"मूल": अवतरणों में अंतर
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05:57, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण
मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। यह ये ये भा भी के नाम से जाना जाता है। नक्षत्र का स्वामी केतु है। वहीं राशि स्वामी गुरु है। केतु गुरु धनु राशि में उच्च का होता है व इसकी दशा 7 वर्ष की होती है। इस के बाद सर्वाधिक 20 वर्ष की दशा शुक्र की लगती है जो इनके जीवन में इन्ही दशाओं का महत्व अधिक होता है। यह दशा इनके जीवन में विद्या भाव को बढ़ाने वाली होती है इन्हीं दशा में बचपन से युवावस्था आती है।
केतु छाया ग्रह है यह पुराणिक मतानुसार राहु का धड़ है लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह दक्षिणी ध्रुव का कोना है। यह धनु राशि में उच्च व मिथुन में नीच का मीन में स्वराशिस्थ व कन्या में शत्रु राशिस्थ होता है। केतु स्वतंत्र फल देने में सक्षम नहीं होता यह जिसके साथ होगा वैसा परिणाम देगा। धनु में केतु व गुरु भी साथ हो या मीन राशि में या कर्क में उच्च का हो तो उसके प्रभाव को दुगना कर जहाँ भी स्थित होगा उत्तम परिणाम देगा।
ऐसा जातक ईमानदार लेकिन जिद्दी स्वभाव का भी होगा। ऐसा जातक वकील, जज, बैंक कर्मी, प्रशासनिक सेवाओं में, कपड़ा व्यापार, किराना आदि के क्षेत्र में सफल होता है।