस्वी में श्री बच्छराज जी बोथरा ने बनवाया था मंदिर में भगवान आदिनाथ की धातु प्रतिमा अपने साथ मंडोर से लाकर स्थापित की थी 1513 ईस्वी में श्री कर्मचन्द जी बोथरा ने भगवान श्री नेमिनाथ जी के विशाल मंदिर की स्थापना भी बीकानेर में की थी । इस बोथरा परिवार का प्रभाव उस समय मुगल सम्राट अकबर पर भी बहुत ज्यादा था अपने सेनापति तुर्साम खान द्वारा लूटी गई 10 वीं शताब्दी की बेशकीमती 1116 जैन मूर्तियां सम्राट अकबर ने श्री कर्मचन्द जी बोथरा को उन मूर्तियों के बराबर सोना लेकर 1633 ईस्वी में लौटा दी थी जिन्हें श्री कर्मचन्द जी बोथरा ने आषाढ सुदी ग्यारस विक्रम सँवत 1639 को लाकर चिंतामणि पार्श्वनाथ मन्दिर बीकानेर के तहखाने में सुरक्षित रखवा दिया था जो आज भी वहां पर सुरक्षित मौजूद है । इसी क्रम में श्री कर्मचन्द जी बोथरा ने बीकानेर के निकटवर्ती गांव उदयरामसर में जैन भवन, गोगा गेट स्थित गोडी पार्श्वनाथ मंदिर, रांगडी चौक का जैन उपासरा, कल्पवृक्ष मंदिर मेड़ता, सिरोही, जालोर, लाहौर (पाकिस्तान), गोगलाव, नागौर, देलवाड़ा, संग्रामपुर, शत्रुंजय पर्वत पर गिरनार व पाटन, अन्हिलपुर, मछिंद्रगढ (गुजरात) में अनेकों ज़ेन मन्दिर, जैन धर्मशालाओं व जैन उपासरो के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी बीकानेर जोधपुर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले ऐसे बलिदानी वीर पुरुष इतिहास मे हमेशा अमर रहेंगे और उनका जीवन सब को और ज्यादा प्रेरणा प्रदान करता रहेगा ।

नमस्कार, आपके द्वारा बनाए पृष्ठ श्री बच्छराज जी बोथरा व श्री कर्मचन्द जी बोथरा का जोधपुर व बीकानेर के निर्माण व विकास में योगदान को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के मापदंड व2 के अंतर्गत शीघ्र हटाने के लिये नामांकित किया गया है।

व2 • परीक्षण पृष्ठ

इसमें वे पृष्ठ आते हैं जिन्हें परीक्षण के लिये बनाया गया है। यदि आपने यह पृष्ठ परीक्षण के लिये बनाया था तो उसके लिये प्रयोगस्थल का उपयोग करें। यदि आप विकिपीडिया पर हिन्दी टाइप करना सीखना चाहते हैं तो देवनागरी में कैसे टाइप करें पृष्ठ देखें।

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WikiPanti (वार्ता) 08:42, 24 जनवरी 2021 (UTC)[उत्तर दें]