वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय

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वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय

वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय उपाख्य 'चट्टो' (31 अक्तूबर 1880 — 2 सितम्बर 1937, मास्को) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे जिन्होने सशस्त्र कार्यवाही करके अंग्रेजी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। इन्होने अधिकांश कार्य विदेशों में रहकर किया[1]आजाद हिन्द फौज की नींव डालने में इनका महत्वपूर्ण हाथ है। भारत कोकिला श्रीमती सरोजिनी नायडू इनकी ही बहन थीं।

वीरेन्द्र नाथ चटर्जी का जन्म ढाका के एक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय निजाम कॉलेज, हैदराबाद में प्रोफ़ेसर थे। पद्मजा नायडू इनकी भतीजी थीं जो स्वतंत्रता के बाद पश्चिम बंगाल की राज्यपाल रहीं। पिता ने उन्हें आई. सी. एस. की परीक्षा पास करने के लिए लन्दन भेजा था। उसमें सफलता न मिलने पर वीरेंद्र कानून की पढ़ाई करने लगे। इसी समय चटर्जी का सम्पर्क विनायक दामोदर सावरकर से हुआ और उनके जीवन की दिशा बदल गई। गतिविधियां

वीरेंद्र नाथ चटर्जी की राजनीतिक गतिविधियों को देखकर उन्हें लॉ कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। निष्कासित होने के बाद वे पूरी तरह से भारत को स्वतंत्र कराने के पक्ष में जुट गये। जर्मनी और रूस की यात्रा इसी उद्देश्य से की। चटर्जी पेरिस में मदाम भीखाजी कामा के 'वंदेमातरम' समूह से भी जुड़े रहे। इसी समय वे कम्युनिस्ट विचारों के प्रभाव में आ गये।

1920 में रूस समर्थक क्रांतिकारियों के नेता के रूप में वीरेंद्र नाथ चटर्जी ने मास्को की यात्रा की। लेनिन और ट्राटस्की इनसे बहुत प्रभावित हुए। मास्को में उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक संगठन बनाने का प्रयत्न किया। आपस में मतभेद हो जाने से यह काम आगे नहीं बढ़ सका। वीरेंद्र नाथ का कहना था कि अभी भारत की परिस्थितियां सर्वहारा क्रांति के अनुकूल नहीं है, अतः हमें राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करना चाहिए । लेनिन उनके इस विचार से सहमत थे। परन्तु अन्य के सहमत न होने से इसमें प्रगति नहीं हो सकी।

अनुमान है कि वीरेंद्र नाथ चटर्जी का शेष जीवन रूस में ही बीता यद्यपि इसका कोई पक्का सबूत उपलब्ध नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि ट्राटस्की से चटर्जी की निकटता देखकर स्टालिन ने उन्हें जेल में डलवा दिया था। यह भी कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने सोवियत संघ की नागरिकता ले ली थी।

बताया जाता है कि स्टालिन के महान शुद्धिकरण में मारे गये कई लोगों में वीरेनद्रन्थ भी शामिल थे[2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Virendranath Chattopadhyaya". web.archive.org. मूल से पुरालेखित 15 नवंबर 2014. अभिगमन तिथि 2020-09-10.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  2. Liebau, Heike (2017-12-14). "Chattopadhyaya, Virendranath". International Encyclopaedia of the First WorldWar (WW1). अभिगमन तिथि 2020-09-10.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]