संगीत का इतिहास
युद्ध, उत्सव और प्रार्थना या भजन के समय मानव गाने बजाने का उपयोग करता चला आया है। संसार में सभी जातियों में बाँसुरी इत्यादि फूँक के वाद्य (सुषिर), कुछ तार या ताँत के वाद्य (तत), कुछ चमड़े से मढ़े हुए वाद्य (अवनद्ध या आनद्ध), कुछ ठोंककर बजाने के वाद्य (घन) मिलते हैं।
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नाद किसे कहते हैं ये कितने प्रकार के होते हैं किसी भी कर्णप्रिय संगीत की ध्वनि को नाद कहते हैं नाद के दो भेद है (1)आहट नाद :जो नाद वस्तुओं के टकराने से उत्पन्न होते हैं (2)आनाहट नाद :-जो नाद स्वयं उत्पन्न होता है
भारत में संगीत की विकास यात्रा
[संपादित करें]प्रगैतिहासिक काल से ही भारत में संगीत की समृद्ध परम्परा रही है। गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है। ऐसा जान पड़ता है कि भारत में भरत के समय तक गान को पहले केवल गीत कहते थे। वाद्य में जहाँ गीत नहीं होता था, केवल दाड़ा, दिड़दिड़ जैसे शुष्क अक्षर होते थे, वहाँ उस निर्गीत या बहिर्गीत कहते थे और नृत्त अथवा नृत्य की एक अलग कला थी। किंतु धीरे धीरे गान, वाद्य और नृत्य तीनों का "संगीत" में अंतर्भाव हो गया - गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगतमुच्यते।
भारत से बाहर अन्य देशों में केवल गीत और वाद्य को संगीत में गिनते हैं; नृत्य को एक भिन्न कला मानते हैं। भारत में भी नृत्य को संगीत में केवल इसलिए गिन लिया गया कि उसके साथ बराबर गीत या वाद्य अथवा दोनों रहते हैं। हम ऊपर कह चुके हैं कि स्वर और लय की कला को संगीत कहते हैं। स्वर और लय गीत और वाद्य दोनों में मिलते हैं, किंतु नृत्य में लय मात्र है, स्वर नहीं। हम संगीत के अंतर्गत केवल गीत और वाद्य की चर्चा करेंगे, क्योंकि संगीत केवल इसी अर्थ में अन्य देशों में भी व्यवहृत होता है।
भारतीय संगीत में यह माना गया है कि संगीत के आदि प्रेरक शिव और सरस्वती है। इसका तात्पर्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को बिना किसी दैवी प्रेरणा के, केवल अपने बल पर, विकसित नहीं कर सकता।
भारतीय संगीत का आदि रूप वेदों में मिलता है। वेद के काल के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है, किंतु उसका काल ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व था - इसपर प्राय: सभी विद्वान् सहमत है। इसलिए भारतीय संगीत का इतिहास कम से कम 4000 वर्ष प्राचीन है।
वेदों में वाण, वीणा और कर्करि इत्यादि तंतु वाद्यों का उल्लेख मिलता है। अवनद्ध वाद्यों में दुदुंभि, गर्गर इत्यादि का, घनवाद्यों में आघाट या आघाटि और सुषिर वाद्यों में बाकुर, नाडी, तूणव, शंख इत्यादि का उल्लेख है। यजुर्वेद में 30वें कांड के 19वें और 20वें मंत्र में कई वाद्य बजानेवालों का उल्लेख है जिससे प्रतीत होता है कि उस समय तक कई प्रकार के वाद्यवादन का व्यवसाय हो चला था।
संसार भर में सबसे प्राचीन संगीत सामवेद में मिलता है। उस समय "स्वर" को "यम" कहते थे। साम का संगीत से इतना घनिष्ठ संबंध था कि साम को स्वर का पर्याय समझने लग गए थे। छांदोग्योपनिषद् में यह बात प्रश्नोत्तर के रूप में स्पष्ट की गई है। "का साम्नो गतिरिति? स्वर इति होवाच" (छा. उ. 1। 8। 4)। (प्रश्न "साम की गति क्या है?" उत्तर "स्वर"। साम का "स्व" अपनापन "स्वर" है। "तस्य हैतस्य साम्नो य: स्वं वेद, भवति हास्य स्वं, तस्य स्वर एव स्वम्" (बृ. उ. 1। 3। 25) अर्थात् जो साम के स्वर को जानता है उसे "स्व" प्राप्त होता है। साम का "स्व" स्वर ही है।
वैदिक काल से प्रारम्भ भारतीय संगीत की परम्परा निरन्तर फलती-फूलती और समृद्ध होती रही। इस पर सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गये।
अन्य देशों में संगीत का विकास
[संपादित करें]भारत से बाहर सबसे प्राचीन संगीत सुमेरु, बवे डिग्री (बाबल या बैबिलोनिया), असुर (असीरिया) और सुर (सीरिया) का माना जाता है। उनका कोई साहित्य नहीं मिलता। मंदिरों और राजमहलों पर उद्धृत कुछ वाद्यों से ही उनके संगीत का अनुमान किया जा सकता है। उनके एक वाद्य बलग्गु या बलगु का उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वान् इसका अर्थ एक अवनद्ध वाद्य लगाते हैं और कुछ लोग धनुषाकार वीणा। एक तब्बलु वाद्य लगाते हैं और कुछ लोग धनुषाकार वीणा। एक तब्बलु वाद्य होता था जो आधुनिक डफ जैसा बना होता था। कुछ मंदिरों पर एक ऐसा उद्धृत तत वाद्य मिला है जिसमें पाँच से सात तार तक होते थे। एक गिगिद नामक बाँसुरी भी थी। बैबिलोनिया की कुछ चक्रिकाओं में कुछ शब्दों के साथ अ, इ, उ इत्यादि स्वर लगे हुए मिलते हैं जिससे कुछ विद्वान् यह अनुमान लगाते हैं कि यह एक प्रकार की स्वरलिपि थी। जिस प्रकार से वेद का सस्वर पाठ होता था उसी प्रकार बैबिलोनिया में भी होता था और "अ" स्वरित का चिन्ह था, "ए" विकृत स्वर का, "इ" उदात्त का "उ" अनुदात्त का। किंतु इस कल्पना के पोषक प्रमाण अभी नहीं मिले हैं।
चीन में प्राय: पाँच स्वरों के ही गान मिलते हैं। सात स्वरों का उपयोग करनेवाले बहुत ही कम गान हैं। उनकी एक प्रकार की बहुत ही प्राचीन स्वरलिपि है। बौद्धों के पहुंचने पर यहाँ के संगीत पर कुछ भारतीय संगीत का भी प्रभाव पड़ा।
इब्रानी संगीत भी बहुत ही प्राचीन है। यहाँ के संगीत पर सुमेरु - बैबिलोनिया इत्यादि के संगीत का प्रभाव पड़ा। वे लोग मंदिरों में जो गान करते थे उसे समय या साम कहते थे। इनका प्रसिद्ध तत वाद्य होता था जिसको ये "किन्नर" कहते थे।
मिस्र देश का संगीत भी बहुत ही प्राचीन है। इन लोगों का विश्वास था कि मानव में संगीत देवी आइसिस अथवा देव थाथ द्वारा आया है। इनका प्रसिद्ध तत वाद्य बीन या बिण्त कहलाता था। मिस्र देश के लोग स्वर को हर्ब कहते थे। इनके मंदिर संगीत के केंद्र बन गए थे। अफलातून, जो मिश्र देश में अध्ययन के लिए गया था, कहता है, वहाँ के मंदिरों में संगीत के नियम ऐसी पूर्णता से बरते जाते थे कि कोई गायक वादक उनके विपरीत नहीं जा सकता था। कहा जाता है कि कोई 300 वर्ष ई.पू. मिस्र में लगभग 600 वादकों का एक वाद्यवृंद था जिसमें 300 तो केवल बीन बजानेवाले थे। इनके संगीत में कई प्रकार के तत, सुधिर, अवनद्ध और धन वाद्य थे। मिस्र से पाइथागोरस और अफलातून दोनों ने संगीत सीखा। यूनान के संगीत पर मिस्र के संगीत का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा।
यूरोप में सबसे पहले यूनान में संगीत एक व्यवस्थित कला के रूप में विकसित हुआ। भरत की मूर्छनाओं की तरह यहाँ भी कुछ "मोड" बने जिससे अनेक प्रकार की "धुने" बनती थी। यहाँ भी तत, सुषिर, अवनद्ध और धन वाद्य कई प्रकार के थे। यूरोप में पाइथागोरस पहला व्यक्ति हुआ है जिसने गणित के नियमों द्वारा स्वरों के स्थान को निर्धारित किया।
लगभग 16वीं शती से यूरोप में संगीत का एक नई दिशा में विकास हुआ। इसे स्वरसंहति (हार्मनी) कहते हैं। संहति में कई स्वरों का मधुर मेल होता है, जैसे स, ग, प (षड्ज, गांधार, पंचम) की संगति। इस प्रकार के एक से अधिक स्वरों के गुच्छे को "संघात" (कार्ड) कहते हैं। एक संघात के सब स्वर एक साथ भिन्न भिन्न वाद्यों से निकलकर एक में मिलकर एक मधुर कलात्मक वातावरण की सृष्टि करते हैं। इसी के आधार पर यूरोप के आरकेष्ट्रा (वृंदवादन) का विकास हुआ है। स्वरसंहति एक विशिष्ट लक्षण है जिससे पाश्चात्य संगीत पूर्वीय संगीत से भिन्न हो जाता है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- The Dictionary of the History of Ideas see Music and Science, Music as a Demonic Art, Music as a Divine Art
- Edinburgh University Collection of Historic Musical Instruments
- Essentials of Music Classical Music eras, composers, glossary from Sony Music Entertainment
- Glossary of Musical Instruments & Styles and Quotes from OddMusic.com
- Historic American Sheet Music
- Lester S. Levy Sheet Music Collection popular American music, 1780-1960
- Musical History from the Smithsonian Institution, Encyclopedia Smithsonian
- Music History Resources at GeoCities.com
- Music History Time Lines from the Schuylkill Haven Elementary Center Music
- The Music History Webring
- The New Baroque and Renaissance Music Website at GeoCities.com
- National Music Museum from the University of South Dakota
- Russell Collection of Early Keyboard Instruments from the University of Edinburgh
- Tim Gracyk's Phonographs and Old Records
- U.S. popular music timeline