सदस्य वार्ता:रणजीतसिंह राजपुरोहित

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 16:49, 17 अप्रैल 2018 (UTC)[उत्तर दें]

मनसबदारी प्रथा[संपादित करें]

,मनसबदारी प्रथा

मंसब फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘पद’ 

|इसके दो भाग थे जात एवं सवार |जात से तात्पर्य व्यक्तिगत पद (सेना) से था जबकि सवार से तात्पर्य घुड़सवारों की संख्या से था |‘मनसबदार’ शब्द पदाधिकारी के लिए प्रयुक्त होता था और इस पूरी व्यवस्था को मनसबदारी व्यवस्था कहा जाता था |मुगलकाल में मनसबदारी प्रथा का प्रारंभ अकबर ने किया था |मनसब का निर्धारण अंको के माध्यम से होता था |यह मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित थी |इसका मूल चंगेज खान की व्यवस्था में देखा जा सकता है |मनसब सैनिक अथवा असैनिक किसी को भी दिया जा सकता था |यह व्यवस्था स्थानांतरणीय थी, अनुवांशिक नहीं |इस व्यवस्था के अंतर्गत अकबर ने अपने शासन के तीन प्रमुख अंगो – सामंत, सेना एवं नौकरशाही को एक सामान्य व्यवस्था में संगठित कर दिया |अकबर के समय न्यूनतम मनसब का अंक 10 था और अधिकतम 10,000 |दस हज़ार का सर्वोच्च मनसब युवराज सलीम को दिया गया था जिसे बाद में बढाकर अकबर ने बारह हज़ार कर दिया था |अबुल फज़ल ने मनसब की 33 श्रेणियों का वर्णन किया है |500 से नीचे के मनसबदार, मनसबदार कहलाते थे |500 से 2500 तक के मनसबदारो को अमीर कहा जाता था |2500 से ऊपर के मनसबदारों को अमीर-ए-आजम कहा जाता था |काजियों एवं सद्रों को इस व्यवस्था में सम्मिलित नहीं किया गया था |जात का अर्थ सैनिक पद से तथा सवार का अर्थ घुड़सवारों की संख्या से था जो मनसबदारों को रखनी पड़ती थी |प्रत्येक मनसबदार को एक साथ जात और सवार के पद प्रदान किये गे जैसे –5000/5000 अथवा 2000/2000 आदि | इसमें जोड़े का पहला अंक जात मनसब और दूसरा अंक सवार मनसब कहलाता था |जात मनसब द्वारा किसी व्यक्ति का अधिकारियों के बीच स्थान या उसकी वरीयता का निर्धारण होता था | इसी के अनुसार उसका वेतन भी निर्धारित होता था |सवार मनसब के द्वारा किसी ब्यक्ति के सैनिक दायित्व का निर्धारण होता था |जात और सवार के बीच में अनुपात भी निर्धारित था | प्रत्येक स्थिति में सवार मनसब की संख्या जात मनसब से अधिक नहीं होती थी | यह संख्या जात मनसब के बराबर, या उसकी आधी या आधी से कम होती थी |इसी आधार पर मनसबदारों की श्रेणियां निर्धारित होती थी |जात और सवार की श्रेणी को शामिल करने के बाद मनसबदारो की प्रत्येक श्रेणी को पुनः तीन श्रेणियों में बांटा गया था | प्रथम श्रेणी के मनसबदारों में जात और सवार पदों की संख्या बराबर होती थी | द्वितीय श्रेणी में सवार मनसब जात मनसब का आधा होता था और तीसरी श्रेणी में सवार मनसब जात मनसब के आधे से भी कम होता था |केवल विशेष परिस्थिति में सवार मनसब में जात मनसब से अधिक संख्या हो सकती थी जिसे ‘मशरूत मनसब’ कहा जाता था |अकबर ने सेना की कार्य कुशलता बनाये रखने के लिए दहबिस्ती (10-20) का नियम निर्धारित किया था | इसके अनुसार प्रत्येक दस सैनिक पर बीस घोड़े अनिवार्य रूप से रखने होते थे ताकि आवश्यकता पड़ने पर सैनिको के लिए घोड़े उपलब्ध रहें |1579 ई. में अपने शासन के 18वें वत्श में अकबर ने ‘दाग’ व ‘तसहीहा (चेहरा)’ प्रथा का प्रारंभ किया |दाग प्रथा के अंतर्गत घोड़ों पर शाही मोहर का चिन्ह और एक मनसबदार का निशान दागा जाता था | प्रत्येक मनसबदार का निशान अलग-अलग कर दिया जाता था जिससे वे एक दुसरे के घोड़े को तब्दील न कर सकें | इसके लिए अकबर ने एक पृथक विभाग ‘दाग-महाली’ की स्थापना की |तसहीहा (चेहरा) के अंतर्गत प्रत्येक सैनिक का हुलिया रखा जाता था |अकबर के शासनकाल में प्रत्येक वर्ष घोड़े के साज-सामान के लिए मनसबदारों के वेतन में से एक माह का वेतन काट लिया जाता था |जहाँगीर ने अपने समय में ‘दो अस्पा’ एवं ‘सिंह अस्पा’ नामक नवीन व्यवस्था शुरू की | दो अस्पा से तात्पर्य दो घोड़े एवं सिंह अस्पा से तात्पर्य तीन घोड़े से था | इसके अंतर्गत सवार मनसब के निर्धारित अंक में वृद्धि किये बिना उसके अधीन सैनकों की संख्या में वृद्धि की जाती थी |शाहजहाँ ने मनसबदारी व्यवस्था में मासिक वेतक की शुरुआत की |शाहजहाँ के समय में पुरे मुग़ल काल का सबसे बड़ा मनसब दारा शिकोह को 60,000 का दिया गया |हिन्दू मनसबदारों की सर्वाधिक संख्या (33 प्रतिशत) औरंगजेब के काल में थी | रणजीतसिंह राजपुरोहित (वार्ता) 16:53, 17 अप्रैल 2018 (UTC)[उत्तर दें]