"एसी/एसी परिवर्तक": अवतरणों में अंतर

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[[Image:Three Phase AC AC voltage DC.jpg|thumb|री-जनरेटिव वोल्टेज स्रोत इन्वर्टर AC/DC-AC परिवर्तक<ref>I. Takahashi, Y. Itoh, “Electrolytic Capacitor-Less PWM Inverter“, in Proceedings of the IPEC’90, Tokyo, Japan, , pp. 131 – 138, April 2 – 6, 1990.</ref>]]
[[Image:Three Phase AC AC voltage DC.jpg|thumb|300px|री-जनरेटिव वोल्टेज स्रोत इन्वर्टर AC/DC-AC परिवर्तक<ref>I. Takahashi, Y. Itoh, “Electrolytic Capacitor-Less PWM Inverter“, in Proceedings of the IPEC’90, Tokyo, Japan, , pp. 131 – 138, April 2 – 6, 1990.</ref>]]
[[Image:Direct matrix converter.jpg|thumb|परम्परागत डाइरेक्ट मैट्रिक्स परिवर्तक <ref>L. Gyugyi, B. R. Pelly, “Static Power Frequency Changers - Theory, Performance, & Application“, New York: J. Wiley, 1976.</ref><ref>W. I. Popow, “Der zwangskommutierte Direktumrichter mit sinusförmiger Ausgangsspannung,“ Elektrie 28, No. 4, pp. 194 – 196, 1974</ref>]]
[[Image:Direct matrix converter.jpg|thumb|परम्परागत डाइरेक्ट मैट्रिक्स परिवर्तक <ref>L. Gyugyi, B. R. Pelly, “Static Power Frequency Changers - Theory, Performance, & Application“, New York: J. Wiley, 1976.</ref><ref>W. I. Popow, “Der zwangskommutierte Direktumrichter mit sinusförmiger Ausgangsspannung,“ Elektrie 28, No. 4, pp. 194 – 196, 1974</ref>]]
कुछ प्रत्यावर्ती धारा से प्रत्यावर्ती धारा बनाने वाले परिवर्तक केवल [[वर्ग मूल माध्य|आरएमएस]] बदलते हैं, आवृति नहीं। इनके आउटपुट धारा का रूप साइन-आकारीय (साइनस्वायडल) नहीं होता बल्कि इनमें बहुत सारे हार्मोनिक्स होते हैं। इसके बावजूद भी बहुत से कार्यों के लिए ये उपयुक्त होते हैं क्योंकि इनकी रचना और कार्यप्रणाली बहुत सरल होती है। उदाहरण के लिए, विद्युत की सहायता से [[ऊष्मा]] पैदा करने (जूल हीटिंग्ग) के लिए प्रायः इसी तरह के विद्युत परिवर्तक काम में आते हैं क्योंकि हीटर को हार्मोनिक्स से कोई समस्या नहीं होती, धारा का rms बदलकर पैदा होने वाली ऊष्मा को कम या अधिक किया जाता है।
कुछ प्रत्यावर्ती धारा से प्रत्यावर्ती धारा बनाने वाले परिवर्तक केवल [[वर्ग माध्य मूल|आरएमएस]] बदलते हैं, [[आवृति]] नहीं। इनके आउटपुट धारा का रूप साइन-आकारीय (साइनस्वायडल) नहीं होता बल्कि इनमें बहुत सारे हार्मोनिक्स होते हैं। इसके बावजूद भी बहुत से कार्यों के लिए ये उपयुक्त होते हैं क्योंकि इनकी रचना और कार्यप्रणाली बहुत सरल होती है। उदाहरण के लिए, विद्युत की सहायता से [[ऊष्मा]] पैदा करने (जूल हीटिंग्ग) के लिए प्रायः इसी तरह के विद्युत परिवर्तक काम में आते हैं क्योंकि हीटर को हार्मोनिक्स से कोई समस्या नहीं होती, धारा का rms बदलकर पैदा होने वाली ऊष्मा को कम या अधिक किया जाता है।


दूसरे प्रकार के एसी/एसी परिवर्तक, पहले एसी को दिष्टधारा (DC) में बदलते हैं और फिर डीसी को एसी में (अर्थात इनमें 'डीसी लिंक' का उपयोग किया जाता है।)। ऐसा करने से लाभ यह है कि आउटपुट एसी का आयाम तो बदला ही जा सकता है, उसकी [[आवृति]] भी बदल सकते हैं। इसके अलावा इससे बहुत कम कम हार्मोनिक्स (THD) वाली विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है। [[प्रेरण मोटर|प्रेरण मोटरों]] को अलग-अलग वेग से चलाने के लिए इसी तरह के विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें [[परिवर्ती आवृत्ति ड्राइव]] खते हैं।
दूसरे प्रकार के एसी/एसी परिवर्तक, पहले ए.सी. को [[दिष्टधारा]] (DC) में बदलते हैं और फिर डी.सी. को ए.सी. में (अर्थात इनमें 'डीसी लिंक' का उपयोग किया जाता है।)। ऐसा करने से लाभ यह है कि आउटपुट एसी का आयाम तो बदला ही जा सकता है, उसकी [[आवृति]] भी बदल सकते हैं। इसके अलावा इससे बहुत कम कम हार्मोनिक्स (THD) वाली विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है। [[प्रेरण मोटर|प्रेरण मोटरों]] को अलग-अलग वेग से चलाने के लिए इसी तरह के विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें [[परिवर्ती आवृत्ति ड्राइव]] खते हैं।


तीसरे तरह के एसी/एसी परिवर्तक, जो [[साइक्लो-कन्वर्टर]] कहलाते हैं, किसी आवृत्ति की एसी को लेकर उससे '''कम''' आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा देते हैं। उदाहरण के लिए, ५० हर्ट्ज की ए.सी. लेकर उससे १६.६६७ हर्ट्ज की एसी पैदा करने वाले विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग कहीं-कहीं [[विद्युत कर्षण]] में होता है। साइक्लोकन्वर्टर के लिए कई तरह के परिपथ (टोपोलोजी) प्रयोग की जाती है, जैसे परम्परागत मैट्रिक्स कन्वर्टर, स्पार्स मैट्रिक्स कन्वर्टर आदि।
तीसरे तरह के एसी/एसी परिवर्तक, जो [[साइक्लो-कन्वर्टर]] कहलाते हैं, किसी आवृत्ति की एसी को लेकर उससे '''कम''' आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा देते हैं। उदाहरण के लिए, ५० हर्ट्ज की ए.सी. लेकर उससे १६.६६७ हर्ट्ज की एसी पैदा करने वाले विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग कहीं-कहीं [[विद्युत कर्षण]] में होता है। साइक्लोकन्वर्टर के लिए कई तरह के परिपथ (टोपोलोजी) प्रयोग की जाती है, जैसे परम्परागत मैट्रिक्स कन्वर्टर, स्पार्स मैट्रिक्स कन्वर्टर आदि।

03:09, 25 दिसम्बर 2017 का अवतरण

[[शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी के सन्दर्भ में, एसी-एसी परिवर्तक (AC-AC converter) एक प्रकार के प्रत्यावर्ती धारा को बदलकर दूसरे प्रकार की प्रत्यावर्ती धारा देता है। उदाहरण के लिए, कोई शक्ति परिवर्तक २३० वोल्ट (rms), ५० हर्ट्ज की ए.सी. को लेकर उससे १०० वोल्ट आरएमएस वाली ५० हर्ट्ज की प्रत्यावर्ती धारा देता है, वह एसी-एसी परिवर्तक है। इसी प्रकार, आवृति परिवर्तक, साइक्लोकनवर्टर आदि भी एसी-एसी परिवर्तक ही हैं।

तीन-फेजी AC-AC परिवर्तकों का वर्गीकरण[1]

प्रकार

री-जनरेटिव वोल्टेज स्रोत इन्वर्टर AC/DC-AC परिवर्तक[2]
परम्परागत डाइरेक्ट मैट्रिक्स परिवर्तक [3][4]

कुछ प्रत्यावर्ती धारा से प्रत्यावर्ती धारा बनाने वाले परिवर्तक केवल आरएमएस बदलते हैं, आवृति नहीं। इनके आउटपुट धारा का रूप साइन-आकारीय (साइनस्वायडल) नहीं होता बल्कि इनमें बहुत सारे हार्मोनिक्स होते हैं। इसके बावजूद भी बहुत से कार्यों के लिए ये उपयुक्त होते हैं क्योंकि इनकी रचना और कार्यप्रणाली बहुत सरल होती है। उदाहरण के लिए, विद्युत की सहायता से ऊष्मा पैदा करने (जूल हीटिंग्ग) के लिए प्रायः इसी तरह के विद्युत परिवर्तक काम में आते हैं क्योंकि हीटर को हार्मोनिक्स से कोई समस्या नहीं होती, धारा का rms बदलकर पैदा होने वाली ऊष्मा को कम या अधिक किया जाता है।

दूसरे प्रकार के एसी/एसी परिवर्तक, पहले ए.सी. को दिष्टधारा (DC) में बदलते हैं और फिर डी.सी. को ए.सी. में (अर्थात इनमें 'डीसी लिंक' का उपयोग किया जाता है।)। ऐसा करने से लाभ यह है कि आउटपुट एसी का आयाम तो बदला ही जा सकता है, उसकी आवृति भी बदल सकते हैं। इसके अलावा इससे बहुत कम कम हार्मोनिक्स (THD) वाली विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है। प्रेरण मोटरों को अलग-अलग वेग से चलाने के लिए इसी तरह के विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें परिवर्ती आवृत्ति ड्राइव खते हैं।

तीसरे तरह के एसी/एसी परिवर्तक, जो साइक्लो-कन्वर्टर कहलाते हैं, किसी आवृत्ति की एसी को लेकर उससे कम आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा देते हैं। उदाहरण के लिए, ५० हर्ट्ज की ए.सी. लेकर उससे १६.६६७ हर्ट्ज की एसी पैदा करने वाले विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग कहीं-कहीं विद्युत कर्षण में होता है। साइक्लोकन्वर्टर के लिए कई तरह के परिपथ (टोपोलोजी) प्रयोग की जाती है, जैसे परम्परागत मैट्रिक्स कन्वर्टर, स्पार्स मैट्रिक्स कन्वर्टर आदि।

सन्दर्भ

  1. J. W. Kolar, T. Friedli, F. Krismer, S. D. Round, “The Essence of Three-Phase AC/AC Converter Systems”, Proceedings of the 13th Power Electronics and Motion Control Conference (EPE-PEMC'08), Poznan, Poland, pp. 27 – 42, Sept. 1 - 3, 2008.
  2. I. Takahashi, Y. Itoh, “Electrolytic Capacitor-Less PWM Inverter“, in Proceedings of the IPEC’90, Tokyo, Japan, , pp. 131 – 138, April 2 – 6, 1990.
  3. L. Gyugyi, B. R. Pelly, “Static Power Frequency Changers - Theory, Performance, & Application“, New York: J. Wiley, 1976.
  4. W. I. Popow, “Der zwangskommutierte Direktumrichter mit sinusförmiger Ausgangsspannung,“ Elektrie 28, No. 4, pp. 194 – 196, 1974

इन्हें भी देखें