सदस्य वार्ता:Azaz yusufzai

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 15:21, 2018 (UTC)

पठनीय ऐतिहासिक पोस्ट। "*कैलाश मानसरोवर और औरंगज़ेब :-* ^^^^

  • राहुल गाँधी कैलाश मानसरोवर की धार्मिक यात्रा पर हैं और वह नेपाल और चीन होते हुए शिव पार्वती जी की वास् स्थली कैलाश मानसरोवर जाएँगे.*
  • आज़ादी के बाद चीन ने "कैलाश पर्वत व कैलाश मानसरोवर" और अरुणाचल प्रदेश के बड़े भूभाग पर जब कब्ज़ा कर लिया तो देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी UNO पहुंचे कि चीन ने ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है, हमारी ज़मीन हमें वापस दिलाई जाए.*
  • इस पर चीन ने जवाब दिया कि हमने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है बल्कि अपना वो हिस्सा वापस लिया है जो हमसे भारत के एक शहंशाह 1680 में चीन से छीन कर ले गया था। यह जवाब UNO में आज भी ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में मौजूद है.*
  • जानते हैं चीन ने किस शहंशाह का नाम लिया था ?*
*"---औरंगज़ेब" का!*
  • दरअसल चीन ने पहले भी इस हिस्से पर कब्ज़ा किया था, जिस पर औरंगज़ेब ने उस वक़्त चीन के चिंग राजवंश के राजा "शुंजी प्रथम" को ख़त लिख कर गुज़ारिश की थी कि कैलाश मानसरोवर हिंदुस्तान का हिस्सा है और हमारे हिन्दू भाईयों की आस्था का केन्द्र है, लिहाज़ा इसे छोड़ दें.*
  • लेकिन जब डेढ़ महीने तक किंग "शुंजी प्रथम" की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो औरंगजेब ने चीन पर चढ़ाई कर दी जिसमें औरंगजेब ने साथ लिया कुमाऊँ के राजा "बाज बहादुर चंद" का और सेना लेकर कुमाऊँ के रास्ते ही मात्र डेढ़ दिन में "कैलाश मानसरोवर" लड़ कर वापस छीन लिया*
  • ये वही औरंगज़ेब है जिसे कि कट्टर इस्लामिक बादशाह और "हिन्दूकुश" कहा जाता है, सिर्फ उसी ने हिम्मत दिखाई और चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी थी.*
  • इतिहास के इस हिस्से की प्रमाणिकता को चेक करना हो तो आज़ादी के वक़्त के UNO के हलफनामे जो आज भी संसद में भी सुरक्षित हैं.*
  • और आप हिस्ट्री ऑफ उत्तरांचल :-ओ सी हांडा*
  • तथा द ट्रेजेड़ी ऑफ तिब्बत :-- मन मोहन शर्मा पढ़ सकते हैं.*।"
Azaz yusufzai (वार्ता) 15:23, 4 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

समलैंगिकता[संपादित करें]

FBP/18-136

इस्लाम और समलैंगिकता :-

अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने समलैंगिकता को एक अनैतिक और आपराधिक कार्य बताते हुए इससे बचने के आदेश दिये हैं।

अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने कहा है कि—‘‘एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के गुप्तांग नहीं देखने चाहिए और एक महिला को दूसरी महिला के गुप्तांग नहीं देखने चाहिए । किसी व्यक्ति को बिना वस्त्र के दूसरे व्यक्ति के साथ एक चादर में नहीं लेटना चाहिए और इस प्रकार एक महिला को बिना वस्त्र के दूसरी महिला के साथ एक चादर में नहीं लेटना चाहिए ।’’ (अबू दाऊद)

अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने कहा कि उस पर अल्लाह की लानत हो जो वह काम करे जो हज़रत लूत (अलैहि॰) की क़ौम किया करती थी, अर्थात समलैंगिकता (हदीस: इब्ने हिब्बान) दूसरे स्थान पर आप (सल्ल॰) ने फ़रमाया

"समलैंगिकता में लिप्त दोनों पक्षों को जान से मार दो।" (तिरमिज़ी) यह आदेश सरकार के लिए है किसी व्यक्ति के लिए नहीं ।

इसके अलावा समलैंगिकता में लिप्त महिलाओं के बारे में अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) का कथन है कि

"यह औरतों का ज़िना (बलात्कार) है ।" (तबरानी)

इस्लामी शरीअत में समलैंगिकता को एक ऐसा अपराध माना गया है, जिसकी सज़ा मौत है, यदि यह लिवात (दो पुरुषों के बीच समलिंगी संबंध) हो।

सिहाक़ (दो महिलाओं के बीच समलिंगी संबंध) को चूंकि ज़िना (बलात्कार) माना गया है, इसलिए इसकी सज़ा वही है, जो ज़िना की है अर्थात इसमें लिप्त महिला यदि विवाहित है तो उसे मौत की सज़ा दी जाए और यदि अविवाहित है तो उसे कोड़े लगाए जाएं ।

ये सज़ाएं व्यक्ति के लिए हैं यानी व्यक्तिगत रूप से जब कोई इस अपराध में लिप्त पाया जाए, लेकिन यदि सम्पूर्ण समाज इस कुकृत्य में लिप्त हो तो उसकी सज़ा ख़ुद क़ुरआन ने निर्धारित कर दी है—

"समलैंगिकता एक नैतिक असंतुलन है, एक अपराध और दुराचार है । इसमें संदेह नहीं कि यह बुराई मानव समाज में सदियों से मौजूद है, वैसे ही जैसे, चोरी, झूठ, हत्या आदि दूसरे अपराध समाज में सदियों से मौजूद हैं। इनके उन्मूलन के प्रयास किये जाने चाहिएं न कि इन्हें सामाजिक स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए । कोई भी व्यक्ति जन्म से ही समलैंगिक नहीं होता है, जैसे कोई भी जन्म से चोर या हत्यारा नहीं होता, बल्कि लोग उचित मार्गदर्शन के अभाव में ये बुराइयां सीखते हैं किशोरावस्था में अपनी नवीन और तीव्र कामेच्छा पर नियंत्रण न पाने के कारण ही लोग समलिंगी दुराचारों का शिकार हो जाते हैं।"

समलैंगिकता को एक जन्मजात शारीरिक दोष और मानसिक रोग भी बताया जाता है। जो लोग इसमें लिप्त हैं या इसे सही समझते हैं वे ये कुतर्क देते हैं कि हमें ईश्वर ने ऐसा ही बनाकर पैदा किया है अर्थात् यह हमारा स्वभाव है जिससे हम छुटकारा नहीं पा सकते हैं। लेकिन वे अपने विचार के पक्ष में कोई तर्क देने में असमर्थ हैं।

दूसरी ओर इसका विरोध करने वाले लोगों का एक वर्ग इसे एक मानसिक रोग बताता है, लेकिन उसका यह सिद्धांत भी निराधार है, तर्कविहीन है। सच्चाई यह है कि समलैंगिकता सामान्य व्यक्तियों का असामान्य व्यवहार है और कुछ नहीं।

क़ुरआन ने जिस प्रकार लूत की क़ौम की घटना प्रस्तुत की है उससे भी स्पष्ट होता है कि यह न तो शारीरिक दोष है और न मानसिक रोग, क्योंकि शारीरिक दोष या मानसिक रोग का एक-दो लोग शिकार हो सकते हैं, एक साथ सारी की सारी क़ौम नहीं। यह भी कि ईश्वर अपने दूत लोगों के शारीरिक या मानसिक रोगों के उपचार के लिए नहीं भेजता और न ही उपदेश या मार्गदर्शन देने या अपने अच्छे आचरण का व्यावहारिक नमूना प्रस्तुत करने से ऐसे रोग दूर हो सकते हैं।

यह मात्र एक दुराचार है, जिस प्रकार नशे की लत, गाली-गलौज, और झगड़े-लड़ाई की प्रवृत्ति और अन्य दुराचार।

समलैंगिकता व्यक्ति और समाज दोनों के लिए ख़तरनाक है। यह एक घातक रोग (एड्स) का मुख्य कारण है। इसके अलावा यह महिला और पुरुष दोनों के लिए अपमानजनक भी है।

इस्लाम एक पुरुष को पुरुष और एक महिला को महिला बने रहने की शिक्षा देता है, जबकि समलैंगिकता एक पुरुष से उसका पुरुषत्व और एक महिला से उसका स्त्रीत्व छीन लेता है। यह अत्यंत अस्वाभाविक जीवनशैली है। समलैंगिकता पारिवारिक जीवन को विघटन की ओर ले जाता है।

इन्हीं कारणों से इस्लाम समलैंगिकता को एक अक्षम्य अपराध मानते हुए समाज में इसके लिए कोई स्थान नहीं छोड़ता है। और यदि समाज में यह अपना कोई स्थान बनाने लगे तो उसे रोकने के लिए या अगर कोई स्थान बना ले तो उसके उन्मूलन के लिए पूरी निष्ठा और गंभीरता के साथ आवश्यक और कड़े क़दम भी उठाता है।

Azaz yusufzai (वार्ता) 09:35, 7 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]