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शारदीय नवरात्रि

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शारदीय नवरात्रि

शारदीय नवरात्रि पर माँ दुर्गा जी की पूजा
अन्य नाम वार्षिकी नवरात्रि
अनुयायी हिन्दू
उद्देश्य धार्मिक निष्ठा, पूजा, उत्सव
उत्सव देवी माँ की आकृति बनाना, सार्वजनिक दुर्गा पूजा, आरती, भोज
अनुष्ठान देवी आराधना, दुर्गा पूजा एवं आरती; कन्या पूजन
आरम्भ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा
तिथि आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक

शरद नवरात्रि देवी पूूजा को समर्पित एक हिन्दू त्योहार है, जो शरद ऋतु में मनाया जाता है। हिन्दू परम्परा में नवरात्रि का त्योहार, वर्ष में दो बार प्रमुख रूप से मनाया जाता है : 1.) चैत्र मास में वासन्तिक नवरात्रि तथा 2.) आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि।[1] शारदीय नवरात्रि के उपरान्त दशमी तिथि को विजयदशमी (दशहरा) पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि का महात्म्य सर्वोपरि इसलिये है कि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर और आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी और उनकी पुकार सुनकर देवी माँ का आविर्भाव हुआ। उनके प्राकट्य से दैत्यों के सँहार करने पर देवी माँ की स्तुति देवताओं ने की थी। उसी पावन स्मृति में शारदीय नवरात्रि का महोत्सव मनाया जाता है।

शारदीय नवरात्रि का व्रत श्रीरामचन्द्र जी ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिये किया था। उन्होंने पूर्ण विधि-विधान से महाशक्ति की पूजा उपासना की थी। महाभारत काल में पाण्डवों ने श्रीकृष्णजी के परामर्श पर शारदीय नवरात्रि की पावन बेला पर माँ दुर्गा महाशक्ति की उपासना विजय के लिये की थी। तब से तथा उसके पूर्व से शारदीय नवव्रत उपासना का क्रम चला आ रहा है। यह नवरात्रि इन्हीं कारणों से बड़ी नवरात्रि, महत्त्वपूर्ण एवं वार्षिकी नवरात्रि के रूप में मनायी जाती है। बंगाल प्रांत में इसी नवरात्रि को दुर्गापूजा का सबसे बड़ा महोत्सव होता है। बंगाल में सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी की विशेष पूजा का विशेष महत्त्व माना जाता है।[2]

नवरात्रि का व्रत धन-धान्य प्रदान करनेवाला, आयु एवं आरोग्यवर्धक है। शत्रुओं का दमन व बल की वृद्धि करनेवाला है ।

नवरात्रि के नौ दिनों में दैवीय तत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुणा अधिक सक्रिय रहता है । इस कालावधि में दैवीय तत्त्व की अतिसूक्ष्म तरंगें धीरे-धीरे क्रियाशील होती हैं और पूरे ब्रह्मांड में संचरित ( फैल जाती हैं ) होती हैं । उस समय ब्रह्मांड में विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं और ब्रह्मांड की शुद्धि होने लगती है । दैवीय तत्त्व की शक्ति का स्तर प्रथम तीन दिनों में सगुण-निर्गुण होता है । उसके उपरांत उसमें निर्गुण तत्त्व की मात्रा बढ़ती है और नवरात्रि के अंतिम 3 दिन इस निर्गुण तत्त्व की मात्रा सर्वाधिक होती है ।

नवरात्रि की कालावधि में महाबलशाली दैत्यों का वध कर देवी दुर्गा ने संपूर्ण सृष्टि को भय मुक्त किया था । तदुपरांत देवताओं ने उनकी स्तुति की । उस समय देवी मां ने सर्व देवताओं एवं मानवों को अभय का आशीर्वाद देते हुए वचन दिया कि

इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।

तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।

    – मार्कंडेयपुराण 91.51

इसका अर्थ है, जब-जब दानवों द्वारा जगत को बाधा पहुँचेगी, तब-तब मैं अवतार धारण कर शत्रुओं का नाश करूंगी।[3]

इन्हें भी देखें

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देवी भागवत में आता है कि देवी की स्थापना करनी चाहिए | नौ हाथ लम्बा भण्डार( मंडप/स्थापना का स्थान) हो |

  1. नवरात्रि के पहले दिन स्थापना, देव वृत्ति की कुंवारी कन्या का पूजन हो |
  2. नवरात्रि के दूसरे दिन 3 वर्ष की कन्या का पूजन हो, जिससे धन आएगा ,कामना की पूर्ति के लिए |
  3. नवरात्रि के तीसरे दिन 4 वर्ष की कन्या का पूजन करें, भोजन करायें तो कल्याण होगा,विद्यामिलेगी, विजय प्राप्त होगा, राज्य मिलता है |
  4. नवरात्रि के चौथे दिन 5 वर्ष की कन्या का पूजन करें और भोजन करायें | रोग नाश होते हैं | या देवी सर्व भूतेषु आरोग्य रुपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमो नमः || जप करें; पूरा साल आरोग्य रहेगा |
  5. नवरात्रि के पांचवे दिन 6 वर्ष की कन्या काकाली का रुप मानकर पूजन करके भोजन कराए तो शत्रुओं का दमन होता है |
  6. नवरात्रि के छटे दिन 7 वर्ष की कन्या काचंडी का रुप मानकर पूजन करके भोजन कराए तो ऐश्वर्य और धन सम्पत्ति की प्राप्ति होती है |
  7. नवरात्रि के सातवे दिन 8 वर्ष की कन्या का शाम्भवीरुप में पूजन कर के भोजन कराए तो किसी महत्त्व पूर्ण कार्य करने के लिए,शत्रु पे धावा बोलने के लिए |
  8. नवरात्रि की अष्टमी को 9 साल की कन्या की दुर्गा रूप में पूजा करनी चाहिए | सभी संकल्प सिद्धहोते हैं | शत्रुओं का संहार होता है |
  9. नवरात्रि के नवमी को 10 साल की कन्या का पूजन भोजन कराने से सर्व मंगल होगा, संकल्प सिद्ध होंगे, सामर्थ्यवान बनेंगे, इसलोक के साथ परलोक को भी प्राप्त कर लेंगे, पाप दूर होते हैं, बुद्धि में औदार्य आता है, नारकीय जीवन छुट जाता है, हर काम में, हर दिशा में सफलता मिलती है |[4]

सनातन धर्म में निर्गुण निराकार परब्रह्म परमात्मा को पाने की योग्यता बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार की उपासनाएँ चलती हैं | उपासना माने उस परमात्म-तत्व के निकट आने का साधन |ऐसे उपासना करनेवाले लोगों में विष्णुजी के साकार रूप का ध्यान-भजन, पूजन-अर्जन करनेवाले लोगों को वैष्णव कहा जाता है और शक्ति की उपासना करनेवाले लोगों को शाक्त कहा जाता है | बंगाल में कलकत्ता की और शक्ति की उपासना करनेवाले शाक्त लोग अधिक संख्या में हैं |

‘श्रीमद देवी भगवत’ शक्ति के उपासकों का मुख्य ग्रन्थ है | उसमें जगदम्बा की महिमा है | शक्ति के उपस्क नवरात्रि में विशेष रूप से शक्ति की आराधना करते हैं | इन दिनों में पूजन-अर्जन, कीर्तन, व्रत-उपवास, मौन, जागरण आदि का विशेष महत्त्व होता है |

नवरात्रि को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है | उसमें पहले तीन दिन तमस को जीतने की आराधना के हैं | दुसरे तीन दिन रजस को और तीसरे दिन सत्त्व को जीतने की आराधना के हैं | आखरी दिन दशहरा है | वह सात्विक, रजस और तमस तीनों गुणों को यानि महिषासुर को मारकर जीव को माया की  जाल से छुड़ाकर शिव से मिलाने का दिन है |

जिस दिन महामाया ब्रह्मविद्या   आसुरी वृतियों को मारकर जीव के ब्रह्मभाव को प्रकट करती हैं, उसी दिन जीव की विजय होती है इसलिए उसका नाम ‘विजयादशमी’ है | हज़ारों-लाखों जन्मों से जीव त्रिगुणमयी माया के चक्कर में फँसा था, आसुरी वृतियों के फँदे में पड़ा था | जब महामाया जगदम्बा की अर्चना-उपासना-आराधना की तब वह जीव विजेता हो गया | माया के चक्कर से, अविद्या के फँदे से मुक्त हो गया, वह ब्रह्म हो गया |[5]

काम धंधे में सफलता एवं राज योग के लिए

अगर काम धंधा करते सफलता नहीं मिलती हो या विघ्न आते हों तो शुकल पक्ष की अष्टमी हो.. बेल के कोमल कोमल पत्तों पर लाल चन्दन लगा कर माँ जगदम्बा को अर्पण करने से .... मंत्र बोले " ॐ ह्रीं नमः । ॐ श्रीं नमः । " और थोड़ी देर बैठ कर प्रार्थना और जप करने से राज योग बनता है गुरु मंत्र का जप और कभी कभी ये प्रयोग करें नवरात्रियों में तो खास करें | देवी भागवत में वेद व्यास जी ने बताया है।[6]

सन्दर्भ

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  1. Śrīmārkaṇḍeyamahāpurāṇam. Paurāṇika tathā Vaidika Adhyayana evaṃ Anusandhāna Saṃsthāna. 1985.
  2. Shrimali, Pt Kamal Radhakrishna (2020-10-30). Navratri - नवरात्रि : (नौ दिनों में कामनापूर्ति हेतु माँ की उपासना). Diamond Pocket Books Pvt Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-90504-08-4.
  3. "Shardiya Navratri".
  4. "Navaratri Festival".
  5. "उपासना का महत्व".
  6. "Navaratri Festival".