शालिभद्र सूरि
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शालिभद्र सूरि (१२वीं सदी) एक कवि थे जो 'भरतेश्वर बाहुबलि रास' नामक ग्रन्थ के रचयिता हैं। इस रचना के दो संस्करण मिलते हैं। पहला प्राच्य विद्या मन्दिर बड़ौदा से प्रकाशित किया गया है तथा दूसरा "रास' और रासान्वयी काव्य' में प्रकाशित हुआ है। कृति में रचनाकाल सं. १२३१ वि. दिया हुआ है। इसकी छन्द संख्या २०३ है। इसमें जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्रों भरतेश्वर और बाहुबलि में राजगद्दी के लिए हुए संघर्ष का वर्णन है।[1]
डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने अपने ग्रन्थ 'हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास' में शालिभद्र सूरि को हिन्दी का प्रथम कवि माना है। उनकी मान्यता है कि इस कृति के बाद इस प्रकार की अनेक कृतियाँ (रासो काव्य) रची गईं जो इस प्रकार हैं-
- बुद्धि रस ( १२वीं सदी )
- जीव दया रस ( 1200 ई. )
- चन्दन बाला रास ( 1200 ई. )
- जम्बूस्वामी रास ( 1209 ई. )
- रेवन्त गिरि रास ( 1231 ई. )
- नेमिनाथ रास ( 1238 ई. )
- गद्यसुकुमाल रास ( 1250 ई. के लगभग )
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "हिन्दी साहित्य में रासो काव्य परम्परा". मूल से 21 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जुलाई 2018.